Friday 02 June 2023 04:17 PM IST : By Snehlata Mohan

गुरु दक्षिणा

guru-dakshina

मेरे पति की सेवानिवृत्ति अभी पिछले महीने ही हुई थी और मैं यानी सुधा उनके साथ भिलाई से सारा सामान समेट यहां इंदौर अपने ससुराल के पुश्तैनी मकान में रहने चली आयी थी। पहले भी त्योहार मनाने या छुट्टियां बिताने हम अकसर यहां आते रहते थे। सासू मां के गुजर जाने के बाद हमने बाबू जी को अकेला नहीं छोड़ा था और अपने साथ भिलाई ले गए थे। अपने पुराने मकान में वापस आ कर बाबू जी अत्यंत प्रसन्न थे।

शाम के समय मैं बाबू जी को ले कर अकसर समीपवाले पार्क में सैर करने चली आती थी, कभी-कभी अकेली भी। उस दिन भी अकेली ही पार्क चली आयी और थोड़ी सैर करने के बाद एक बेंच पर बैठ कर वातावरण का जायजा लेने लगी।

हवा के हलके झोंकों से पेड़ों के सरसराते पत्तों का हिलना, खेलते खिलखिलाते बच्चों का शोरगुल, युवाओं की मस्त टोलियां और बुजुर्गों का धीमे-धीमे टहलना... यह सब मन को बहुत भला लग रहा था। तभी एक प्यारा सा गोलमटोल 3-4 साल का बच्चा दौड़ता हुआ मेरे पास आया। वह गिरने ही वाला था कि मैंने उसे संभाल लिया।

‘‘माफ कीजिएगा ये बड़ा शरारती है, कब से मुझे अपने पीछे दौड़ा रहा है।’’ मीठी सी आवाज सुन कर मैं पलटी, तो सामने एक जानी-पहचानी सी सूरत देख कर असमंजस में पड़ गयी। याद करने की कोशिश कर ही रही थी कि ‘‘अरे मैम, आप यहां, वॉट अ लवली सरप्राइज !’’ कहती हुई वह युवती मेरे पैरों में झुक गयी। मैंने सकपका कर उसे बीच में ही रोक लिया, ‘‘जीती रहो,’’ अनायास मुंह से निकल पड़ा।

‘‘मैम, शायद आपने मुझे पहचाना नहीं... मैं पुनिता आपकी स्टूडेंट !’’ अब तक मेरी स्मृति भी जाग्रत हो चुकी थी। 7-8 वर्ष पहले की बड़ी-बड़ी आंखोंवाली दुबली-पतली, दो चोटियोंवाली लड़की याद हो आयी, जो स्कूल में मैम-मैम करती मेरे आगे-पीछे डोला करती थी। ना जाने मैं उसे क्यों इतनी पसंद थी? मुझे भी उसके साथ एक अजीब सा लगाव हो गया था... शायद बेटी की चाह में।

‘‘अरे पुनिता तुम यहां ! कितनी बदल गयी हो,’’ आश्चर्य मिश्रित खुशी से मैंने उसे गले से लगा लिया। मैंने उसे गौर से देखा, अब वह भरे-भरे शरीरवाली मोहक युवती थी, वही कर्णचुंबी आंखें और सुतवां नाक ! उसके मुख मंडल पर सुखी जीवन और मातृत्व की आभा चमक रही थी। ‘‘बड़ा प्यारा बेटा है तुम्हारा और नटखट भी।’’ बच्चा अभी तक टुकुर-टुकुर मुझे निहार रहा था, परंतु मेरे द्वारा गाल सहलाने पर शरमा कर मां की ओट में छुप गया।

‘‘शांति, जरा बंटी को झूले पर ले जाओ,’’ पुनिता ने इशारे से एक युवती को बुलाया, जो शायद बच्चे की आया या मेड होगी।

हम दोनों बेंच पर बैठ गयीं। मैंने गंभीरता से पुनिता का मुंह देख कर पूछा, ‘‘खुश तो हो ना अपनी गृहस्थी में?’’ उसने आवेश में आ कर मेरे हाथ पकड़ लिए, ‘‘मैम, आपके उचित मार्गदर्शन के कारण ही मैं एक खुशहाल जिंदगी व्यतीत कर रही हूं... वरना उस समय डर कर यदि कोई गलत कदम उठा लेती, तो मेरे माता-पिता समाज में मुंह दिखाने योग्य नहीं रहते और मेरा भी ना जाने क्या परिणाम होता,’’ उसकी आंखें सजल हो उठीं।

