Wednesday 19 July 2023 02:41 PM IST : By Asha Aiyyar

राइट फुट इन

right-foot-in

मैं कोमला की आवाज सुन रहा हूं, जोकि हमारी बेटी के पैरों की थपथप और धपधप से ऊपर उठ कर आ रही थी, ‘‘पुट यूअर राइट फुट इन, पुट यूअर राइट फुट इन...’’ और मैं मुस्कराने लगता हूं, क्योंकि मैं जानता हूं कि गलत कदम रखना कितना सरल होता है...। मैं कुर्सी पर अच्छे से टिक कर बैठ जाता हूं। आज रविवार है और मैं आराम से पिछली बातों का आनंद ले सकता हूं। आज का अखबार चाय की मेज पर मेरे सामने ही पड़ा है। मैं ईश्वर को धन्यवाद देता हूं कि आज से 10 साल पहले उसने मुझे सही कदम उठाने की प्रेरणा दी। मैं समझ गया हूं कि जानकी या पद्मा कभी भी मेरी सही जीवनसाथी नहीं बन पातीं, ना ही मैं विश्वास कर पाता हूं कि कोमला जैसी निश्छल युवतियां इस संसार में और होंगी ! उसे तो जैसे भगवान ने मेरे लिए ही गढ़ दिया था। वह जितनी भोली और आसानी से भरोसा करने वाली है कि आज के अल्ट्रा मॉडर्न युग में असंभव ही लगता है। मैं इन्हीं बातों को और अपने विवाह के उन आरंभिक सालों को आज याद करना चाहता हूं।

मुझे आज भी वे घड़ियां याद हैं, जब मैं कोमला का हाथ अपने हाथ में थाम कर अग्नि के चारों ओर सात फेरे ले रहा था और भीतर ही भीतर बुरी तरह से घबरा रहा था। चूंकि हम तमिल हैं, तो घूंघट से मुंह ढकने का सवाल ही नहीं था अतः मैं उसका चेहरा साफ देख पा रहा था। मैंने देखा कि कुछ गड़बड़ है, लेकिन समझ नहीं पा रहा था।

विवाह के पहले कोमला से मैं कुल 4 बार मिला था, लेकिन हर मुलाकात उसके घर में हुई थी और हर बार दो या तीन रिश्तेदार हमारे आसपास रहते थे और मैं समझ रहा था कि इसी कारण मुझसे वह बहुत कम बोली। वह बीए कर रही थी और उसकी अंतिम वर्ष की पढ़ाई बाकी थी। मां और मैं शादी के लिए रुकना चाहते थे, लेकिन उसकी दादी की जिद थी कि जल्दी यह विवाह हो जाए, क्योंकि उसके दादा की हालत काफी खराब चल रही थी। हमने उसके माता-पिता से वादा किया कि हम उसकी पढ़ाई पूरी कराएंगे। वैसे भी मुझे अपने फर्म में मेरे साथ काम करने के लिए शिक्षित पत्नी ही चाहिए थी। उसके आखिरी प्रश्न पत्र के कुछ दिनों बाद गरमियों में हमारी शादी हो गयी।

चूंकि हमने कोई दहेज नहीं लिया था, कोमला के पिता ने 6 दिन के लिए हमारे हनीमून के लिए बंगलुरु में एक आलीशान होटल में बढ़िया कमरा बुक करा दिया। पूरी यात्रा के दौरान कोमला सहमी सकुचायी रही, जिसे मैंने नयी-नवेली दुलहन की लज्जा समझा। मगर मैंने यह भी नोट किया कि अनायास मेरा हाथ लग जाने से वह एकदम झटके से दूर हट जाती। दो-तीन बार रात में मैंने उसकी आंखों से आंसू बहते देखा। क्या उसे घर की याद आ रही है? मां ने मुझे संकेत किया था कि, ‘‘बेटा, वह अभी छोटी है, इक्कीस में लगी ही है, जरा सोच-समझ कर व्यवहार करना।’’

