Friday 23 June 2023 12:28 PM IST : By Shanno Srivastava

माई वाइफ इज माई लाइफ

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रिया ऑफिस से आयी, तो देखा कि उसके फादर-इन-लॉ हॉल में बैठे लैपटॉप पर अपना काम कर रहे थे। उसने मुस्कराते हुए पापा जी से पूछा, ‘‘हाऊ वाज योर डे पापा जी?’’

‘‘फाइन बेटा, एंड हाऊ वाज योर्स?’’

‘‘नॉट टू गुड बट इट्स ओके पापा जी।’’

रिया की बात सुन कर पापा जी के पास ही बैठे समीर को रिया के कुछ परेशान होने का अंदेशा हुआ, इसलिए उसने पूछा, ‘‘क्या हुआ रिया? एनी प्राॅब्लम? हाऊ वाज योर प्रेजेंटेशन टुडे?

‘‘नॉट प्रेज्ड बाय क्लाइंट। बट इट्स ओके समीर,’’ कहती हुई रिया अपने कमरे में चली गयी, तो समीर ने पापा से कहा, ‘‘लगता है रिया का प्रेजेंटेशन अच्छा नहीं गया है। तीन दिनों से रात-रात भर जग कर तैयारी की थी उसने। शायद इस वजह से कुछ परेशान है। मैं जरा देख कर आता हूं।’’

रिया के पीछे कमरे में जाते हुए समीर को पापा जी ने चश्मे के ऊपर से झांक कर देखा और फिर चुपचाप लैपटॉप पर अपने काम में लग गए।

पांच मिनट में ही कमरे से बाहर आ कर समीर ने किचन की तरफ बढ़ते हुए पापा जी से पूछा, ‘‘पापा जी, चाय लेंगे? रिया के लिए बनाने जा रहा हूं।’’

‘‘तू क्यों बनाने जा रहा है? मीरा नहीं आएगी क्या?’’ नाम तो पापा जी ने मीरा का लिया, पर मन से कहना यह चाह रहे थे कि चाय रिया खुद क्यों नहीं बना रही है, तू क्यों बना कर दे रहा है।

‘‘मीरा तो 8 बजे आएगी, पापा जी। और वैसे भी, किसी का दुख और तनाव कम करने का सबसे अच्छा तरीका है उसे अपने हाथ से एक कप चाय बना कर पिला दो। फिर देखो उस चाय के कप में घुले तुम्हारे प्यार के जादू से सामनेवाले का दुख और तनाव कैसे छूमंतर हो जाता है।’’

तभी पापा जी को पत्नी सारिका की हिदायत याद आ गयी, ‘बच्चों की गृहस्थी में चार दिनों के लिए जा रहे हैं, तो दखलंदाजी मत करिएगा। उनकी गृहस्थी है, जैसे चला रहे हैं चलाने दीजिएगा। वे नए जमाने के बच्चे हैं।’’

आँख और मुंह तो बंद कर सकता हूं, पर इस कान का क्या करूं, जो सब कुछ सुन लेता है और फिर मुंह को कहने लगता है कि बोलो कुछ। पापा जी ने जेब से रुमाल निकाल कर मुंह को रगड़ कर पोंछा।

‘‘पापा जी चाय।’’

समीर को तीन कप चाय सेंटर टेबल पर रखते हुए देख कर भरसक अपने स्वर का व्यंग्य छिपाते हुए पापा जी बोले, ‘‘रिया को अंदर ही दे आओ बेटा। यहां आएगी, तो दर्द बढ़ जाएगा।’’

‘‘अरे नहीं पापा, वहां अकेली पिएगी, तो अपनी टेंशन से बाहर कैसे निकलेगी। बस हाथ-मुंह धो कर आती ही होगी।’’

‘‘सॉरी पापा जी, प्रेजेंटेशन बिगड़ जाने की वजह से थोड़ा परेशान हो गयी थी,’’ कहते हुए रिया जब सोफे पर आ कर बैठ गयी, तो पापा जी हैरानी से उसकी तरफ देखने लगे। ऑफिस से आने पर जो तनाव उसके चेहरे पर था, अब वह बिलकुल नहीं था।

