Friday 29 September 2023 10:37 AM IST : By Nishtha Gandhi

महिलाओं को होने वाले कैंसरः जेनेटिक टेस्टिंग से टल सकता है खतरा

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महिलाओं को होने वाले कैंसर में प्रमुख हैं सर्विकल कैंसर, ओवेरियन कैंसर, वल्वर कैंसर, यूटराइन कैंसर व ब्रेस्ट कैंसर। पूरे विश्व में हुए अलग-अलग अध्ययनों में यह बात सामने आयी है कि गाइनीकोलॉजिकल कैंसर के कारण पूरे विश्व में सबसे ज्यादा मौतें होती हैं, क्योंकि इनमें से अधिकतर मामलों में कुछ खास लक्षण दिखायी नहीं देते और आखिरी स्टेज तक पहुंचने पर ही इनका पता चल पता है। हालांकि अब मेडिकल साइंस ने इतनी तरक्की कर ली है कि कुछ खास जांचों व चेकअप के द्वारा इनका पता अर्ली स्टेज में लगाया जा सकता है। इस दिशा में महिलाओं में जागरूकता होनी बहुत जरूरी है। नियमित डॉक्टरी जांच, सेल्फ एग्जामिनेशन और डॉक्टर द्वारा बताए गए टेस्ट करवाने से काफी हद तक गाइनीकोलॉजिकल कैंसर की रोकथाम की जा सकती है। किस कैंसर के लिए कौन सा टेस्ट करवाना जरूरी है और यह कब करवाना चाहिए, इस बारे में जानकारी दे रही हैं मेड जीनोम लैब में साइंटिफिक अफेअर्स की हेड डॉ. सुरुचि अग्रवाल

सर्वाइकल कैंसर

भारते में हर साल 1, 22,844 महिलाएं सर्वाइकल कैंसर से पीडि़त पायी जाती हैं, जिनमें से 67,477 महिलाओं की मृत्यु हो जाती है। एचपीवी वैक्सीन आने के बाद से इस कैंसर से बचाव सबसे ज्यादा आसान है। वैक्सीन के अलावा नियमित स्क्रीनिंग इसके लिए जरूरी है।

चेकअप कब करवाएंः हर महिला को सर्वाइकल कैंसर के लिए नियमित जांच करवानी चाहिए। 21 वर्ष की उम्र में पहला पैप स्मीयर टेस्ट करवाने के बाद 21-65 वर्ष तक की उम्र इसे हर 3 साल बाद करवाना चाहिए। इसके अलावा 30-65 वर्ष की उम्र तक हर महिला को हर 5 साल में एचपीवी टेस्ट भी करवाना चाहिए।

सेल्फ एग्जामिनेशनः सर्वाइकल कैंसर के लिए कोई खास सेल्फ एग्जामिनेशन टेस्ट नहीं है, लेकिन हर महिला को कुछ लक्षणों का ध्यान रखना चाहिए जैसे पीरियड्स के बीच में ब्लीडिंग होना, इंटरकोर्स के बाद ब्लीडिंग या स्पॉटिंग होना या फिर मेनोपॉज के बाद ब्लीडिंग होना। अगर इनमें से कोई भी लक्षण हो, तो गाइनीकोलॉजिस्ट से मिल कर टेस्ट करवाना चाहिए।

ओवेरियन कैंसर

आंकड़ों व भारत में कैंसर से जुड़े रिकॉर्ड को सच मानें, तो ओवेरियन कैंसर भारत में महिलाओं को होने वाला तीसरा सबसे प्रमुख कैंसर है। इसे साइलेंट किलर भी कहा जाता है, क्योंकि जब तक यह अंतिम स्टेज तक नहीं पहुंच जाता, तब तक इसके कोई लक्षण दिखायी नहीं देते।

चेकअप कब करवाएंः ओवेरियन कैंसर के लिए कोई रूटीन स्क्रीनिंग टेस्ट नहीं है। हालांकि जिन महिलाओं में ओवेरियन या ब्रेस्ट कैंसर की हिस्ट्री हो या फिर ब्राका1 या ब्राका2 जैसी जेनेटिक म्यूटेशन हो, उन्हें यह कैंसर होने का रिस्क ज्यादा रहता है। इसके अलावा बिना किसी कारण के होने वाला पेट दर्द, ब्लोटिंग या बोवल मूवमेंट यानी की शौच की आदतों में बदलाव महसूस हो, तो आपको डॉक्टर से जरूर मिलना चाहिए।

