Friday 11 August 2023 03:37 PM IST : By Sushila Shrivastava

तालमेल

taalmel

सुधा बहुत हल्का सा महसूस कर रही थी। जबसे बड़े बेटे नीरज का इलाहाबाद युनिवर्सिटी में लेक्चरर के पद पर चयन हो गया था और सारी रिश्तेदारी व आसपड़ोस में यह खबर फैल गयी, तब उसके विवाह के लिए लोगों का आना शुरू हो गया था। कभी-कभी इतवार को तो दिन का खाना शाम को हो पाता। रिश्ते तो कई आए, पर कोई मनोहर को पसंद नहीं, तो कहीं नीरज को, तो कहीं बेटियों को नापसंद। बनारस से जब प्रमोद बाबू की बेटी सीमा का रिश्ता आया, तो सभी को पसंद आया।

प्रमोद बाबू मनोहर जी के मित्र थे। एक साथ ही पढ़े थे। प्रमोद जी बनारस युनिवर्सिटी के कार्यालय में हेड क्लर्क के पद पर कार्य करते थे। कभी-कभी दोनों मित्रों में बातचीत हो जाया करती थी। प्रमोद जी की 2 लड़कियां सीमा व सुनैना थीं। सीमा बड़ी थी। बस यह जान कर कि नीरज की अभी शादी नहीं हुई है, वह सीमा के लिए एक दिन रिश्ता ले कर आए। फोटो तथा अन्य बातों से संतुष्ट होने पर बेटी सीमा को देखने का प्रस्ताव रखा। प्रमोद जी पत्नी के साथ सीमा को ले कर आ गए।

सीमा रूप-गुण के साथ सरल स्वभाव की लगी। थोड़ा जेठानी ने मुंह बनाया था। बोली, ‘‘अरे थोड़ी देर में क्या पता गुण-स्वभाव का।’’

सुधा स्पष्ट बोली, ‘‘दीदी, कुछ ना कुछ बात तो सभी के साथ रहती है। लड़कियों को ससुराल में जा कर एडजस्ट तो करना ही पड़ता है।’’ बेटियों ने भी मां का समर्थन किया और बस रिश्ते पर सबकी मोहर लग गयी।

आज कई दिनों बाद सुधा सबके साथ बैठी विवाह कब करना है, क्या करना है आदि बातों में मगन थी। दोनों बेटियां शची व सुमन ससुराल से आ गयी थीं।

मनोहर बाबू बैंक में मैनेजर के पद पर कार्यरत थे। दो बेटे व दो बेटियों व पत्नी सुधा के साथ सुखी परिवार के मालिक थे। बड़ा बेटा नीरज इलाहाबाद युनिवर्सिटी में लेक्चरर के पद पर कार्य संभालने वाला था। छोटा बेटा सजल अभी बीकॉम कर रहा था। दोनों बेटियां शची व सुमन अपनी पढ़ाई पूरी कर चुकी थीं। सौभाग्य से अच्छा घर-वर मिल गया, तो उनकी शादी कर दी। सभी बच्चों की पढ़ाई व शादी में काफी कुछ व्यय होने के कारण अब नीरज की शादी में मन माफिक खर्च ना करने के कारण थोड़ा चिंतित थे। मनोहर जी किराए के एक साधारण घर में रह कर परिवार को किसी तरह चला रहे थे। वे लड़की वालों से कोई मांग दहेज आदि के विरुद्ध थे। सभी का कहना था कि शादी शीघ्र होनी चाहिए।

शची व सुमन के विवाह होने के बाद से सुधा अकेले ही घर संभाल रही थी। अब एक सहायक की आवश्यकता महसूस हो रही थी। सभी की सहमति से मनोहर बाबू ने विवाह शीघ्र करने का निर्णय कर लड़की वालों को बता दिया। वे लोग भी विवाह शीघ्र करना चाहते थे। दोनों पक्ष के तैयार होने पर अब विवाह संबंधी तैयारियां शुरू हो गयी।

घर में विवाह की गहमागहमी शुरू हो गयी। सुधा की बड़ी ननद पहले ही आ गयी थी। अन्य रिश्तेदारों का आना भी शुरू हो गया था। सभी अपने-अपने ढंग से खुशियां बांट रहे थे। कभी कोई व्यंग्य बाण चला देता, जिससे मन में कुछ हलचल सी मच जाती।

बड़ी चाची ने आते ही चेताया, ‘‘देख बहू, जरा संभल के रहना, बहुत लाड़-प्यार ना दिखाना नहीं तो सिर चढ़ गयी, तो बस में आने वाली नहीं।’’

‘‘हां चाची, बात तो सही कह रही हो। आजकल की लड़कियां ससुराल में कदम रखते ही अपनी ही चलाने की सोचती हैं,’’ बड़ी ननद हंसते हुए बोली। सुधा मुस्करा दी। सुधा तो बस सुंदर सुनहरे दिनों के स्वप्न ही देखा करती।

