Tuesday 27 June 2023 10:36 AM IST : By Gopal Sinha

सोनू मोनू रिंकी पिंकी

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रागिनी की आवाज राहुल के कानों में पड़ी, ‘‘आज ऑफिस से जल्दी आ जाना। शाम को मुन्ना के घर जाना है, उसका बर्थडे है आज।’’ अब राहुल बाबू की सिट्टीपिट्टी गुम ! दिमाग यादों की पटरी पर दौड़ाया, तो भी कुछ समझ ना आया। दरअसल उसके ससुराल साइड में दो मुन्ना नामक प्राणी हैं और जाहिर सी बात है दोनों के जन्मदिन एक ही डेट में तो पड़ेंगे नहीं। बीवी के घर का मामला आमतौर पर संगीन ही हुआ करता है, सो रागिनी से उसे कुछ पूछने का जिगर नहीं था।

आजकल कुछ नहीं सूझता, तो लोग मोबाइल उठा कर साइबर झरोखे में झांकने लगते हैं। राहुल की उंगलियां भी मोबाइल पर फिसलने लगीं, तभी उसमें पिछले साल खींची गयी फोटो का रिमाइंडर देख कर याद आ गया कि आज रागिनी की मौसी के बेटे मुन्ना का जन्मदिन है, उसके चाचा के बेटे मुन्ना का नहीं। राहुल का बढ़ा हुआ बीपी एकदम से सामान्य हो गया। मन यूरेका-यूरेका कह कर चिल्लाने को होने लगा।

अपने यहां वाकई नाम का बड़ा लफड़ा है। अपने आसपास नजर दौड़ाइए, एक से नामवाले कई लोग आपको दिख ही जाएंगे। ना जाने यह दो नाम रखने की परंपरा किसने शुरू की, घर का पुकारू नाम कुछ और, स्कूल-कॉलेज या दफ्तर के लिए कुछ और नाम। किसी-किसी के दोनों नामों में इतना विरोधाभास होता है कि लगता ही नहीं कि ये नाम एक ही व्यक्ति के हो सकते हैं। जैसे घर में लोग बुलाते हैं टुन्ना और ऑफिशियल नाम देखिए सूर्यप्रताप सिंह राजपूत। लेकिन जब हमने खुद को प्रगतिशील दिखाने के लिए अपनी बेटी का घर-बाहर का एक ही नाम रखा, तो बेटी ने बड़ी हो कर उलाहना दिया कि मेरे सारे फ्रेंड्स के दो-दो नाम हैं, आप लोगों ने मेरा प्यार का नाम तो रखा ही नहीं। लो जी, हमारी प्रगतिशीलता तेल लेने चली गयी !

बचपन में हमारे पड़ाेस में एक लड़का था, जिसे सब लल्लू बुलाते थे, क्याेंकि उसके मम्मी-पापा ने नाम ही यही रखा था। अभी कुछ दिनों पहले एक गेट-टूगेदर में वह मिला, तो मैंने पुकारा, ‘‘लल्लू...’’

यह सुन कर तो वह ऐसा नाराज हुआ मानो मैंने उसे कोई गाली दे दी हो ! वह तुरंत मेरे पास आया और खीजभरे स्वर में बोला, ‘‘प्लीज भैया, कॉल मी ललितेश्वर प्रसाद।’’

मेरे दोस्त के राम भैया की शादी हुई, तो उनके ससुर जी राम बाबू-राम बाबू कह कर अपने दामाद की खातिर-तवज्जो कर रहे थे। राम भैया भी अपने जीवन में आयी इस नयी खुशी से निहाल हो रहे थे। तभी ससुर जी जोर से चिल्लाए, ‘‘अरे ओ रमुआ, जरा इधर आओ।’’ यह सुन कर राम भैया गड़बड़ा गए कि यह क्या, अचानक दामाद की इज्जत का फालूदा कैसे हो गया। लेकिन जब उन्होंने अपनी ससुराल के पुराने नौकर को दौड़ कर ससुर जी की ओर आते देखा, तो सांस में सांस आयी। उनकी ससुराल के उस नौकर का नाम भी राम था।