‘‘अरे बेटा, जो बीत गयी सो बात गयी, उसे एक बुरा सपना समझ कर भूल जाओ... अच्छा ये बताओ तुम्हारे पति वही हैं, जिनसे तुमने मुझे मिलवाया था या फिर कोई और?’’ मेरी प्रश्नवाचक दृष्टि पुनिता के मुख पर जा टिकी।

‘‘हां जी मैडम, सचिन ही मेरे पति हैं, और वे भी आपकी तहेदिल से इज्जत करते हैं, उन्हें भी तो सही राह दिखाने में आपका ही योगदान है, वरना मेरी शादी तो टूटने ही वाली थी,’’ भावुकता में आ कर पुनिता फिर से मेरे पैरों में झुकने लगी।

‘‘आप अचानक कहां चली गयी थीं मैम? शादी की डेट फिक्स होते ही हम आपके घर आए थे, लेकिन ताला देख कर लौट गए। स्कूल से पता चला कि आपकी सासू मां का देहांत हो गया है। सचिन ने आपसे मिलने के 15 दिन बाद ही शादी की डेट निकलवायी और कार्ड भी नहीं छपवाने दिए। मोबाइल पर ही कार्ड बना कर सबको सूचित किया, और डेस्टिनेशन वेडिंग के बहाने विवाह स्थल भी बदल दिया... आप तो समझ ही गयी होंगी कि सचिन ने ये सब क्यों किया? मैम, सचिन के लिए मेरे दिल में इज्जत और बढ़ गयी थी। मेरा मोबाइल सिम भी बदल गया था। सचिन ने गलती से नए सिम में आपका फोन नंबर भी डिलीट कर दिया, इसलिए मैं आपको सूचित नहीं कर पायी।’’

‘‘कोई बात नहीं बेटा ! अच्छी बात तो यही हुई ना कि तुम्हें एक समझदार और परवाह करनेवाला जीवनसाथी मिला, जिसने तुम्हारी और तुम्हारे परिवार की इज्जत पर कोई दाग नहीं लगने दिया। मैं महीनेभर बाद ही लौट पायी थी और आते ही स्कूल से इस्तीफा दे दिया था। इसी बीच आनंद जी का ट्रांसफर भिलाई हो गया और हम आननफानन वहां शिफ्ट हो गए। कई बार तुम्हें फोन लगाया था, लेकिन नहीं लगा।’’

बातों-बातों में शाम अंधेरे में डूबने लगी। हम फिर मिलने का वायदा कर अपने घर की ओर चल पड़ीं, लेकिन एक-दूसरे के फोन नंबर सेव करने के बाद। घर पहुंचते ही मैं काम में जुट गयी, परंतु पुनिता ही दिलोदिमाग में छायी रही। बाबू जी को खाना खिला कर मैं पलंग पर जा लेटी। अतीत की स्मृतियों का सागर आंखों में हिलोरे लेने लगा।
यह उन दिनों की बात है जब आनंद भोपाल बैंक में कार्यरत थे। मैं भी एक ख्यातिप्राप्त विद्यालय में हिंदी की व्याख्याता थी। पुनिता ने 12वीं पास करके कॉलेज में प्रवेश ले लिया था, लेकिन मुझसे उसका संबंध बना रहा। एक दिन मैं थकी-मांदी सी विद्यालय से आ कर पलंग पर लेट गयी। खेल प्रतियोगिताओं में ड्यूटी लगी होने के कारण स्कूल में कुछ अधिक ही भागदौड़ हो गयी थी। बच्चे हॉस्टल में पढ़ रहे थे और आनंद ऑफिस गए हुए थे इसलिए बगैर खाना खाए सोने का मूड बना ही रही थी कि डोरबेल घनघना उठी। दरवाजा खोला तो सामने बदहवास सी पुनिता को देख कर मेरा सारा गुस्सा गायब हो गया। उसके चुलबुले चेहरे पर उदासी छायी हुई थी। मैंने प्यार से उसे सोफे पर बैठाया और पानी लाने अंदर चली गयी। चेहरे से पसीना पोंछते हुए पुनिता एक सांस में पूरा गिलास खाली कर गयी। मैं उसका मानसिक अवलोकन कर रही थी... बिखरे बाल, लाल सूजी आंखें बता रही थीं कि काफी रो चुकी है। अचानक वह मुझसे लिपट कर फूट-फूट कर रोने लगी। मैं समझ गयी थी कि उसकी जिंदगी में कुछ ऐसा घटित हो गया है, जिसे मेरे साथ बांटने को वह अकुला रही है। मैं प्यार से उसकी पीठ सहला कर उसके आवेग के शांत होने की प्रतीक्षा करती रही। धीरे-धीरे जब क्रंदन सिसकियों में बदल गया और शरीर का कंपन बंद हो गया, तो प्यार से उसका मुख उठा कर मैंने पूछा, ‘‘अब बताओ क्या बात है? क्यों यह फूल सा चेहरा मुरझा गया है? इतनी कमजोर तो तुम कभी ना थीं !’’

