Friday 24 June 2022 11:57 AM IST : By Neeraj Kumar Mishra

प्रेम अपना अपना

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मन परेशान था, किसी काम मे भी नहीं लग रहा था, सड़कों पर सन्नाटा था, पूरे लखनऊ में लॉकडाउन लगा दिया गया था। सोचा थोड़ा टीवी ही देख लूं। कुछ समाचार वाले तो चुनाव और हिंदू-मुसलमान पर डिबेट दिखा रहे थे, वहीं कुछ चैनलों को सत्ताधारी पार्टी के नेताओं की शान में कसीदे गढ़ने से ही फुरसत नहीं थी।

झुंझला गया था मैं... मीडिया में कुछ ना मिला, तो सोचा कि सोशल मीडिया पर ही कुछ समय बिताता हूं। मोबाइल को छूने से पहले जेहन में खयाल आया कि कहीं मोबाइल की सतह पर कोरोना वायरस तो नहीं। अगले ही पल मुस्कराते हुए इस खयाल को झटक दिया। वैसे भी मैं पिछले 4 दिन से अपने फ्लैट में ही बंद था, बाहर गया ही नहीं इसलिए मैं अपने आपको पूरी तरह से सुरक्षित समझ सकता हूं।

मेरा डर वाजिब ही था, क्योंकि कोरोना की दूसरी लहर पहली बार की तुलना में ज्यादा डरावनी लग रही थी और जो लोग पिछली बार नहीं डरे थे, वे भी इस बार डर रहे थे और मैं भी इनमें शामिल था।

इन्हीं खयालों के साथ मैं फेसबुक पर नोटिफिकेशन चेक करने लगा था, लाइक्स और कमेंट का मुझे कभी कोई शौक नहीं था। हां, पर फेसबुक में जो करेंट अफेअर की बातें मिल जाती हैं, वे अच्छी और ज्ञानवर्धक होती हैं।

फेसबुक की यह एक पोस्ट मेरी नजर में इसलिए कौंध गयी थी, क्योंकि इसमें मेरे शहर के किसी डॉक्टर ने गुहार लगायी थी कि उनकी पत्नी आरती कोरोना से गंभीर रूप से संक्रमित है अौर उसे ऑक्सीजन सिलेंडर की जरूरत थी। उसमें यह भी कहा गया था कि सरकार के अटपटे फैसले और अस्पतालों में समुचित व्यवस्था ना होने के कारण वे घर पर ही अपनी पत्नी का इलाज कर रहे हैं। उन्हें अपनी बीमार पत्नी के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर की तत्काल जरूरत है।

मैंने अपनी रीढ़ की हड्डी में कुछ हरकत सी महसूस की और तन कर बैठ गया। काफी मार्मिक पोस्ट थी, जिसके अंत में लिखी बात मन को कचोट गयी... हमारी मदद कीजिए। हो सकता है बाद में मेरी पत्नी को ऑक्सीजन की जरूरत ही ना पड़े। यदि कोई व्यक्ति मदद करना चाहे, तो इस पते पर ऑक्सीजन सिलेंडर भिजवा सकता है... आगे पीड़ित महिला और उनके पति का पता लिखा था।

एड्रेस पर मैंने नजर डाली, तो मेरे शरीर में बिजली दौड़ गयी और मेरी आंखें बुरी तरह से फैल गयीं। मैंने एड्रेस को दोबारा पढ़ा, बार-बार पढ़ा। यह आरती सिविल लाइन्स वाली आरती भाटिया है... वही आरती ना, जो लखनऊ विश्वविद्यालय में मेरे साथ एमए कर रही थी, पर आरती को कैसे कोरोना हो गया? वह तो कॉलेज के टाइम से ही बहुत हाइजीन का पालन करनेवाली लड़की थी। बात-बात में अपने पर्स से टिशू पेपर निकाल कर अपने माथे का पसीना पोंछना उसकी खास और लुभावनी अदाओं में शामिल था और इसी अदा पर तो मैं कुर्बान हो गया था।

