Wednesday 12 February 2025 03:15 PM IST : By Rita Kumari

पहली बार

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दिव्या को मुजफ्फरपुर से दिल्ली आए लगभग महीनाभर होने जा रहा था, फिर भी वह इस नए शहर और अजनबी परिवेश में अपने को पूरी तरह व्यवस्थित नहीं कर पा रही थी। दिन में भी अपरिचित चेहरे और अजनबी गलियां उसे सहमा देतीं। वहां आ कर अनुराग के काम इतने बढ़ गए थे कि अकसर छुटि्टयो में भी व्यस्त रहता। इसलिए अकेले ही कर इस नए परिवेश में अपनी जड़ें जमाने की पूरी कोशिश कर रही थी।

एक दिन दोपहर में अपने घर से थोड़ी दूर पर स्थित एक जनरल स्टोर्स से अपनी जरूरत का कुछ सामान खरीद कर जैसे ही बाहर निकली, एक जानी-पहचानी तेज आवाज ने उसे चौंका दिया।

‘‘दिव्या... ओ दिव्या... रुक जाओ,’’ पलटते ही उसकी नजर जिस पर पड़ी, उसे देखते ही वह स्तब्ध रह गयी। उसके सामने उसके कॉलेज के जमाने की उसकी दोस्त नैना खड़ी थी। करीब 10 वर्षों बाद इस अपरिचित शहर में अचानक उसे इस तरह मिल जाएगी, इसकी तो उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी। इन 10 वर्षों में नैना में कुछ ज्यादा परिवर्तन नहीं हुआ था। आधुनिक ढंग की ब्लू जींस और गुलाबी टॉप में उसका रूप पहले से कुछ ज्यादा ही निखर आया था। पहले की तरह ही नैना खुशी से चहकती आत्मविश्वास से भरी आ कर उसके गले से लिपट गयी, लेकिन चाह कर भी दिव्या उसी गर्मजोशी से उससे मिल नहीं पायी। दस वर्ष पहले नैना द्वारा दी गयी चोट कोई मामूली चोट नहीं थी, जिसे वह आसानी से भुला देती। नैना की तो आदत ही थी दूसरे को चोट दे कर भूल जाना। अभी भी वह पिछली सारी बातें भुला कर दिव्या से ढेरों सवाल पूछ रही थी। तभी दिव्या को अपने बेटे आयुष की याद आ गयी। नैना के सारे सवाल और उत्सुकता पर लगाम लगाते हुए दिव्या ने अपने पर्स से अपना कार्ड निकाल कर नैना को पकड़ाते हुए कहा, ‘‘अभी तो मैं काफी जल्दी में हूं, मुझे अपने बेटे आयुष को स्कूल से लेना है। किसी दिन फुरसत से आओ फिर सारी बातें इतमीनान से होंगी।’’

आगे नैना को कुछ भी बोलने का मौका दिए बिना अपनी कार में बैठ तेजी से चली गयी और नैना अचंभित सी खड़ी विस्मित नजरों से दिव्या के इस नए रूप को निहारती रह गयी थी। घर पहुंच कर आयुष को खाना खिला कर सुलाने के बाद दिव्या को कुछ ही घंटे पहले नैना से हुई मुलाकात याद आ गयी। अपने जीवन के गुजरे अध्याय को याद करता उसका मन दोबारा अपने अतीत को जीने लगा था। नैना से उसकी मुलाकात कॉलेज में हुई थी। वे दोनों बीएससी में वनस्पति शास्त्र की छात्राएं थीं। मुजफ्फरपुर का वह जानामाना प्रतिष्ठित कॉलेज था, जहां हमेशा की तरह उस वर्ष भी विज्ञान विषयों में लड़कों की अपेक्षा लड़कियों की संख्या काफी कम थी।

नैना के पिता जी का तबादला कुछ ही दिनों पहले जमशेदपुर से मुजफ्फरपुर हुआ था। जमशेदपुर के एक प्रतिष्ठित कॉन्वेंट से अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने वाली नैना स्वभाव से काफी तेजतर्रार और बेहद सुंदर थी। अपने बेबाक, हंसमुख और मिलनसार स्वभाव के कारण जल्द ही वह कॉलेज में काफी लोकप्रिय हो गयी थी। नैना के स्वभाव की यह उन्मुक्तता उस छोटे से शहर में रहने वाली लड़कियों को कुछ ज्यादा ही प्रभावित करती। करीब-करीब सभी लड़कियां उसे अपना आदर्श मानतीं। जब उसी नैना ने अपनी दोस्ती का हाथ दिव्या की तरफ बढ़ाया, तो मारे खुशी के वह उछल पड़ी थी।