‘‘ मैम, आप मुझे गलत तो नहीं समझेंगी ना? अगर आपने मुझ पर विश्वास नहीं किया, तो मैं सच में मर जाऊंगी।’’

‘‘बेटा, जब तक मुझे बात बताओगी नहीं, कैसे पता चलेगा कि तुम सही हो या गलत?’’ मैंने उसे एक मीठी झिड़की दी। कुशन गोद में रख कर पुनिता ने एक पल मुझे निहारा फिर दृढ़ निश्चय करके गरदन झटकी और अपनी आपबीती सुनाने लगी।

पुनिता बीए के अंतिम वर्ष में थी। उन दिनों उसकी क्लास में एक नए लड़के धीरज ने प्रवेश लिया। ना जाने उसमें क्या कशिश थी कि वह उसकी ओर आकर्षित होती चली गयी। वह कोरा आकर्षण था या प्रेम, वह इससे अनजान थी... उनकी मित्रता धीरे-धीरे प्रगाढ़ होती चली गयी और एक दिन धीरज ने प्रेम निवेदन कर ही दिया। बस फिर क्या था, साथ जीने-मरने की कसमों से ले कर प्रेम पत्रों का भी आदान-प्रदान होने लगा। पुनिता ने मर्यादा में रह कर धीरज से एक निश्चित दूरी बनाए रखी... फिर उसने गौर किया कि धीरज यदाकदा उसके समीप आने और छूने के बहाने ढूंढ़ने लगा था। दिन-प्रतिदिन उसका साहस बढ़ने लगा। यहां तक कि पत्रों में भी उसकी भाषा मर्यादा लांघने लगी थी, जिसे पढ़ कर वह असहज हो जाती थी। उसने महसूस किया कि धीरज अब अन्य छात्राओं में भी रुचि लेने लगा है। जब पुनिता ने नाराजगी दिखायी, तो वह कुटिलता से हंस कर बोला, ‘‘जब तुम मेरा ध्यान नहीं रखोगी, तो अपनी इच्छापूर्ति कहीं और से तो करनी ही पड़ेगी।’’

पुनिता को अब यह अहसास हो गया था कि धीरज एक शरीफ लड़का नहीं है और भंवरे की तरह नए-नए फूलों का रसपान करना उसका स्वभाव है। उसने मन मसोस कर धीरज से दूरी बढ़ानी प्रारंभ कर दी।

धीरज पक्का खिलाड़ी था। अपने शिकार को पंजों से निकलता देख अपना आखिरी दांव फेंका, ‘‘पुनिता, तुम सीधे-सीधे मेरी बात मन जाओ, आजकल यह आम बात है। हम प्यार करते हैं, तो फिर आपस में ये कैसा परदा?’’

‘‘धीरज, यह प्यार नहीं वासना है... मैं तुम्हारी ही अमानत हूं और विवाह बंधन में बंधने के बाद संपूर्ण रूप से तुम्हारी बन जाऊंगी।’’

धीरज यह सुन कर ठठा कर हंस पड़ा, ‘‘विवाह और वो भी तुम्हारे जैसी बहन जी टाइप लड़की से? भूल जाअो इस सपने को।’’

‘‘मैम, मैं फफक कर रो पड़ी। उसे प्यार का वास्ता दिया, कसमें याद दिलायीं, लेकिन वह टस से मस नहीं हुआ। मेरा दिल बुरी तरह से टूट चुका था लेकिन प्यार के लिए अपनी इज्जत खोना मुझे मंजूर नहीं था। अपना दिल मजबूत करके मैंने अपना सारा ध्यान पढ़ाई में लगा दिया... आप तो जानती ही हैं कि मैं एक साधारण छात्रा थी इसलिए बीए पास करना ही मेरा उद्देश्य था। मम्मी-पापा ने भी मेरे लिए रिश्ते ढूंढ़ने शुरू कर दिए थे। एक लड़का उन्हें पसंद भी आ गया था...।’’

