हममें से हर कोई किसी ना किसी रूप में उपभोक्ता है। राशन, दवाएं, कपड़े, एसी, रेफ्रिजरेटर आदि खरीदनेवाला तो उपभोक्ता है ही, इसके अलावा इलाज के लिए अस्पताल में भरती होने वाला या बस, ट्रेन या हवाई जहाज में सफर कर रहा व्यक्ति भी उपभोक्ता ही है। वह इन सब सामानों व सेवाओं के मूल्य का भुगतान करके ही उनका इस्तेमाल करता है। इस प्रक्रिया में उसे किसी किस्म का कोई नुकसान ना उठाना पड़े, इसके लिए उसको सामान की क्वाॅलिटी, मात्रा, शुद्धता, मानकों और मूल्य के बारे में सही जानकारी प्राप्त करने का पूरा अधिकार है। यह भी उसके अधिकार क्षेत्र में आता है कि वह गलत मंशाओं या धोखाधड़ी का शिकार ना हो और उसका भरोसा ना टूटे। उसका संतुष्ट होना जरूरी है। अगर उसे लगे कि वह किसी तरह की बेईमानी या अन्याय का शिकार हुआ है, तो वह उपभोक्ता कानून के तहत कार्रवाई कर सकता है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 में पारित किया गया था। बाद में इसमें 3 बार संशोधन भी किए गए। यह एक्ट उपभोक्ता के हितों की रक्षा करता है। यह कई विषयों, मसलन बैंकिंग, ट्रांसपोर्ट, बीमा, फाइनेंस, मेडिकल, होटल, टेलिफोन, बिजली की आपूर्ति, आवास, मनोरंजन आदि मामलों में उपभोक्ता को पूरा संरक्षण देता है।
उपभोक्ताओं के विवादों के निबटारे के लिए जिला फोरम, राज्य फोरम, राष्ट्रीय फोरम जैसे उपभोक्ता न्यायालय मौजूद हैं। भारत में 24 दिसंबर नेशनल कंज्यूमर डे यानी राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस के रूप में मनाया जाता है।
दिल्ली में जिला अदालत व हाईकोर्ट में प्रैक्टिस कर रहे एडवोकेट श्वेतांक कौशिक वेदी के अनुसार, किसी भी तरह का विवाद हो जाने पर 2 साल के भीतर पीड़ित को उपभोक्ता या कंज्यूमर फोरम में अपना केस डाल देना चाहिए। अगर वह वकील कर सकता है तो अच्छा है,लेकिन वकील ना कर पाने की स्थिति में वह खुद भी केस बना कर डाल सकता है। केस डालने से पहले उपभोक्ता मंच में उसके प्रारूप को ले कर पूछताछ कर लेना चाहिए, वरना कोई नुक्स रह जाने पर नुकसान उपभोक्ता का ही होगा।
शिकायत का तरीका: उपभोक्ता एक सादे कागज पर नुकसान पहुंचाने वाली पार्टी के विरुद्ध शिकायत लिखे। शिकायत पत्र में इंडेक्स बना ले। फिर तारीखों की सूची पूरे विवरण के साथ दे, जिसमें केस से जुड़ी सभी पार्टियों के नाम, पते, कहां, कब, कैसे, क्या हुआ, का उल्लेख हो। इस तरह फाइल तैयार हो जाती है। एफिडेविट या शपथपत्र को नोटरी से प्रमाणित या अटेस्ट करा ले। जिन कागजों पर भरोसा हो और जिन पर उपभोक्ता का केस निर्भर करता हो, उनकी फोटोकॉपी साथ लगा दे। तैयार फाइल की 2 फोटोकॉपी करा ले, एक कॉपी उपभोक्ता मंच में जमा कराए, दूसरी अपने पास रखे।
