Friday 28 July 2023 04:35 PM IST : By Sangeeta Mathur

राज

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‘अरे वाह, अद्भुत, अतिसुंदर... मीकू उठ, देख!’ पापा को उत्साह से चिल्लाते देख मैं टिफिन बनाना छोड़ कर बाहर आ गयी थी। मोर को पंख फैला कर नृत्य करता देख मैं मुस्कराती यह सोचती वापस रसोई में लौट आयी थी कि यह तो रोज होता है। नाना की पुकार पर मीकू भी कुनमुनाता बिस्तर से निकला। मोर के नृत्य और तोतों की चहचहाहट ने उसके चेहरे पर भी मुस्कान बिखेर दी थी। पर चूंकि यह दृश्य उसके लिए भी आम था, इसलिए दो मिनट खड़े रह कर वह बाथरूम की ओर मुड़ गया।

‘‘नाना, मैं तैयार होने जा रहा हूं, वरना बस निकल जाएगी और मम्मी को छोड़ने जाना पड़ेगा।’’

पर पापा के उत्साह में अब भी रत्तीभर कमी नजर नहीं आ रही थी। वे अभी भी बच्चों की तरह उचक-उचक कर दाना खाते पंछियों को निहार रहे थे। पापा की सदाबहार चुस्ती-फुरती और उल्लास देख कर कभी-कभी मैं वाकई हैरान हो जाती हूं कि आखिर इस ताजगी का राज क्या है? रसोई से निवृत्त हो कर मैं हम दोनों की चाय ले कर बाहर ही आ गयी। मुझे आता देख पापा के चेहरे पर चमक आ गयी।

‘‘देख, वह उधर वाला मोर कितनी मस्ती से नाच रहा है। उसके पंख भी कितने लंबे और चमकीले हैं ना? तुम लोग कभी इनकी तसवीर उतारते हो?’’

‘‘क्या पापा आप भी ! जब आप मोहनगढ़ पोस्टेड थे, तो वहां भी तो सवेरे-सवेरे ऐसे कितने ही पक्षी आते थे और वहां की सुबह भी तो ऐसी ही सुहावनी और लुभावनी होती थी,’’ चाय की चुस्कियों के साथ मैं पापा से बचपन की यादें ताजा करने लगी।

‘‘...मुंबई में मैं यह सब बहुत मिस करता हूं। अरे, वहां तो हम चांद-तारे और चिड़िया देखने को भी तरस जाते हैं।
और ऐसी ताजी अौर शुद्ध हवा की तो वहां कल्पना भी नहीं कर सकते।’’

‘‘हां, यह तो है,’’ मैं उनकी बातों से सहमत हो रही थी।

‘‘किसी चीज की असल कमी तभी तो महसूस होती है, जब हम उसे खो चुके होते हैं। मीकू से भी ज्यादा इसीलिए यह दृश्य अभी मुझे आनंदित कर रहा है, क्योंकि एक तो लंबे समय बाद मुझे यह खुशी मिली है और दूसरे मन में यह आशंका भी है कि ना जाने यह खुशी कितने दिनों की है? कब मुंबई लौटना पड़े, तो अभी तो जी भर कर इसका लुत्फ उठा लूूं।’’

‘‘पापा, अभी से लौटने की बात मत कीजिए। थोड़े ही दिन तो हुए हैं आपको आए। वो भी आप इसलिए आ गए कि सूरज की पोस्टिंग बाहर हो गयी है। मैं अकेली हो गयी हूं,’’ मेरे चेहरे पर बेचारगी के भाव उभर आए थे... ‘‘पता नहीं अभी कितने दिन और लगेंगे वापस यहां पोस्टिंग करवाने में? कोई फोन आ रहा लगता है, मैं देखती हूं।’’

‘‘चलो, मैं भी अंदर ही आ जाता हूं। बाहर तो अब ठंड बढ़ रही है,’’ कप समेटते हुए पापा भी अंदर आ गए थे।