पुनिता ने रुक कर थोड़ी सांस ली, एक गिलास पानी पिया और तौलती निगाहों से मुझे परखा कि मेरी प्रतिक्रिया क्या है? मैंने इशारे से उसे आगे बोलने को प्रोत्साहित किया। मेरी आंखों में प्रेम, विश्वास और सहानुभूति की झलक पर कर वह कुछ आश्वस्त हुई और अपनी आपबीती का सूत्र पकड़ लिया।

‘‘मेरे रिश्ते की बात पता नहीं कैसे धीरज को मालूम हो गयी। कल उसने मुझे धमकी दी है कि यदि मैंने उस लड़के को हां कर दी, तो वह मेरे खत उसे दिखा देगा... मैं क्या करूं मैम? इसी रविवार को वह लड़का सचिन सपरिवार मुझे देखने आ रहा है। यदि धीरज ने अपनी धमकी पूरी कर दी, तो मेरी कितनी बदनामी होगी और समाज में मेरे परिवार की क्या इज्जत रह जाएगी,’’ पुन : उसकी आंखों की कोर से अविरल अश्रुधारा बहने लगी, ‘‘मैम, मेरे पास आत्महत्या के अलावा कोई विकल्प नहीं है।’’

‘‘पगली कहीं की... खबरदार ऐसा कुछ करने का सोचा भी तो,’’ मैंने भावावेश में उसे अंक में भर लिया, मेरी आंखें भी छलछला उठीं। घबरायी हिरणी सी वह कांपती हुई मुझसे लिपट गयी। कुछ क्षण पश्चात उसे अपने से अलग करते हुए मैंने उससे कहा, ‘‘कल तुम धीरज को विद्यालय के पासवाले पार्क में दोपहर 3 बजे बुलाओ... और हां, अपने पत्र साथ लाने के लिए कहना।’’

‘‘वह बदमाश मेरे पत्र क्यों लाएगा, मैम?’’

‘‘घबराओ नहीं, उससे कहना कि तुम उसके साथ फिर से संबंध रखना चाहती हो, लेकिन पत्र वापस मिलने के बाद ही। मैं स्कूल से सीधी पार्क में ही आ जाऊंगी... लेकिन तुम वहां सवा तीन बजे के बाद ही पहुंचना, तब तक मैं उसे बातों में व्यस्त रखूंगी।’’

लंबी सांस भर कर पुनिता बोली, ‘‘जैसा आप ठीक समझें, मैम !’’ पहली बार उसके सूखे होंठों पर मुस्कराहट की हलकी रेखा खिंची और आंखों में चमक लौट आयी। मैंने उसे खिला-पिला कर, समझा-बुझा कर विदा किया और अगले दिन के कार्य को अंजाम देने की योजना बनाने लगी।
अगले दिन विद्यालय से फारिग हो कर मैं पौने तीन बजे के आसपास पार्क पहुंच गयी। पुनिता ने धीरज की फोटो मेरे मोबाइल पर भेज दी थी। तीन बजने में 2-3 मिनट बाकी थे कि धीरज तेज गति से आता दिखायी दिया। वास्तव में लड़का सुदर्शन व्यक्तित्व का स्वामी था। सरसरी निगाह से मुझे देख वह बेंच पर बैठ रुमाल से पसीना पोंछने लगा। मुझे अपनी ओर घूरता देख वह थोड़ा झेंप गया, लेकिन उसके भावों से साफ पता चल रहा था कि मेरी उपस्थिति उसे कतई पसंद नहीं आयी।

समय नष्ट किए बिना मैं उसकी ओर बढ़ गयी, ‘‘क्यों बेटा, किसी की प्रतीक्षा कर रहे हो?’’

इस अप्रत्याशित प्रश्न से वह सकपका गया, ‘‘जी आंटी।’’

‘‘चलो अच्छा हुआ, मैं भी अकेली बोर हो रही थी... जब तक हम दोनों के परिचित नहीं आ जाते, हम आपस में ही समय काट लेते हैं।’’ धीरज मेरे इस जबर्दस्ती गले पड़ने से असहज हो उठा, पर कुछ कह नहीं पाया। कुछ इधर-उधर के, पढ़ाई संबंधी बात करने के बाद मैं सीधे मुद्दे पर आ गयी। ‘‘पुनिता की प्रतीक्षा कर रहे हो ना?’’ मेरा प्रश्न ना था मानो तोप का गोला उसके सिर पर आ गिरा हो। घबरा कर वह बेंच से उठ बैठा। विस्फारित नेत्रों और पीले पड़े चेहरे से मुझे देखते वह हकलाते हुए बोला, ‘‘मैं... मैं... आंटी, आप कौन हैं?’’