मुझे लगा कि मुझे उसका ध्यान बंटाना चाहिए, लेकिन समझ नहीं पा रहा था कि कैसे? इसलिए होटल के कमरे में पहुंचते ही मैंने दरवाजा बंद करके उसे एक कुर्सी पर बिठाया और कहा, ‘‘क्या बात है कोमला? पिछले 8 घंटे में तुमने एक शब्द नहीं कहा है ! क्या तुम अपने घर वालों से दूर आने से दुखी हो? देखो, मैं कोई राक्षस नहीं हूं। तुम्हारी इच्छा हो, तो मैं तुम्हें तुम्हारे घर वापस ले चलूं?’’

उसने कोई जवाब ना देते हुए दीवार की ओर मुंह कर लिया। मैं उसकी भिंची हुई हथेलियों पर उसके आंसुओं को गिरते देखता रहा।

मैं कोई मनोवैज्ञानिक तो था नहीं, समझ नहीं पा रहा था कि आगे क्या कहूं या करूं ! मैंने धीरे से उसके कंधे पर हाथ रखते हुए उसे पुकारा, ‘‘कोमला !’’ और वह सुबकियां ले कर रोने लगी, ‘‘क्या बात है?’’

मैं संवेदनशील हूं, मेरी मां ने मुझे इस तरह से बड़ा किया है। मुझे केवल इतना पता था कि ससुराल जाते हुए लड़कियों को बहुत डर सा लगा रहता है। ‘‘चलो, तुम्हारे घर वालों से तुम्हारी बात करवा देता हूं।’’ उसने ‘नहीं’ में सिर हिलाया। उसका रोना और तीव्र हो गया। अचानक मुझे कारण समझ में आया, ‘‘कोमला, तुम अभी शादी नहीं करना चाहती थी?’’

उसने तुरंत अपने चेहरे पर से हाथ हटा लिए और मैंने उसकी आंखों में अचरज देखा, ‘‘अच्छा, तो ये बात है। तो तुमने अपने माता-पिता से कही क्यों नहीं ये बात?’’

उसने चेहरा झुकाते हुए कहा, ‘‘बताया था, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ।’’

‘‘तो मुझसे कहा होता। हम इतनी बार तो मिले हैं?’’ उसने अपना पल्ला हाथों में ले कर मरोड़ना शुरू कर दिया। बोली कुछ नहीं।

‘‘कोमला,’’ मैंने धीमी आवाज में पुकारा। उसने नजर उठा कर मुझे देखा और मैं उसकी आंखों की उदासी देख कर एक कदम पीछे हट गया।

‘‘कुछ भी करने से, किसी को भी बताने से कोई फायदा नहीं होता !’’ उसने बिलकुल उदास आवाज में कहा। बहुत संयम से धीरे-धीरे मैंने उसे सब कुछ बता देने के लिए राजी किया-

उसे अपनी सबसे पक्की सहेली का बड़ा भाई अरविंद बहुत अच्छा लगता था और उसे पूरा विश्वास था कि वह भी उसे अच्छी लगती थी। उनकी जाति, सामाजिक स्तर सब एक जैसा था, उन्हें नहीं लगा था कि कोई समस्या आएगी। लेकिन उसने अरविंद की कमजोरी को नहीं समझा था। ना ही उसकी कोई नौकरी थी, ना ही वह अपनी शिक्षा पूरी करने में कोई रुचि रखता था।

मैं पूछते-पूछते रह गया कि ‘तो तुमको उसमें ऐसी क्या बात नजर आयी?’ मगर चुप ही रहा।

कुछ देर की चुप्पी के बाद मैंने पूछा, ‘‘तुम्हारे घर वाले क्यों नहीं माने?’’

‘‘उन्होंने कहा कि वह गैर जिम्मेदार है और मेरे लिए वे उससे बढ़िया और जिम्मेदार वर खोजेंगे।’’

‘‘उसके घर वालों ने क्या कहा?’’