किराए का छोटा सा घर। दो कमरों के अतिरिक्त एक छोटा ड्रॉइंगरूम, एक छोटा सा रसोईघर, बस इसी में उसकी गृहस्थी समायी हुई थी। बच्चों की पढ़ाई-लिखाई व परवरिश सब कुछ बिना रोकटोक के चलता रहा। कोई गिला-शिकवा नहीं।

एक आशा, एक आकांक्षा मन में जब-तब आ जाती। बेटे जब अच्छे से सेटल होंगे, तो सुविधाएं तो आती रहेंगी। बस इतनी कामना है जो भी आए स्वभाव सरल की हो, प्रेम व सम्मान करे, खुश रहे और सभी को खुश रखे।

तभी चाची बोलीं, ‘‘अरे बहू, क्या-क्या तैयारियां हो गयी हैं। और क्या बाकी है।’’ सुधा वर्तमान में लौटी। वह शादी की तैयारियों और खरीदारी के बारे में चाची को बताने लगी। चाची व बड़ी ननद ने अपनी-अपनी राय दी। सभी रिश्तेदार आ चुके थे। पूरे घर में हंसी-ठहाके गूंज रहे थे।

विवाह का दिन आ गया। यह लाओ, अरे ये कहां है, अभी तक यह नहीं आया आदि बातों का शोर मचा था। सभी व्यस्त थे।
गरमी के दिन थे। बारात को बनारस ले जाने में बड़ी परेशानी महसूस हो रही थी। अतः सबकी राय में मनोहर बाबू ने समधी प्रमोद जी को यह समस्या बताते हुए कह दिया कि आप लोग यहीं आ जाइए। यहां किसी गेस्ट हाउस में प्रबंध कर दिया जाएगा। प्रमोद जी के सहमत होने पर मनोहर जी ने लखनऊ में ही एक गेस्ट हाउस तय कर दिया। सभी लोग आ गए थे।

लड़की वालों के यहां भी खूब गहमागहमी थी। वधू सीमा सहेलियों से घिरी कभी हंसती, कभी मुस्कराती रहती। कभी कुछ सोचने लगती। ताई की बहू रीना भाभी कभी कुछ कुछ बोल जाती, ‘‘देख सीमा, दब के मत रहना,
जो तेरा मन कहे कह देना। अब तू उस घर की बड़ी बहू है, तेरा मान-सम्मान भी वैसा ही होना चाहिए।’’ सीमा चुपचाप सुनती। वह पढ़ी-लिखी सुलझे विचारों वाली थी।

मेंहदी की रस्म करते-करते बड़ी भाभी, छोटी भाभी सभी कुछ ना कुछ सीख देती जातीं, ‘‘देख सीमा, तू ठहरी चुप्पी सीधी सादी। सास से ज्यादा ननदें हावी हो जाती हैं, जरा संभल के रहना। चुप रहने से काम नहीं बनने का, तू किस बात में कम है।’’ और वह चुप हो सोचने लगती। मन ना जाने कैसा हो उठता, पर अपने को समझा लेती। हंस कर कहती, ‘‘हां-हां, देख लूंगी।’’

बारात की तैयारी हो रही थी। वह लाओ, अरे इधर रखो, उनको बुलाओ, यह नहीं किया आदि का शोर मचा था। सुधा परेशान सी हो रही थी। विवाह आदि में इतनी रस्में होती हैं कि शोर-शराबा तो होता ही है, थकावट कितनी हो जाती है। सुधा थक कर एक ओर बैठ गयी। बारात निकलने वाली थी। बेटे को निहार कर वह मगन हो रही थी। बैंड-बाजे के साथ बारात चल पड़ी।

बारात जाने के बाद परिवार की सभी स्त्रियां बरामदे में बैठ हास-परिहास में मगन थीं। पर कुछ सुधा के पास आ कर अनचाही नसीहतें भी दे रही थीं। पर वह चुप बैठी सोचने लगती कोई आवश्यक नहीं कि सभी लड़कियों का मन एक सा हो और वह सहज हो जाती।

विवाह धूमधाम से संपन्न हुआ और बहू विदा हो कर आयी। कार दरवाजे पर आ गयी। शची व सुमन बहू सीमा के साथ ही बैठी थीं। शची की ननद की लड़की ममता भी बैठी थी। वह उतर कर घर में आ कर बोली, ‘‘सब लोग जल्दी चलिए बहू को उतारने। सभी लोग बहुत थके है रातभर के जगे हैं।’’

चाची बोलीं, ‘‘अरे, बहू उतारने के लिए वहां की साड़ी तो लाओ, जिसे सुधा पहन कर बहू उतारेगी। बहू उतारने के लिए उसके मायके से साड़ी आती है।’’ हड़बड़ी मच गयी। सुमन कार से उतर कर साड़ी ले कर आयी, बोली, ‘‘लो मां यह रही साड़ी। अब जल्दी से पहन कर बहू उतारो।’’

साड़ी देखते ही सुधा का मुंह बन गया। बोली, ‘‘यह कैसी साड़ी है एकदम देहाती और रंग भी कैसा है,’’ वह पहनने में आनाकानी करने लगी।