जल्द ही दोनों की अंतरंगता इतनी बढ़ गयी कि निसंकोच दोनों आपस में अपनी सारी बातें शेअर करने लगीं। उसी दौरान अनुराग के प्रेम में आकंठ डूबी दिव्या अनुराग से अपने एकतरफा प्रेम की सारी बातें नैना को बताती चली गयी। अकसर नैना से अनुराग पर अपने प्यार जाहिर करने के रास्ते पूछती रहती। तब दिव्या यह समझ नहीं पायी थी कि उसके कार्तिकेय से सुदर्शन प्रेमी की बातें और फोटोग्राफ्स किसी और को भी बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैं। एक दिन नैना के अनुरोध पर यह सोच कर कि नैना उसके मन की बातें अनुराग तक पहुंचा देगी उसने नैना को अनुराग से मिलवा दिया था। सचमुच कैसी मूर्खा थी वह कि अपनी अंतरंग सहेली के मनोभाव को भी नहीं पढ़ पायी। स्थानीय कॉलेज में व्याख्याता के पद पर काम करने वाले सुदर्शन, सौम्य, शांत और शालीन अनुराग के व्यक्तित्व में जाने कैसा आकर्षण था कि पहली मुलाकात में ही नैना को इतना भा गया कि दिव्या के दिल की बातें बताने गयी नैना खुद अपना ही दिल अनुराग को समर्पित कर आयी थी।
फिर तो तरह-तरह के बहाने बना अनुराग से मिलने उसके घर चली आती। अनुराग का प्यार हासिल करने के लिए बड़ी होशियारी और चालाकी से अपनी योजना को अंजाम दे रही थी। वही ऊपरी तौर पर काफी सीधी-साधी, हंसमुख, हाजिरजवाब, कुटिल, मिलनसार और शरीफ बनी रहती। अपने इसी छल के बलबूते पर जल्द ही अनुराग के दिल में उतरती चली गयी। नैना की इन महत्वाकांक्षी, स्वार्थपूर्ण और कुटिल योजनाओं का दिव्या को तब तक आभास नहीं हुआ जब तक कि नैना और अनुराग की शादी की चर्चाएं घर में नहीं होने लगीं। तब जा कर दिव्या को आभास हुआ कि उसकी अंतरंग सहेली के फरेबी हथियार ने किस तरह उसके विश्वास और आत्मा को छलनी कर दिया है। ना जाने भगवान ने किस अपराध का दंड उसे दिया था। पूरी बात जानते ही उसका दिल छटपटा उठा किसी ऐसे अरण्य में जाने के लिए, जहां उस हृदयहीन सहेली और उसके द्वारा छीने गए उस प्यार की झलक भी ना दिखे। कभी-कभी जीवन में ऐसी ही गंभीर घटनाएं जाने कब घट जाती हैं, जिसका आभास भी हमें नहीं होता है। ऐसे ही अनजाने क्षणों में घटी इस घटना ने दिव्या के पूरे व्यक्तित्व को झिंझोड़ कर रख दिया था। इतने वर्षों के इंतजार और दिल में पलते प्यार को अनुराग और नैना के शादी के फैसले ने रौंद कर रख दिया था।

कहते हैं प्यार में दर्द झेलने की शक्ति खुदबखुद आ जाती है। वह भी अपने दुर्भाग्य के विष को नीलकंठ की तरह निगल प्यार के उस चरम बिंदु पर पहुंच गयी थी, जहां प्रेम के लिए लोग अपने सभी सुखों का समर्पण कर देने में ही सुख का अनुभव करते हैं।

अनुराग और नैना की शादी की सारी बातें तय हो चुकी थीं, सिर्फ रस्मों की तिथि तय होनी थी। तभी एक ऐसी घटना घटी, जिसने अनुराग के सारे सपने बिखेर दिए। जमशेदपुर में नैना के पड़ोस में रहने वाले आशीष का आईएएस के लिए चयन हो गया। वह लंबे समय से नैना से एकतरफा प्यार करता था। पर पास में कोई नौकरी नहीं रहने और अपनी अति साधारण शक्ल-सूरत के कारण नैना के सामने अपने दिल की बातें रखने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था। जैसे ही उसका चयन आईएएस में हुआ, उसने नैना के घर शादी का पैगाम भिजवा दिया। नैना की शादी के लिए इतने अच्छे प्रस्ताव पा कर नैना के माता-पिता भी असमंजस की स्थिति में पड़ गए। असमंजस की स्थिति से उबरने के लिए उन लोगों ने फैसला नैना पर ही छोड़ दिया कि वह किससे शादी करेगी। आशा के विपरीत नैना ने अपना फैसला आशीष के पक्ष में दिया। वास्तव में जब तक आदमी का नियंत्रण अपने मन और आत्मा पर होता है, तभी तक उसके अंदर सही और गलत की पहचान हाेती है। नैना की महत्वाकांक्षा अनियंत्रित थी, जिस पर उसके मन और आत्मा का कोई नियंत्रण नहीं था। उसने अपने लिए जो मार्ग तय किया था वह मान-प्रतिष्ठा, धन और ताकत को ध्यान में रख कर लिया गया फैसला था।