चाय का घूंट भरते-भरते पापा जी तिरछी नजर से रिया को देख देख कर सोचने लगे गए कि सारिका के सिर में दर्द होता है, तो वह तो इतनी जल्दी फ्रेश नहीं हो पाती है। घंटों सिर में दुपट्टा बांध कर मुंह लटकाए घूमती रहती है और बरतन पटक-पटक कर ऐसे काम करती है मानो सिर का दर्द उन बरतनों की आवाज से ही ठीक होना बताया हो डॉक्टर ने।

‘‘ रिया, अप्स एंड डाउन्स आरए पार्ट्स ऑफ आवर जॉब्स। नो नीड टू बी अपसेट। इस बार प्रेजेंटेशन क्लाइंट को पसंद नहीं आया तो लीव दैट। उसमें हुई कमियों को ही अपनी स्ट्रेंथ बनाओ और आगे की तैयारी शुरू कर दो,’’ रिया को समझाते हुए समीर ने कहा।

‘‘तुम ठीक कह रहे हो समीर। योर वर्ड्स ऑलवेज इंस्पायर मी। मैं भी यही सोच रही थी,’’ कह कर रिया चाय के कप उठा कर किचन की तरफ चली गयी।

पापा जी फिर से लैपटॉप पर अपने काम में लग गए, पर रिया और समीर के बीच हुआ संक्षिप्त संवाद उनके दिमाग में गूंजने लगा। सारिका के मुंह से तो आज तक मैंने अपने लिए तारीफ का ऐसाएक शब्द भी नहीं सुना। कितना अच्छा लगा होगा समीर को यह सुन कर कि ‘योर वर्ड्स ऑलवेज इंस्पायर मी।’

‘तुमने सारिका को इंस्पायर करनेवाली कोई बात की भी है कभी? उसे किसी बात से परेशान देख कर इस तरह ट्रीट किया है तुमने? तुम्हारे मुंह से तो ये क्या हर छोटी-बड़ी समस्या को पहाड़ बना कर मुंह सुजा कर बैठ जाती हाे जैसे जहरभरे शब्द ही सुने हैं उस बेचारी ने।’ पापा जी की अंतरात्मा ने उनके मन की बातचीत सुन कर अंदर से ही उन्हें लताड़ा।

अंतरात्मा की बात सही भले ही रही हो, पर पापा जी को पसंद नहीं आयी, इसलिए काम से उनका मन ही उचट गया और लैपटॉप बंद करके वे कमरे में आ कर थोड़ी देर आराम करने के मकसद से लेट गए।

कल शाम को ही पापा जी बनारस से पूना अपने ऑफिस के काम से आए हैं। चूंकि बेटे-बहू पूना में ही हैं, इसलिए उन्होंने होटल के बजाय उनके साथ ही रहना उचित समझा। बेटे-बहू के साथ रहने और मिलने-मिलाने का मौका प्राइवेट जॉब होने के कारण ना वे निकाल पाते हैं और ना ही समीर और रिया को हीएक साथ इतनी छुट्टी मिल पाती है कि वे बनारस आ कर कुछ दिन सबके साथ रह पाएं।

कल शाम जब से पापा जी आए हैं तब से ही समीर और रिया का रुटीन देख कसमसा से रहे हैं। समीर के व्यवहार में ‘पति वाली’ कोई ठसक ही नजर नहीं आ रही है। रिया खाना परोस रही है, तो वह पानी का गिलास भर रहा है, रिया जूठे बरतन हटा रही है, तो महोदय कपड़ा ले कर डाइनिंग टेबल ही साफ करने लग गए। अपना बेटा है, तो भला किस मुंह से कहें, नहीं तो ऐसे ही लड़कों को अम्मा और दादी अम्मा जोरू का गुलाम कहा करती थीं। और आज के जमाने में ऐसे ही लड़के फेसबुक पर स्टेटस डाला करते हैं-माई वाइफ इज माई लाइफ।

