Wednesday 22 June 2022 11:52 AM IST : By Gopal Sinha

UTI इन्फेक्शन क्यों होता है, इससे कैसे बचें

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यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन यानी यूटीआई खासकर महिलाअों में होने वाला सबसे आम संक्रमण है। इस आम बीमारी की खास बातों को जानने के लिए हमने माता चानन देवी अस्पताल, दिल्ली की सीनियर गाइनोकोलॉजिस्ट डॉ. सुनीता लांबा और दिल्ली की ही होम्योपैथ फिजिशियन डॉ. शहाना बी अंसारी से लंबी बात की। डॉ. सुनीता लांबा कहती हैं कि लगभग 30 से 50 प्रतिशत महिलाएं अपनी लाइफ में कभी ना कभी इस इन्फेक्शन की चपेट में आती ही हैं। इसकी वजह है इस इन्फेक्शन के प्रति उनके शरीर की बनावट का अनुकूल होना। उनका यूरेथ्रा यानी मूत्र मार्ग बहुत छोटा और वेजाइना के बिलकुल पास होता है। इससे वेजाइना का कोई भी इन्फेक्शन या पॉटी में मौजूद बैक्टीरिया वेजाइना के माध्यम से यूरेथ्रा में पहुंच जाता है। महिलाअों में उनकी पूरी लाइफ साइकिल में इस इन्फेक्शन का खतरा बना रहता है।

यूटीआई की वजह 

मेंस्ट्रुअल एज मेंः माहवारी शुरू होने के बाद मेंस्ट्रुअल हाइजीन का ध्यान रखना होता है। सैनिटरी नैपकिन अगर लंबे समय तक ना बदला हो, उसकी जगह कपड़ा इस्तेमाल करती हों या उस समय पैंटी गंदी पहने रहें, तो बैक्टीरिया ब्लड में कोलोनाइज हो जाता है, क्योंकि ब्लड बैक्टीरिया का फूड होता है।

सेक्सुअली एक्टिव होने परः सेक्सुअली कॉन्टेक्ट से अकसर यूरेथ्रा क्षतिग्रस्त हो जाता है, इससे इन्फेक्शन का जोखिम बढ़ जाता है। इसे हनीमून सिस्टाइटिस कहते हैं। 

प्रेगनेंसी के दौरानः प्रेगनेंसी में हारमोन्स के प्रभाव के कारण सारा सिस्टम डाइलेट हो जाता है और इन्फेक्शन बढ़ जाता है। जब बच्चा यूटरस में डेवलप होता है, तो यूरेथ्रा पर प्रेशर पड़ता है। इससे रुकावट आती है और यूरिनरी ब्लैडर में कंजेशन होता है। ऐसे में भी इन्फेक्शन होने की आशंका बढ़ जाती है। 

मेनोपॉज की उम्र मेंः मेनोपॉज की उम्र के आसपास बॉडी में इस्ट्रोजन हारमोन बहुत कम हो जाता है, जिससे वेजाइना की वॉल पतली हो जाती है। नॉर्मल वेजाइना का पीएच लेवल 3.5 से 5 तक होता है, जो एसिडिक होता है। इससे बैक्टीरिया की ग्रोथ में रुकावट आती है। बड़ी उम्र में वेजाइना का पीएच लेवल बढ़ जाता है, जिससे वेजाइनल इन्फेक्शन का जोखिम बढ़ जाता है।

पुरुषों में यूटीआईः पुरुषों में यूटीआई बहुत कम होता है, लेकिन 50 साल की उम्र के बाद इसके होने का जोखिम रहता है। इस समय प्रोस्टेट ग्लैंड बढ़ जाता है। डाइबिटीज या किडनी की बीमारी हो, प्रोस्टेट के कारण यूरिनरी कैथेटर डाला गया हो, तो इससे इन्फेक्शन हाे सकता है। युवा पुरुषों में यूटीआई मुख्य रूप से एसटीडी से होता है। क्लेमाइडिया व गोनोरिया दो ऐसे ऐर्गेनिज्म हैं, जिनसे यूटीआई होता है। युवा पुरुषों को यूटीआई होता है, तो इसके लिए एसटीडी का ही ट्रीटमेंट करते हैं।