अगर यह पता चले कि बेचा जा रहा सामान या दी जा रही सेवाएं निर्धारित प्रावधानों का उल्लंघन कर रही हैं या उनसे उपभोक्ता को कोई जोखिम उठाना पड़ सकता है, तो शिकायत कंज्यूमर फोरम में दर्ज करायी जा सकती है। जिस स्तर की शिकायत होगी, उसी स्तर के कंज्यूमर फोरम में दर्ज की जाएगी।
जिला फोरम यहां 20 लाख रुपए के नुकसान की क्षतिपूर्ति के लिए केस डाले जाते हैं। एक राज्य में जितने जिले होते हैं, उतने उपभोक्ता फोरम होते हैं यानी हर जिले का एक जिला उपभोक्ता फोरम।
राज्य उपभोक्ता फोरम यहां 20 लाख से ले कर एक करोड़ रुपए तक की हानिवाले केस डाले जाते हैं। हर स्टेट में एक ही राज्य उपभोक्ता फोरम होता है।
राष्ट्रीय उपभोक्ता फोरम यहां एक करोड़ से ऊपर के सभी मामलों की सुनवाई होती है। भारत में एक ही राष्ट्रीय उपभोक्ता फोरम दिल्ली में है। यहां शिकायत अंग्रेजी भाषा में ही ली जाती है।
जिला फोरम के आदेशों के खिलाफ राज्य उपभोक्ता फोरम में और राज्य उपभोक्ता फोरम के आदेशों के खिलाफ राष्ट्रीय उपभोक्ता फोरम में जाया जा सकता है। और यदि किसी को राष्ट्रीय उपभोक्ता फोरम के निर्णय से भी असंतोष हो, तो वह उस निर्णय के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट जा सकता है। उपभोक्ता फोरम में केस के मुताबिक 100 रुपए से 5000 रुपए तक फीस भी जमा करानी होती है। हालांकि गरीबी रेखा से नीचेवाले लोगों को एक लाख रुपए तक की शिकायत पर कोई फीस नहीं देनी होती। कोई भी उपभोक्ता शिकायत डाल सकता है। उसके अलावा स्वैच्छिक उपभोक्ता संघ या उपभोक्ता के ना रहने पर उसके कानूनी उत्तराधिकारी या प्रतिनिधि भी केस डाल सकते हैं।
एडवोकेट श्वेतांक के मुताबिक उपभोक्ता को अधिकार है कि वह ऐसे सामान और सेवाएं, जो जीवन के लिए खतरनाक हैं, उनसे सुरक्षा हासिल करे। उसे सामान की गुणवत्ता, शुद्धता, मात्रा, कीमत और सेवाओं के बारे में सही जानकारी पाने का अधिकार है। उपभोक्ता अपनी शिकायत में खराब सेवाओं व सामानों की कमियों को हटाने के साथ सामान को रिप्लेस करने या चुकाए मूल्य को वापस लौटाने, नुकसान की भरपाई करने या किसी तरह की चोट के लिए क्षतिपूर्ति का दावा कर सकता है। विज्ञापन में दी जा रही जानकारी को ठीक करने व राहत की मांग कर सकता है।
उपभोक्ता को विभिन्न प्रकार के सामानों तक पहुंच रखने, अपनी बात सुने जाने और हितों पर उचित विचार किए जाने का भी अधिकार है। उपभोक्ता को प्रतिस्पर्धी कीमतों को जानने का अधिकार है। प्रतिबंधित व्यापार, व्यवहार या उपभोक्ताओं का अनैतिक शोषण करने के खिलाफ निवारण पाने का अधिकार है।
खरीदी गयी वस्तु या सेवा के इस्तेमाल में क्या सावधानी रखी जाए, यह जानकारी हासिल करना उपभोक्ता का हक है। उसे सार्वजनिक सेवाओं से जुड़ी किसी भी सूचना को पाने का अधिकार है। अकसर खरीदे गए सामान में एक्सपायरी डेट लिखी होती है। इसी तरह दूसरी जानकारियां भी दी गयी होती हैं। पर्याप्त सावधानी रखने के बावजूद उससे नुकसान पहुंचने की स्थिति में उपभोक्ता को उचित न्यायालय से समाधान पाने का पूरा हक है।

