Wednesday 20 November 2024 05:27 PM IST : By Gopal Sinha

कहानी कागज की

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दादा जी बोलेः अरे, आज न्यूजपेपर नहीं आया क्या?

दादी बोलींः बेटे, मेरी फेवरेट मैगजीन लेते आना।

मम्मी बोलींः सुनो, किचन में किचन रोल खत्म हो गया है। और मुझे गिफ्ट रैपिंग पेपर भी चाहिए, शाम को पड़ोस में बच्चे की बर्थडे पार्टी में जाना है।

पापा बोलेः आजकल बैंक के एटीएम से 500 के नकली नोट भी निकल रहे हैं।

चाचा बोलेः ड्रॉइंग रूम की दीवारें खराब हो रही हैं, इन पर वॉलपेपर लगवा लेना चाहिए।

चुन्नू बोलाः मुझे नयी कॉपियां चाहिए।

रिंकी बोलीः मुझे अपना प्रोजेक्ट प्रिंट कराने जाना है।

छोटा मुन्नू टॉयलेट से चिल्लायाः अरे, टॉयलेट रोल खत्म हो गए हैं।

आपने कुछ नोट किया? इन सबकी बात में एक चीज कॉमन है, वह है पेपर यानी कागज के किसी ना किसी फॉर्म की जरूरत सबको है।

बात करते हैं उस कागज की, जो लाख डिजिटल क्रांति के बावजूद हमारी लाइफ में इस कदर घुसा हुआ है, जिसके बिना काम चल ही नहीं सकता। आंकड़ों के मुताबिक, भारत में 11वीं पंचवर्षीय योजना में पेपर इंडस्ट्री का कुल टर्नओवर 17000 करोड़ रुपए है। अपने यहां प्रति व्यक्ति कागज की खपत 7.2 किलोग्राम है, हालांकि यह अन्य देशों के मुकाबले कम है। माना जाता है कि चीन में ईसापूर्व दूसरी सदी में पल्प से कागज को बनाने की शुरुआत हुई थी। पहले पहल कागज हाथ से बनाए जाते थे। फिर 13वीं सदी में पेपर बनाने और उसे इस्तेमाल करने की कला यूरोप में फली-फूली, जहां पहला पेपर मिल स्थापित किया गया था। भारत में भी लगभग इसी दौरान कागज का इस्तेमाल शुरू हुआ। वैसे अपने देश में कागज का सबसे पुराना प्रमाण 1105 ईस्वी का है। भारत में कागज बनाने का पहला कारखाना कश्मीर में 1417-1467 के बीच एक सुल्तान द्वारा लगवाया गया था। मॉडर्न तकनीक से कागज बनाने का पहला कारखाना 1870 में कोलकाता में लगा था। 19वीं सदी में औद्योगीकरण ने पेपर बनाने की लागत में जबर्दस्त कमी ला दी। आज पेपर इंडस्ट्री में चीन का वर्चस्व है और यूनाइटेड स्टेट्स का दूसरा नंबर है। अपने देश में आज करीब 600 से अधिक छोटे-बड़े कागज मैन्यूफेक्चरर हैं।

किस चीज से बनता है कागजः कागज का कच्चा माल है फाइबर, जो कई रूपों में मिलता है। पहले फाइबर का मुख्य स्रोत इस्तेमाल किए कपड़े हुआ करते थे, जिन्हें रग्स कहते थे। ये रग्स हैंप, लिनेन और कॉटन के होते थे। आखिरकार 1843 में लकड़ी के पल्प से कागज बनाए जाने लगे और पेपर इंडस्ट्री रग्स पर निर्भर नहीं रह गयी। अभी भी मुख्य कच्चा माल लकड़ी का पल्प ही है, लेकिन पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिहाज से नए विकल्प भी तलाशे जा रहे हैं। इन दिनों घास, बांस, लकड़ी, गन्ने के रेशे आदि का प्रयोग कागज बनाने में किया जा रहा है।

कागज बनाने की प्रक्रियाः लकड़ी में पाए जाने वाला सेल्यूलोज कागज का प्रमुख तत्व है। सबसे पहले लकड़ी से छाल हटा दी जाती है और उसे छाेटे-छोटे टुकड़ों में काट लिया जाता है। इन टुकड़ाें को डाइजेस्टर में डाल कर कुछ केमिकल्स के साथ पकाया जाता है। इस तरह पल्प तैयार हो जाता है। इस पल्प की सफाई क्लोरीन या ऑक्सीजन द्वारा की जाती है। इसके बाद इसकी कुटाई और सफाई की जाती है। फिर इस पल्प में आवश्यकतानुसार रंग, फिलर आदि मिलाए जाते हैं। अब यह पल्प कागज में ढलने के लिए तैयार हो जाता है। इसे पेपर मशीन के हेड बॉक्स में डाल कर पेपर शीट तैयार किया जाता है। इस समय इसमें पानी की मात्रा होती है, जिसे ड्रायर से सुखाया जाता है। आखिर में इसे अलग-अलग साइजों में काट कर इस्तेमाल के लिए तैयार किया जाता है।

पर्यावरण पर असरः कागज बनाने की प्रक्रिया और इसके बेतरतीब इस्तेमाल के कारण आज पर्यावरण पर कई तरह से दुष्प्रभाव पड़ा है। दुनिया भर में पिछले 40 सालों में कागज की खपत 40 प्रतिशत बढ़ी है। करीब 35 प्रतिशत पेड़ कागज बनाने के लिए ही काटे जाते हैं। दूसरी ओर पेपर वेस्ट भी पर्यावरण के लिए गंभीर मुद्दा है। अमेरिका में तो कुल कचरे का 40 प्रतिशत तक कागज से ही आता है। पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने में इसकी बनाने की प्रक्रिया का भी बड़ा रोल है।

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कितने प्रकार के कागजः कागज आज हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा है। यह 10 जीएसएम से ले कर 700 जीएसएम तक की मोटाई का होता है। जितना ज्यादा जीएसएम, उतना अधिक मोटा पेपर। टिशू पेपर सबसे पतला कागज है, वहीं कार्डबोर्ड सबसे मोटा कागज होता है। आज कागज आवश्यकता के अनुसार कई रूपों में मिलता है, जैसे ट्रेसिंग पेपर, ड्रॉइंग पेपर, कॉपी पेपर, आर्ट पेपर, फोटो पेपर, फैक्स पेपर, प्रिंटिंग पेपर, थर्मल पेपर, राइस पेपर, कलर इंकजेट पेपर, फिल्म पेपर, अखबारी कागज आदि। घरेलू उपयोग में आने वाले कागज में टॉयलेट पेपर, किचन पेपर टॉवल, डायपर, सैनिटरी पेपर आदि। इसके अलावा बटर पेपर, डेकोरेटिव पेपर, ग्लेज्ड पेपर जैसे ना जाने कितने प्रकार के कागज मिलते हैं। कंप्यूटर के उपयोग और पेपरलेस कामकाज की वकालत के बावजूद आज भी दफ्तरों में कागज की खपत सबसे ज्यादा है। कागज का इस्तेमाल समझदारी से करने में ही हम सबकी भलाई है।