आजकल इंटरमिटेंट फास्टिंग (IF) और टाइम-रिस्ट्रिक्टेड ईटिंग (TRE) हर जगह चर्चा में हैं। वजन घटाना हो, ब्लड शुगर कंट्रोल करना हो या मेटाबॉलिक हेल्थ सुधारनी हो — लोग इसे अपनाने के लिए आगे बढ़ रहे हैं। लेकिन क्या यह हर किसी के लिए सुरक्षित है?
भारत में महिलाओं के बीच इंटरमिटेंट फास्टिंग का ट्रेंड बढा है।
सोशल मीडिया पर लाखों लोग अपने 16:8 या 14:10 फास्टिंग-ईटिंग शेड्यूल की बातें कर रहे हैं। यानी कुछ लोग 16 घंटे व्रत के बाद 8 घंटे के समय में खाते हैं तो कुछ 14 घंटे का व्रत करते हैं और 10 घंटे का समय खाने के लिए रखते हैं। शेड्यूल अपनाते हैं।
लेकिन हाल ही में हुई एक रिसर्च में इंटरमिटेंट फास्टिंग को दिल की बीमारी के खतरे बढ़ाने वाली बताया गया है।
हाल ही में डाइबिटीज एंड मेटाबॉलिक सिंड्रोम क्लीनिकल रिसर्च एंड रिव्यूज में प्रकाशित एक नई स्टडी ने व्रत यानी फास्टिंग के इस पॉपुलर हो रहे तरीके पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
इसके लिए अमेरिका के 19,000 से अधिक वयस्कों के डाटा का विश्लेषण किया गया। शोधकर्ताओं ने पाया कि जिन लोगों का रोज का खाने का समय 8 घंटे से कम था, उनमें दिल की बीमारी से मरने का जोखिम 135% अधिक था। रिसर्च में पाया गया कि लंबे समय तक दिन में केवल 6–8 घंटे में खाना खाने से दिल और खून की नलियों से जुड़ी बीमारी का खतरा बढ़ सकता है।
शोधकर्ताओं में अमेरिकी रिसर्चर मेन्ग चेन (Meng Chen) और विक्टर वेंज ज़ोंग (Victor Wenze Zhong) शामिल थे। हालांकि रिसर्चर्स ने कहा कि ये केवल एक एनालिसिस है और ऐसे किसी भी नतीजे पर पहुंचने के लिए लंबे शोध की जरुरत है। परिणाम कितने खतरनाक हो सकते हैं ये तो नहीं कहा जा सकता लेकिन दिल से जुड़े खतरे सभी उम्र के वयस्कों में पाए गए।
इंटरमिटेंट फास्टिंग वजन कम करने में मददगार पायी गयी है। ये तरीका डाइबिटीज के मरीजो को भी फायदा पहुंचा सकता है साथ ही ब्लड प्रेशर कम करने में मदद मिलती है। लंबे समय तक भूखे रहने से जहां नई रिसर्च दिल की बीमारी का खतरा जता रही है वहीं इससे कोलेस्ट्रॉल और लिपिड प्रोफाइल बेहतर होते पाए गए हैं – ये दोनों अगर कंट्रोल हों तो दिल की बीमारी के खतरे को कम कर सकते हैं।
इंटरमिटेंट फास्टिंग में सावधानी जरुरी
इस रिसर्च को लेकर भारत के जाने माने डॉ और रिसर्चर डॉ. अनूप मिश्रा ने सावधान किया है। उनके मुताबिक इंटरमिटेंट फास्टिंग एक बहुत कम खर्चीला तरीका है, जो वजन घटाने और मेटाबॉलिक सेहत सुधारने में मदद कर सकता है। पहले भी कई रिसर्च बता चुकी हैं कि IF से इंसुलिन संवेदनशीलता बढ़ सकती है, ब्लड प्रेशर कम हो सकता है, कोलेस्ट्रॉल बेहतर होता है और सूजन भी कम हो सकती है। इसलिए उनका मानना है कि इस रिसर्च पर एक नए दृष्टिकोण की जरुरत है। यानी नए नजरिए से इस रिसर्च को देखा जाए। डॉ अनूप मिश्रा फोर्टस के डाइबिटीज कंट्रोल सेंटर फोर्टिस – C Doc के चेयरमैन हैं।