खैर, दो नामों के बीच कुछ लोग ऐसे पिस जाते हैं, जैसे दो पाटों के बीच गेहूं। पिछली राखी के दिन राधा आंटी को अपनी बेटी की अलमारी साफ करते हुए किसी सुंदर नाम के लड़के का लिखा प्रेम पत्र हाथ लग गया। फिर क्या था, राधा आंटी ने आसमान सिर पर उठा लिया। चूंकि उनकी बेटी रूपल कॉलेज गयी हुई थी, तो ठीकरा उन्होंने अपने पति कन्हैया अंकल पर फोड़ा, ‘‘और चढ़ाओ बेटी को सिर पर, देख लो उसकी करतूत। हाय-हाय, कलमुंही ने कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा है...’’

सीधे-सादे कन्हैया अंकल पहले तो कुछ समझ नहीं पाए फिर लव लेटर देख कर उनका भी पारा चढ़ गया और पत्नी के सुर में सुर मिला कर बोले, ‘‘आने दो रूपल को। कल से उसका कॉलेज जाना ना बंद करा दिया, तो कहना...’’

‘‘लेकिन कॉलेज बंद करा कर कौन सा तीर मार लोगे, ये सुंदर तो अपने साथवाले घर में आए नए किराएदार मिश्रा जी के छोटे बेटे का नाम है।’’

राधा आंटी के कहने पर मानो उन्हें होश आया और कहने लगे, ‘‘अरे हां, आने दो रूपल को, उसकी खबर लेता हूं।’’ कन्हैया अंकल पत्नी को नाराज करने का जोखिम कभी नहीं उठाते थे।

लेकिन तभी कुछ मजेदार हो गया। नयी पड़ोसिन मिश्राइन अपने उसी बेटे के साथ नमूदार हुईं और कहने लगीं, ‘‘आपकी बिटिया आ गयी क्या कॉलेज से। ये सुंदर आया है उससे राखी बंधवाने। इसकी कोई अपनी बहन है नहीं ना...’’

राधा आंटी हतप्रभ रह गयीं, कहां किसी सुंदर नाम के लड़के का बेटी के लिए लिखा प्रेम पत्र पढ़ कर उबल रही थीं और कहां ये सुंदर, जो उनकी बेटी को अपनी बहन बनाने आया है। क्या लफड़ा है भाई, उनकी समझ ने उनका साथ छोड़ दिया, फिर खुद को किसी तरह संभाल कर पड़ोसिन और उनके बेटे की ओर मुखातिब हुईं, ‘‘अभी थोड़ी देर में आ जाएगी रूपल, तब तक आप लोग बैठिए ना...’’

रूपल ने भी जब आ कर खुशी-खुशी सुंदर को राखी बांधी, तो राधा आंटी का दिमाग गुलाटियां खाने लगा। बाद में डांट-डपट करने के बाद रूपल ने खुलासा किया कि वह लव लेटर उसी के कॉलेज में पढ़नेवाले सुंदर का है, जो उसके लिए नहीं, उसकी किसी फ्रेंड के लिए था और फ्रेंड ने सेफ्टी के लिए उसे रखने दिया था। राधा आंटी ने आइंदा उसे ऐसे किसी लफड़े में ना पड़ने की सख्त हिदायत दे दी, लेकिन इस सुंदर नाम ने इतना कन्फ्यूजन पैदा किया कि कहानी लंबी हो गयी।