एंडोमीट्रियल कैंसर

यह कैंसर यूटरस की लाइनिंग पर असर डालता है। सर्वाइकल कैंसर की ही तरह इस कैंसर के बारे में जागरूकता फैलाने की बहुत ज्यादा जरूरत है, क्योंकि अर्ली डिटेक्शन से इस कैंसर को फैलने से रोका जा सकता है।

चेकअप कब करवाएंः मेनोपॉज की शुरुआत होने पर हर महिला को डॉक्टर से रेगुलर चेकअप करवाना चाहिए। अगर कोई लक्षण जैसे कि वेजाइनल ब्लीडिंग या स्पॉटिंग हो, तो तुरंत अपनी डॉक्टर से मिलें। अगर परिवार में कोलोरेक्टल कैंसर की हिस्ट्री हो, तो इस कैंसर का रिस्क बढ़ जाता है।

सेल्फ एग्जामिनेशनः एंडोमिट्रियल कैंसर से बचाव के लिए सेल्फ एग्जामिनेशन से ज्यादा जरूरी है, शरीर में आने वाले बदलावों पर गौर करना। मेंस्ट्रुअल साइकिल में कुछ बदलाव महसूस हो या फिर वेजाइनल ब्लीडिंग हो, तो डॉक्टर से मिलें और पूरी जांच करवाएं।

वेजाइनल कैंसर

यह कैंसर वेजाइना की लाइनिंग पर असर डालता है। हालांकि यह बाकी गाइनीकोलॉजिकल कैंसर की तरह आम नहीं है। एचपीवी इंफेक्शन या वेजाइनल इंट्राएपिथिलियर नियोप्लासिया (वेन) की हिस्ट्री हो, तो इस कैंसर का रिस्क है।

चेकअप कब करवाएंः वेजाइनल कैंसर के कोई लक्षण शुरुआती स्टेज में नजर नहीं आते, इस वजह से यह एडवांस्ड स्टेज में ही पकड़ में आता है। इसके कुछ आम लक्षणों में प्रमुख हैं मेनोपॉज के बाद ब्लीडिंग होना, सेक्स के बाद ब्लीडिंग होना, सेक्स के दौरान दर्द महसूस होना, वेजाइना से बदबूदार या खून के रंग का डिस्चार्ज होना, पीरियड्स के बीच में ब्लीडिंग होना, वेजाइना में अकसर ईचिंग रहना, बार-बार पेशाब आना। इससे बचने के लिए गाइनीकोलॉजिस्ट से नियमित रूप से पेल्विक जांच करवाना जरूरी है।

जेनेटिक टेस्ट की क्या है भूमिका

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इसमें कोई दोराय नहीं है कि जागरूकता, नियमित जांच और सेल्फ एग्जामिनेशन कैंसर की रोकथाम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन कुछ जेनेटिक टेस्ट भी इसमें मददगार हो सकते हैं। हमारे डीएनए में कुछ खास बदलाव व म्यूटेशन एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में ट्रांसफर होते रहते हैं। उदाहरण के लिए ब्राका1और ब्राका2 जीन म्यूटेशन ब्रेस्ट कैंसर व ओवेरियन कैंसर का रिस्क बढ़ा देते हैं। जेनेटिक टेस्टिंग से इसकी पहचान की जा सकती है और यह भी पता लगाया जा सकता है कि भविष्य में कैंसर होने के कितने चांसेज हैं। लगभग 8-10 प्रतिशत केसेज में ओवेरियन कैंसर का कारण ब्राका1 और ब्राका2 जींस में होने वाला म्यूटेशन है। इसकी वजह से ब्रेस्ट कैंसर, पैंक्रियाटिक कैंसर भी होने का रिस्क बढ़ जाता है। पुरुषों में ये जींस प्रोस्टेट, ब्रेस्ट कैंसर की वजह बनते हैं।

जेनेटिक टेस्टिंग का फायदा यह होता है कि इसे करवाने से महिलाएं समय रहते कैंसर से जुड़े बचाव के कदम उठा सकती हैं। इसी की अगली कड़ी है नेक्स्ट जनरेशन सीक्वेंसिंग बेस्ट जेनेटिक टेस्ट। यह एक ब्लड टेस्ट है जिसकी मदद से यह पता लगाया जा सकता है कि हेरेडिटी की वजह से कैंसर होने का कितना रिस्क है। समय रहते अगर आपको पता चल जाएगा कि आने वाले समय में कैंसर होने की कितनी संभावनाएं हैं, जो ना सिर्फ बचाव के लिए उपाय कर पाएंगे, बल्कि इसके इलाज में आने वाला खर्च भी काफी हद तक कम किया जा सकता है।