नैना के इस अप्रत्याशित फैसले से आहत अनुराग ने जब नैना से उसकी बेवफाई का कारण जानने के लिए दबाव डाला तब बड़ी सफाई से नैना ने अपने फैसले की सारी जिम्मेदारी अपने माता-पिता पर डाल चुप्पी साध ली। अनुराग ने बहुत कोशिश की, रोया, गिड़गिड़ाया भी, पर नैना अपने फैसले पर अडिग रही। जैसे तूफान की तरह नैना उसके जीवन में आयी थी वैसे ही उसकी जिंदगी से निकल भी गयी।
कभी-कभी आदमी कितना मजबूर हो जाता है कि जीवन में घटित किसी अप्रत्याशित और निर्णायक फैसले को समझना और बदलना दोनों ही उसके लिए मुश्किल हो जाता है, ऐसा ही कुछ अनुराग के साथ भी हो रहा था। अनुराग समझे या ना समझे, पर दिव्या को नैना के फैसले के संबंध में सब मालूम हो गया था। नैना के रिश्ते की एक बहन ने उसे सब बता दिया था। नारी का ऐसा छलनामयी और स्वार्थी रूप उसने पहले कभी नहीं देखा था। जल्दी ही नैना की शादी आशीष से हो गयी। अपनी शादी में पूरे समय नैना हंसती-मुस्कराती रही। अनुराग से विछोह के गम की हल्की सी लकीर भी उसके चेहरे पर नजर नहीं आयी। शादी के बाद सीधी-साधी गऊ बनी आशीष के पीछे हो ली थी। पीछे जो छूट गया सब उसके लिए निरर्थक और निरुद्देश्य था। फिर भी नैना की शादी के बाद महीनों अनुराग उसके प्यार में दाढ़ी बढ़ाए मजनू बना फिरता रहा।

समय के साथ जब थोड़ी स्थिति संभली, शांभवी ने अपनी मां से दिव्या का लंबे समय से अनुराग के साथ चलने वाले एकतरफा प्रेम के विषय में सब कुछ बता दिया, जो अब तक शांभवी के अलावा कोई और नहीं जानता था। जैसे ही उसकी मां को इस बात की जानकारी हुई, उसके दिल में एक आशा की लहर दौड़ गयी। यही वह लड़की है, जो अनुराग के जीवन में खुशियां वापस ला सकती हैं। वह खुद चल कर दिव्या के घर उसका हाथ मांगने गयी थी। चार-चार बेटियों और 2 बेटों के बोझ तले दबी दिव्या की मां और उसका निम्न मध्यमवर्गीय परिवार इस रिश्ते को पा कर जैसे निहाल हो उठा। पर अनुराग की मां के जाते ही दिव्या अपनी मां पर बिफर उठी थी, ‘‘मां, आप अनुराग की मां को मना करवा दीजिए, मुझे नहीं करनी अनुराग से शादी-वादी। मुझे अभी अपनी पढ़ाई पूरी करनी है।’’

दिव्या अभी कुछ और बोलती उसके पहले ही उसकी भाभी मीरा उसे खींच कर अपने कमरे में ले गयीं, ‘‘एक बात सुन दिव्या, जीवन अनुराग के साथ तुम्हें जीना है, तो फैसला भी तुम्हारा ही होना चाहिए। फिर भी मैं यही कहूंगी इतनी जल्दबाजी में कोई फैसला मत लो। अनुराग और तुम बचपन के दोस्त हो। अभी वह झूठ-सच के मोहजाल में फंसा एक कठिन दौड़ से गुजर रहा है, ऐसे समय में वैसे भी तुम्हारा फर्ज बनता है उसकी सहायता करो।’’

तभी भाभी की बात काटते हुए दिव्या बोली, ‘‘भाभी... आप यह क्यों नहीं सोचतीं वह शादी करेगा मुझसे और प्यार में डूबा रहेगा नैना के। ऐसे में उसके साथ शादी के बंधन में बंधना मूर्खता नहीं तो और क्या है।’’