पापा जी कमरे में आ कर लेट गए, पर मन थोड़ा खिन्न सा था। पता नहीं क्यों बेटे-बहू का शांत निश्छल भोला-भाला सा यह दांपत्य जीवन कुछ उद्वेलित सा कर रहा था उन्हें। बहू रिया की जगह पत्नी सारिका को और समीर की जगह खुद को रख कर देखने लग रहे थे बार-बार। घर-ऑफिस की दोहरी जिम्मेदारी निभाते हुए शादी के 5 साल बाद भी रिया और समीर को देख कर ऐसा लग रहा है जैसे सालभर पहले ही शादी हुई हो, जबकि 5 साल के वैवाहिक जीवन में उनके और सारिका के बीच कितनी नीरसता आ गयी थी। कमर में पल्लू खोंसे हर समय पसीने से तरबतर सारिका काम के बोझ से बाहर ही नहीं निकल पाती थी।

‘‘समीर, तुम पनीर लाए हो? मैंने तुम्हें मैसेज किया था ना कि आज डिनर में शाही पनीर बनना है,’’ अचानक रिया की आवाज पापा जी को सुनायी दी।

‘‘ओह माई गॉड ! मैंने मैसेज पढ़ा तो था, लेकिन आते समय लेना याद ही नहीं रहा। आईएम सो सॉरी रिया। अब क्या करोगी? क्या बनवाओगी?’’

मीरा ने आ कर जब रिया से पूछा कि डिनर में क्या बनाना है, तो रिया ने समीर से पनीर के बारे में पूछा। समीर का जवाब सुन कर पापा जी के कान खड़े हो गए रिया के झल्लाहटभरे स्वर सुनने के लिए कि ‘‘तुमसे तो कोई काम कह कर पछताने लगती हूं।एक काम भी ठीक से नहीं हो पाता है तुमसे। इससे अच्छा तो मैं ही लेती हुई आती। अब क्या बनेगा इस समय, दिमाग खराब कर देते हो...’’

पर यह तो उल्टा ही हो गया।

‘‘कोई बात नहीं समीर। मैं दूध फाड़ लेती हूं। शाही पनीर ना सही पनीर भुर्जी तो बन ही जाएगा, साथ में आलू दम और रायता बनवा लेती हूं,’’ कह कर रिया मीरा को इंस्ट्रक्शन देने लगी।

‘इन दोनों कोएक-दूसरे पर गुस्सा आता ही नहीं है या मेरे रहने से माहौल अच्छा बना कर रखने की कोशिश कर रहे हैं। इस समय रिया की जगह सारिका होती, तो अब तक तो किचन में दो-चार बरतन पटके जा चुके होते,’ पापा जी सोचने लगे।

‘‘अच्छा बच्चू ! और समीर की जगह तुम होते तो क्या करते? इतनी सचाई के साथ अपनी गलती मान लेते और सॉरी भी बोल देते? तुम तो सीधा सारिका के ही मत्थे दोष मढ़ देते कि ‘इतना काम रहता है ऑफिस में, उसी में तुम सामानों की लिस्ट भेजती रहती हो। खुद जा कर नहीं ला सकती थीं?’ बदले में सारिका भड़कती, तो क्या गलत करती।’’

समीर और रिया की महकती गृहस्थी देख कर आज पापा जी की अंतरात्मा भी उन्हें जैसे आईना दिखाने को ठान चुकी थी कि बच्चू अगर अपने दंभी पुरुष खोल में ना लिपटे रहे होते, तो शायद तुम्हारी गृहस्थी भी ऐसी ही महकी-महकी रही होती।’’

डिनर काफी स्वादिष्ट बना था। आलू दम तो लाजवाब था। पापा जी को बहुत ही पसंद आया। दूसरी बार जब उन्होंने डोंगे की तरफ हाथ बढ़ाया, तो जी में आया कि तारीफ भी कर दें। पर फिर सोचा कि कामवाली के हाथ के बनाए खाने की क्या तारीफ करना? रिया ने बनाया होता तो कोई बात भी होती।

