Friday 02 June 2023 03:55 PM IST : By Amita Borgohaie

अमरबेल बिन मूल की

amar-1

मुझे आज लिवरपूल, इंग्लैंड में आए पूरे 2 महीने हो गए हैं। यहां मैं 6 महीने के लिए एक अस्पताल में न्यूरो सर्जरी के एक शॉर्ट, एडवांस कोर्स के लिए आया हूं। दो वर्ष पूर्व जब मैंने दिल्ली से अपनी मेडिकल की पढ़ाई पूरी की थी, तभी से मैं पोस्ट ग्रेजुएशन की तैयारी में लग गया था। मेरा लक्ष्य न्यूरो सर्जरी की विशेषता प्राप्त करना था, अतः उसी सिलसिले में मैं कुछ समय के लिए यहां के एक न्यूरो सर्जरी विभाग में काम सीखने आया।

यहां के हेड ऑफ डिपार्टमेंट डॉक्टर रॉबर्ट केन बहुत ही विख्यात न्यूरो सर्जन हैं। मैं उनके ही संरक्षण में रह कर काम सीख रहा हूं। डॉक्टर केन मेरा बहुत खयाल रखते हैं, मुझे किसी भी चीज की कठिनाई नहीं होने देते। मेरे साथ उनका व्यवहार पिता तुल्य रहता है। फिर भी मुझे घर की जब तब याद आती रहती है। कभी मां की कमी, कभी पापा की, कभी छोटी बहन कंचनमाला की और कभी अपने प्रिय दादा जी की।

जब मैंने इन लोगों से अपने इंग्लैंड जाने के निर्णय के बारे में जानकारी दी, तो सभी बहुत दुखी हुए थे, साथ ही गर्वित भी कि मुझे इतना बड़ा अवसर मिला।

कल जैसे ही लाइब्रेरी से लौटा, तो पापा का फोन आया। जो समाचार मुझे पापा ने दिया, उसे सुन का मैं घबरा गया।

उन्होंने बताया, ‘‘किसलय बेटा, तुम्हारी मां की तबियत बहुत दिनों से खराब थी। मैं उन्हें ले कर अस्पताल पहुंचा और उनके सारे मेडिकल परीक्षण करवाए, तो पता चला कि उनके गर्भाशय में कैंसर है, फिर शीघ्र ही‌ एक गाइनीकोलॉजिस्ट को दिखाया, तो उन्होंने कहा कि तुरंत ऑपरेशन करके ओवरी को निकालना पड़ेगा, फिर कुछ डॉक्टर्स की सहमति से ऑपरेशन की तारीख तय हो गयी। मैंने भी डॉक्टर्स के निर्णय को उचित कहा। फिर तुम्हारी मां का ऑपरेशन हुआ। वे अभी आईसीयू में हैं और कुछ दिनों तक अस्पताल में रहना पड़ेगा। तुम चिंता ना करो। मैं और कंचन उनकी देखभाल कर रहे हैं, सब ठीक हो जाएगा।’’

मेरे पिता प्रोफेसर दिवाकर दिल्ली के एक कॉलेज में इतिहास के प्रोफेसर हैं। उनकी इच्छा थी कि उनका बेटा डॉक्टर बने, बाद में मेरा भी झुकाव मेडिकल की ओर हो गया और पापा के प्रयास और मेरी मेहनत से अब मैं एक डॉक्टर हूं।

मां की बीमारी का समाचार सुनते ही मैं अत्यधिक चिंतित हो गया। रातभर मैं सो नहीं पाया, सुबह उठते ही मैंने पापा को फोन किया और कहा कि शीघ्र ही मां की मेडिकल रिपोर्ट डॉक्टर से ले के मुझे मोबाइल में भेज दें।

सारी रिपोर्ट पढ़ने के बाद मैं चौंक उठा। उस रिपोर्ट में बीमारी और इलाज के बारे में सब विस्तारपूर्वक बताया गया था। केस हिस्ट्री में लिखा था कि श्रीमती कांतिमाला दिवाकर ने कभी कोई बच्चा पैदा नहीं किया और ना ही उन्होंने कभी गर्भधारण किया है।