कई डाइटीशियन भी इंटरमिटेंट फास्टिंग को लेकर सवाल खड़े कर चुके हैं। डॉ. ईशी खोसला के मुताबिक ये जानना भी जरुरी है कि इस तरह की डाइटिंग अपनाने वाले इंसान को इसकी कितनी जरुरत है। साथ ही जब खाने का समय है उस समय क्या खाया जा रहा है ये देखना सबसे अहम है।
ऐसे लोग जिनका वजन कम है या उनमें कुपोषण की परेशानी है यानी वजन तो ठीक है लेकिन शरीर में जरूरी पोषक तत्वों की कमी है – उन्हें लंबे समय तक भूखा रहने से नुकसान हो सकता है। इसकी वजह से शुरुआत में बहुत भूख लगने, चिड़चिड़ापन और सिरदर्द की परेशानी हो सकती है। डाइबिटीज के मरीज बिना निगरानी के ऐसी फास्टिंग अपनाएं तो उन्हें हाइपोग्लाइसीमिया का खतरा हो सकता है। इसी तरह बुजुर्ग और बीमार लोगों में लंबे उपवास से कमजोरी हो सकती है उनमें कंपकंपी और कमजोरी से गिर जाने का खतरा हो सकता है।
डॉ. मिश्रा का मानना है कि इंटरमिटेंट फास्टिंग हर किसी के लिए एक जैसे नतीजे नहीं देती। “कुछ लोगों में IF से बड़े लाभ मिल सकते हैं, लेकिन कुछ में नुकसान भी। इसलिए इसे अपनाने से पहले अपने शरीर और स्वास्थ्य का आंकलन करना जरूरी है।”
भारत में महिलाओं का व्रत और डाइटिंग से रिश्ता
भारत में महिलाओं द्वारा व्रत और उपवास करने की परंपरा बहुत पुरानी है। अधिकांश व्रत धार्मिक और सांस्कृतिक कारणों से किए जाते हैं, हालांकि, आधुनिक शहरी महिलाओं के बीच यह रिवाज कभी-कभी स्वास्थ्य और वजन घटाने के मकसद से भी जुड़ जाता है। उदाहरण के लिए, कई महिलाएं व्रत के दौरान कैलोरी नियंत्रित भोजन अपनाती हैं, जो वजन कम करने या ब्लड शुगर नियंत्रित रखने में मदद कर सकता है। पारंपरिक व्रत और आधुनिक इंटरमिटेंट फास्टिंग के बीच कुछ समानताएं देखी जा सकती हैं।
हालांकि, लंबे समय तक पोषण की कमी या बीमारी के बावजूद बार बार व्रत करने से कमजोरी, मांसपेशियों को नुकसान और दिल की बीमारी का खतरा बढ़ सकता है।
सावधानी के लिए आसान टिप्स
धीरे-धीरे शुरू करें: पहले 12 घंटे का फास्टिंग-ईटिंग शेड्यूल रखें और धीरे-धीरे घटाए।
संतुलित आहार: प्रोटीन, फाइबर और हेल्दी फैट शामिल करें।
पानी और हाइड्रेशन: हर्बल चाय या ब्लैक कॉफी ऐसे में मदद कर सकती है।
खतरे को पहचानें - चिड़चिड़ापन, कमजोरी, सिरदर्द या ब्लड शुगर कम होने पर तुरंत बदलाव करें।
विशेषज्ञ की सलाह: मधुमेह, हृदय रोग या पुरानी बीमारी वाले लोग इंटरमिटेंट फास्टिंग अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें। इस तरीके से मिलने वाले फायदे और नुकसान व्यक्ति, उम्र, जीवनशैली, खानपान और फास्टिंग की अवधि पर निर्भर करते हैं।
इंटरमिटेंट फास्टिंग वजन घटाने और मेटाबॉलिक स्वास्थ्य सुधारने का एक प्रभावी तरीका हो सकता है। लेकिन यह हर किसी के लिए सुरक्षित नहीं है। इसे अपनाने से पहले विशेषज्ञ की सलाह लेना, छोटे पैमाने पर शुरुआत करना और शरीर की प्रतिक्रिया पर ध्यान देना जरूरी है।
संदेश साफ है कि वजन घटाना या स्वास्थ्य सुधारना है तो इंटरमिटेंट फास्टिंग अपनाएं, लेकिन अपने दिल और शरीर का ख्याल पहले रखें।