‘‘गीता ने अपने घर वालों से बात की थी और...’’ वह रुक गयी और धीरे से उठ कर खिड़की के पास जा कर खड़ी हो गयी। मैं अपनी जगह पर ही खड़ा रहा। कुछ देर बाद वह मुड़ी और बोली, ‘‘अरविंद ने उन लोगों से मेरे बारे में कोई बात नहीं की थी। इसलिए वे बोले कि शादी के सपने मैं ही देखती रही हूं। गीता ने कबूल किया कि उसे नहीं पता था कि उसके घर वाले भारी-भरकम दहेज के चक्कर में थे।’’

‘‘तुम्हारे पिता जी को यह सब पता था?’’

‘‘पता ही रहा होगा... वे कभी भी किसी के लिए भी अपने किसी परिचित से सिफारिश नहीं करते। वे तो वैसे भी अरविंद को गैर जिम्मेदार मानते थे। दूसरे, वे दहेज के लिए भी नहीं मानते।’’

‘‘मगर उन्होंने तो तुम्हें ढेरों चीजें दी हैं,’’ मैंने कहा था। मैंने पहली बार कोमला के होंठों पर हल्की सी मुस्कान देखी, ‘‘हां, क्योंकि आपने कुछ मांगा ही नहीं। मेरे पिता जी गरीब नहीं हैं, लेकिन वे अपनी बेटी या दामाद, किसी की भी कीमत नहीं लगाते।’’

‘‘ओह !’’ कह कर मैं चुप हो गया। समझ नहीं पा रहा था कि क्या कहूं, क्या पूछूं ! फिर भी इतना तो पूछ ही बैठा, ‘‘कोमला, ऐसे व्यक्ति के बारे में अब तुम्हारी क्या राय है?’’
उसने मुझे देखा और सिर झुका लिया। उसका पूरा चेहरा लाल हो आया और एक ऐसी बेचारगी उसकी आंखों में मैंने उस एक पल में देखी कि उस पर तरस आ गया। मैं सोचने लगा कि जिस आदमी को अपनी सुहागरात के दिन यह पता चले कि उसकी पत्नी किसी और को चाहती थी, उसे कैसा बर्ताव करना चाहिए? उसने रोना बंद कर दिया था, शायद सारा बोझ उतार दिया था इसलिए। एकाएक मेरे मन में दूसरा ही सवाल आया, ‘‘कोमला, मुझसे यह सब बताने के लिए तुम्हें किसी ने मना नहीं किया?’’

‘‘हां, मां ने मना किया था,’’ कह कर मुझे एक अजीब सी नजर से देख कर उसने सिर झुका लिया।

सालों बाद एक दिन कोमला मुझसे बोली, ‘‘उस दिन आपने मुझे छोड़ देने की बात सोची भी नहीं !’’

‘‘नहीं, ना उस दिन, ना उसके बाद कभी। सच,’’ मैंने उससे कहा था, ‘‘जाओ, कपड़े बदल लो, मुंह-हाथ धो लो, मैं खाने का आॅर्डर देता हूं।’’ उसने मुझ पर एक कृतज्ञताभरी नजर डाली और अपने सूटकेस में से कुछ कपड़े ले कर बाथरूम में घुस गयी। मैं खिड़की पर जा कर खड़ा हो गया।

मैं सोच रहा था, अब मैं क्या करूं? मैं अपमानित सा महसूस क्यों नहीं कर रहा था? उसके माता-पिता उसका स्वागत तो नहीं ही करेंगे।

जब कोमला बाथरूम से बाहर आयी, तो मेरे मन में यही सारे सवाल घुमड़ रहे थे। वह दरवाजे के बाहर खड़ी हुई मुझे इतनी भयभीत नजरों से देख रही थी कि मुझे बड़ी दया आयी उस पर, बेचारी, अंदर जा कर उसे समझ में आया होगा कि उसने मुझे कुछ ज्यादा ही बातें बता दी हैं, अब उसकी जान निकली जा रही थी। मैंने अपने हाथ के इशारे से उसे आ कर बैठने को कहा, जब वह हिचकिचायी, तो मैंने कहा, ‘‘देखो, हम दोनों पढ़े-लिखे हैं और दो सभ्य जनों की तरह बात कर सकते हैं। आओ, इधर बैठो।’’

वह आ कर बैठी, तो मैं उसके सामने वाले सोफे पर बैठ गया, ‘‘क्या तुम अरविंद से शादी करना चाहती हो?’’

