Monday 17 July 2023 05:21 PM IST : By Ritu Gupta

हाय टमाटर... आय हाय टमाटर...

tomato

आज सुबह-सुबह ही जैसे श्रीमती जी ने जैसे बम फोड़ दिया और बोलीं, "देखो जी आज आपकी छोटी बहन और हमारी छोटी ननद की जेठानी के भाई सपरिवार आज आगरा आ रहे है ताजमहल देखने और वो दो दिन हमारे घर पर ही रुकेंगे, जब आ ही रहें है तो जाहिर सी बात है खाना पीना सब कुछ घर पर ही होगा।

आपको तो पता ही है जब वो पहली बार आए थे तो हमारे हाथ के खाने के दीवाने हो गए थे। वो भी खासतौर पर टमाटर सूप और टमाटर लहसुन की चटनी और राजमा चावल के। इस बार भी बोल रहे हैं कि आपके हाथ के खाने की महक से ही खींचे चले आ रहे हैं। अब बताओ तो घर आए मेहमान की खातिर तो करनी ही पड़ेगी। वैसे भी हमारे शास्त्रों में लिखा है अतिथि देवो भव:

मेहमानों की खातिर करना तो हमारा फर्ज बनता ही है ऊपर से वे आपकी बहन के ससुराल से आए तो खास तौर पर। हमारे मायके से कोई आता तो हम थोड़ा-बहुत इधर-उधर कर भी लेते,पर ये तो ठहरे आपकी छोटी बहन के रिश्तेदार, जरा सी खातिरदारी में कमी हो गई तो हमें सालों तक सुनाती रहेंगी। वैसे भी वो बिन बादल बरसात जैसे कभी भी फट पड़ती हैं।

अब हम नहीं जानते आप जानो और आपका काम, हमें तो कम से कम ढाई किलो टमाटर चाहिए ही चाहिए खाना बनाने के लिए। आप किस तरह इंतजाम करेंगे आप देखिए,’’ कहकर पत्नी जी तो तुनक कर रसोई घर में चली गई और हम कलेजे पर पत्थर रखकर सब्जी मंडी की ओर चल दिए।

रास्ते में सोचते जा रहे थे एक महीना हो गया टमाटर देखे हुए अब तो दिखने में भी कैसा लगता होगा ये भी भूलने लगे है, मन ही मन टमाटर को कोस रहे थे कि मुंआ टमाटर ना हुआ क्वीन एलिजाबेथ के मुकुट में लगा कोई हीरे हो गया, देखो तो कितनी अकड़ आ गई है इस टमाटर में। सोचता है कि उसके बिना कोई सब्जी ही नहीं बनेगी कोई दावत ही नहीं हो सकती। फिर अगले ही पल सोचा सही ही तो है आज टमाटर के बिना कुछ टेस्टी सा बनाना कहां संभव है ,देखो तो हम भी एक मेहमान के आते ही टमाटर लाने दौड़ पड़े ही ना।

बस इन सोच विचारों में गोते खाते हम सब्जी मंडी पहुंच गए। पूरी सब्जी मंडी सारी सब्जियों से भरी हुई थी , भिन्डी, शिमला, बैंगन, आलू, अरबी, मूली, बस लाटसाहब टमाटर ही कहीं छुपा बैठा था। ऐसा लगता था मानो टमाटर की मुंह दिखाई के भी आज हमें पैसे देने होंगे।

हमने एक छोटे से सब्जी वाले से पूछा कि, ‘‘भैया टमाटर है क्या?’’ तो उसने जवाब दिया, ‘‘काहे मजाक करते हो बाबू, हमारी कहां हैसियत कि जो टमाटर रख सके । आप उस ऊंची दुकान वाले से ही पूछ लो।’’ हम आगे बढ़े और उस बड़ी सी दुकान और मोटी सी तोंद वाले से टमाटर का पूछा तो वह हम पर हंसने लगा। कहने लगा, ‘‘भैया क्या भाव ही पूछोगे या लेना भी है, दिखने में तो नहीं लगता कि तुम टमाटर खरीद सकते हो।’’