‘‘पापा जी आलू दम पसंद आया ना? रिया ने आज सब्जी खुद बनायी है स्पेशली आपके लिए,’’ समीर ने पापा जी से कहा तो पापा जी अचकचा गए।

‘‘बहू, तुमने बनायी है सब्जी? मैंने तो सोचा मीरा ने बनायी होगी इसलिए कुछ कह नहीं रहा था। सब्जी वाकई बहुत अच्छी बनी है, तभी तो मैंने दोबारा भी ले ली।’’

‘‘थैंक्स पापा जी, आपको पसंद आयी, यह सुन कर मुझे बहुत खुशी हो रही है,’’ रिया तो इतना ही कह कर चुप हो गयी, पर समीर आगे भी बोलता रहा।

‘‘यू नो पापा जी, रिया खाना बहुत अच्छा बनाने लगी है। आलू दम बिलकुल मम्मी जैसा नहीं बनाया है इसने?’’

‘‘पापा जी, आपको स्वाद सिमिलर नहीं लगा मम्मी और मेरे दोनों के बनाए आलू दम का? मैंने तो जो भी सीखा है मम्मी जी से ही पूछ-पूछ कर सीखा है।’’

पापा जी को तो कुछ समझ में ही नहीं आया कि क्या जवाब दें। सारिका का बनाया खाना 30 साल से खा तो रहे हैं, पर उसके हाथ के स्वाद की स्पेशियलिटी पर तो कभी गौर ही नहीं किया। उसके बनाए खाने को उसका कर्तव्य और अपना हक समझ कर ही खाते चले आए हैं अभी तक। उसमें तारीफ या प्रशंसा करने जैसी किसी औपचारिकता की आवश्यकता ही नहीं समझी उन्होंने। और अगर कभी किसी मेहमान ने तारीफ की, तो उसमें कोई नुक्स निकाल कर सारिका के मुंह को स्याह कर देते थे। पत्नी के बनाए खाने की तारीफ करने पर उसका चेहरा कितना खिल जाता है, यह पापा जी ने आज देखा और सोचने लगे कि क्या वे भी ऐसा कर सकते थे?

खाना खा कर पापा जी आ कर बिस्तर पर लेट गए, पर मन चहलकदमी कर रहा था। अनायास ही वे आज अपने बेटे की गृहस्थी से अपनी गृहस्थी की तुलना करने लग गए थे। भला ऐसी क्या खूबी है समीर और रिया की गृहस्थी में कि यहां सब कुछ महका-महका सा लग रहा है और रिया और समीर की औखों में हर समयएक-दूसरे के लिए प्यार और कृतज्ञता झलक रही है। उनकी गृहस्थी में ऐसी क्या कमी थी कि उन्होंने अपने और सारिका के बीच ऐसी खुशबू कभी महसूस नहीं की।

रिया कितनी एक्टिव और स्वीट स्पोकन है। कितनी कुशलता से ऑफिस और घर दोनों संभाला हुआ है उसने। सारिका में यह एक्टिवनेस कहां है भला। बात-बात में आग जैसी भड़क उठती है। पापा जी की अंतरात्मा के एक चापलूस कोने ने उनको समझाया, तो दूसरा कोना भड़क उठा, ‘बच्चू, कभी अपने गिरेबान में भी झांक कर देखो। क्या थी तुम्हारी बीबी और तुम्हारे पुरुष दंभ ने उसे क्या बना कर रख दिया। रिया से तुलना कर रहे हो उसकी? रिया ने ऑफिस और दो प्राणी का घर संभाला हुआ है और तुम्हारी सारिका ने तो 15 सालों तक पूरे 15 लोगों का कुनबा संभाला हुआ था।एक-एक के हाथ पर समय पर हर चीज थमाया था उसने। सबकी चहेती थी वह। एक तुम्हीं हो, जिसे हजार शिकायत बनी रही है उससे। एमए फर्स्ट क्लास थी। पीएचडी करने की इच्छा कई बार व्यक्त की थी उसने तुमसे। पर तुमने क्या किया? मां-बाबू जी को पसंद नहीं आएगा, कह कर उसका पत्ता काट दिया था। मैं तो अंतरात्मा हूं तुम्हारी, मुझे तो पता है ना कि तुम जानते थे कि मां-बाबू जी कभी नहीं रोकेंगे सारिका को तुम्हीं नहीं चाहते थे कि सारिका घर-गृहस्थी से बाहर निकले। कितना रोती रहती थी वह अपनी डाॅक्टरेट कर पाने की इच्छा अधूरी रह जाने पर। और आज सोच रहे हो कि सारिका रिया की तरह हमेशा कूल क्यों नहीं रहती है? अरे अपनी इच्छाओं का दम घोंट कर भी भला कोई खुश रहता है?’