‘‘अरे घबराओ नहीं,’’ हाथ पकड़ कर मैंने उसे जबरन बेंच पर बैठा लिया, ‘‘मुझे तुम्हारे विषय में सब कुछ पता है, तुम बड़े समझदार लग रहे हो फिर पुनिता के साथ विश्वासघात और इतना बड़ा छल कैसे कर सकते हो? उसने तुम पर विश्वास कर तुमसे प्रेम किया और तुम उसके भोलेपन का नाजायज फायदा उठाना चाहते हो? धमकियों के बल पर अगर तुमने उसे हासिल कर भी लिया, तो क्या उससे पहले जैसा प्रेम और सम्मान पा सकोगे?’’

अब तक धीरज अपनी घबराहट पर काबू पा चुका था, ‘‘आप होती कौन हैं मुझे प्रवचन सुनानेवाली? अब तो पुनिता की खैर नहीं, आपसे बातें शेअर करके उसने अपने पैर पर खुद कुल्हाड़ी मार ली है, देखना अब मैं उसके साथ क्या करता हूं !’’

मैं कस कर उसकी कलाई पकड़ कर बोली, ‘‘मैं कौन हूं इसे जानने की तुम्हें कोई आवश्यकता नहीं, परंतु इतना जान लो कि इस एरिया के एसपी मेरे भाई हैं... अगर ज्यादा चालाकी दिखायी, तो तुम्हारा क्या हश्र होगा, इसका अंदाजा तो लगा सकते हो ना?’’ मेरा तीर निशाने पर जा लगा। उसका चेहरा बर्फ के समान सफेद पड़ गया।

तभी पुनिता भी वहां आ पहुंची। वातावरण का तनाव महसूस कर, डर कर मेरे पीछे दुबक गयी। धीरज उसे घूर रहा था। बाजी उलटी पड़ते देख उसका चेहरा अपमान और कुंठा से काला पड़ गया था।

‘‘पुनिता, डरने की आवश्यकता नहीं है, मैंने धीरज को अच्छी तरह से समझा दिया है कि उसकी किसी भी गलत हरकत का अंजाम कितना भयानक हो सकता है..... उसे कॉलेज से रेस्टिकेट किया जा सकता है...। और हां, अगर पुनिता को ब्लैकमेल करने की कोशिश की, तो हवालात की हवा भी खा सकते हो ! मेरे भाई ने तुम्हारी छानबीन शुरू कर दी है। अभी भी सुधर जाओगे, तो यह बात यहीं खत्म हो सकती है। फैसला तुम्हारा है।’’

धीरज के पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गयी थी। उसके चेहरे का रंग उड़ गया था। मैंने देखा मेरे प्रति प्रशंसा और आदर के भाव पुनिता के नेत्रों में मुखर हो उठे थे। तभी दीघ्र श्वास भर कर धीरज ने कहा, ‘‘आंटी, मुझे क्षमा कर दीजिए, मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया है।’’
‘‘क्षमा मुझसे नहीं पुनिता से मांगो, जिसका भरोसा तुमने तोड़ा है.... और हां, पुनिता के पत्र लाए हो या नहीं?’’ कांपते हाथों से धीरज ने पैंट की जेब से पत्रों का पुलिंदा निकाला। नीले लिफाफों से निकल कर भीनी-भीनी सुगंध वातावरण में फैल गयी। अनायास मेरी नजरें पुनिता की नजरों से मिलीं, तो वह झेंप कर नीचे ताकने लगी। वाह रे प्रेम ! पता नहीं ये प्रेम की पातियां लिखने में पुनिता ने ना जाने कितनी रातें बर्बाद की होंगी, कितने रोमांटिक उपन्यास खंगाले होंगे !

‘‘पुनिता, मैं बहुत शर्मिंदा हूं और अपनी गलत सोच के लिए माफी चाहता हूं... ये लो अपनी अमानत।’’ धीरज ने पत्रों का बंडल पुनिता को पकड़ा दिया।

‘‘पुनिता जरा ठीक से देख लो, कोई पत्र कम तो नहीं है?’’ मेरे कहने पर उसने कंपकंपाते हाथों से गिनती की और स्वीकृति में सिर हिला दिया। फिर भी धीरज की नीयत पर मुझे शक था, पूछा, ‘‘पत्रों की फोटो कॉपी तो तुमने अवश्य रखी होगी, जरा अपना मोबाइल तो दिखाओ।’’

‘‘लेकिन क्यों आंटी? मैंने पत्र लौटा तो दिए !’’