महिलाअों में पुरुषों के मुकाबले यूटीआई ज्यादा क्योंः महिलाअों में यूटीआई से बचने के लिए कोई प्रिवेंटिव मैकेनिज्म नहीं है। जैसे युवा पुरुषों में प्रोस्टेट से जो स्राव होता है, वह एंटी बैक्टीरियल होता है, इसलिए उस समय यूटीआई नहीं होता। महिलाअों में ऐसा कोई मैकेनिज्म नहीं होता। पुरुष खड़े हो कर यूरिन पास करते हैं, जबकि महिलाअों को बैठना पड़ता है। अगर टॉयलेट गंदा हुआ, तो वे इन्फेक्शन की पकड़ में आ सकती हैं। वे कॉन्ट्रासेप्शन जैसे डायफ्राम या स्पर्मिसाइड जैल वगैरह इस्तेमाल करती हैं, तो उनसे भी इन्फेक्शन हो सकता है। महिलाएं अकसर टॉयलेट क्लीन ना मिलने पर यूरिन को रोक कर रखती हैं। इससे यूरिन में मौजूद बैक्टीरिया मल्टीप्लाई हो जाता है। महिलाएं एनिमिक हों, बॉडी की प्रतिरोधक क्षमता कम हो, तो भी यूटीआई होने की आशंका अधिक होती है। 

यूटीआई बैक्टीरियल या फंगल या वायरलः ज्यादातर यूटीआई चाहे महिलाअों में हो या पुरुषों में, बैक्टीरियल ही होती है। कभी-कभी फंगल या वायरल यूटीआई होता है, जब इम्युनिटी कमजोर हो, डाइबिटीज या कोई ऐटो इम्यून डिजीज हो। बहुत लंबे समय तक कैथेटर पड़े रहने से भी फंगल या वायरल यूटीआई हो सकता है, खासकर डाइबिटीज होने पर।

यूटीआई के लक्षण 

पेनफुल यूरिन आना, डिस्यूरिया, बर्निंग सेंसेशन, बार-बार यूरिन आना, अर्जेंट डिजायर, यूरिन से स्मेल आना, क्लाउडी यूरिन, यूरिन में ब्लड आना। अगर यूटीआई किडनी तक पहुंच जाए, तो कंपकंपी के साथ बुखार आता है। अगर लोअर ट्रैक्ट का गंभीर इन्फेक्शन हो, तो भी बुखार आता है। उल्टियां हो सकती हैं, भूख नहीं लगती, सिर दर्द हो सकता है। स्त्री-पुरुषों में यूटीआई के लक्षण समान ही होते हैं।

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यूटीआई के लिए टेस्टः पहली बार लक्षण दिखें, यूटीआई जटिल ना हो, तो टेस्ट कराए बिना भी डॉक्टर एंटीबायोटिक का शॉर्ट कोर्स प्रेस्क्राइब करते हैं। लेकिन कुछ टेस्ट कराने की सलाह डॉक्टर देते हैं जैसे यूरिन की रुटीन माइक्रोस्कोपी, यूरिन कल्चर। अगर स्टोन या किडनी डिजीज आदि की वजह से कॉम्प्लीकेटेड यूटीआई हो, तो अल्ट्रासोनोग्राफी, सीटी, एमआरआई करानी पड़ती है। कई बार कोई वजह ना मिले, तो सिस्टोस्कोपी भी करनी पड़ती है। इससे देखते हैं कि यूरिनरी ब्लैडर की लाइनिंग में कोई प्रॉब्लम तो नहीं है।

