बहुत आसान है पहचान इसकी, अगर दुखता नहीं तो दिल नहीं है
मशहूर शायर जावेद अख्तर की ये लाइनें टूटे हुए दिल के दर्द को बयां करती हैं। आमतौर पर ऐसा अहसास मोहब्बत में होता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि महिलाओं को मेनोपॉज की उम्र के आस-पास दिल टूटने का अहसास हो सकता है। यानी उन्हें असल में दिल टूटने की वजह से हार्ट अटैक आ सकता है।
इस हालत को ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम कहा जाता है। ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम की स्थिति में सच में हार्ट अटैक आ सकता है। हालांकि महिलाओं में ये स्थिति मोहब्बत से मिले दर्द से पैदा नहीं होती।
दरअसल 45 वर्ष से ज्यादा की महिलाओं में मेनोपॉज यानी माहवारी के रुकने की प्रक्रिया शुरु हो चुकी होती है। मेनोपॉज पूरी तरह से हो जाने पर महिलाओं में इस्ट्रोजन हॉरमोन बनना बंद हो जाता है। ऐसे में महिलाओं के भावनात्मक रवैये में बदलाव आने लगते है। इन महिलाओं में अचानक किसी की मृत्यु की खबर सुनने, अचानक कोई सदमा लगने, रोड एक्सीडेंट जैसे हादसे होने पर दिल पर बुरा असर पड़ता है। इन महिलाओं में पहले से हार्ट अटैक का कोई लक्षण मौजूद ना हो तो भी दिल को अचानक नुकसान हो सकता है। दिल की मांसपेशियां अचानक से कमजोर पड़ जाती हैं और हार्ट अटैक आ जाता है।
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल की रिसर्च के मुताबिक ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम के 90% मामले 50 से 70 वर्ष की महिलाओं में देखे गए हैं। इन महिलाओं में मेनोपॉज के बाद ही अचानक दिल के कमजोर होने का खतरा सबसे ज्यादा रहता है।
क्या होता है ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम
ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम को मेडिकल भाषा में ताकोत्सुबो कार्डियोमायोपैथी कहा जाता है। दरअसल ये नाम जापान के वैज्ञानिकों का दिया हुआ है। ताकोत्सुबो एक मिट्टी का बर्तन होता है जिसे मछुआरे ऑक्टोपस को पकड़ने के लिए इस्तेमाल करते हैं।
ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम में दिल का उपरी बायां हिस्सा फूल जाता है और एक फूले हुए मिट्टी के बर्तन के आकार जैसा दिखने लगता है। इसी वजह से इस बीमारी को ताकोत्सुबो सिंड्रोम भी कहा गया है।
ये होते हैं ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम के लक्षण
हार्ट अटैक आने पर सीने पर दबाव, तेज दर्द, भारीपन और जकड़न होती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि दिल को खून की सप्लाई करने वाली कोई नली ब्लॉक हो जाती है और वो दिल की मांसपेशियों तक खून सही तरीके से नहीं पहुंचा पाती। ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम में भी हार्ट अटैक जैसे ही सारे लक्षण होते हैं लेकिन इस मामले में दिल को खून सप्लाई करने वाली नलियां ब्लॉक नहीं होती। इसलिए इस बीमारी के शिकार मरीजों में उतना तेज सीने में दर्द नहीं होता। उन्हें थकान, पसीना और सांस फूलने की दिक्कत भी हो सकती है।
फोर्टिस अस्पताल के ह्रदय रोग विशेषज्ञ डॉ अजय कौल के मुताबिक ऐसे मरीजों में रिकवरी हो सकती है। दिल के बाकी मरीजों के मुकाबले ये मरीज ज्यादा तेजी से रिकवर हो पाते हैं। हालांकि इन मरीजों को दवाओं के साथ साथ बेहतर माहौल और अपने करीबियों के साथ से ज्यादा फायदा होता है।