अंतरात्मा की बातें फिर पापा जी को पसंद नहीं आयीं, तो करवट बदल कर सो जाने का उपक्रम करना ही ठीक लगा उन्हें।

सुबह उठे, तो रिया और समीर दोनों ही उठ चुके थे। मीरा किचन में काम कर रही थी और रिया मशीन में कपड़े धो रही थी और समीर डस्टिंग कर रहा था। यह देख कर पापा जी को गुस्सा तो बहुत आया, पर चुपचाप पेपर उठा कर अपने कमरे में जा कर बैठ गए।

नाश्ता लग गया, तो तीनों साथ ही नाश्ता करने बैठे। रिया का ऑफिस दूर था, वह समीर से थोड़ा पहले निकलती थी।एक नजर घड़ी पर टिकाए वह जल्दी-जल्दी नाश्ता मुंह में ठूंस रही थी।

‘‘रिया, दिस इज बैैड हैबिट। काम जरूरी है, पर हेल्थ की कीमत पर नहीं। हेल्थ ही ठीक नहीं रहेगी, तो पैसे किस काम के रहेंगे हमारे। ठीक से बैठो, नाश्ता करो। इतनी भी देर नहीं हो रही है,’’ कहते हुए उसने दूसरा परांठा रिया की प्लेट में डाल दिया। गरम परांठा रिया को खाने में टाइम लगता इसलिए समीर ने रिया के परांठों को 4 टुकड़ों में तोड़ दिया। भाप निकल जाने से परांठा ठंडा हो गया और रिया ने जल्दी-जल्दी दूसरा परांठा भी खा लिया।

पति-पत्नी के रिश्ते में ऐसा वात्सल्यवाला प्यार भी हो सकता है, यह देख कर आज पापा जी कहीं खो से गए। वे छोटे थे, तो अकसर उनके स्कूल जाने के समय पर मां ऐसेे ही परांठा तोड़ कर ठंडा कर करके खिलाया करती थीं।एक पति अपनी पत्नी के लिए भी ऐसा करके उसके प्रति अपना प्यार प्रदर्शित कर सकता है, यह बात उनके तो दिमाग में कभी आयी तक नहीं। सारिका के लिए परांठा ठंडा करना तो दूर खाना खाते समय उसने कभी नमक मांग लिया हो या खाना अटक जाने पर पानी देना पड़ा हो, तो देते समय अपने हावभाव से ऐसा जतला देते थे मानो पूछ रहे हों कि ‘नौकर समझ रखा है क्या मुझे।’

पापा जी को आज ऐसा लग रहा था मानो समीर और रिया की गृहस्थी उनके लिएएक पाठशाला बन गयी है और उनकी अंतरात्मा गुरु जी की छड़ी बन कर खड़ी हो गयी है। कमरे में जा कर उन्होंने सारिका को फोन लगा दिया, ‘‘हेलो, क्या कर रही हो सारिका?’’

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‘‘अरे ! आज सबह-सुबह फोन करके हाल ले रहे हैं? सब ठीक है ना?’’

