Thursday 06 July 2023 12:05 PM IST : By Mamta Mehak

किताब के बहाने

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लाइब्रेरी की सीढ़ियां जल्दी-जल्दी चढ़ते हुए रीमा सोच रही थी कि आज अपना लेख पूरा करके मैगजीन में भेज ही देगी। जैसे ही अंदर घुसी, देखा 5-6 लोग उसकी कुर्सी को घेरे हुए हैं। रीमा ने सबको सॉरी बोला और उन्हें किताबें इशू करने लगी।

रीमा एक पब्लिक लाइब्रेरी की लाइब्रेरियन है। यों तो किताबें इशू करने के लिए कर्मचारी होता है, पर यहां पिछले 3 साल से वह अकेली लाइब्रेरी संभाल रही है। थोड़ा फ्री होते ही उसने अपनी डायरी उठायी और किताबों के रैक की ओर चल दी। किताब निकाल कर वह अपनी सीट पर लौट आयी। बैठने ही वाली थी कि किताबों के बीच से बाहर निकला हुआ एक लिफाफा देख कर चौंकी। गुलाबी लिफाफा, ऊपर उसी का नाम लिखा है। हाथों का सामान टेबल पर रख कर उसने लिफाफा खोला। अंदर एक खत था, उसने पढ़ना शुरू किया, ‘‘डियर रीमा, तुम्हें जब भी देखता हूं, बस देखता रह जाता हूं। तुम जैसी मेहनती, काम के प्रति समर्पित, सेवाभावी और अध्ययन प्रेमी लड़की मैंने आज तक नहीं देखी। तुमसे बात करने की इच्छा है, पर डर लगता है, तुम कहीं मुझे गलत ना समझ बैठो।’’

एक सांस में रीमा सारा खत पढ़ गयी। कौन है यह? क्यों बात करना चाहता है। हो ना हो यह वही बुड्ढा है, उसे घूर-घूर कर देखता है। आने दो आज उसे छठी का दूध ना याद दिलाया तो।

लिफाफे को ड्रॉअर में रख रीमा काम में जुट गयी। पांच बजते ही वह घर को चल दी। रातभर सोचती रही कि क्या करे? कौन है यह खत भेजने वाला? अगले दिन वह जैसे ही पहुंची, टेबल पर किताबों के साथ एक और गुलाबी लिफाफा था।

अंदर खत में लिखा था, ‘‘डियर रीमा, मेरा खत पढ़ कर तुम्हें अच्छा नहीं लगा क्या? कुछ गलत लिख दिया हो, तो माफ कर देना। मुझसे प्लीज बात करो। हिंदी वाली रैक में बायीं तरफ मधुशाला रखी है, उसमें जवाब लिख देना।’’

रीमा ने यहां-वहां नजर दौड़ायी, वह बुड्ढा एक कुर्सी पर पैर फैलाए बैठा था। तो यही लिख रहा है खत। पर एक बार रमेश जी से पूछ लूं, कोई और भी आया था क्या। रमेश लाइब्रेरी का चपरासी है। सबसे पहले वही आ कर ताला खोलता है। उसने बताया कि 5-7 लोग पहले ही आ चुके थे। ये लो, अब कैसे पता लगाए। बहरहाल कुछ तो करना था। रीमा ने जवाब में लिखा कि वह भी मिलना चाहती है, और मधुशाला में रख दिया।

अगले दिन उसकी टेबल पर एक किताब के साथ गुलाब और खत था, ‘‘शुक्रिया रीमा, दोस्ती स्वीकारने के लिए। मधुशाला में तुम्हारे लिए एक उपहार है।’’ रीमा फौरन उठी और हिंदी की रैक की अोर चल दी। वह बुड्ढा वहीं कोई किताब लिए खड़ा था। अब वह फिर से हिंदी की रैक के सामने थी, पर बुड्ढा कुर्सी पर जा कर बैठ चुका था।

रीमा ने मधुशाला निकाली, खोल कर देखा, अंदर एक फोटो थी, जिसमें 20-25 बच्चे अपनी टीचर के साथ बैठे थे। यह फोटो तो उसने परसों ही फेसबुक पर डाली थी। पूरी क्लास के बच्चों के साथ की फोटो है। तो ये बुड्ढा यहां तक पहुंच गया। आज इसकी खैर नहीं। पर क्या करूं, कोई पुख्ता सबूत भी तो नहीं है।

मन ही मन सोचते रीमा वापस कुर्सी पर आ बैठी। कुछ पेपर वर्क पूरा करते-करते शाम के साढ़े 4 बीज गए। लाइब्रेरी में अभी 20-25 लोग थे। तभी लगभग उसी की उम्र का एक लड़का उसकी टेबल के पास आ खड़ा हुआ।

रीमा ने सलीके से कहा, ‘‘कोई किताब पढ़नी है, तो सामने कुर्सियों पर बैठ जाइए, वरना इशू करवा कर घर ले जाने के लिए कार्ड कल बन पाएंगे।’’

लड़का कुछ ना बोल बस खड़ा मुस्कराता रहा। रीमा को कुछ अटपटा लगा। वह कुछ और बोलने को ही थी कि लड़का बेबाकी से बोला, ‘‘एकदम नपेतुले शब्द, शक्ल तो खास नहीं बदली तुम्हारी, पर अदाएं बदल गयीं।’’