‘‘तुम्हारे जैसे नीच लोगों की आत्मा नहीं होती। फोन देते हो या नहीं?’’ सख्ती से कहते हुए मैंने उसकी शर्ट की जेब से फोन खींच लिया। ‘‘इसे अनलॉक करो और अभी सारे पत्रों की कॉपी और पुनिता से हुई चैट को डिलीट करो, वरना तुम्हारा नंबर ट्रेस करके भैया सब कुछ निकलवा लेंगे। यदि घर पर भी फोटो कॉपी रखी हैं, तो कल कॉलेज में पुनिता को लौटा देना। अब तुम एक-दूसरे के लिए अजनबी हो। अगर आगे भी कुछ गलत करने की कोशिश की, तो तुमसे पुलिस स्टेशन में ही मुलाकात होगी।’’ मेरी रोबदार बातें धीरज को हर पल कमजोर बनाती जा रही थीं, उसकी सारी तेजतर्रारी हवा हो चुकी थी। आवाज में नरमी लाते हुए मैं बोली, ‘‘रात को शांति से विचार करना कि ऐसा व्यवहार कोई तुम्हारी बहन के साथ करे, तो तुम्हारी क्या प्रतिक्रिया होगी? लड़की की इज्जत कांच के समान होती है, अगर दरार पड़ गयी तो कभी नहीं भरती। स्त्रियों का रेस्पेक्ट करना सीखो और ये हरकतें छोड़ अपने कैरिअर और भविष्य पर ध्यान दो। अरे हां, तुम जानना चाहते थे ना कि मैं कौन हूं? मैं इसकी होनेवाली सास हूं और मेरा बेटा भी तुम्हारे बारे में जानता है।’’ यह दूसरा बम था, जो धीरज के सिर पर मैंने फोड़ा। विस्फारित आंखों से वह कभी मुझे देखता, तो कभी पुनिता को।

‘‘पुनिता इतनी प्यारी, शरीफ और और सच्चे दिल की लड़की है कि इसने फोन करके हमें सब कुछ बता दिया। हम पुराने खयालातवाले लोग नहीं हैं। शादी के बाद सारी जिंदगी डर अौर ग्लानि के बोझ तले बिताने की जगह इसने हमें सचाई से अवगत कराना उचित समझा। अपने कुत्सित विचारों के चलते तुमने एक हीरे को खो दिया है, जो अब हमारे घर को रोशन करेगा।’’ धीरज अविश्वासभरी दृष्टि से अभी भी मुझे एकटक देख रहा था। मेरी बात खत्म होने के बाद वह सिर झुकाए वहां से चला गया।

‘‘मैम, यू आर ग्रेट,’’ पुनिता खुशी से चीखती हुई मुझसे लिपट गयी, ‘‘आपने तो सारी बाजी ही पलट दी। मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा कि आप मेरी वो प्यारी सी सीधी-सादी मैडम हैं...’’ दिल का बोझ हल्का हो जाने का सुकून उसके चेहरे पर एक नयी आभा बिखेर गया था।

मैंने उसके होंठों पर उंगली रख उसे चुप करा दिया, ‘‘बैठो पुनिता, इतना भी खुश होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि पूरी सफलता नहीं मिली अभी। पहली बात, हमें अभी पता नहीं धीरज का अगला कदम क्या होगा? हो सकता है वह यह पता लगाए कि एसपी मेरे भाई हैं कि नहीं, और मैं तुम्हारी सास हूं कि नहीं? अभी उसकी स्थिति चोट खाए सांप जैसी है, तो वह बदला लेने की योजना भी बना सकता है। एसपी मेरे पति के दोस्त हैं और भरोसेमंद हैं। तुम निडर हो कर कल धीरज से पत्रों की फोटो कॉपी मांगना और उसके व्यवहार से नोट करना कि उसमें कुटिलता झलक रही है या सहमापन। दूसरी बात, तुम्हें अपने प्रेम संबंध की जानकारी सचिन को देनी होगी। यदि उसे यह बात धीरज या कहीं और से पता चली, तो तुम्हारा रिश्ता खटाई में पड़ सकता है।’’