‘‘मैं? अब? वह तो... नहीं... श...!’’ उसने अपनी हथेली से मुंह ढांप लिया।

फिर होंठों के सामने उंगलियां रखे-रखे बोली, ‘‘वह तो गीता से सब जान लेने के बाद भी कभी मुझसे बात करने नहीं आया। मेरी शादी तय हो जाने पर भी। इसका मतलब यही है ना कि वह शादी नहीं करना चाहता।’’

मैंने अपने मन में खलबली मचा रहा सवाल आखिरकार पूछ ही लिया, ‘‘कोमला, वह पढ़ा-लिखा नहीं था, खास नौकरी भी नहीं करता था। इस पर तुम्हें कोई आपत्ति नहीं थी?’’

शायद पहली बार किसी ने कोमला से इतनी बात पूछी थी, वह बांध टूटी नदी की तरह बह चली। वह अभी 21 की भी नहीं हुई थी। मुझे समझ में आया कि एक संस्कारित मध्यम वर्ग के परिवार में पली लड़की होने के नाते उसे किसी बिगड़ैल युवा से मिलने या उसे जानने का अवसर तो मिला ही नहीं होगा। लड़कियों को भुलावा देने वाले लड़कों को वह कैसे समझ सकती थी? उसकी लगावट को जान कर भी अरविंद ने कभी अपना सही इरादा उसे नहीं बताया, उलटे उसके सपनों को हवा देता रहा, ठीक ही हुआ कि बात बिगड़ने के पहले ही उसकी नीयत साफ हो गयी। कोमला इतनी भोली है कि अरविंद उसका नाजायज फायदा भी उठा सकता था।

‘‘क्या मैं तुमसे एक बहुत ही निजी बात पूछ सकता हूं?’’ मैंने कहा, तो एक पल को वह चौंक गयी, ‘‘जैसे?’’ मैं खड़ा हो गया, समझ नहीं आया कि कैसे पूछूं? असल में मुझे उस वक्त तक यह भी नहीं समझ आ रहा था कि मैं उससे कैसे पूछता कि उसका अरविंद के साथ कोई शारीरिक संबंध था या नहीं? मैंने सरल सवालों से बात शुरू की, ‘‘तुम दोनों कभी कहीं साथ साथ जाते थे?’’

‘‘हां, कई बार, लेकिन हमेशा गीता और दूसरी सहेलियां, उनके भाई वगैरह भी साथ होते।’’

मैं पूछ ही रहा था कि मुझे एकाएक अपनी दो गर्लफ्रेंड्स याद आ गयीं- पद्मजा और जानकी। वे दोनों ही संपन्न घरों की थीं। काफी पढ़ी-लिखी और काफी मॉडर्न ! उनके घर वाले उन्हें लड़कों से दोस्ती करने देते थे, लेकिन शर्त थी कि उन सबको घर पर ही मिलना होगा। पद्मजा ज्यादा दुस्साहसी थी, उसका मानना था कि ‘प्रेम में लड़के डरपोक हो जाते हैं और लड़कियां बोल्ड !’ और उस कहावत का वह पालन भी करती थी। क्या कोमला उसके जैसी थी? अभी तक तो ऐसा नहीं लगा मुझे।

पद्मजा बड़ी बातूनी थी और लड़कों के साथ इतनी सहज कि कभी-कभी मुझे लगता था कि वह हमें लड़के या पुरुष के रूप में नहीं देखती थी।