‘‘तुम ऐसा आंदोलित मन ले कर कुछ सही नहीं सोच सकती। तुम तिरस्कार और उपेक्षा की भावना से कुंठित अपने मन से परे हट कर एक बार परिस्थिति का अवलोकन करो, तब तुम समझ सकोगी, किसी का छोड़ा तुम्हारे हिस्से में नहीं आया है, ईश्वर ने तुम्हारे सच्चे प्यार को तुम्हें वापस लौटा दिया है। आगे बढ़ कर अपने बिखरे प्यार को अपने आगाेश में समेट लो। समय सब ठीक कर देगा।’’

‘‘ना... ना... वैसे मत देखो। तुमने अपने मुंह से भले ही मुझे कभी कुछ ना बताया हो, पर तुम्हारी गुनगुनाती आंखों में लिखी तुम्हारे प्यार की कहानी मैंने बहुत पहले ही पढ़ ली थी। अपनी ना सही, अपने परिवार की तो सोचो, उन्हें इस शादी से कितनी खुशी और सम्मान मिलेगा।’’

फिर दिव्या अनुराग के साथ शादी करने से इंकार नहीं कर सकी। शादी के बाद पिछली सारी बातों को भुला कर पूरी लगन से उसने अनुराग को अपने प्यार, स्नेह और सेवा से इस कदर सहारा दिया कि कुछ ही दिनों में उसके दिल से नैना की छवि तक मिट गयी और सब कुछ सामान्य और सहज हो गया। बस एक ही बात अनुराग के दिल में हमेशा खटकती, अगर वह साधारण नौकरी में ना हो कर आईएएस या आईपीएस अधिकारी होता, तो यों प्यार में ठगा नहीं जाता।

अनुराग के इसी दर्द ने उसे आईएएस की प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करने के लिए उकसाया, जो धीरे-धीरे उसका जुनून बन गया। दो वर्ष की कड़ी मेहनत के बाद वह इस प्रतियोगिता परीक्षा में सफल भी हो गया। दिव्या के सच्चे प्रेम और समर्पण ने उसके बिखरे अस्तित्व को समेट उसे बुलंदियों तक पहुंचा दिया था। इस दौरान दोनों इतने करीब आ गए कि तीसरे की गुंजाइश ही नहीं रही। जब अनुराग की पाेस्टिंग दिल्ली हुई, पहली बार दिव्या ससुराल की देहरी छोड़ पति के पास रहने आ गयी। अब जबकि उसकी जिंदगी में सब कुछ सही और सुखद हो गया था, आज अचानक फिर से नैना उसके जीवन में आ टपकी थी।

जिस दिन दिव्या की मुलाकात नैना से हुई थी उसके दूसरे ही दिन नैना उसके घर आ धमकी, लेकिन आते ही अपने स्वभाव के विपरीत चुपचाप सोफे पर बैठ पास रखी पत्रिका के पन्ने पलटने लगी। हमेशा से चहकने वाली नैना उस दिन असाधारण रूप से शांत नजर आ रही थी। जैसे उसके अंदर विचारों के बवंडर उठ रहे हा।

उसके मायूस उदास चेहरे पर किसी बहुमूल्य निधि के खो देने का पश्चाताप स्पष्ट नजर आ रहा था। उसका यह हाल देख दिव्या को समझते देर नहीं लगी कि बाहर लगी अनुराग की नेम प्लेट पढ़ कर उसे अनुराग के पद, प्रतिष्ठा के साथ-साथ दिव्या के साथ उसकी शादी की जानकारी भी हो गयी है। नैना को इस तरह मायूस और अचंभित देख दिव्या का कलेजा ठंडा हो गया। हमेशा से दिव्या को तुच्छ प्राणी समझने वाली नैना को आज पता चल गया था कि दिव्या की हैसियत अब उससे कहीं कम नहीं है। अपनी मौकापरस्ती का परिचय देते हुए जिस पद और प्रतिष्ठा के लिए उसने पहले अपनी अंतरंग सहेली, फिर अपने टूट कर प्यार करने वाले प्रेमी को छला, उस श्यामवर्णी आशीष को अपनाया था, आज वे सारे सुख, मान-प्रतिष्ठा, दिव्या की झोली में खुदबखुद आ गए थे, जिसे देख नैना का मन चकरघिन्नी सा घूम रहा था। खुद की गलती से ही वह अनुराग को छोड़ कर अपने को ठगा सा महसूस कर रही थी। अभी दोनों सहेलियों के बीच औपचारिक बातें ही चल रही थीं कि अनुराग भी आ गया। नैना को यों अचानक अपने घर में देख थोड़ी देर के लिए वह भी अवाक रह गया। वहां गहरा सन्नाटा सा पसर गया, लेकिन जल्द ही अनुराग और नैना इधर-उधर की बातों में व्यस्त हो गए।