भैया का फोन था। जल्दी-जल्दी बात कर मैंने फोन पापा को पकड़ा दिया और अपने कपड़े, टॉवल संभालती बाथरूम में घुस गयी। मुझे भी स्कूल के लिए देरी हो रही थी। पापा का उत्साह में डूबा स्वर बाथरूम तक सुनायी दे रहा था। शायद भैया-भाभी के बाद अब वे बच्चों से बात करने लगे थे, ‘‘मैं भी तुम दोनों को बहुत मिस कर रहा हूं। वैसे मेरी क्लास यहां भी अच्छी चल रही है। मीकू के साथ अच्छा वक्त गुजर रहा है। हां-हां, जल्दी आऊंगा।’’

मैं जल्दी-जल्दी तैयार हो कर स्कूल के लिए निकलने लगी थी, ‘‘अच्छा पापा, शाम को मिलते हैं। सॉरी, आपको वक्त नहीं दे पा रही हूं। सूरज की पोस्टिंग के चक्कर में वैसे ही काफी छुट्टियां ले चुकी हूं,’’ मेरी आवाज में अपराधबोध उतर आया था।

‘‘अरे नहीं, तू परेशान मत हो। मीकू के साथ मेरा अच्छा समय निकल जाता है। बल्कि मैं तो चाह रहा था कि मैं यहां हूं तब तक तू शाम वाली कंप्यूटर क्लासेस जाॅइन कर ले, ताकि तुझे जो लैंग्वेजेज सीखनी हैं, वो सीख ले। मीकू को मैं संभाल लूंगा।’’

मैं पापा की बात सुन कर भी अनसुनी सी करते निकल गयी थी। आजकल खुद के बारे में सोचने का वक्त ही कहां मिल रहा है? हर वक्त सूरज की पोस्टिंग की चिंता ही दिमाग में घूमती रहती है। शादी के इतने सालों बाद पहली बार अकेले रहना मुझे बेतरह अखर रहा था। वह तो अच्छा हुआ पापा कुछ दिनों के लिए आ गए... मीकू को भी कंपनी मिल गयी और मैं भी घर की ओर से निश्चिंत हो गयी। पर पापा तो कुछ दिनों में लौट जाएंगे। आज सुबह ही तो भैया और बच्चों का फोन आया है। स्कूल आ गया, तो घर की चिंताओं को ब्रेक लग गया और स्कूल की चिंताएं शुरू हो गयीं। पूरा दिन चक्करघिन्नी की तरह एक क्लास से दूसरी क्लास में घूमती रही।
वापस शाम को घर के लिए निकली, तभी मीकू और पापा के बारे में सोचने का वक्त मिला। आसमां में हल्के-हल्के मंडराते बादल भले लग रहे थे। वैसे तो पहाड़ों पर मौसम हमेशा ही सुहावना रहता है। सोचते हुए मुझे सुबह का वाकया याद आ गया। पापा कितने खुश थे। हमेशा खुली-खुली जगहों पर रहने वाले पापा का मुंबई के दड़बेनुमा फ्लैट्स और प्रदूषित वातावरण में निश्चित ही दम घुटता होगा। वह तो उनका हर वक्त प्रफुल्लित चेहरा उनके भीतर छुपे असंतोष को जाहिर नहीं होने देता।

घर में घुसी, तो देखा पापा के कोई दोस्त आए हुए थे। चाय-नाश्ते के संग गप्पों का दौर चल रहा था। कमाल है पापा ने यहां भी दोस्त बना लिए। मीकू बाहर खेलने जा चुका था। कपड़े बदल कर मैंने उसका स्कूल बैग जांचा। होमवर्क पूरा था। मैंने राहत की सांस ली। पापा के होने से कितना आराम है। रसोई में चाय बनाने जाने लगी, तो पापा से भी पूछ लिया।

‘‘वैसे तो अभी पी है। पर यहां का मौसम इतना बढ़िया रहता है कि चाय तो कभी भी पी जा सकती है। मुंबई की उमस में तो सुबह की चाय गले से नीचे उतारना भी भारी पड़ जाता है।’’

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‘‘तुम्हारी पोस्टिंग तो हमेशा छोटी जगहों पर रही है। मायावी महानगरी में तुम्हें कैसे सुहाता होगा?’’ दोस्त ने पूछा।