वैसे सच कहूं, तो आरती की बीमारी के बारे में जान कर मन ही मन में बड़ा संतोष सा मिल रहा था और दिमाग में आयी हुई कहावत सच ही लग रही थी कि इतिहास अपने आपको दोहराता है। मुझे आज भी याद है कि अगर क्लास में मुझे जुकाम होता था, 
तब आरती कितना नाकभौं सिकोड़ती और मुझसे बात ना करके दूर भागती रहती। उसका साफ कहना था कि जुकाम का वायरस बहुत जल्दी फैलता है... साधारण से जुकाम से घबराने वाली कल की आरती आज भले ही आरती भाटिया हो चुकी थी, पर आखिरकार एक वायरस ने उसे अपनी चपेट में ले ही लिया था।

कॉलेज टाइम की बातें मुझे बार-बार याद आने लगीं। मैंने मोबाइल की स्क्रीन पर देखा... फेसबुक की पोस्ट अब भी मेरे सामने थी, पर फिर भी मुझे पुरानी यादों में जाना अच्छा लग रहा था।

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मैं लंबे-लंबे नोट्स लिखने में माहिर था और आरती उतनी ही आलसी, लंबे नोट्स लिखने में उसे नींद सताती थी। शायद अपना उल्लू सीधा करने के लिए ही उसने मुझसे दोस्ती की थी और तभी तो आरती ने मुझे यह जताना शुरू किया कि वह मुझसे प्रेम करती है और आगे चल कर विवाह भी करना चाहेगी। मैं छोटे कस्बे से यहां पढ़ने आया था, सो आरती के बहकावे में आसानी से आ गया। मैं समझने लगा था कि आरती मुझसे सच में ही प्रेम करती है, पर उसकी बात-बात में झल्लाने वाली आदत मुझे कभी अच्छी नहीं लगती थी। आरती अकसर मुझसे कहती थी, ‘‘ये अपने काले से चेहरे पर आए हुए पसीने को जल्दी से पोंछ डाला करो... यू नो, कितना गंदा लगता है यह।’’

मेरे चेहरे का पसीना तुम्हें गंदा लगता था। फिर घंटों तक लाइब्रेरी में मेरे साथ बिना किसी काम के बैठे रहना, वह क्या था? हाथ में हाथ डाल कर घूमना, इमामबाड़े की दीवारों पर मेरा और तुम्हारा नाम लिखना... वह सब क्या था? और हां... अपने मम्मी और पापा से भी तो तुम मिलवाने ले गयी थीं मुझे... आज भी याद है कि वह 13 फरवरी का दिन था। मैं तुम्हारे मम्मी-पापा से मिल कर बहुत अपनापन महसूस कर रहा था, तभी तो मैंने लपक कर दोनों लोगों के पैरों को स्पर्श किया था। उनकी आंखों में अपने प्रति प्रेम तो नहीं देख पाया था, पर हां, मुझे तुम्हारी मां के हाथों की चाय बहुत अच्छी लगी थी। पूरे दो कप चाय पी थी मैंने और फिर से आने के लिए तुम्हारी मां ने आग्रह किया था।

अगले दिन 14 फरवरी का दिन अर्थात वेलेंटाइन डे था। सामने से तुम आ रही थीं, तुम्हारे साथ कोई और भी आ रहा था, पर मैंने गौर नहीं किया और बड़े अरमानों से एक लाल गुलाब का फूल तुम्हारी तरफ बढ़ाया और आई लव यू कह दिया था मैंने, तभी एक जोरदार तमाचा मेरे गाल पर पड़ा था। 

‘‘बेवकूफ... अपनी शक्ल तो देख ली होती। यू मिडिल क्लास पीपल... जरा सा सही से बोल लो, तो लगते हैं मजनू बनने... हुंह।’’