पुनिता गौर से मेरी बात सुन रही थी, उसके मुख मंडल पर निराशा के बादल फिर घिर आए, ‘‘नहीं मैम, इतना साहस नहीं है मुझमें ! सचिन क्या सोचेंगे मेरे बारे में? यदि उनके परिवार ने यह जान कर मेरे पेरेंट्स को अपमानित किया तो?’’ फिर से मोटे-मोटे आंसू उसके गालों पर ढुलक गए।

‘‘देखो पुनिता, तुम क्या चाहती हो, एक डरी-सहमी, ग्लानि बोध से दबी जिंदगी या फिर सत्य के बल पर जीते हुए विश्वास का सुनहरा भविष्य? ज्यादा से ज्यादा यही होगा ना कि सचिन विवाह से मना कर देगा ! तुम्हें यह संतोष तो रहेगा कि तुमने उसे धोखे में नहीं रखा,’’ फिर मैंने शरारत से मुस्कराते हुए चुटकी ली, ‘‘तुम्हारी झूठी सास तो मैं बन ही गयी हूं, सचिन ने मना कर दिया, तो सच्ची-मुच्ची की सास भी बन जाऊंगी।’’

पुनिता ने मेरा हाथ कस कर पकड़ लिया, ‘‘मैम, आपकी उपस्थिति में ही मैं सचिन से मिलूंगी, आप मेरा संबल हैं।’’

‘‘ठीक है। सचिन से बात करो और उसे मेरे घर पर ही बुला लो,’’ यह सुन कर उसका मुरझाया चेहरा एक नयी शक्ति से चमक उठा।

घर पहुंचते ही मैं बेसब्री से आनंद का इंतजार करने लगी। जब आनंद हाथ-मुंह धो कर, चाय का प्याला हाथ में ले कर बैठ गए, तो मैंने विस्तारपूर्वक आज की घटना उन्हें सुना दी। वे धैर्यपूर्वक मेरी बात सुन कर हंसे और बोले, ‘‘यार, तुम्हारा ये टैलेंट तो आज पता चला, इतनी कुशलता से तुमने तो सारी समस्या चुटकी में हल कर दी।’’

‘‘लेकिन श्रीमान जी, समस्या अभी पूरी तरह से सुलझी नहीं है, अभी अपने दोस्त विनोद से मिलो और उसे ये बता कर, समय पर मदद के लिए तैयार रहने को भी कह देना।’’

अगले दिन पुनिता ने चहकते हुए धीरज से फोटो कॉपियां वापस मिलने की सूचना दी। आनंद ने भी ऑफिस से फोन करके बता दिया कि विनोद ने एक कांस्टेबल को भेज धीरज को डरा-धमका दिया था।

जल्द ही पुनिता ने सचिन से शुक्रवार लंच पर मेरे घर मिलने का प्रोग्राम तय कर लिया। मैंने उस दिन स्कूल से अवकाश ले लिया। नियत समय पर सचिन मेरे घर पहुंच गया था। पुनिता पहले से ही मौजूद थी। सचिन लंबे कद और मजबूत काठीवाला 23-24 वर्ष का आकर्षक युवक था। चौड़ा माथा और गंभीर आंखें उसके व्यक्तित्व को और प्रभावशाली बना रहे थे। मैं और पुनिता उसकी आवभगत में लग गए। बातचीत के दौरान पता चला कि सचिन ग्वालियर में एक मल्टीनेशनल कंपनी में कार्यरत है। दोनों के पिता हाई स्कूल तक साथ पढ़े थे और अच्छे दोस्त भी थे।

थोड़ी देर बाद बातचीत का सूत्र हाथ में लेते हुए मैंने सचिन से पूछा, ‘‘तुम अवश्य सोच रहे होगे कि पुनिता ने तुम्हें मिलने के लिए अकेले और वह भी मेरे घर पर क्यों बुलाया है, जबकि रविवार को तो तुम वैसे ही सपरिवार इसके घर आनेवाले थे?’’

कुछ संकोच के बाद सचिन ने कहा, ‘‘जी आंटी! मुझे भी आश्चर्य हुआ था कि कैसे एक लड़की इस तरह से मिलने की पहल कर सकती है? मुझे कुछ अजीब सा तो लग ही रहा था, साथ ही कारण जानने की उत्सुकता भी बढ़ गयी !’’ सचिन के चेहरे पर उत्सुकता और बेचैनी के भाव साफ नजर आ रहे थे। देर ना करते हुए मैंने सारी बातें आरंभ से अंत तक उसके समक्ष रख दीं।