‘‘अपन तो हर हाल में मस्त रहने वाले लोग हैं। मुंबई भी अपुन को जम गया है। वहां की सदाबहार रिमझिम, सप्ताहांत में परिवार के संग घूमना-फिरना, बाहर खाना खाना अब मेरी भी आदत में शुमार हो गया है। वहां की चौबीसों घंटे पानी-बिजली की सुविधा की अहमियत मुझे यहां आ कर पता चली है। यहां तो दो दिन में एक बार पानी चढ़ता है और वह भी बूंद-बूंद स्टोर करके रखना पड़ता है। 15 दिन में एक बार हाट लगता है, तब ही सारी सब्जी, फल आदि ला कर रखने पड़ते हैं। पहाड़ सैर-सपाटे के लिए ही उपयुक्त है। स्थानीय निवासियों को तो रोजमर्रा की ढेरों परेशानियां झेलनी पड़ती हैं। हर वक्त गरम कपड़े अलग लादे रहो। खैर, अपन तो यहां भी मस्त हैं। धूप निकलने पर टहल आते हैं। बाकी वक्त घर पर मीकू के साथ मौज-मस्ती।’’

चाय ले कर बैठक में पहुंची, तो पापा ने वहीं बिठा लिया, ‘‘ये गोविंद अंकल हैं। मेरे साथ कॉलेज में थे। फिर रायपुर में भी साथ थे। मीकू फेसबुक पर अपने दोस्त की बर्थडे के पिक्स दिखा रहा था, उन्हीं में मैंने उसके दोस्त के दादा यानी गोविंद को पहचान लिया।’’

‘‘रायपुर में तुम बहुत छोटी थी। इसलिए याद नहीं होगा। वरना मैं तो वहां भी खूब आता था। खूब गोष्ठियां जमती थीं। तेरे पापा का स्वभाव ही ऐसा है। हर जगह हर हाल में मस्त रहते हैं और दोस्त भी बना लेते हैं। एनसीसी कैंप के लिए हम लोगों को एक छोटे से सीमावर्ती गांव में महीनाभर रहना पड़ा था। वहां की दिनचर्या इतनी कठिन थी कि हम सब लड़कों ने तो पहले सप्ताह में ही हथियार डाल दिए थे, पर तेरे पापा जमे रहे। जंगल से लकड़ियां काट कर लाना, उन पर खाना पकाना, कुएं से पानी खींचना, तालाब में नहाना... ये सारे काम वे मजे ले-ले कर करते थे और बाकी सब झींकते रहते थे। इसने गांव के लड़कों से तैरना, पेड़ पर चढ़ना, मिट्टी के बरतन बनाना जाने क्या-क्या सीख लिया। इसे देख कर ही फिर हम सबको अक्ल आयी कि जिंदगी में हर हाल में खुश रहना आना चाहिए और सीखने का कहीं भी, कभी भी कोई अवसर नहीं गंवाना चाहिए। फिर तो हम सबने भी उस कैंप में बहुत कुछ सीखा और आनंद उठाया। आज भी वो कैंप बहुत याद आता है।’’

‘‘तभी तो कहते हैं वक्त, दोस्त और रिश्ते वे चीजें हैं, जो हमें मुफ्त में मिलती हैं, लेकिन इनकी कीमत का अंदाजा इन्हें खोने के बाद होता है,’’ पापा ने दार्शनिक अंदाज में कहा।

सूरज का फोन आया, तो मैं उठ कर बात करने अंदर चली गयी। पोस्टिंग का अभी तक भी कुछ नहीं हुआ था। सूरज प्रयास कर रहे थे, पर शायद कुछ और वक्त लग सकता था। सुन कर मैं उदास हो गयी थी। पापा दोस्त को विदा कर अंदर आ चुके थे। मेरा रुआंसा चेहरा देखा, तो सारा मामला समझ गए। मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अपने पास बिठाया अौर बोले, ‘‘जबसे आया हूं तुझे उदास ही देख रहा हूं। खुश रहना भूल गयी है क्या?’’

‘‘खुश होने की कोई वजह भी तो होनी चाहिए ना, पापा?’’

‘‘क्यों? इतनी शांत, सुरम्य जगह में रहती है, अच्छी सी नौकरी है, प्यारा सा छोटा परिवार है, और क्या चाहिए?’’

‘‘यह सब तो लगभग सभी के पास होता है, पापा...’’

