Thursday 21 September 2023 03:26 PM IST : By Indira Rathore

अगर बदलना चाहते हैं खुद को

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बदलाव सतत प्रक्रिया है। लोग बदलते हैं, सोच बदलती है। इंसान साल दर साल खुद को रीक्रिएट करता है। जीवन सफर में मिलनेवाले किरदारों व अनुभवों का प्रभाव इस बदलाव पर पड़ता है। सामान्य रूप से वक्त के साथ व्यक्ति अपने खानपान, सोने-जागने की आदतों या सेहत संबंधी विचारों में बदलाव लाता है। उम्र के एक पड़ाव पर वह वर्क-लाइफ बैलेंस के अलावा मनोवैज्ञानिक-भावनात्मक जरूरतों को समझने लगता है। अपने भौतिक-प्रोफेशनल जीवन को आसान करने के लिए, खुद को अपडेट करने के लिए व्यक्ति बहुत तरह के कोर्स या प्रशिक्षण लेता है। ठीक उसी तरह मन के भीतर भी अलग-अलग वक्त पर अलग-अलग ट्रेनिंग चलती रहती है। इसका प्रभाव बाहरी जिंदगी, आचार-विचार व व्यवहार पर भी पड़ता है। आत्मज्ञान एक स्किल है। इंसान जब भीतरी व बाहरी दुनिया के बीच तालमेल बिठाने की स्किल सीखता है, तो जीवन में बड़े बदलाव होते हैं।

क्राइसिस में अपनी परख

लोगों, स्थितियों से मिलनेवाले अनुभवों के साथ ही मन के भीतर चलनेवाली ट्रेनिंग से ही समझ आता है कि विपरीत स्थिति में कैसे रिएक्ट करना चाहिए। जब सब कुछ आउट ऑफ कंट्रोल हो, तो क्या करना चाहिए। इसी को क्राइसिस मैनेजमेंट कहते हैं। यह मैनेजमेंट व्यक्ति सीख ले, तो अपने लिए संभावनाओं के कई द्वार खोल सकता है। दिलचस्प बात यह है कि अपनी क्षमताओं, धैर्य, जिजीविषा और काबिलियत का पता भी क्राइसिस में ही लगता है। बदलाव की इस प्रक्रिया से गुजरते हुए अपने पैटर्न, एक्टिविटीज या वैल्यूज का पता लगता है। अगर कोई पैटर्न ऐसा है, जिससे आगे बढ़ने में बाधा पैदा हो सकती है, तो व्यक्ति उन तौर-तरीकों को बदलने की कोशिश करता है। उदाहरण के लिए अगर कोई छात्र कई घंटे पढ़ने के बावजूद सही नतीजे ना ला सके, तो इस पर सोचना लाजिमी है। संभव है अपने पैटर्न और रणनीति को बदलना पड़े।

प्रेरणा अपने भीतर से पैदा हो

जीवन के हर पड़ाव पर अपने भीतर संशोधन करते पड़ते हैं। लेकिन बदलाव लाने से पहले यह ध्यान रखना चाहिए कि हमारे मूल्य क्या हैं। कई बार दूसरों के विचारों-अनुभवों से भी व्यक्ति इतना प्रभावित हो जाता है कि अपने ही मूल्यों से दूर होने लगता है। ऐसा तब अधिक होता है, जब वह सेल्फ डिस्कवरी की प्रक्रिया से नहीं गुजरता। इससे अपने ही भीतर एक कॉन्फ्लिक्ट होने लगता है। जैसे छात्र अगर सहपाठी के टाइम टेबल के हिसाब से पढ़ने लगे, उसी की तरह सपने देखने लगे और इस पर ध्यान ना दे कि वह खुद क्या चाहता है, तो उसे सही नतीजे नहीं मिल सकेंगे। लक्ष्य या विचार उधारी के हों, तो उन पर मेहनत ज्यादा करनी होगी और रिजल्ट भी बेहतर नहीं आएगा। लेकिन जब प्रेरणा अपने भीतर से आ रही हो, तो बदलाव पॉजिटिव होता है।

कैसे करें खुद को रीक्रिएट

अपने लक्ष्यों व मूल्यों को समझते हुए आगे बढ़ने की रणनीति कैसे बनाएं, यह जानना जरूरी है-

1. जागरूकता- सेल्फ अवेयरनेस पहला जरूरी कदम है। स्थिति, लक्ष्य, असुरक्षा या भय क्या हैं, इन सभी बातों का आकलन करने के बाद ही आगे की राह पर चलने के बारे में सोचें। आज जिस मुकाम पर हैं, वहां तक पहुंचने का सफर कैसा रहा, एक बार इसकी समीक्षा भी करें।

2. मूल्य-अपने मूल्यों को जानना व उन्हें परिभाषित करना जरूरी है। इससे सकारात्मक बदलाव करना आसान होगा। मूल्यों से अपने दृष्टिकोण को समझने में आसानी होगी।

3. यथार्थवादी लक्ष्य-रियलिस्टिक रहना जरूरी है। हवाई किले बनाने के बजाय जमीन पर रहते हुए लक्ष्य बनाएं। ऐसे असंभव लक्ष्य ना बना लें, जो भटकाव का कारण बन जाएं या कुंठाओं व अवसाद के घेरे में फंसा दें।

4. आदतें बदलें-पौष्टिक व स्वस्थ भोजन करना, व्यायाम करना, स्मोकिंग या नशे से दूर रहना, सही समय पर सोना-जागना व खाना, पर्सनल हाइजीन का ध्यान रखना... रोजमर्रा की इन आदतों को सुधारने से हेल्थ अच्छी रहती है।

5. ईमानदार रहें-अपने प्रति ईमानदार रहेंगे, तो दूसरों के प्रति भी बेईमानी नहीं करेंगे। इस राह में कुछ असुविधा हो सकती है, लेकिन खुद के प्रति ईमानदार होना निजी विकास के लिए अनिवार्य है।

6. सकारात्मक लोग-कुछ लोगों के साथ रहना अच्छा लगता है, जबकि कुछ की बातों से मन में नेगेटिविटी पैदा होती है। ऐसे लोगों के साथ रहें, जो आगे बढ़ने को प्रेरित करें, जो बिना ईर्ष्या-द्वेष, असुरक्षा या भ्रम के साथ अापके साथ रहें।

7. सफलता को सराहें- अपनी सफलताओं पर खुश होना जरूरी है। छोटी-बड़ी, हर सफलता को महत्व दें। इससे आत्मविश्वास बढ़ता है और अपनी उपयोगिता का अहसास होता है।

डॉ. त्रिदीप चौधरी, मनोचिकित्सा सलाहकार, मेंटल हेल्थ और बिहेवियरल साइंसेज विभाग, फोर्टिस फ्लाइट लेफ्टिनेंट राजन ढल हॉस्पिटल, वसंत कुंज दिल्ली से बातचीत पर आधारित