इसके विपरीत जानकी बेहद संकोची थी। वह पास-पास चलते हुए हमसे टकराती नहीं, ना ही हाथ में हाथ डालती। वह खुद से आगे हो कर किसी लड़के से बात भी नहीं करती। हम सब लोग 5 साल एक ही कॉलेज में पढ़े थे और समय-समय पर किसी ना किसी से मधुर रिश्तों की कल्पनाएं भी करते थे। उनमें से किसी एक से शादी करने के ख्वाब भी हम देखते थे। कोमला जानकी जैसी ही थी। मैं दिल से चाह रह था कि उसका अरविंद के साथ कोई शारीरिक संबंध ना रहा हो, जैसा कि मेरे और जानकी के बीच ना था।

‘‘आप अब क्या करना चाहते हैं?’’ अचानक कोमला की आवाज सुन कर मैं चौंक गया और पास रखे स्टूल से टकराया, ‘‘मैं...? अभी...? क्या?’’ वह भी खड़ी हो गयी।

‘‘मेरा मतलब है कि क्या आप मुझे मेरे घर वापस भेजेंगे?’’ उसकी आवाज टूट गयी।

एक पल के लिए तो मैं नहीं पकड़ पाया कि वह क्या पूछ रही है और मैं चुप रहा। उस चुप्पी को ‘हां’ समझ वह तुरंत मेरे पास आ मेरी बांह पकड़ कर बोली, ‘‘मैंने कोई गलत काम नहीं किया... यानी मैंने और अरविंद ने कभी... मेरा मतलब है कि मैंने तो उसे कभी छुआ भी नहीं... अगर आपने मुझे वापस भेज दिया, तो मेरे घर के लोग यही समझेंगे कि मैंने... उसने... !’’ और वह सोफे पर औंधे मुंह गिर पड़ी।
मैंने झुक कर उसके कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘कोमला, सुनो। मैं तुम्हें कहीं नहीं भेज रहा।’’

वह फिर भी रोती रही, तो मैंने उसकी ठोड़ी पकड़ कर ऊपर करते हुए कहा, ‘‘कोमला, हम सबके मन में उस उम्र में किसी लड़के या लड़की के लिए ऐसी भावनाएं होती हैं।’’ यह विचार उसी क्षण मेरे मस्तिष्क में आया था और मैं आज भी यही सोचता हूं कि इस विचार ने ही हमारी शादी को बचा लिया, ‘‘कोमला, हमारे देश में लड़कों से दोस्ती के संबंध में लड़कियों पर इतना ज्यादा दबाव रहता है कि किसी लड़के से जरा सी भी बात कर लेने से या उसके प्रति मन में जरा सी भी अपनत्व की भावना रखने से वह तनाव में आ जाती है कि किसी को पता ना चल जाए। उस उम्र में हम सबकी गर्लफ्रेंड और बॉयफ्रेंड होते ही हैं, भले ही हम सब मुंह से कबूल ना करते हों ! लड़कियों के लिए यह सब और भी मुश्किल हो जाता है, क्योंकि हो सकता है उनका स्कूल-कॉलेज जाना ही बंद करवा दिया जाए।’’

मेरा इतना लंबा भाषण सुन कर कोमला सीधी हो कर बैठ गयी। फिर धीरे से पूछ बैठी, ‘‘आपकी भी थी क्या कोई गर्लफ्रेंड?’’