जैसे हर शहर में जनता टेलर नाम की दर्जी की दुकान होती है, उसी तरह हर घर में राजू नाम का कोई ना कोई प्राणी आपको जरूर मिलेगा। इसी तरह बंटी, गुड्डू, सोनू, मोनू, बबली, पिंकी, मुन्नी, मुन्ना, चिंटू, पिंटू, गुड़िया जैसे नाम एक नहीं दो नहीं, ढेर के ढेर आसपास पाए जाते हैं। पहले पप्पू नाम भी बहुत पॉपुलर था, पर जबसे इसका इस्तेमाल राजनीति में टांग खींचने और बतौर लतीफों के किरदार होने लगा है, मम्मी-पापा अपने बच्चों के लिए यह नाम रखने से परहेज करने लगे हैं।

हमारे घरों में नामकरण संस्कार का अपना ही महत्व है। बच्चा पैदा हुआ नहीं कि पंडित जी से मिल कुंडली तैयार कराने और फिर राशि के अनुसार नाम रखने की परंपरा सनातन काल से चली आ रही है। लेकिन राशि में जो नाम आता है, वह अकसर इतना बेढंगा होता है कि लोगबाग उस नाम को गुप्त रख कर कोई मिलता-जुलता अच्छा नाम रख लेते हैं।

10-20 साल पहले तक घर के बड़े-बुजुर्ग अपने घर के बच्चों के नाम भगवानों के नाम पर जैसे राम, कृष्ण, सीता, पार्वती, विष्णु, शंकर वगैरह-वगैरह रखते थे, ताकि जब अंत समय आए, तो जब वे बच्चों को पुकारें, तो भगवान को मुगालता हो जाए कि पृथ्वीलोक से कोई प्राणी उन्हें पुकार रहा है और वे दौड़े चले आएं। पता नहीं भगवान किसी की पुकार पर आए या नहीं आए, लेकिन इस धार्मिक नामावली का युवा वर्ग ने ऐसा विरोध किया कि ऐसे नाम अब कम रखे जाते हैं। इसके उलट आजकल के लैला-मजनूं अपने महबूब का नामकरण कुछ इस तरह करते हैं मानो किसी नवजात शिशु का नाम रख रहे हों, जैसे मेरा छोनू, मेरा बाबू...

नए जमाने के लोग अब अपने बच्चों के नाम ऐसे रखने लगे हैं, जो यूनीक हों, जो कभी सुने ना गए हों। लेकिन ऐसे नामों को उच्चारित करने में जबान को कथकली करनी पड़ती है। फिर यहां पेंच फंसता है कि अपने बच्चे का ही नाम बमुश्किल लिया जाएगा, तो क्यों ना एक नन्हा सा, प्यारा सा नाम रख लिया जाए। फिर टुल्लू-बुल्लू, मिन्नी-सुम्मी जैसे नामों का उद्भव होता है।

हम सबने छोटू नाम जरूर सुना होगा। हम घर के सबसे छोटे बच्चे का नाम चाहे छोटू ना रखें, लेकिन ढाबे या चाय की दुकान पर काम करनेवाला उम्र में छोटा हो या बड़ा, उसे हम अकसर छोटू नाम से ही जानते और पुकारते हैं, चाहे उसका कोई अच्छा सा नाम क्यों ना हो। उसी तरह अकसर पड़ोसी मुल्क के नागरिक जो हमारे ऑफिस या सोसाइटी में गार्ड का काम करते हैं, उन्हें बहादुर नाम से पुकारते हैं, उनका असली नाम जानने की कोशिश नहीं करते। यह उनके प्रति अन्याय है, जो हम अनजाने में करते हैं। कितना अच्छा हो कि हम एक बार उनसे उनके नाम पूछ लें और उसी नाम से पुकारें !

बहरहाल, नाम को ले कर ज्यादा सेंटिमेंटल होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि कहते हैं ना कि नाम तो बस लेबल है, हमारी असली पहचान तो हमारे काम और व्यवहार से बनती है। तो चाहे आपका नाम जो भी हो, अच्छा काम करते रहिए और नाम कमाते रहिए।