बताओ अब एक टमाटर हमारी हैसियत बताएगा, गुस्सा तो बहुत आया पर गरज अपनी थी तो मुस्कुरा कर बोले ‘‘भैया लेना ही है तभी तो पूछ रहे हैं ना।’’ तो उसने धीरे से टमाटर के ऊपर रखा कपड़ा हटाया जैसे कोई जेवर गहना हो और चोरों से छुपा कर रखा हो। हमने पूछा भैया काहे छुपाए हो, तो उसने जवाब दिया ‘‘देखते नहीं बाबू कितनी भीड़ है यहां मंडी में,एक भी गायब हो गया तो हमारा तो बैंक बैलेंस ही नीचे आ जाएगा। और देखते नहीं आसपास बंदरों को, ये नटखट भी आजकल सेब केला नहीं खाते सिर्फ टमाटर ही खाते हैं।तो भैया बात ऐसी है कि इन सब की नजर से बचाना तो पड़ेगा ही।’’

फिर हमने कहा, ‘‘भैया खैर अब बता भी दो क्या भाव दिए हैं,’’ उसने जैसे ही टमाटर का भाव बताया , मुझे चक्कर आ गया, स्कूटर का हैंडल पकड़ जैसे तैसे हमने अपने आप को संभाला। ‘‘हमने कहा सरकार तो कह रही है कि थोड़ा सस्ता हो गया तुम तो उससे भी चार गुना बता रहे हो ।’’ इस पर सब्जीवाला हंस कर बोला ‘‘सरकार तो हर दिन कितने ही वादे करती है कौन से वायदे पूरे हुए हैं। अब आप बाबू टाइम खोटी न करो ,लेना हो तो बताओ, नहीं तो अपना रास्ता नापो।’’

मरता क्या न करता कड़ा जी करके ढाई किलो टमाटर ले लिए। फिर उसे थैली के भी अंदर थैली में छुपाकर स्कूटर की कंडी पर टांगे घर की ओर निकल पड़ा। सोचने लगा इन मेहमानों को भी क्या पता नहीं है कि टमाटर का क्या भाव चल रहा है एक मध्यमवर्गीय परिवार का तो उन्हें दो टाइम का खाना खिलाने में ही बजट बिगड़ जाएगा। फिर सोचा जो है सो है अब करना तो पड़ेगा ही।

घर पहुंचने ही वाला था कि उससे पहले वाले चौराहे पर बहुत भारी भीड़ थी ,एक साइकिल वाले से हमारी जरा सी टक्कर क्या हुई टमाटर की थैली फट गई और मेरा तो हार्टअटैक होने को आया ही था ,पर लगा सबसे पहले टमाटर संभालने हैं, दो-चार टमाटर सड़क पर गिर गए तो आसपास के लोग ऐसे देखने लगे जैसे हीरे जवाहरात गिर गए हो तभी एक सज्जन ने हमारे टमाटर उठाकर हमें दिया, कहने लगे ‘‘महाराज संभाल कर रखिए जमाना बहुत खराब है कहीं भी चोरी डकैती हो सकती है।’’

वह इंसान सच बताएं उस समय हमें किसी देवदूत से कम नहीं लगा था। एक टमाटर दूसरी तरफ बराबर वाले की बाइक से कुचलकर अपना दम तोड़ चुका था, हम रोने ही वाले थे, पर फिर ध्यान आया कि हमें अपने को संभालना ही होगा, अभी उस जैसे बहुत सारे टमाटर की जिम्मेदारी हमारे ऊपर है जिन्हें हमें सही सलामत श्रीमती जी तक पहुंचाना है।

लुटे पिटे से घर पहुंचे तो पत्नी जी हंसकर बोली क्या जंग लड़कर आ रहे हो ।पत्नी जी बड़ी खुश नजर आ रही थीं। वे कहने लगीं ‘‘दीदी के जेठानी के भाई आ गए हैं, अंदर बैठे हैं और देखो तो इस बार मिठाई की जगह 5 किलो टमाटर लाए हैं, कह रहे थे आज टमाटर सेब और किसी मिठाई से कम थोड़ी नहीं है उनसे ज्यादा अनमोल है तो क्यूं न टमाटर ही ले चलें।’’

पत्नी जी बोलीं, ‘‘चलो हमारा तो जैसे सपना पूरा हो गया 2 महीने का इंतजाम हो गया।’’ अब जाकर हमें पत्नी जी की खुशी का कारण समझ आया, पर हम तो ढाई किलो टमाटर लाकर अपना बजट बिगाड़ ही चुके थे।