बस इतना जानते ही मेरा दिमाग चक्कर खाने लगा। मैं सोचने लगा कि मेरी मां, मेरी प्यारी मां की क्या वास्तव में कोई संतान नहीं है। किंतु कंचन और मैं तो उनके बेटी-बेटे हैं। मैंने सोचा अवश्य ही रिपोर्ट गलत है। ऐसा कैसे हो सकता है। यही सोच कर रात के समय मैंने पापा को फोन किया और मां की रिपोर्ट के बारे में जिक्र किया। मैंने पापा से पूछा कि क्या मां की यह रिपोर्ट सही है, कहीं कोई गलती तो नहीं हो गयी। इस पर पापा ने कहा कि यह रिपोर्ट शत-प्रतिशत सही है।

अब मेरा पापा से कुछ पूछने का साहस नहीं था। मैं विचारों के सागर में डूब गया। सोचने लगा कि यदि यह सब सत्य है, तो झूठ का कहीं अस्तित्व है ही नहीं।

तो क्या मां हमारी नहीं हैं? ऐसा सोचना भी मुझे व्यथित कर गया। फिर मैंने अनुमान लगाया कि हो सकता है कंचन और मैं पापा की पूर्व पत्नी के संतान हैं, जो अब इस दुनिया में नहीं है। और हमारी मां कांतिमाला ने ही हमें मातृत्व दिया है, यदि ऐसा है, तो हमारी मां धन्य हैं।

यही सब सोच कर मैंने पापा से इस संदर्भ में और पूछताछ नहीं की। केवल मां के स्वास्थ्य के विषय में पूछता। फिर लगभग 15 दिनों बाद मां पूर्ण रूप से स्वस्थ हो कर घर लौट आयीं।

अब मैंने भी अपना मन पढ़ाई में ठीक से लगा लिया। दिन तो अस्पताल की व्यवस्था, ऑपरेशन थिएटर, मरीजों की चिकित्सा में बीत जाता, किंतु रात अतीत की यादों में बीतती थी... कंचन और मैं तब छोटे थे, हम खूब खेलते, कूदते और लड़ते थे। जब हमारी लड़ाई होती, तो हम फैसले के लिए मां के पास जाते। मां का फैसला अटल रहता था, वे सदा ही कंचन का पक्ष लेती थीं, चाहे गलती कंचन ही करती हो। किंतु मां मुझे डांटती थी, हमेशा कहती थी कि ‘‘तेरी बहन है, तुझसे 3 साल छोटी है, उससे लड़ाई मत किया कर।’’

फिर जब पापा काम से आते, तो हम दोनों उनसे शिकायत करते, किंतु पापा कुछ नहीं कहते,
वे निष्पक्ष रहते। तब मैं दादा जी के पास जाता, तो दादा जी मेरा ही पक्ष लेते और कहते, ‘‘तुम दोनों प्यार से रहो।’’

इस तरह का बचपन था हमारा, मैं मां से अकसर कहता, ‘‘मां, तुम कंचन को ज्यादा प्यार करती हो।’’ तो वह कहती थी, ‘‘देखो किसलय, प्यार प्यार होता है, वह कभी कम या ज्यादा नहीं होता, उसे कभी भी तराजू में नहीं तोला जाता,’’ फिर वे मुझसे कहतीं, ‘‘क्या मैं तुमसे प्यार नहीं करती?’’

तब मैं चुप हो जाता।

वैसे कंचन और मैं एक-दूसरे को बहुत प्यार करते थे। जब मैं डॉक्टर बना, तो कंचन की खुशी का ठिकाना नहीं था। अब वह हर हफ्ते फोन करके कहती है कि मैं किसी बात की चिंता ना करूं। केवल पढ़ाई पर ध्यान दूं।

मैं कंचन से मजाक में कहा करता था कि ‘‘जल्दी से तेरी शादी हो जाए तब मेरा नंबर आएगा।’’ वह मुझसे कहती, ‘‘भैया, चिंता ना करो। मां तुम्हारे लिए लड़की ढूंढ़ रही है।’’ फिर मैं कहता, ‘‘इतने दिन हो गए, जल्दी क्यों नहीं ढूंढ़ती?’’ फिर हम दोनों खूब हंसते।