- अधिकार की जानकारी होने पर आप सही कदम उठा सकते हैं। जैसे गैस सिलेंडर चेक करके ही लें। इसके बावजूद गैस का रिसाव होता है, तो एजेंसी से नुकसान की भरपाई का दावा किया जा सकता है। तुरंत उसके बदले सही सिलेंडर मंगाया जा सकता है। कई बार दुकानदार किसी ब्रांड की चीज लेने पर जोर देता है, क्योंकि उसमें उसको ज्यादा कमीशन मिलता है। बेहतर है कि बाद में कंज्यूमर फोरम जाने के बजाय ऐसे झांसों में आने से बचें। खरीदारी के वक्त अपने आंख-कान और दिमाग खुले रखें।
- उपभोक्ता के अधिकारों पर तो बात होती है, मगर उनके दायित्वों का जिक्र नहीं होता।
- सबसे पहले उपभोक्ता अपने ऊपर भरोसा रखे। कोई भी चीज खरीदने से पहले उसके बारे में जानकारी हासिल करे। वह विक्रेता पर निर्भर हो कर खरीदारी ना करे।
- उपभोक्ता की जिम्मेदारी है कि जो सामान खरीद रहा है, उसके क्रय संबंधी रसीद या कैशमेमो अवश्य प्राप्त करे और उनको सुरक्षित रखे। कोई भी सामान ले, तो उसका बिल व गारंटी-वॉरंटी कार्ड संभाल कर रखे।
- अनुचित रूप से क्षतिपूर्ति का दावा ना करे। कुछ उपभोक्ता गारंटी पीरियड में वस्तु और सेवाओं का गलत उपयोग करते हैं कि इस अवधि में सामान बदल जाएगा। यह उचित नहीं है। बेसिक ईमानदारी उपभोक्ता से भी अपेक्षित है।
- अगर किस्तों पर सामान लिया है, तो समय से भुगतान करें। बिजली व पानी के मीटरों से छेड़छाड़ ना करें।
यदि उपभोक्ता खुद को धोखे और आर्थिक-मानसिक परेशानी से बचाना चाहता है, तो उसे एलर्ट रहना होगा। उपभोक्ता के जिन अधिकारों को मान्यता प्राप्त है, उनकी जानकारी होना उसके लिए जरूरी है।
गारंटी और वॉरंटी में फर्क
अकसर लोग गारंटी और वॉरंटी के अंतर को नहीं जानते। उनको लगता है कि दोनों का आशय एक है। इस पर एक जानकारी-
- हर सामान के साथ गारंटी या वॉरंटी दी गयी होती है। गारंटी कमिटमेंट है यानी प्रतिबद्धता और वॉरंटी एश्योरेंस यानी आश्वासन। भले इसके बीच का अंतर लोग ना जानते हों, मगर गारंटी या वॉरंटी के बगैर सामान भी नहीं लेते। दरअसल गारंटी पीरियड में खराब सामान बदल कर नया दिया जाता है। जबकि वॉरंटी पीरियड में सामान या उसका पुर्जा रिपेयर किया जाता है।
- जब किसी सामान की वॉरंटी या गारंटी दी जाती है तो उसके साथ गारंटी-वॉरंटी का बिल दिया जाता है। गारंटी की तुलना में वॉरंटी का पीरियड अधिक होता है।
- सामान लेने के दौरान जो गारंटी-वॉरंटी कार्ड या बिल दुकानदार देता है उसे ग्राहक को संभाल कर रखना होता है, ताकि सामान गारंटी की अवधि में बदलाया जा सके या रिपेयर कराया जा सके।
- समयावधि समाप्त होने के बाद गारंटी या वॉरंटी की कोई सुविधा प्राप्त नहीं होती।