रीमा के चेहरे पर एक भाव जाता दूसरा आता। वह कुछ बोलना चाह रही थी, पर लड़का फिर बोल पड़ा, ‘‘अरे पहचाना नहीं क्या, शिवम हूं। ज्ञान मंदिर स्कूल, आठवीं क्लास, शीतल मैडम का बेटा...।’’

रीमा के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कराहट बिखर गयी।

‘‘अरे शिवम कहां थे इतने दिन? कभी मिले ही नहीं। बाकी फ्रेंड्स तो मिलते रहे।’’

‘‘हां रीमा, मैं दिल्ली चला गया था। मेरे पापा का ट्रांसफर हो गया था।’’

वे दोनों बातें जारी रखते पर अचानक वही बुड्ढा आ धमका और किताब रखते हुए बोला, ‘‘लाइब्रेरियन साहिबा, क्या कल लाइब्रेरी खुलेगी, मुझे कुछ पढ़ना है।’’

रीमा को तो उससे यों ही चिढ़ थी, बोली, ‘‘जी नहीं कल छुट्टी है। बाहर बोर्ड पर भी लिखा हुआ है।’’

बुड्ढा मुस्कराता हुआ चला गया।

अब रीमा फिर शिवम की ओर मुखातिब हो कर बोली, ‘‘ये बुड्ढा बड़ा खड़ूस है, परेशान कर रखा है।

शिवम हंसते हुए बोला, ‘‘क्या कर दिया बेचारे ने। इसे मत पीट देना जैसे स्कूल में मुझे पीटा था।’’

‘‘शिवम प्लीज, वह गलती से हुआ था। मुझे लगा वह बदमाश राजीव है, जिसने मेरी बुक फाड़ी थी, तुम पीछे से बिलकुल वही लग रहे थे।’’

‘‘चलो बंद करो लाइब्रेरी, कहीं कॉफी पीते हैं।’’

एक कैफेटेरिया में पहुंच कर दोनों बातों में व्यस्त हो गए। स्कूल और आगे की पढ़ाई की ढेरों बातें।

अगले दिन रीमा लाइब्रेरी में घुसी ही थी कि एक कोरिअर वाला एक खत और एक गुलदस्ता थमा गया। गुलदस्ता एक तरफ रख रीमा ने खत खोला। राइटिंग वही, जो अब तक खत लिख रहा था।

‘‘रीमा, मुझे बेहद खुशी हुई तुमसे बात करके। तुम्हारे लिए एक और सरप्राइज है। वहीं मधुशाला में।’’

रीमा फौरन रैक की तरफ चल पड़ी। किताब उठायी, खोली। देखा एक बर्थडे कार्ड और स्कूल की फोटो थी, जिसमें वह अपने दोस्तों के साथ बर्थडे मना रही है। इतने में वह बुड्ढा मैगजीन हाथ में लिए उधर आ गया। रीमा गुस्से में बहुत जोर से चीखी, ‘‘आप चाहते क्या हैं, उम्र देखी है खुद की। एक मिनट में भूत उतर जाएगा इश्क का।’’

वहां मौजूद 5-6 लोग उसी को देखने लगे। अपनी कुर्सियों से उठ कर आ गए।

बुड्ढा हक्काबक्का रह गया, बोला, ‘‘जी, जी, जी आप क.. क... क्या।’’

रीमा बड़े गुस्से में थी, ‘‘ओहो, अब बोलते नहीं बन रहा, खत लिखते हैं साहब।’’

बुड्ढा अब तक हैरान था, ‘‘खत, कौन सा खत? मैंने कोई खत-वत नहीं लिखा।’’

अब तो रीमा का पारा सातवें आसमान पर था। वह लगभग खत दिखाने ही वाली थी कि शिवम की आवाज आयी, ‘‘रीमा रिलैक्स, यहां आओ।’’

रीमा शिवम की ओर देखते हुए बोली, ‘‘ शिवम तुम जानते नहीं, ये साहब खत लिख-लिख कर मुझे परेशान कर रहे हैं। देखो।’’

शिवम ने उस वृद्ध से कहा, ‘‘आप बैठ जाइए।’’

रीमा को शिवम का यह व्यवहार समझ में नहीं आया। शिवम उसका हाथ पकड़ उसे बाहर बने लॉन में ले गया। वहां पहुंच बोला, ‘‘वे खत उन्होंने नहीं, मैंने लिखे थे। आज सब कुछ बता देता, पर उससे पहले ही तुमने सीन क्रिएट कर दिया।’’

रीमा उलझन में बोली, ‘‘पर तुमने मुझे खत क्यों लिखा, सीधे बात कर लेते।’’

शिवम मुस्कराते हुए बोला , ‘‘रीमा, तुम बुद्धू हो। याद है कई बार तुमसे किताब लेने और किताब देने के लिए मुझे तुम्हारे घर आना पड़ता था।’’

‘‘हां याद है, तो?’’

शिवम रीमा का हाथ पकड़ते हुए बोला, ‘‘रीमा, तुमसे मिलने का किताबें तब भी बहाना थीं और अब भी बहाना हैं।’’ रीमा कुछ पल खामोश हो गयी। फिर जैसे सब कुछ समझ गयी हो। वह शिवम का हाथ अपने हाथ में ले कर मुस्कराते हुए बोली, ‘‘अब मुझसे मिलने के लिए किताब के बहाने की जरूरत नहीं है।’’