
लेटेस्ट खबर यह है कि गूगल भी अब चुगलखोर हो गया है, एक पूछो, दस बताता है। अब लोग सीधे मुंह कुछ ना कह कर स्क्रीन शॉट भेज देते हैं, लो हो गयी डिजिटल चुगली। चाणक्य नीति कहती है कि पक्षियों में कौआ, ऋषि-मुनियों में क्रोध करनेवाला और मनुष्य में चुगली करनेवाला चांडाल या दुष्ट होता है। किसी ने जब ये कहा कि चुगली औरतों का 17वां शृंगार होता है, जिसके बिना वह खुद को अधूरा महसूस करती है, तो जनाब आप भी तो औरतों की चुगली ही कर रहे हैं। पुरुष भी चुगली किए या सुने बगैर कहां रह पाते हैं !
चुगली करना, निंदा करना या दूसरों की बातें किसी तीसरे को सुना कर रस लेना तकरीबन एक जैसा ही काम है, जिसके लिए वाकपटु होना जरूरी है। लोगों को अपनी बातों में उलझा कर, बरगला कर अपना उल्लू सीधा करनेवाले भी चुगली में माहिर होते हैं। चुगली को हवा देनेवालों में कान के कच्चे लोगों का बड़ा हाथ होता है। अकसर चुगली करनेवाले कहते हुए मिल जाएंगे कि तुम्हें बता रहा हूं, किसी और से मत कहना। यही कहते-कहते वह पूरे मुहल्ले में इस बात को फैला देता है।
चुगली के कई स्तर और प्रकार होते हैं, जैसे मुहल्ले में चुगली, घर-परिवार में चुगली, ऑफिस में चुगली, दोस्तों के बीच चुगली वगैरह-वगैरह। मेरी एक पड़ोसिन आंटी ने अपने बेटे की शादी की। कुछ दिनों के बाद दहेज में आयी वॉशिंग मशीन खराब हो गयी। किसी ने पूछा, तो कहने लगीं, ‘‘क्या बताऊं, जैसी बहू, वैसी वॉशिंग मशीन।’’ अब खुदा ना खास्ता बहू ने उनका यह वक्तव्य सुन लिया होगा, तो उसकी क्या प्रतिक्रिया रही होगी, यह जानने की उत्सुकता मुझमें काफी दिनों तक बनी रही, पर किसी चुगलखोर से पता नहीं चल पाया।
कुछ चुगलियां राष्ट्रीय स्तर की होती हैं, जिसका जिम्मा हमारे नेताओं, राजनीतिक दलों ने उठा रखा है। अब कुछ महीने पहले की ही बात है, आजादी के 75वें साल के शुभ अवसर पर हर घर तिरंगा का नारा दिया गया और लोगों ने खूब झंडे खरीद कर अपने-अपने घरों में फहराए। अब अगर कोई यह कह दे कि इन झंडों को बेच कर किसने कितना कमाया, क्यों अचानक इन झंडों को ले कर नियम-कानून बदल दिए गए, तो किसी पर तो उंगली उठेगी, देखिए हो गयी ना राष्ट्रीय चुगली !
कुछ प्रोफेशनल किस्म के चुगलखोर इस काम को बड़ी ईमानदारी से निभाते हैं, चाहे किसी से व्यक्तिगत बदला लेना हो, किसी की इमेज खराब करनी हो या अपना कोई काम निकलवाना हो। पिछले दिनों दफ्तर में एक सहकर्मी की कही किसी बात से बॉस नाराज हो गए। आननफानन में उन्होंने उन सहकर्मी को छोड़ कर सभी की मीटिंग बुला ली। सबसे उस सहकर्मी के बारे में पूछा कि उसने क्या वाकई वह बात कही थी, तो किसी ने मुंडी हिला कर, किसी ने नजरें झुका कर और किसी ने मिच-मिच की आवाज निकाल कर अपने-अपने वोट दे दिए। यह ऑफिशियल चुगली की मिसाल है। बॉस की हां में हां मिलानेवाले अब बॉस का चहेते हैं।
चुगली हमेशा नुकसान नहीं करती, फायदा भी पहुंचाती है। किसी की चुगली करके दिल को जो ठंडक पहुंचती है, वह क्या किसी कोल्ड ड्रिंक को पीने से मिलेगी ! विचलित मन को शांत करना हो, तो किसी की चुगली करके देखिए। उसके जीवन में मची हलचल आपके दिल को गजब का सुकून देगी। ज्यादातर चुगली कपड़ों, चाल-चलन आदि को ले कर होती है। कुछ भेदिये किस्म के लोग आपकी पर्सनल बातें जान कर उसे पब्लिक करने में आनंद का अनुभव करते हैं, तो कुछ खुद को सबसे पहला जानकार मानने की फिराक में चुगली करते हैं, बिलकुल खबरिया चैनलों के ब्रेकिंग न्यूज की तरह। लेकिन एक बात तो तय है कि आप चाहे चुगली करके थोड़ी देर का सुकून पा लें, लेकिन लंबे समय में यह आदत आपको नेगेटिव बातों का गढ़ बना देगी।
चुगली और निंदा में जरा सा फर्क है, निंदा किसी की भी कोई भी कर सकता है, क्योंकि निंदक प्रवृत्ति के व्यक्ति को सामनेवाले की हर बात में नुक्स नजर आता है। वे सामनेवाले की तकरीबन हर बात में मीनमेख निकालते हैं। निंदा जब हद से ज्यादा बढ़ जाती है, तो वह चुगली का रूप ले लेती है। हालांकि कभीकभार निंदक हमारा भला भी कर देते हैं, इसीलिए तो कबीर दास जी ने कहा है - निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय, बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय। कुछ लोग तो चुगली को चुगली नहीं, अवॉर्ड की तरह लेते हैं और कहते है - लोग याद रखते हैं, मुझे अपनी चुगलियों में, कैसे कह दूं, मुझमें कुछ खास नहीं। अगर आप चाहते हैं कि लोग आपके पीछे आपकी ही चर्चा करें, तो कुछ उल्टे-सीधे काम करके जाइए, उनकी चुगलियों में आप ही आप होंगे।