‘‘नहीं, सबके पास नहीं होता। दुनिया में तुमसे बेहतर अवस्था में जीने वाले बहुत लोग हैं, तो कमतर अवस्था में जीने वाले भी कम नहीं हैं। फिर समय भी एक सा नहीं रहता। जो आज बेहतर हैं, वे कल कमतर हो सकते हैं और कमतर कल बेहतर हो सकते हैं। आज की समस्या कल नहीं रहेगी, तो यह भी संभव है कल कोई और बड़ी समस्या पैदा हो जाए।’’

‘‘हूं... अपने-अपने नसीब की बात है,’’ मैंने निश्वास छोड़ी।

‘‘नहीं। अपने-अपने कर्म की बात है। धर्म से कर्म इसीलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि धर्म करके भगवान से मांगना पड़ता है। जबकि कर्म करने से भगवान को खुद ही देना पड़ता है।’’

‘‘मतलब?’’

‘‘यदि तुम उदासी को ही अपना नसीब मान कर हाथ पर हाथ धरे बैठी रहोगी, तो भगवान भी कोई चमत्कार नहीं करेगा। हर हाल में खुश रहना, खुद को समर्थ और सार्थक बनाना सीखो।’’

‘‘पर मैं अकेले क्या कर सकती हूं, पापा?’’

‘‘संघर्ष में इंसान अकेला ही होता है। सफलता में दुनिया उसके साथ होती है,’’ पापा पूरी तरह प्रवचन के मूड में आ गए थे। और ऐसा तभी होता था जब वे बहुत गंभीर होते थे। ‘‘...अंकल ने अभी बताया ना कि कैंप में कैसे मैं अकेला ही तैराकी आदि सीखने के लिए संघर्ष करता रहा। लेकिन मुझे सफलता मिलते देख धीरे-धीरे अन्य लोग भी आ जुटे।’’

‘‘हूं...’’

‘‘बेटी, पहले तो हर हाल में खुश रहना सीख।
मैं रिटायर हो कर मुंबई तेरे भाई के पास आया, तो मेरा वहां मन नहीं लगा। फिर धीरे-धीरे मैं बच्चों से घुलने-मिलने लगा, उनसे कंप्यूटर सीखने लगा। तेरी डॉक्टर भाभी को अकसर नाइट शिफ्ट में हॉस्पिटल जाना पड़ता है। और तेरा भैया आॅफिस से देरी से लौटता है। दोनों बच्चे मुझसे बतियाते अकसर मेरे ही पास सो जाते हैं। तभी तो वे सब मुझे मिस कर रहे हैं और जल्दी लौटने का आग्रह कर रहे हैं। यहां मेरा मीकू के साथ भी मन लग गया है। मैं उसको होमवर्क करवा देता हूं। फिर कुछ देर हम चेस खेलते हैं...’’

‘‘चेस? लेकिन मीकू को तो आता ही नहीं है?’’

‘‘मैंने सिखा दिया है। फिर हम कुछ वक्त कंप्यूटर पर बिताते हैं। फेसबुक से उसने ही तो मुझे जोड़ा है और वहीं तो मुझे गोविंद मिला। जब मैं इस उम्र में हर जगह मन लगा सकता हूं, कुछ सीख और सिखा सकता हूं, तो तू क्यों नहीं? मैंने सवेरे भी तुझे सलाह दी थी, तुझे जो कंप्यूटर लैंग्वेजेज सीखनी हैं, उनकी क्लासेस जाॅइन करने का यह सही वक्त है। तुझे अकेलापन भी नहीं सालेगा और तेरा अनुभव और योग्यता भी बढ़ जाएगी। यह अतिरिक्त योग्यता तब बहुत काम आएगी... बेटी, यदि तुम किसी चीज को पाने के लिए संघर्ष नहीं कर सकते, तो फिर उसे खो देने पर उसके लिए रोओ भी मत।’’

मेरी आंखें चमकने लगी थीं। पापा ने तो एक झटके में ही मेरी परेशानी का हल ढूंढ़ निकाला था। मुझे वह मंत्र मिल गया था, जिससे उदासी कभी मेरे चेहरे पर स्थायी रूप से घर बनाने का साहस ही नहीं कर सकती थी। पापा की सदाबहार स्फूर्ति का राज जीवन का यही मंत्र ही तो था- हिम्मत वालों का इरादा अधूरा नहीं रहता।

जिस इंसान की इच्छाशक्ति बुलंद हो, उसके जीवन में कभी अंधेरा नहीं रहता।