‘‘हां, 2-2 थीं।’’

अब मैं उसके पास बैठ गया और यह देख कर खुश हुआ कि वह तुरंत हट नहीं गयी, ‘‘कोमला, तुम यह बात अच्छे से समझ लो, मैं तुम्हें वापस नहीं भेज रहा। हम दोनों अपना वैवाहिक जीवन एकदम खुल कर बात करते हुए शुरू करें। इससे हमें दो लाभ होंगे, एक हमारे बीच कोई राज की बातें नहीं होंगी, दूसरा जब कोई राज नहीं होंगे, तो कोई तीसरा हमारे बीच झगड़े नहीं करवा सकेगा।’’

मेरे इस भाषण का उस पर अच्छा प्रभाव पड़ा, क्योंकि उसने पद्मजा और जानकी के मेरे किस्से ध्यान से सुने। जब मैंने उसे बताया कि पद्मजा ने खुद मुझे शादी का प्रस्ताव दिया था, तो वह खूब हंसी, ‘‘हां? ऐसा किया उसने? लेकिन किसी भी देश में लड़कियां तो प्रपोज नहीं करतीं ना?’’

मैंने पूछा, ‘‘तुम्हें कैसे पता?’’

वह सकुचाती हुई बोली, ‘‘मैं मिल्स एंड बून के नाॅवल पढ़ती हूं ना !’’

‘‘ये क्या हैं?’’ मैंने पूछा, तो उसने मुझे एक रहस्यमयी मुस्कराहट से देखते हुए कहा, ‘‘आपको नहीं पता? ये इंग्लिश में छपनेवाली रोमांटिक कहानियां होती हैं,’’ वह मुझे तिरछी नजरों से देखती हुई बोली, ‘‘जैसे कि आपको मालूम ही नहीं !’’ अच्छा, मैंने मन ही मन सोचा, वही सब पढ़ कर इसे भी प्रेम करने की सूझी होगी, प्रेम करने से ज्यादा प्रेम शब्द का आकर्षण होता होगा ! ओह ! याद आया !

‘‘हां-हां, याद आया।’’ और सच में मुझे पद्मजा की एक बात याद आयी, ‘यार, तुम लड़कों को भी मिल्स एंड बून पढ़ना चाहिए। तुम लोग ना बेहद अनरोमांटिक हो।’’

‘‘अच्छा, तो बहुत बोल्ड थी पद्मजा?’’ तिरछी नजर से मुझे देखते हुए कोमला ने पूछा, तो मैं इतनी सी ही देर में उसके भीतर आए परिवर्तन को देख चकित रह गया।

‘‘कोमला, तुम्हें विश्वास ना होगा कि कुछ लड़कियां कितनी बोल्ड हो सकती हैं !’’ और कोमला को देखते हुए अपने आप मुझे यह भी समझ में आया कि कुछ भी हो, यह लड़की कभी ना तो वैसी बोल्ड हो सकती थी, ना ही अपने घर वालों की नाक कटाने जैसा कोई काम कर सकती थी। यह विचार मन में आते ही मुझे इतनी राहत मिली कि मैं बता नहीं सकता !

‘‘अच्छा, फिर आपने क्या कहा?’’ कोमला ने मुझे चुप देख कर पूछा।

‘‘मैंने उसे सच बताया। मैं उस वक्त शादी करने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं था, मैं एकलौता बेटा हूं अपने घर का और उन्हीं दिनों मेरे पिता जी को पहला हार्ट अटैक आया था, हालांकि हल्का था, लेकिन मुझे अपनी जिम्मेदारियां समझ में आ गयी थीं। खासतौर से यह कि मुझे पढ़ाई पर पूरा-पूरा ध्यान देना होगा। एक बढ़िया नौकरी ढूंढ़नी पड़ेगी।’’

‘‘तो इस बात पर वो... पद्मजा की क्या प्रतिक्रिया थी?’’ मैंने उसे देखा, उसकी आंखों में कोई बात थी, जैसे... जैसे कि मेरे जवाब से उसकी कोई मदद होनेवाली हो !

‘‘ओह !’’ मैंने हंस कर कहा, ‘‘मुझे आज भी याद हैं उसके शब्द ! उसने इतने आराम से लिया मेरी बात को। कहा, ‘ठीक है ! एक तो निपटा। अब मेरा रास्ता साफ हो गया। अब मैं उमेश से ‘हां’ तो कह सकती हूं और मुझे यह भी ना लगेगा कि तुम्हें ठेस पहुंचायी है !’’