वैसे कंचन के लिए मैंने एक लड़का ढूंढ़ रखा है, उसे मेरी मां, पापा और दादा जी भी पसंद करते हैं। वह कंचन की सहेली तरुणा का भाई कैप्टन प्रदिप्त है। वह भारतीय सेना में है और सिक्किम में पोस्टेड है। उसे भी कंचन पसंद है। बस मेरे यहां से लौटते ही कंचन और कैप्टन प्रदिप्त का विवाह हो जाएगा।

अब धीरे-धीरे समय अपनी गति से आगे बढ़ा और मैं घर लौटने की तैयारी में लग गया। लिवरपूल में मुझे बहुत अच्छा लगता था, मौसम सदा सुहाना रहता है और मेरे सहयोगी और शिक्षकों का भी भरपूर सहयोग तथा प्यार मिला। विशेषकर डॉक्टर रॉबर्ट केन का, वे सदा ही मेरा उत्साह बढ़ाते थे और कहते, ‘‘डॉ. किसलय दिवाकर, आप यहीं आ कर काम करो।’’

तो मैं कहता, ‘‘सर, मैंने आपसे इलाज सीखा है, तो जीवनभर आपकी याद मेरे मन में रहेगी। समय-समय पर आपसे मिलता रहूंगा।’’

इस तरह 6 महीने पूरे होने पश्चात मैं अपने देश लौटा। घर और बाहर के सभी लोग मुझे देख कर बहुत प्रसन्न हुए। दादा जी, मां, पापा और कंचन की खुशी का ठिकाना नहीं था। इतना प्यार पा कर मैं मां की मेडिकल रिपोर्टवाली बात भूल गया। किंतु आश्चर्य यह होता था कि मां हमें कितने प्यार और कर्तव्य से पालती थीं। फिर कैसे सोचूं कि उन्होंने हमें जन्म नहीं दिया।

एक रात मैं पढ़ाई करके थक गया और सोने चला गया, किंतु नींद ना आने के कारण कुछ संभावनाएं मन में जाग उठीं कि कहीं ऐसा तो नहीं कि मां मेरे पापा की पूर्व पत्नी की बहन हों? यह कहा जाता है कि मौसी मां समान होती है। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था, तो मैं गहरी नींद में सो गया।

सुबह जब मैं उठा तो पापा ने कहा, ‘‘किसलय बेटा, अब सब कुछ ठीक हो गया है, तुम्हारी मां स्वस्थ हो गयी है। कल तुम काम से छुट्टी ले लेना, मैं भी ले लूंगा और फिर हम दोनों सुबह पास के मंदिर में जाएंगे और प्रार्थना करेंगे कि हम सब ऐसे ही खुश रहें और ईश्वर का धन्यवाद करेंगे।’’

दूसरे दिन पापा और मैं मंदिर से लौट रहे थे, तो अचानक ही बिना किसी भूमिका के भरे गले से पापा ने कहा, ‘‘किसलय, तुम्हारी मां की मेडिकल रिपोर्ट बिलकुल सही है।’’ ऐसा बता कर वे रोने लगे। तब हम दोनों पास की एक पार्क में जा कर एक बेंच में बैठे। अब मेरे लिए कुछ भी जानना और पूछना आवश्यक नहीं था। पापा ने सारी बातें बताते हुए विस्तार पूर्वक कहा, ‘‘बेटा, हम दोनों तुम्हारे असली मां-बाप नहीं हैं...।

‘‘जब शादी के 2 वर्षों बाद भी हमारी संतान नहीं हुई, तो हम एक अस्पताल में गए। पता चला कि कांतिमाला, तुम्हारी मां कभी संतान पैदा नहीं कर सकती। मुझे विश्वास नहीं हुआ और मैंने अपनी भी जांच करायी, मेरे बारे में डॉक्टर का उत्तर आशाजनक था। यानी मां को ही डॉक्टर ने संतानोत्पत्ति के लिए अक्षम बताया।’’