‘‘हां-हां सब ठीक है। नाश्ता कर लिया तुमने?’’ पूछते हुए पापा जी को खुद ही बहुत अजीब सा लग रहा था।

‘‘हां कर लिया। पर आज आप... सब ठीक तो है ना वहां? आपने किया कि नहीं नाश्ता? रिया और समीर आपका खयाल तो रख रहे हैं ना? ना रख रहे हों, तो होटल में शिफ्ट हो जाइए, कोई जरूरत नहीं है वहां रहने की।’’ शायद सारिका को ऐसा लगा कि वहां पापा जी को समय पर नाश्ता-खाना नहीं मिल रहा है, इसलिए उन्हें उसकी याद आ रही है।

‘‘अरे बाबा सब ठीक है यहां। रिया और समीर दोनों ही बहुत खयाल रख रहे हैं मेरा। मैं तो बस यों ही तुम्हारा हालचाल ले रहा था।’’

‘‘दरअसल आपने आज से पहले कभी मेरे खाने-पीने के बारे में मुझसे नहीं पूछा ना इसलिए...। ना जाने क्यों सारिका का गला भर आया और उसने काम का बहाना बना कर फोन रख दिया।

कौन कहता है कि औरत सबसे अधिक अपनी संतान से प्यार करती है। झूठमूठ का अंदेशा भर हुआ कि शायद समीर और रिया मेरा खयाल नहीं रख रहे हैं, तो बिनाएक पल गंवाए उन्हें छोड़ कर तुरंत होटल में शिफ्ट होने की सलाह दे दी मुझे।

औरएक मैं हूं, आज तक सारिका के आँसुओं और उसके उतरे चेहरे को देख कर भी अनदेखा करता रहा हूं ! उफ्फ ! कितना कायर हूं मैं ! अपने दंभ के कारण मैं सारिका की नजरों में कितना नीचे गिर चुका होऊंगा। मैंने कभी यह क्यों नहीं सोचा।

हेड ऑफिस टाइम से पहुंचना जरूरी था, इसलिए विचारों को झटक पापा जी फटाफट तैयार होने लगे और समीर के साथ ही ऑफिस के लिए निकल गए। उनका हेड ऑफिस समीर के ऑफिस के रास्ते में ही पड़ता था। रास्ते में समीर ने कहा, ‘‘पापा, आज रात का डिनर करने हम दोनों बाहर चलेंगे।’’

‘‘और रिया?’’

‘‘आज रिया कीएक सहेली की इंगेजमेंट है। रिया आज वहां जाएगी। मीरा की हमने आज छुट्टी कर दी है, क्योंकि मैंने कल ही डिसाइड कर लिया था कि आज मैं आपको यहां के फेमस ग्रीन चिली हाउस में डिनर करा कर लाऊंगा।’’

‘‘ठीक है समीर, पर रिया के बिना अच्छा नहीं लगेगा।’’ पापा जी को रिया का जाना बुरा लगा कि चार दिनों के लिए ही तो आया हूं मैं, उसमें भी बहू उन्हें छोड़ कर सहेलियों के यहां जा रही है, पर समीर का बेफिक्र चेहरा देख वह संभल गए।

‘‘यस पापा, अच्छा तो नहीं लगेगा, पर अगर उसे जाने से मना करता, तो वह दुखी होती।’’

कितनी साफगोई से बात करते हैं आजकल के बच्चे और अपने जीवनसाथी के प्रति कितने केअरिंग हैं ! पापा जी को लग रहा था वे पूना ऑफिस के काम से नहीं जीवन का नया पाठ पढ़ने आए हैं।

उन लोगों के घर आने के थोड़ी ही देर बाद रिया भी आ गयी। आते ही उसने पापा जी को सॉरी बोला और कहा कि अगर बहुत जरूरी ना होता, तो वह उन्हें अकेला छोड़ कर हरगिज ना जाती। सहेली की इंगेजमेंट की बातें समीर से खुश हो कर बताती रिया और उत्सुकता के साथ बात सुनते समीर को देख कर पापा जी सोचने लगे, समीर की जरा सी समझदारी से दोनों कितने खुश हैं और बहू के चले जाने से मुझे ही क्या फर्क पड़ गया था? उल्टा समीर के साथ अकेले कुछ घंटे बिताने को मिले। उस दौरान पुराने लोगों और रिश्तेदारों की ना जाने कितनी बातें करके मन और खुश हो गया।