‘‘ आंटी जी, मुझे समझ नहीं आ रहा मैं क्या कहूं? मेरी बुद्धि अचानक यह सब जान कर हतप्रभ सी हो गयी है,’’ सचिन के गंभीर चेहरे पर अवसाद की छाया फैल गयी थी।

‘‘बेटा, अप्रत्याशित सा कुछ घट जाता है, तो सभी की प्रतिक्रिया ऐसी ही होती है। जो घटित हो चुका है, उसे बदला नहीं जा सकता। तुम सोच-विचार करके अपना निर्णय हमें सुना सकते हो, चाहो तो अपने माता-पिता की राय भी ले सकते हो। तुम पर कोई दबाव नहीं है... जो भी निर्णय लोगे हमें मान्य होगा। वैसे तुम्हें पुनिता का आभारी होना चाहिए, जिसने तुम्हें अंधेरे में नहीं रखा। वह चाहती तो धोखे से विवाह कर सकती थी। आशा है कल दोपहर तक तुम अपना निर्णय पुनिता को बता दोगे। बस इंकार का कारण कुछ ऐसा बताना, जिससे पुनिता के चरित्र और उसके परिवार की गरिमा पर कोई आंच ना आए।’’

असमंजस की स्थिति में एक गहरी गंभीर दृष्टि पुनिता पर डाल कर सचिन विदा हुआ। पुनिता को सांत्वना देते हुए उसे भी विदा कर मैं आनंद के ऑफिस से लौटने की बाट जोहने लगी।

शाम को चाय दे कर मैं आनंद को आज हुई मीटिंग के बारे में बता रही थी कि बाबू जी ने फोन पर बताया कि मां को दिल का दौरा पड़ा है। हम जब तक पहुंचे, मां चल बसीं। रीतिरिवाज वगैरह निपटाने के बाद हम बाबू जी को अपने साथ भोपाल ले आए। इस दौरान आनंद का प्रमोशन हो गया और हम भिलाई आ गए। अपनी एक सह अध्यापिका से पता चल गया था कि पुनिता की शादी हो गयी, लेकिन किससे यह ज्ञात नहीं हो सका। इसी तरह 4-5 वर्ष बीत गए।

अचानक डोरबेल की आवाज ने मुझे स्मृतियों के तानों-बानों से निकाल कर वास्तविकता के धरातल पर ला पटका। चौंक कर घड़ी देखी, तो रात के 9 बज चुके थे। आनंद लौट आए थे। खाना खाते हुए मैंने पुनिता से पुनर्मिलन की घटना सुना डाली।

तभी मोबाइल पर पुनिता का नंबर चमक उठा, ‘‘अरे पुनिता, बड़ी लंबी उम्र है तुम्हारी ! अभी आनंद से तुम्हारा ही जिक्र कर रही थी। ‘‘

‘‘मैम, लीजिए सचिन से बात कीजिए।’’

‘‘आंटी जी सादर प्रणाम ! माफ कीजिए इतनी रात को डिस्टर्ब कर रहा हूं... ऑफिस से थोड़ी देर पहले ही लौटा हूं और पुनिता के आपसे मिलने की बात सुनते ही मुझसे रहा नहीं गया।’’

‘‘कोई बात नहीं बेटा, बहुत अच्छा लगा तुम्हारी आवाज सुन कर !’’

‘‘आंटी जी, आपके मार्गदर्शन के कारण ही हम खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे हैं। पुनिता के रूप में जो अमूल्य हीरा मुझे मिला है, उसके लिए मैं आपका कृतज्ञ हूं... हम इस योग्य तो नहीं हैं कि आपका कर्ज उतार सकें... पर हम आपसे मिल कर गुरु दक्षिणा के रूप में आपको कुछ भेंट देना चाहते हैं...।’’

‘‘अरे सचिन ! ईश्वर की कृपा सदैव तुम दोनों पर बनी रहे ! जब पुनिता ने बताया कि तुम सपरिवार रविवार को रिश्ता पक्का करने पहुंच गए थे, तो मेरी प्रसन्नता का ठिकाना ही नहीं रहा ! रही बात गुरु दक्षिणा की तो वह तुम दोनों मुझे पहले ही दे चुके होÑएक प्यारे, भोले-भाले बेटे के रूप में। मेरा मान रख पुनिता को एक सम्मानित सुखी जीवन और मातृत्व की सौगात दी, इससे बढ़ कर ‘गुरु दक्षिणा’ और क्या हो सकती है?’’ मेरी आंखें प्रसन्नता की अनुभूति से भीग उठीं और मैंने समीप खड़े आनंद के कंधे पर अपना सिर टिका दिया।