और उसके बाद आरती उस लड़के का हाथ पकड़ कर वहां से चली गयी।

वह लड़का कैंपस का नहीं था, वह कौन था? कहां से आया था? मैं नहीं जान पाया... पर इतना जरूर जान गया था कि आरती मुझे यूज कर रही थी, क्यों? सिर्फ नोट्स के लिए... मैं आज भी नहीं मानता... पर शायद यही कटु सत्य था, क्योंकि उस दिन के बाद हम आपस में एक-दूसरे से कभी नहीं मिले। हालांकि आरती कई बार उसी लड़के के साथ मेरे सामने से गुजरी, पर मेरी बोलने की हिम्मत ही नहीं हुई और मैंने जरूरत भी नहीं समझी थी। मैं समझ चुका था कि मेरी प्रेम कहानी का अंत हो चुका है और मैं इसमें हारा हुआ मजनू हूं। पूरे दो महीने लगे थे मुझे अवसाद से बाहर आने में।

कॉलेज खत्म करने के बाद जल विभाग में मेरी नौकरी लग गयी थी। अच्छी सैलरी और स्टेटस हासिल करने में मुझे देर ना लगी और फिर नमिता के साथ मेरी शादी हो गयी थी।

मेरा रुतबा, मेरी पोजिशन आरती ने भी पहचान ली थी, जब आरती अपने पति के साथ मुझे एक शादी में मिली। मैं अपनी चमचमाती गाड़ी से उतर रहा था, तब आरती ने कैसे चहकते हुए मुझे अपने डॉक्टर पति से मिलवाया था और फिर फौरन ही एक कागज पर अपने नए घर का पता लिख कर मेरी जेब में रख दिया था। हालांकि उस पते पर मैं कभी नहीं पहुंच पाया, पर कई बार पढ़ा जरूर था, इतनी बार कि मुझे याद तक हो गया था आरती का पता।

और आज फेसबुक पोस्ट में आरती का पता देख कर बुरा लग रहा था। थोड़ा अच्छा भी लग रहा था। कितना अच्छा होता आरती कि तुमने इस मिडिल क्लास के लड़के को धोखा नहीं दिया होता ! जरूरी नहीं था कि तुम मुझसे शादी ही करती, पर धोखा देना तो सही नहीं ठहराया जा सकता ना।

आरती मुझे धोखा देने का परिणाम भुगत रही थी, सही है अच्छा है मुझे कुछ अच्छा सा महसूस हुआ था।

तभी मैंने अपने आपको आईने में देखा, सफेद कुरते और लाल रंग के लोअर में मैं किसी ड्रैकुला की तरह नजर आने लगा या फिर किसी फिल्मी विलेन की तरह, जो इंतकाम की आग में जलते हुए अपनी महबूबा से प्रतिशोध लेता है।

मैं कितना छोटा इंसान हो गया हूं। आज जब किसी को ऑक्सीजन की जरूरत है, उस समय मैं अपनी व्यक्तिगत लड़ाई की जीत और हार सुनिश्चित करने में लगा हुआ हूं... नहीं, मैं इंसान नहीं हो सकता... भले ही उस समय आरती ने मेरे साथ जो भी किया, वह उसका बचपना या मजबूरी हो सकती है, पर मैं आज उसके साथ क्या कर रहा हूं? क्या मैं अपना बदला ले रहा हूं?

मेरे स्टोर रूम में 2 ऑक्सीजन सिलेंडर रखे हुए थे, जिन्हें पिछले वर्ष कोरोना से जूझती मेरी पत्नी नमिता को जरूरत थी। पर अफसोस मैं सिलेंडर ले कर समय पर ना पहुंच सका था और तब तक नमिता मेरा साथ छोड़ कर जा चुकी थी।

आज मैं एकाकी जीवन जीने पर मजबूर हूं, पर मुझे सिलेंडर पहुंचाने होंगे, ताकि आरती को बचाया जा सके और उसके पति को मेरी तरह अकेला ना रहना पड़े।

आरती ने अपने हिस्से का प्यार अपने तरीके से निभा दिया था। और अपने हिस्से का प्यार निभाने की बारी अब मेरी थी। 

मैंने फेसबुक पर दिए गए आरती के फोन नंबर को कांपते हाथों से डायल कर दिया था और मेरे कदम स्टोर रूम में रखे हुए ऑक्सीजन सिलेंडर की तरफ बढ़ गए थे।