amar-2

पापा बोले, ‘‘यह बात जब मैंने तुम्हारी मां को बतायी, तो वे जरा भी विचलित नहीं हुईं, मुझे सुझाव दिया कि मैं उन्हें त्याग दूं और किसी दूसरी महिला से शादी करके अपना घर बसाऊं। तब मैंने उन पर बहुत क्रोध किया और पूछा क्या वे जानती हैं कि उनके बिना मैं जी नहीं पाऊंगा। जब मां ने यह समस्या दादा जी को बतायी, उन्होंने बड़े सरल ढंग से कहा, ‘‘बहू, तुम्हारे बिना मेरा बेटा जी नहीं पाएगा और मुझे इस बात से जितनी पीड़ा होगी, मैं उसका वर्णन नहीं कर पाऊंगा। तुम इस घर में बहू बन के आयी हो, अब तुम्हें मां बनना पड़ेगा, इस घर में खुशियां तुम ही तो लाओगी।’’

दादा जी के अथक प्रयास से ही कांतिमाला और मैं तुम्हारे माता-पिता बने। एक शिशु घर से कानूनी कार्रवाई करके तुम्हें ले कर अाए। तुमने हमारा घर खुशियों से भर दिया। तब तुम्हारी दादी भी जीवित थीं, वे भी बहुत खुश हुईं। उन्होंने तुम्हारा नाम किसलय रखा, जिसका अर्थ है वृक्ष का नवीन और कोमल पत्ता।

‘‘इसके 3 साल बाद हमारी बगिया में एक और पुष्प खिला, बेटी कंचनमाला को भी हम उसी शिशुगृह से लाए, जहां से तुम्हें लाए थे। कांतिमाला ने उसका नाम अपने नाम से मिलता हुआ रखा।’’

पापा की सारी बातें सुन कर मैं आत्मसंतुष्ट और गर्वित हुआ। दादा जी के बड़प्पन के सामने मैं झुक गया। अब प्रश्न यह था कि मुझे तो सब कुछ मालूम हो गया, किंतु कंचन को कौन यह सब बताएगा। मेरी चिंतित मुखमुद्रा को देख कर पापा ने पूछा, ‘‘क्या सोच रहे हो किसलय?’’

तब मैंने अपनी दुविधा बतायी, तो हंस कर बोले, ‘‘तुम्हें तो यह सब आज पता चला है, लेकिन कंचन को तो 5 वर्ष पहले दादा जी ने सब बताया था। तब तुम एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे थे।’’

आगे पापा ने बताया कि कंचन ने ही सुझाव
दिया था कि हम तुम्हें अभी कुछ ना बताएं, ताकि तुम्हारी पढ़ाई में कोई व्यवधान ना आ जाए, कहा, ‘‘जब भैया का डॉक्टर बनने का लक्ष्य पूरा हो जाए, तभी बताना।’’

अब मेरी नजरों में कंचन भी धन्य हो गयी। मां का प्यार पा कर आज मुझे लग रहा है कि मां मां होती है। वह कभी भी असली, नकली, सगी अथवा सौतेली नहीं होती है। मां सिर्फ मां होती है। सच कहो, तो कंचन और मैं उस अमरबेल की तरह हैं, जिसकी जड़ नहीं होती, किंतु जिस पेड़ में वह अमरबेल चढ़ जाती है, वही वृक्ष उसका कुछ ना होते हुए भी पालन-पोषण करता है, जैसे हमारे दादा जी, मां और पापा हमारे लिए करते हैं।

हमारे मां-पापा तो धन्य हैं और दादा जी तो अतुलनीय हैं। मेरे दादा जी का कहना है कि सत्य से बड़ा संसार में कुछ भी नहीं होता है, इसलिए सत्य ही प्रेरित करता है कि उसे प्रकट कर दिया जाए। इसी कारण हमने कंचनमाला के भावी ससुरालवालों को यह बात बता दी। प्रथम तो प्रदिप्त के घर के लोग विश्वास नहीं कर रहे थे। अब वे लोग प्रसन्न हैं कि एक सत्यवादी परिवार के साथ अपने पुत्र का संबंध कर रहे हैं।

कंचनमाला ने कहा कि जहां भी किसलय का रिश्ता करें, उन्हें भी सारा सत्य बताना।

पापा का तो यही कहना है, ‘‘मेरा सत्य तो मेरे ये दो बच्चे हैं, इनसे बड़ा मेरे जीवन का क्या सत्य हो सकता है।’’