हम अपने कुछ दोस्तों के साथ दिल्ली से तीर्थन के लिए रवाना हुए। लगभग 9-10 घंटे के सफर के बाद हम तीर्थन घाटी की गोद में बसे नगीनी गांव में पहुंच पाए। यह कुल्लु में पड़ता है। गाड़ी के अलावा अाप वॉल्वो बस से भी जा सकते हैं। तीर्थन के लिए अापको अॉट सुरंग से पहले ही उतरना होगा। इस बारे में ड्राइवर या हेल्पर को पहले से ही सूचित कर दें, क्योंकि बस सुरंग में घुस गयी, तो फिर सुरंग पार करके ही रुकेगी, जो लगभग 2.3 किलामीटर लंबी है। अॉट सुरंग से तीर्थन घाटी के लिए अपनी टैक्सी पहले से ही बुक कर लें। यहां से लोकल बस भी नगीनी, गुसाईं, रोपा गांव तक के लिए मिल जाती हैं।

यों तो हिमाचल में चारों तरफ खूबसूरती ही खूबसूरती है। हालांकि अगर अपनी गाड़ी से तीर्थन जाएंगे, तो यह फायदा होगा कि अाप रास्ते में गाड़ी रोक कर व्यास नदी के सहारे कुछ सुकून के पल बिता सकते हैं। मार्च से जुलाई के बीच में यह नदी यहां की खासियत ट्राउट मछली से भरी होती है।
बजट अौर ठहरने का इंतजाम

एक बार तीर्थन घाटी के नगीनी गांव में पहुंच जाएं, तो अापके पास ठहरने के कई विकल्प मौजूद हैं। हिमालयन ट्राउट हाउस, खेमभारती गेस्ट हाउस जैसे बजट होटल या तीर्थन कैंप रिजॉर्ट ठहरने के अच्छे अॉप्शन हैं। हमने ठहरने के लिए हिमालयन ट्राउन हाउस का विकल्प चुना। यहां पर 2200 रुपए की कीमत से शुरू हो कर साफ-सुथरे कमरों के साथ खाने की भी अच्छी वेराइटी मौजूद है। यहां पर घर का खाना, स्टफ्ड रवा ट्राउट फिश अौर चिकन करी हमें काफी पसंद अाए। इसके अलावा यहां पर कॉन्टिनेंटल सलाद अौर पास्ता भी यहां के मेन्यू में शामिल है। रहने के लिए यह जगह चुनने का एक फायदा यह भी है कि सिर्फ 5 मिनट की दूरी तय करके अाप फिशिंग के लिए नदी किनारे पहुंच सकते हैं।
फिशिंग व ट्रैकिंग
अगर अापने इससे पहले तीर्थन का नाम नहीं सुना, तो यह जान लीजिए कि पूरे हिमाचल में तीर्थन जैसी खूबसूरत जगह कोई अौर नहीं। ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क से घिरा तीर्थन लाइव फिशिंग के लिए प्रसिद्ध है।
इस पूरे इलाके में शोर मचाने का हक सिर्फ तीर्थन नदी को ही है। बेलगाम हो कर पत्थरों से टकराती फेनिल तीर्थन अौर उछलकूद करती ट्राउट मछलियां दो टीम बना कर सारा दिन मैच खेलती हैं। नदी की लहरें उन्हें बाहर धकेलती हैं अौर मछलियां उनकी कोशिशों को धता बता कर बार-बार पानी में जा कर छुप जाती हैं।

अगले दिन नगीनी गांव से कुछ घंटों का सफर तय कर के हम गुशानी गांव में पहुंच गए। यहां से अाप या तो ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क की तरफ जाएं या फिर रोपा की तरफ। चूंकि हम फिशिंग का अनुभव लेना चाहते थे, तो ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क की तलहटी में हम रोपा की तरफ बढ़ चले। लगभग 4 घंटे तक पहाड़ों को अपने शहरी कदमों से नापने के बाद सूर्यास्त से पहले हम वापस नगीनी गांव पहुंच गए। गुशानी से नगीनी के लिए शाम 5 बजे के बाद कोई बस नहीं है।
अाप चाहें, तो हिमालय इको टूरिज्म द्वारा अायोजित किए जानेवाले ट्रैकिंग ग्रुप का भी हिस्सा बन सकते हैं। यहां पर एक से 10 दिन के लिए विभिन्न एक्टिविटीज का अायोजन करवाया जाता है। एडवेंचर के शौकीनों के लिए तीर्थन में स्टारगेजिंग, रैपलिंग, रिवर क्रॉसिंग, रॉक क्लाइंबिंग जैसी कई एक्टिविटीज मौजूद हैं। वहीं अारामतलब लोग पहाड़ों के बीच में कैंप लगा सकते हैं।
बाहर छोटे ढाबों अौर फूड स्टॉल्स पर मिलनेवाला खाना गेस्ट हाउस के खाने से ज्यादा मजेदार लगा। ताजे फलों के अलावा स्थानीय व्यंजन सिद्दू भी जरूर खाएं। यह मोमोज की ही तरह है, लेकिन अाकार में काफी बड़ा। इसके अलावा घर की बनी जैम, देसी घी में बने राजमा का स्वाद हमारे साथ घर तक अाया।

अांधी-तूफान के कारण जब हम अपने गेस्ट हाउस में ही कैद रहे, तो उस समय का सदुपयोग हमने चाय-पकौड़ों की पार्टी के साथ किया। पकौड़ों के साथ मिलनेवाली लाल बुरांश की चटनी का स्वाद भुलाए नहीं भूलता। यहां के लोग बेहद स्वादिष्ठ बुरांश का जूस भी बनाते हैं।
मनाली, धर्मशाला, शिमला जैसे पर्यटन स्थलों में जहां एक अोर पर्यटक उमड़े रहते हैं, वहीं तीर्थन सिर्फ उनका हमसफर बनता है, जिनके लिए छुटि्टयां भीड़ से कटने का बहाना हैं। अाप हमारी तरह घूमने-फिरने के शौकीन हों या ना हों, लेकिन अनछुए हुस्न से लबरेज तीर्थन की सैर जीवन में एक बार जरूर करें, पर ध्यान रहे, अच्छे पर्यटक बनें अौर इसकी खूबसूरती को गंदा ना करें।