Monday 03 July 2023 04:11 PM IST : By Gopal Sinha

कथा पच्चीसी

katha-pacchisi

भाइयो और एक को छोड़ कर बहनो, मेरी शादी की 25वीं सालगिरह आनेवाली है, तो थोड़ा दुख आप लोगों से भी साझा कर लूं, वरना कुंआरे दोस्‍त यह कहेंगे कि पहले क्‍यों नहीं बताया, और शादीशुदा दोस्‍त क्‍या ही बोलेंगे, वे तो बोलने की हिमाकत ही नहीं कर सकते।

कुछ दिन पहले की ही बात है, बेगम साहिबा बोलीं कि सुनिए, हमारी शादी के 25 साल होनेवाले हैं, पता ही नहीं चला। मैंने छूटते ही धीमी आवाज में कहा, ‘‘हां जी, लेकिन वक्‍त बीतने का पता तो किसी कैदी से पूछो, जेलर को क्‍या मालूम।’’ इतना कह कर मैं एहतियातन 3-4 घंटे घर से बाहर ही रहा।

उसी दिन अपना एक जिगरी दोस्‍त भी मिला। उससे मैंने अपना दुखड़ा सुनाया, तो उस ज्ञानी ने सलाह दी, ‘‘भाई, तुम्‍हें पता है पुर्तगाल में उम्र‍कैद की मैक्सिमम सजा 25 साल है। अब तुम पुर्तगाल के रहनेवाले तो हो नहीं, सो जिंदगीभर इस कैद को भुगतो,’’ फिर कहने लगा, ‘‘लोग कहते हैं जिसने सोच-समझ कर शादी ना की, उसने अपना जीवन बिगाड़ लिया। मैं पूछता हूं, जिसने सोच-समझ कर शादी की, उसी ने क्‍या उखाड़ लिया। सो, जैसा चल रहा है, चलने दो, अपनी ना चलाओ, भाभी जी की हर बात में मुंडी हिलाओ। देखो, 25वीं क्‍या 50वीं सालगिरह भी तुम्‍हारी शांति से बीतेगी।’’ उस दिन मुझे लगा कि वाकई वह मेरा सच्‍चा दोस्‍त है।

वैसे आपको बताऊं, मैं काफी मजबूत आदमी हूं। भूत-प्रेत में मेरा कोई यकीन नहीं है, ना ही उनसे डरता हूं, लेकिन श्रीमती जी की 4 मिस्‍ड कॉल देख कर थर-थर कांपने लगता हूं। इसे मेरी कमजोरी ना समझा जाए, यह मेरे सफल दांपत्‍य जीवन का राज है, जिसे मैंने आपसे बता दिया। बीवी से जितना डरोगे, जीवन में उतना ही बढ़ोगे।

अगर शादीशुदा जिंदगी के पच्‍चीसों झमेलों को छोड़ दिया जाए, तो भी पच्‍चीस अंक का हमारे जीवन में अच्‍छा-खासा महत्‍व है। अपने देश में जो पुराने जमाने में बोर्ड गेम पच्‍चीसी खेला जाता था, वह 25 अंक पर ही आधारित है। वर्ल्ड पास्‍ता डे भी 25 (अक्‍तूबर) को मनाया जाता है। अमेरिकी भाई-बंधु हर हफ्ते औसतन 25 डॉलर की कॉफी पी जाते हैं। रेसिपीज बनाने में चौथाई चम्‍मच का बड़ा रोल है, आपने किसी डिश में चौथाई यानी चम्‍मच के 25 प्रतिशत के बराबर सामग्री डालने के बजाय 50 प्रतिशत यानी आधा चम्‍मच डाल दी, तो या तो डिश बिगड़ जाएगी या खानेवाले का जायका। बचपन में मास्‍टर जी 25 प्रतिशत का हिसाब सिखाने में हमसे जितना सिर खपाते थे, वह हमें आज भी याद है।
जो बच्‍चे 25 तक का पहाड़ा कंठस्‍थ कर लेते, मास्टर जी की नजरों में जीनियस हो जाते। हमारी तो 15 के पहाडे़ के बाद ही सांस फूलने लगती थी। लेकिन 25 ने हमारा साथ नहीं छोड़ा या यों कहिए हमने छोड़ने नहीं दिया। इम्‍तहान चाहे तिमाही के हों या छमाही के या फिर सालाना ही क्‍यों ना हों, ज्‍यादातर विषयों में हम गर्व से 100 में 25 तक अंक ले ही आते थे।

पहले जमाने में लड़कियां 25 की हो जातीं और घरवाले उनका ब्‍याह ना कर पाते, तो आसपड़ोस में कानाफूसी शुरू हो जाती कि पता नहीं क्‍या बात है, लड़की को घर में इतनी उम्र तक बिठा कर रखा है। हो ना हो, कोई खोट जरूर है। उन्‍हीं लोगों के नातिन-पोतियां आज 25 क्‍या 30 की उम्र में भी बिंदास कुंआरी घूमती हैं और कोई कुछ नहीं कहता। शादी-ब्‍याह से इतर कुछ और ना सोच पानेवाले लोगों की दूसरी-तीसरी जेनरेशन ‘पहले इस्‍तेमाल करो फिर विश्‍वास करो’ की तर्ज पर लिव-इन रिश्‍तों में भावी जीवन की संभावनाएं ढूंढ़ती फिरती है और अकसर उनका विश्‍वास टुकड़ों में बिखर जाता है।