अनुराग भले ही बातों का सिलसिला जारी रखे हुए था, फिर भी उसकी आवाज और व्यवहार से झलकता अपरिचय का भाव नैना से छिपा नहीं रहा। दिव्या उठ कर रसोईघर में चाय बनवाने चली गयी, पर उसके कान ड्रॉइंगरूम की तरफ ही लगे थे। एक बार पहले भी अनुराग को नैना के हाथों खो चुकी थी, अब दोबारा उसे खोने की हिम्मत उसमें नहीं थी। तभी उसे नैना की धीमी पर स्पष्ट आवाज सुनायी दी, ‘‘अनुराग... जो बीत गया क्या उसे भुला कर हम नए सिरे से अपनी पुरानी दोस्ती को कायम नहीं रख सकते। परिस्थितियां भले ही बदल गयी हैं, लेकिन आज भी मैं वही नैना हूं, फिर तुम्हारे व्यवहार में इतना परायापन क्यों और कबसे आ गया।’’

‘‘जबसे तुमने आशीष से शादी कर ली। तुम्हारे शादी कर लेने के साथ ही मेरी और तुम्हारी जिंदगी पूरी तरह बदल गयी। चाह कर भी तुम उस पुराने संबंधों को अब पुनर्जीवित नहीं कर सकती। सच पूछो तो आज मेरे जीवन में दिव्या के प्यार से बढ़ कर कुछ भी नहीं है। यह तुम क्यों भूल रही हो, समय के साथ जीवन की प्रासंगिकता खुदबखुद बदल जाती है। अब अगर आंखें बंद कर भी दिल की गहराइयों को टटोलता हूं, तो पत्नी और प्रेमिका के रूप में एक ही नाम उभरता है और वह है दिव्या का। पर यह सब तुम्हें बता कर क्या होगा। तुम प्यार को क्या समझोगी। वह तो तुम्हारे लिए अपनी इच्छाओं की पूर्ति का साधन मात्र है। सच पूछो तो प्यार क्या होता है यह मुझे भी तब समझ में आया जब दिव्या मेरी जिंदगी में आयी। उसके प्यार की ही शक्ति थी, जिसने मेरे बिखरे अस्तित्व को समेट कर सफलता के उच्चतम शिखर पर पहुंचा दिया। प्यार कोई सौदेबाजी नहीं कि फायदा और नुकसान देख कर किया जाए। वह दिव्या का प्यार ही था कि अतीत मुझे कमजोर नहीं कर सका। तुम यह सोचने की भूल मत करो कि आज भी मैं उसी मोड़ पर खड़ा तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं।’’

फिर थोड़ा रुक कर बोला, ‘‘सच पूछो, तो अब हमारे-तुम्हारे बीच दोस्ती का रिश्ता भी नहीं निभ सकता। चाहे मैं दिव्या और अपने संबंधों को ले कर कितना भी ईमानदार रहूंगा, जाने-अनजाने वह हमेशा हमारी-तुम्हारी दोस्ती को ले कर आशंकित रहेगी। मेरे विचार से जब कोई रिश्ता शंकाओं और आशंकाओं से इस कदर घिर जाए कि उसे निभाना मुश्किल हो जाए, तो वैसे रिश्ते को एक खूबसूरत मोड़ दे कर छोड़ देना ही अच्छा है। और वह खूबसूरत मोड़ होगा, सिर्फ उन सुखद लमहों को ही याद रखना, जो हम तीनाें की दोस्ती के यादगार पल रहे हैं, ताकि हमें एक-दूसरे से नजरें चुराने की नौबत नहीं आए।’’

तभी वहां दिव्या के साथ आ कर एक लड़का तरह-तरह के व्यंजनों से सजी ट्रे और चाय रख गया। एक प्लेट उठा कर नैना की तरफ बढ़ाते हुए अनुराग बोला, ‘‘आओ, हम तीनों मिल कर समय के परतों में दबी-भूली बिसरी यादों को एक बार फिर से जी लें।’’

देर रात तक तीनों बिना किसी को बातों से चोट पहुंचाए पुरानी यादों को ताजा करते रहे। जब रात ज्यादा हो गयी, दिव्या और अनुराग साथ जा कर नैना को उसके घर छोड़ आए। हमेशा अनुराग और खुद के संबंधों को ले कर सशंकित रहने वाली दिव्या को शादी के बाद आज पहली बार अनुराग के साथ शादी करने के अपने फैसले पर गर्व का अनुभव हो रहा था।