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हम तीनों बच्चों पर हमारी अम्मी (अभिनेत्री शर्मिला टैगोर) का हमेशा से बेहद प्रभाव रहा है। बचपन से ले कर 70 वसंत पार करने तक अम्मी का डीलडौल हमेशा काफी नाजुक सा रहा है। ऐसे साधारण कद-काठी वाली कोई स्त्री स्वभाव से बहुत सख्त, बहुत गंभीर और साहसी किस्म की हो सकती है, क्या आपने कभी सोचा या देखा है? अम्मी का अनुशासन बहुत सख्त रहा है। हमारे अब्बू जान का काफी सारा वक्त क्रिकेट, गोल्फ, पोलो जैसे स्पोर्ट्स में बीता। उन्हें रियासत का भी काफी काम हुआ करता था। अम्मी को अब्बू ने अभिनय करने से कभी रोका नहीं, बल्कि प्रोत्साहन दिया। अम्मी बहुत व्यस्त रहती थीं, लेकिन क्या मजाल थी हम तीनों बच्चों की, जो मिसबिहेव करें ! अपना होमवर्क ना करें। 

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हमारे अब्बू जान से हमें डर लगता था, लेकिन हम बच्चे अपनी अम्मी से फ्रेंड्ली थे। अम्मी ने हम तीनों बच्चों को सभी धर्मों पर आदर-आस्था कायम रखने की तालीम दी। अब्बू मुस्लिम, तो अम्मी शादी से पहले हिंदू थीं। हर त्योहार को मनाने की आदत अम्मी ने शुरू की। त्योहारों पर ट्रेडिशनल परिधान पहनने का रिवाज मम्मी ने शुरू करवाया। हमारा परिवार नवाबों का है, यहां के रीतिरिवाज, आदतें, परंपराएं अलग होते हैं। लेकिन अम्मी अभिनय में व्यस्त हो कर भी सभी रीति-परंपराओं को सलीके से निभाया करती थीं। आज जब मैं पीछे मुड़ कर देखता हूं, तो ताज्जुब करता हूं कि अम्मी चाहतीं, तो किसी भी फिल्ममेकर से बात कर मुझे लॉन्च करवा सकती थीं। लेकिन अम्मी चाहती थीं कि मुझे अपने खुद के बलबूते फिल्मों में मौका मिले। और हुआ भी वही। हालांकि मैं बहुत अच्छा क्रिकेट खेला करता था, अब्बू को लगता था मैं शायद उनकी तरह क्रिकेटर बन सकता हूं, लेकिन अभिनय की इच्छा क्रिकेट पर हावी हुई।

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अम्मी का हर कदम हम बच्चों के लिए मील का पत्थर बना हुआ है। मैंने जिंदगी में बहुत गलतियां कीं, लेकिन मां को देख कर मुझमें संबल आया। एक व्यक्ति को कैसा होना चाहिए, इसकी मिसाल हैं अम्मी। सिर्फ मैं ही नहीं कोई भी उनसे बहुत कुछ सीख सकता है। उसूल, आदर्शों की पाठशाला हैं मेरी अम्मी जान। 

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