आज समीर ने जो किया, कुछ वर्ष पहले मैं भी तो कर सकता था जबएक बार 4 दिनों के लिए मामा जी आए थे हमारे यहां रहने। पर सहेली की ननद की शादी में जाने की महीनेभर की सारिका की सारी तैयारी को दरकिनार कर दिया था मैंने। कितनी जुगत लगायी थी उसने, कितने रास्ते सुझाए थे उसने कि ‘खाना बना कर रख जाऊंगी डाइनिंग टेबल पर आपका और मामा जी का। बस निकाल कर खा खिला लीजिएगा। बरतन वगैरह कुछ मत हटाइएगा। दस बजते-बजते आ जाऊंगी मैं। आ कर कर दूंगी सब। बहुत मन है मेरा मोहिनी की शादी में जाने का। आप भी देख रहे हैं किएक महीने से मैं शादी में जाने की तैयारी कर रही हूं।’ एकदम रुंआसी हो गयी थी सारिका, लेकिन मैंने मामा जी की दुहाई दे कर उसे जाने नहीं दिया।

कितनी हूक उठी होगी उस दिन सारिका के दिल में। रो-रो कर किचन में मामा जी के लिए डिनर बनाती रही और मैं संवेदनहीन सा बैठा देखता रहा।एक बार भी उसे शादी में भेजने के बारे में सोचा तक नहीं और मामा जी का रात में 8 बजे फोन आ गया था कि आज एक पुराना दोस्त मिल गया है, खाना उसके घर से ही खा कर आऊंगा, तुम लोग खाने पर इंतजार मत करना।

उसके बाद सारिका जार-जार रोयी थी और बिना खाए-पिए सो गयी थी, पर मुझे कोई फर्क नहीं पड़ा था। दूसरे दिन सुबह से मामा जी का पूर्ववत आवभगत करती सारिका को देख कर मैंने सोचा था कि वह सामान्य हो गयी है। पर वह सामान्य नहीं हुई थी, मामा जी का सत्कार करके उसने अपना कर्तव्य पूरा किया था। मुझसे तो दस दिन तक सीधे मुंह बात नहीं की थी उसने। उसके लिए भी उसे ही कोसता रहा था मैं बात-बात में।

समीर की तरह समझदारी मैं भी दिखा सकता था। सारिका शादी में चली गयी होती, तो मामा जी या मुझे क्या फर्क पड़ गया होता भला? पर कौन था, जो मुझे रोकता रहता था? मेरा अहं? मेरा पुरुष होने का दंभ? मेरा ‘पति’ होने का अहंकार?

रात के 12 बज गए थे। पापा जी की अांखों से नींद आज कोसों दूर चली गयी थी। नए जमाने के उनके बच्चे जीवन जीने कीएक अलग ही कला सिखा रहे थे उन्हें। ऐसा लग रहा था ‘ऐंठ वाला’ जीवन जीते जीते वे भी थका सा महसूस करने लगे हैं। अब वे भी अपनी जीवनसंगिनी के साथ ‘महका महका’ जीवन जीने को व्याकुल हो उठे।

पापा जी फोन की गैलरी सर्च करने लगे। काफी सर्च के बाद उन्हें सारिका के साथ अपनीएक खूबसूरत सी हंसती हुई फोटो मिल ही गयी। उसे उन्होंने फेसबुक पर सारिका, रिया और समीर को टैग करते हुए पोस्ट कर दिया और कैप्शन लिख दिया-माई वाइफ इज माई लाइफ।

मुस्कराते हुए पापा जी ने करवट बदली और सबके कमेंट्स और सारिका के शरम से सुर्ख होते गाल की कल्पना करते हुए सोने की कोशिश करने लगे। सोतेे हुए भी उनके होंठों पर मुस्कान तैर रही थी।