बड़ी ननद बोली, ‘‘अब जैसी भी आयी है पहनो और चलो, आरती कर बहू को उतारो।’’

सुधा अनमने मन से पहन कर तैयार हो गयी। यह सब माजरा देख कर किसी ने जा कर कार में बैठी सीमा बहू से कहा, ‘‘अरे सासू जी को साड़ी नहीं पसंद आयी। पहनने में आनाकानी करने लगी थीं, इसी से देर हो रही।’’

सीमा मन ही मन कुछ अनमनी सी हो गयी। तभी सुमन मां को ले कर आयी। सुधा ने आरती उतार कर बहू को उतारा। सीमा ने कार से उतर कर सास के पैर छुए और गले से मायके वाला हार उतार कर सास के पैरों पर रख दिया। सुधा चौंक गयी, बोली, ‘‘अरे, यह क्या कर रही हो बहू?’’

सीमा चुपचाप बैठी रही। सुधा ने बहू को खड़े कर गले से लगाया। सभी लोग वहां आ कर खड़े हो गए। माजरा समझ सब ताली बजाने लगे और कहने लगे, ‘‘देखो, नयी बहू कितनी सलीके वाली व समझदार है और सुधा बहू को देखो, एक साड़ी के लिए परेशान हो गयी।’’ सुधा मन ही मन लज्जित हो रही थी। चुपचाप बहू को ले कर अंदर ले आयी। बड़े लोगों तक बात पहुंची, सभी कुछ ना कुछ कहने लगे। सुधा मन ही मन खिन्न हो रही थी। धीरे-धीरे पारंपरिक रस्में हुईं और धूमधाम से बहू भोज संपन्न हुआ। सभी ने बहू को आशीर्वाद दिया।

धीरे-धीरे बहुत से रिश्तेदार चले गए। सुधा की बड़ी ननद व जेठानी अभी नहीं गयी थीं। सीमा बहू की नम्रता व व्यवहार से सभी बड़े प्रसन्न थे। सुधा भी मन ही मन मगन थी। जेठानी बोलीं, ‘‘बहू से कुछ रसोई में बनवा लो, उसके बाद रसोई में जब चाहे कुछ भी बना सकती है।’’

सुधा बोली, ‘‘मैं भी यही सोच रही थी।’’

सीमा ने सुना, तो बोली, ‘‘मां क्या बनाऊं, आज पहला दिन है।’’

‘‘खीर बना लो’’ कह कर सीमा को ले कर रसोई में आ गयी और खीर का सामान दे दिया। थोड़ी देर में सुमन भी आ गयी। सुधा आ कर सबसे बोली, ‘‘बहू खीर बना रही है आप सभी खीर खा कर आशीर्वाद दीजिए।’’ खीर बन गयी। सबको खीर बहुत पसंद आयी, सभी ने प्रशंसा की और नेग दिए।

सीमा बड़े सवेरे उठ कर नहा कर सज-संवर कर सबके पैर स्पर्श कर रसोईघर में आ जाती। कभी सुमन व कभी शची भी आ जाती और मिल कर चाय-नाश्ता बनातीं। थोड़ी देर में खाना बनाने महाराजिन आ जाती। शादी में भोजन बनाने के लिए महाराजिन रखी गयी थी। अभी जब तक मेहमान हैं, महाराजिन भोजन बनाएगी।

सुमन व शची के ससुराल से भी उनके सास-ससुर की बुलाहट आ रही थी। काफी दिन हो भी गए थे, विवाह के पहले से ही यहां थीं। अतः अब उन लोगों के भी अपने-अपने घर जाने की तैयारी हो रही थी। सुधा ने सभी को उचित उपहार के साथ ससुराल भेजा। सभी लोग बड़े प्रसन्न हुए।

बाकी रिश्तेदारों के जाने के बाद सुधा सीमा से बोली, ‘‘सीमा बेटा, सामान सब बिखरा पड़ा है। अब तुम जैसे चाहो नीरज व सजल के सहयोग से सभी कुछ व्यवस्थित कर लो।’’

सीमा बोली, ‘‘नहीं मां, हम सभी लोग मिल कर घर को व्यवस्थित करेंगे। घर हम सबका है।’’

सभी के चेहरे पर खुशियां चमकने लगीं। मनोहर जी बोले, ‘‘वाह बेटा, सच कहती हो। सुन कर बड़ा अच्छा लगा।’’

सुधा तो जैसे खुशी से अभिभूत हो उठी। मन ने कहा बस हमारा परिवार इसी तरह खुश व सुखी रहे। इसी तरह हम दोनों का तालमेल बना रहेगा, तो परिवार सुखी-संपन्न रहेगा। परिवार में खुशियां बहू व सास के सहयोग से ही रहती हैं। इस सहयोग व प्रेम की डोर जितनी मजबूत रहेगी, परिवार उतना ही सुदृढ़ व संपन्न होगा।

मेरा परिवार ऐसा ही संयमित रहेगा, क्योंकि सीमा बहू पर पूरा भरोसा है। यह सोच कर सुधा का मन फूल सा हल्का हो गया।