कोमला दंग रह गयी कुछ देर ! उसकी हथेली मुंह पर रखी रह गयी, इतना अचंभा उसे हो रहा था ! मैं हंसने लगा, ‘‘विश्वास नहीं हो रहा ना? ऐसी होती हैं कुछ लड़कियां !’’

‘‘तो आपको तो बहुत बुरा लगा होगा? आप... आप उसे बहुत प्यार करते थे?’’

मैंने तुरंत जवाब नहीं दिया। लगा कि उस समय मैं जो भी जवाब देता, वह हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण होगा। मेरे शब्दों से बात बन भी सकती थी, बिगड़ भी सकती थी। मैंने कहा, ‘‘चलो, पहले हम दोनों कॉफी पीते हैं, फिर आगे बात करेंगे।’’ और उसके जवाब का इंतजार किए बिना मैं इंटरकॉम उठा कर कॉफी का आॅर्डर देने लगा ! मुझे उसकी बेचैनी का अहसास हो रहा था, फिर भी मैं चुप रहा। इस वक्त शब्दों का और मेरे लहजे का महत्व बहुत अधिक होगा, यह मेरी छठी इंद्रिय कह रही थी।

कॉफी आयी। जब कोमला ने अपना कप उठा लिया, तो मैं बोलने लगा, ‘‘मैं समझता हूं कि हमारी पीढ़ी के लोग प्रेम को उतनी गंभीरता से नहीं लेते हैं, जितना लेना चाहिए। आजकल यह फैशन चल पड़ा है कि सबके बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड होने चाहिए। पद्मजा और उसकी कुछ सहेलियों के और मेरे कई सहपाठियों के तो एक समय में तीन-तीन, चार-चार दोस्त होते थे ! पद्मजा हमेशा कहती रहती थे कि दो तो हमेशा होने चाहिए, एक ने साथ छोड़ा, तो दूसरा हाथ में होना चाहिए।’’

‘‘हाय राम !’’ कोमला ने दोनों हाथों से अपने गाल ढांप लिए, ‘‘ये तो बेईमानी है !’’

मैं उसकी इस प्रतिक्रिया पर अपनी हंसी ना रोक सका, ‘‘तुम्हारे लिए ! मगर सब लड़के-लड़कियां इतने गंभीर नहीं होते। उनकी भाषा में ‘इट इज सो कूल टू हैव टू और थ्री इन ए स्ट्रिंग’ समझीं?’’

कोमला ने धीरे से सिर हिलाया। मैंने देखा कि मेरी बातें सुनते-सुनते वह खुद के विचारों के जाल से निकल गयी थी। उसकी आंखें दूर कुछ देख रही थीं। शायद वह पहली बार अरविंद के प्रति अपनी भावनाओं का विश्लेषण कर रही थी।

मैंने सोचा लोहा गरम है तब और पीटा जाए ! ‘‘असल में उन सबको दोस्त कहना ही ठीक है, ये बॉयफ्रेंड, गर्लफ्रेंड शब्द आते ही हमारा समाज, हमारे घर वाले और यहां तक कि हम भी एक अनोखी ही दुनिया बनाने लगते हैं, जिसमें आम तौर से कोई मजबूती या सचाई नहीं होती। हमारा समाज ऐसे संबंधों को तिरछी आंख से ही देखता है, लड़के-लड़कियां माता-पिता से कह नहीं पाते, वे भी खुल कर बात करते नहीं हैं, कुल मिला कर संबंध और जिंदगियां खराब होती हैं। अगर इसके बावजूद लड़के-लड़कियां कोई कदम उठा लेते हैं, तो समाज इनको अलग-थलग कर देता है। इस प्रकार का कदम बहुत सोच-विचार कर, किन्हीं अनुभवी लोगों से राय-मशविरा ले कर ही करना ठीक होता है।’’