ट्रीटमेंट

यूटीआई की फर्स्ट लाइन ट्रीटमेंट एंटीबायोटिक्स ही हैं। कम गंभीर यूटीआई होने पर कॉमन एंटीबायोटिक जैसे नाइट्रोफ्यूरेंटाइन,काक्सोमाइसिन व सिफेलेक्सिन ग्रुप की दवाएं देते हैं। दर्द के लिए एनाल्जेसिक देते हैं। यूरिनरी अल्केलाइजर देते हैं, इससे यूरिन अल्कलाइन होता है, जिसमें जलन कम होती है और बैक्टीरिया कम ग्रो करता है। फ्रीक्वेंसी को कंट्राेल करने की मेडिसिन भी कई बार देनी पड़ती है। मरीज को ढेर सारा पानी पीने की सलाह देते हैं। 

अगर यूटीआई बार-बार हो यानी 6 महीने में 2 या इससे अधिक बार यूटीआई हो जाए या 3 बार सालभर के भीतर हो जाए, तो इसे रिकरेंट यूटीआई कहते हैं। इम्युनिटी कमजोर हो, क्रोनिक हेल्थ कंडीशन हो, तो रिकरेंट यूटीआई होता है। इसमें शॉर्ट कोर्स काम नहीं करता। इसमें 6 महीने के लिए या ज्यादा समय के लिए भी एंटीबायोटिक देनी पड़ती है। कभी-कभी पेशेंट को हर बार सेक्सुअल एक्टिविटी के बाद यूटीआई हो जाता है। उनमें हर एक्टिविटी के बाद एंटीबायोटिक देते हैं। कोई बीमारी है, तो पहले उसका उपचार कराना जरूरी होता है। 

रोकथाम कैसे

पेशेंट को यूटीआई दोबारा ना हो, इसके लिए प्रिवेंशन जरूरी है। दिनभर में 2 लीटर पानी जरूर पिएं। यूरिन को लंबे समय तक ना रोकें। प्राइवेट पार्ट को आगे से पीछे की ओर पोंछें। कमोड में जेट इस्तेमाल करना भी महिलाअों में यूटीआई की आम वजह है। जेट के बजाय पाइप से आगे से धोएं। हर सेक्सुअल एक्टिविटी के बाद प्राइवेट पार्ट को खुले पानी से धोना चाहिए, ताकि वेजाइना में मौजूद बैक्टीरिया यूरेथ्रा तक ना पहुंचें। सेक्सुअल एक्टिविटी से पहले और बाद यूरिन पास करें। ब्लैडर में कंजेशन हो, तो बैक्टीरिया ग्रो करता है। महिलाएं ओटीसी मिलने वाली फीमेल हाइजीन प्रोडक्ट, डियोडरेंट, सेंटेड पाउडर वगैरह इस्तेमाल ना करें। हमेशा अपने आपको ड्राई रखें। लुब्रिकेशन के लिए ऐइल बेस्ड के बजाय वॉटर बेस्ड लुब्रिकेंट इस्तेमाल करें। कॉटन की लूज पैंटी पहननी चाहिए। पैंटी बार-बार बदलनी चाहिए। हर बार लू जाने के बाद टिशू पेपर से ड्राई करें। प्राइवेट पार्ट को बार-बार पानी से नहीं धोना चाहिए। बार-बार धोने की आदत से वहां माॅइस्चर ज्यादा हो जाता है और मॉइस्चर में बैक्टीरिया-वायरस ज्यादा ग्रो करते हैं। बाथ टब के बजाय शावर या बाल्टी-मग से नहाएं। बाथ टब में खासकर जब महिलाएं बबल बाथ लेती हैं या कोई सेंटेड सोप इस्तेमाल करती हैं, तो वह नुकसान करती है। प्री मेंस्ट्रुअल हैबिट्स भी यूटीआई को ना होने देने में कारगर है। अगर गंदे ना हुए हों, तो भी सैनिटरी नैपकिन दिनभर में 4 बार बदलें। कपड़ा या घर की दूसरी चीजें इस्तेमाल ना करें। नायलॉन या सिंथेटिक के बजाय कॉटन के नैपकिन बेहतर होते हैं। डाइट में एंटी अॉक्सीडेंट्स लेने चाहिए। क्रेनबेरीज, ब्लूबेरीज, संतरे, घर का जमा दही, टमाटर, पालक, ब्रोकली, अदरक, लहसुन लेने चाहिए। पेय में डाइयूरेटिक जैसे नारियल पानी, छाछ,लेमन-हनी वॉटर, खीरे का जूस लें। कुछ खाने की चीजें यूटीआई को और खराब कर देती हैं जैसे मिर्च-मसालेदार खाना, अल्कोहल, कॉफी, आर्टिफिशियल स्वीटनर, कैफीनेटेड ड्रिंक्स। 