40 के पार महिलाएं करें ये तीन योगासन - दिल को होगा फायदा
आयुष मंत्रालय से सर्टिफाइड योग गुरु आचार्य रुबी के मुताबिक ऐसी महिलाएं जो मेनोपॉज की उम्र के नजदीक आ चुकी हैं उन्हें दिल को फायदा पहुंचाने वाले योगासन करने चाहिए। अनुलोम विलोम यानी सांस लेना और छोड़ना - इस आसन को दिल की सेहत के लिए बेहद फायदेमंद माना गया है। हालांकि सर्दियों और प्रदूषण के मौसम में इस योग क्रिया को बाहर ना करके घर में प्रदूषण मुक्त वातावरण में करने की सलाह दी जाती है।
इसके अलावा भुजंग आसन करने से भी दिल और फेफड़े मजबूत किए जा सकते हैं। जो महिलाएं पहली बार भुजंग आसन कर रही हैं वो परफेक्शन की परवाह ना करके अपनी क्षमता के हिसाब से ये आसन कर सकती हैं।
जो महिलाएं अभी दिल की बीमारी की शिकार नहीं हैं वो अपनी सामर्थ्य के हिसाब से चक्रासन भी कर सकती हैं। चक्रासन दिल की मांसपेशियों और खून सप्लाई करने वाली नलियों को खोलने में मदद करता है।
दुनिया भर में चल रही है ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम पर रिसर्च
इसी वर्ष जनवरी के महीने में स्कॉटलैंड में हुई एक रिसर्च के मुताबिक ताकोत्सुबो कार्डियोमायोपैथी यानी ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम के मरीज़ों में जान जाने का खतरा बाकी हार्ट अटैक के मरीज़ों से ज्यादा होता है। जनवरी 2024 में स्कॉटलैंड में 620 मरीज़ों को डाटा को स्टडी किया गया। रिसर्च में शामिल मरीजों की औसत उम्र 66 वर्ष थी। इन मरीजों में हार्ट अटैक आने पर जान जाने का खतरा हार्ट अटैक के दूसरे मरीजों के मुकाबले 5 प्रतिशत ज्यादा पाया गया। रिसर्चरों के मुताबिक ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम के जिन मरीजों को समय पर बीटा ब्लॉकर दवाएं दी गई, उनके नतीजे बेहतर रहे और वो जल्दी रिकवर कर गए।
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में भी कुछ समय पहले ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम पर रिसर्च की गई। इस रिसर्च को अमेरिका के हार्ट एसोसिएशन के जर्नल में प्रकाशित किया गया था। इस रिसर्च के मुताबिक इस बीमारी के इलाज में कई बार उम्र भर तक दवाएं लेनी पड़ सकती हैं ताकि दूसरी बार हार्ट अटैक के खतरे को टाला जा सके।
महिलाओं में दिल के खतरे को ऐसे टालें
इसीलिए एक्सपर्ट्स मेनोपॉज के समय महिलाओं को भावनात्मक रुप से सहयोग करने की सलाह देते हैं। ऐसी महिलाओं में मूड स्विंग्स जैसे कि बार बार रो देने जैसे लक्षण दिखें तो उनका मजाक नहीं उड़ाना चाहिए। हॉरमोनल बदलाव की वजह से महिलाएं इस उम्र में इमोशनल तौर पर कमजोर हो सकती हैं - उनके आसपास के लोगों को उनके प्रति प्रेम का बर्ताव रखना चाहिए। मनोचिकित्सक डॉ. मनु तिवारी के मुताबिक महिलाएं आमतौर पर भावनात्मक रुप से महिलाओं से ज्यादा मजबूत मानी जाती हैं लेकिन हॉरमोनल बदलाव के समय वे शारीरिक बदलाव के दौर से गुजर रही होती हैं। ऐसे समय में अगर उन्हें जज ना किया जाए और उनका साथ दिया जाए तो दिल को होने वाले नुकसान टाले जा सकते हैं। हर महिला को मेनोपॉज के दौरान डॉक्टरी मदद की जरुरत नहीं होती - लेकिन अगर ऐसी महिलाओं में डिप्रेशन, चिड़चिड़ापन या कमजोरी के लक्षण दिख रहे हों तो स्त्री रोग विशेषज्ञ को दिखाने में देरी नहीं करनी चाहिए।