जब हम 25 के हुए, तो आसपास के लोग, रिश्‍तेदार जब भी मिलते, कहते, ‘‘भैया, पच्‍चीस के हो गए हो, अब तो कोई कुछ कमाने-धमाने के बारे में सोचो। हमारे जमाने में लड़के 18-20 से ही कमाने नहीं लग जाते थे, स्‍कूल-कॉलेज में पढ़ते हुए थोड़ा मौज-मजा करते 22-24 साल चुटकियों में गुजर जाते। ना तो घरवालों को फिक्र रहती, ना आसपड़ोस को कि लड़का कोई नौकरी-वौकरी नहीं करता। नामुराद 25 के होते ही सबकी आंखों में कांटे सा खटकने लगते। हमने भी 25 पूरा होते ही नौकरी शुरू कर दी थी, तो ज्‍यादा ताने-उलाहने सुनने को नहीं मिले।

हंसी-मजाक के साथ कुछ ज्ञान की बात भी हो जाए, तो आप बुरा तो नहीं मानेंगे ना। 25 का होने तक आपके पास कई सारे स्किल्‍स होते हैं। आप अपना अच्‍छा-बुरा सोच सकते हैं और किसी को सॉलिड ‘ना’ कह सकें। 25 की उम्र में ही आप कैरिअर के बारे में सीरियसली सोचने लगते हैं। आपको बडे़ खतरों को उठाने में डर नहीं लगता। चाहे लव में रिजेक्‍शन हो या किसी जॉब का, 25 की उम्र में आप इन चीजों को बहुत अधिक दिल पर नहीं लेते हैं। आपको पैसों का मोल पता चलता है, लेकिन खुशियां आपके लिए अधिक मायने रखती हैं। पुराने दोस्‍त छूटते हैं, तो नए भी बनते हैं। आपका वीकेंड प्‍लान बदल जाता है और आप घर पर अकेले रहना पसंद करने लगते हैं। म्‍यूजिक आपका एकमात्र दोस्‍त बन जाता है। यानी 25 की उम्र तक आप एक बेहतर इंसान बनने के करीब होते हैं।

खैर, 25 की उम्र का भी कुछ अलग ही अंदाजे-बयां होता है। आज की तरह हमें उन दिनों 16-18 का होते ही कामदेव घायल नहीं करते थे, वे भी थोड़ी मोहलत देते थे कि बच्‍चा पहले कुछ खेलकूद कर ले, फिर किसी बंधन में डालेंगे।

अब जब 25 की उम्र की बात छिड़ी है, तो उन दिनों सिनेमा का हमारी उम्र के लोगों में बड़ा क्रेज था। उस दौर के गाने वाह-वाह क्‍या बात है। आज की तरह चलती है क्‍या नौ से बारह... जैसे डाइरेक्‍ट डेट पर ले जाने का ऑफर वाला गाना हम सोच भी नहीं सकते थे। उन दिनों तो खून पसीना फिल्‍म का गाना राजा दिल मांगे चवन्‍नी उछाल के... सुन कर हमारा दिल बल्लियों उछलने लगता था। बेताल पचीसी कथा संग्रह भी आपने जरूर पढ़ी होगी, या फिर विक्रम और बेताल सीरियल तो देखा ही होगा। न्‍यायप्रिय राजा विक्रम को बेताल ने जो 25 कहानियां सुनायी थीं, उनमें गहरा बोध छुपा है।

चवन्‍नी यानी 25 पैसे को आज की जेनरेशन ने शायद देखा भी नहीं हो, पर हमारे समय में चवन्‍नी में हम क्‍या-क्‍या नहीं कर लेते थे। चवन्‍नी नाम कैसे प्रचलन में आया, तो आपको नहीं मालूम हो, तो बता दें कि अंग्रेजों के जमाने में एक रुपए में 16 आने होते थे। रुपए को 4 टुकड़ों में बांटा जाता, तो 25 पैसे मतलब 4 आना और 50 पैसा यानी 8 आना। आना करेंसी को खत्‍म कर दिया गया, जब इंडिया ने अपनी करेंसी 1957 में शुरू की। फिर 30 जून 2011 से चवन्‍नी भी चलन से बाहर कर दी गयी, पर उसकी कीमत उसके चाहनेवालों के दिलों में आज भी बरकरार है। कभीकभार आपने भी किसी छोटी बच्‍ची की तुलना चवन्‍नी से की होगी, पूछा होगा कि अरे, वह चवन्‍नी किधर गयी। हम किसी की औकात को भी पहले चवन्‍नी में आंक लेते थे। जब कोई ऐेरागैरा लड़का भले घर की लड़की पर फिकरे कस देता, तो लड़की के घरवाले मारे गुस्‍से के कहते, ‘इतनी मजाल उस चवन्‍नी छाप लड़के की।’ कम हैसियतवाले हमारे लिए चवन्‍नी छाप हो जाते।

बहरहाल, चाहे सारे त्‍योहार इधर से उधर हो जाएं, बड़ा दिन यानी क्रिसमस डे 25 दिसंबर की अपनी जगह से नहीं हिलता। अभी हमारे पास आमदनी अठन्‍नी खर्चा रुपया वाला मुहावरा है, उसी से काम चलाइए। जिस दिन चवन्‍नी पर कोई मुहावरा बनेगा, वह भी जरूर आपसे बताएंगे, मेरा वादा है। और हां, मेरी शादी की 25वीं सालगिरह में आना ना भूलिएगा। वहीं मिलते हैं, तब तक के लिए बाय-बाय।