होम्योपैथ में उपचार

डॉ. शहाना कहती हैं कि गरमियों में यूटीआई बहुत आम है, क्योंकि बॉडी में पानी की जितनी जरूरत होती है, उतना पानी हम नहीं पीते हैं। यूरिन का फ्लो कम होने से यूटीआई का जोखिम ज्यादा हो जाता है। इससे बचने के लिए हमें पानी खूब पीना चाहिए, पानी वाले फल जैसे तरबूज, खरबूजा, ककड़ी, खीरा, नारियल पानी ज्यादा लेने चाहिए। बार-बार यूटीआई की समस्या हो, तो होम्योपैथी में इसका पूरी तरह से इलाज कैंथेरिस से हो सकता है। पेंशेंट की शिकायत के आधार पर हम उसे दवा देते हैं। हर पेशेंट की दवा अलग-अलग होती है। आर्सेनिक अल्बा, लाइकोपोडियम, एपिस मेल है। यदि आपको समझ में नहीं आ रहा कि यूटीआई के लिए क्या दवा लें, तो एसबीएल का ड्रॉप नंबर 3 या वीजल का ड्रॉप नंबर 4 यूटीआई के लिए आता है। इसकी 20 बूंद सुबह और 20 बूंद शाम को आधे कप पानी के साथ लेने से यूटीआई बहुत हद तक कंट्रोल हो जाता है। अगर आयुर्वेद की बात करें, तो हरे धनिए का 1 चम्मच जूस सुबह और 1 चम्मच शाम को लें, साथ में ढेर सारा पानी पिएं। चंद्रप्रभावटी भी यूटीआई में बहुत अच्छा काम करती है। इससे आराम ना आए, तो फिजिशियन से मिलें,अपने लक्षण साफ-साफ बताएं, ताकि वे आपको सही दवा दे सकें। होम्योपैथी में सिम्प्टोमैटिक इलाज ही होता है। हालांकि आजकल यूरिन कल्चर की रिपोर्ट के आधार पर भी दवा बताते हैं। रिपोर्ट से इन्फेक्शन की इंटेंसिटी का पता चल जाता है। 

यूटीआई ना हो, इसके लिए 

डॉ. शहाना का कहना है कि यूटीआई ना हो, इसके लिए महिलाएं कैंथेरिस 30 की 2 गोली सुबह और 2 गोली शाम को लें, इससे यूटीआई से हमेशा बची रहेंगी। आयुर्वेद के मुताबिक हरा धनिया का रस लें, ढेर सारा पानी पिएं। अगर यूटीआई ना हो, तो भी चंदप्रभावटी की एक गोली राेज रात को सोते समय लें, तो यूटीआई से बची रहेंगी। महिलाएं हाइजीन का पालन करें, तो आमतौर पर यूटीआई नहीं होता। 

पुरुषों में बड़ी उम्र में प्रोस्टेट के कारण यूटीआई होता है। डिहाइड्रेटेड किडनी हो, तो यंग एज में भी यह समस्या हो सकती है। पुरुषों को भी लक्षणों के आधार पर दवा देते हैं। आयुर्वेद में कुछ दवाएं आती हैं, जिनमें गिलोय, लौह भस्म, कालमेघ, कुटाज आदि हों, तो उनसे भी यूटीआई में काफी राहत मिलती है।