कोमला मेरी बातों को ध्यान से सुन रही थी। मैंने भी अपनी बात जारी रखी, ‘‘जब हम संबंध को आगे नहीं बढ़ा पाते और हमारे घर वालों को ये बातें पता चलती हैं, तो एक ओर वे बुरा-भला कहते हैं, दूसरी ओर हमारे मन में अपराध बोध भर जाता है। मैं चाहता हूं कि तुम इस बारे में अच्छे से सोचो और अपराध की भावना से मुक्त हो जाओ। मेरी भी गर्लफ्रेंड्स थीं ही, मगर इसका मतलब यह नहीं है कि मैं तुम्हें धोखा दूंगा, पीठ पीछे जा कर उनसे मिलता रहूंगा,’’ और ऐसा कहने के बाद मैं उससे आंखें मिलाता बैठा रहा कि वह देख सके कि मैं यों ही नहीं कह रहा, बल्कि मेरी बात के पीछे कुछ और भी संदेश है। कुछ देर मुझे देखते रहने के बाद वह बोली, ‘‘मुझे यह डर है कि कभी अचानक मेरे मुंह से उसका नाम निकल आए और आप गुस्सा हो जाएं?’’

‘‘कोमला, मैं अभी कितनी बार पद्मजा और जानकी का नाम ले चुका हूं, इतनी चिंता मत करो।’’

‘‘मैंने पढ़ा है कि जब प्रेम एक तरफ हो, तो हमारे अभिमान को चोट पहुंचती है, उसी का दुख होता है,’’ वह बोली, ‘‘लेकिन आपकी बातें सुनने के बाद लग रहा है कि वह केवल आकर्षण ही था।’’

‘‘हां, यही सच है,’’ मैं नरमी से बोला, ‘‘हमारे प्रेम को ठुकराया गया है, यह बड़ा ही अपमानजनक लगता है,’’ मैंने धीरे से अपना हाथ उसके हाथ पर रखा, उसने हाथ हटाया नहीं,’’ चलो, अब हम उन बातों का और विश्लेषण ना करें। ऐसी बातों पर जितनी चर्चा करेंगे, बात बिगड़ेगी।’’

और हम दोनों ने तय किया कि उस अध्याय को समाप्त करके हम एक-दूसरे को जानने का काम शुरू करें। दो अच्छे दोस्तों की तरह हम बंगलुरु घूमेंगे, जैसे दो पर्यटक हों ! हमें कोई जल्दी ना थी। किसी भी शादी को सफल बनाने के लिए बहुत काम करना पड़ता है, आपसी समझ, विश्वास और आदर की नींव पर ही यह इमारत खड़ी हो सकती है।

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हमने यही किया। मैंने राहत की लंबी सांस छोड़ी और नन्हे-नन्हे पैरों के दौड़ने की आहट मुझे सुनायी दी, ‘‘अप्पा ! अप्पा ! मैंने सही पैर आगे करना सीख लिया, ‘‘और मेरा हाथ खींच कर मेरी बेटी ने मुझे आगे किया और कमर पे दोनों हाथ रख कर, फूलती सांसों के साथ गा-गा कर दायां पैर उठा-उठा कर गाने लगी, ‘‘पुट यूअर राइट फुट इन!’’ देखो ! देखो !...’’ और पैर पटक कर चिल्ला कर बोली, ‘‘यह मेरा दायां पैर है !’’ और खिलखिला कर हंस पड़ी।

पीछे से आ कर खड़ी हुई कोमला को देख मैं मुस्कराया, ‘‘हमें पता है मेरी बेटी, तुम सही पैर ही आगे करोगी ! हमारी बेटी जो हो !’’ और खड़े हो कर मैंने कोमला के बाएं हाथ को अपने दाएं हाथ से पकड़ा और बाएं हाथ से बेटी का दायां बाजू पकड़ा और हम तीनों एक गोल बना कर अपना-अपना दायां पैर उठा कर सामने पटकते हुए वही गीत गाने लगे, ‘‘पुट यूअर राइट फुट इन...!’’