Monday 05 February 2024 04:48 PM IST : By Kislaya Pancholi

मैं तुम्हें फिर मिलूंगी भाग-1

phir-milungi

‘‘यार अमित, तू पागल हो गया है क्या? या तुझे कुछ समझ नहीं आ रहा? कैसी बेसिर-पैर की बहकी-बहकी बातें कर रहा है। सॉरी, आई कांट हेल्प यू,’’ गौरव ने कैफे की टेबल पर बिखरे हुए लड़कियों के फोटोग्राफ्स को इकट्ठा करते हुए थोड़ी ऊंची आवाज में कहा।

‘‘तू मेरा दोस्त है। तू नहीं समझेगा, तो मम्मी-पापा को समझाने में मेरी क्या खाक मदद करेगा। यू डिस अपाॅइंटेड मी अ लाॅट,’’ नीची नजर किए, हाथ से कॉफी के खाली कप को बेवजह घुमाते हुए, बहुत ही उदास स्वर में अमित ने जवाब दिया।

‘‘मुझे लग रहा है तुझे किसी साइकोलाॅजिस्ट की सख्त जरूरत है। मैं लेता हूं अपॉइंटमेंट। वही प्रॉपर काउंसलिंग करेगा तेरी।’’

‘‘फ्रेंड से बड़ा कोई काउंसलर नहीं होता। इनफैक्ट गौरव, तूने मेरी बात ध्यान से सुनी ही नहीं।’’

‘‘अच्छा, मान लिया नहीं सुनी। चल, जब तक तू अपनी पूरी रामायण फिर से सुना नहीं लेता, मैं चुप बैठा रहूंगा। बता क्या हुआ था उस दिन। अब ठीक?’’

अमित के चेहरे पर आशा की धूप वैसी ही खिल उठी, जैसे सूर्यग्रहण छंटने के बाद दिखती है। उसने फिर वही किस्सा, जो उसके साथ घटा था, पूरे 20 मिनट लगाते हुए सिलसिलेवार सुना दिया।

गौरव ने बैरे को पिज्जा और कोल्ड कॉफी का एक और ऑर्डर  दिया। देना जरूरी था। वह उनकी टेबल की ओर बार-बार इस तरह देख रहा था कि ‘ये दोनों उठ क्यों नहीं रहे।’ उसने वेटिंग क्यू में लगे एक परिवार को, जिसमें पति-पत्नी और छोटा बच्चा था, इशारे से इस खाली होने वाली टेबल पर बैठने को इंगित भी कर दिया था।

‘‘और कुछ कहना बाकी है?’’ दोस्त के हाथ पर प्यार से हथेली रखते हुए गौरव ने पूछा।

‘‘नहीं। अब बता, इस मामले में तेरा क्या कहना है?’’ अमित ने कुछ इस तरह से उत्तर के साथ प्रतिप्रश्न रखा, मानो कह रहा हो, वही कहना जो मैं सुनना चाहता हूं।

पर सच्चा दोस्त मुंह देख कर चापलूसीभरी बात थोड़े ही करता है। सो गौरव ने कहना शुरू किया, ‘‘देख, जो मैं समझा कहता हूं। अब तक की कहानी का लब्बोलुआब यह है कि तुम दिल्ली से इंदौर आने के लिए निजामुद्दीन एक्सप्रेस में बैठे हो। तुम्हारी बर्थ है थर्टी सेवन। तभी एक लड़की आती है। वह गुलाबी सलवार-कुरती में स्मार्टली ड्रेस्डअप है। उसके बाल रेशमी, काले और लंबे हैं। उसकी बड़ी-बड़ी और कजरारी आंखों में बला की चमक है। उसकी उपस्थिति से कंपार्टमेंट की हवा में बहुत महीन, प्यारी और भीनी-भीनी सी सुगंध फैल रही है। तुम उसे पूरी तरह निहार भी नहीं पाए हो और वह कहती है-

‘आप अभी भले बैठे रहें। पर थर्टी सेवन बर्थ नंबर मेरा है।’ मतलब वह कहना चाह रही थी कि रात को वह अपनी बर्थ पर ही सोएगी। कोई एक्सचेंज वगैरह नहीं करेगी। तुम हतप्रभ से उसे देखते रहे। और कोई होता तो शुरू हो जाते- ‘ऐसे कैसे भाई साहब, यह बर्थ मेरी है। आप जा कर करें टीटी से बात।’ तुमने कुछ नहीं कहा। और उस समय तुम पक्का यही सोच रहे होओगे, ‘चलो, इतनी देर वह मेरी ही बर्थ पर बैठेगी।’ है ना? और फिर उसने उसकी बात के प्रमाणस्वरूप उसका टिकट तुम्हारे आगे कर दिया। वाकई उसकी बर्थ का नंबर भी थर्टी सेवन ही था। पर तुम्हें उसे कहना पड़ा-

‘मैडम, आपका टिकट निजामुद्दीन एक्सप्रेस का है ही नहीं। यह तो राजधानी का है। और वह ट्रेन प्लेटफॉर्म नंबर 4 से 10 मिनिट में डिपार्ट होने वाली है।’

‘ओह ऐसा क्या। मैं आयी निजामुद्दीन से थी। शिट !’ वही याद रह गया। उसने मोहक अदा से सिर थामा और आगे जल्दी-जल्दी कहा-

‘थैंक्स फार टेलिंग मी द ट्रुथ। ओके। मैं तुम्हें फिर मिलूंगी। कहां और कैसे, मैं नहीं जानती।’
और वह तेजी से सामान उठा कर कंपार्टमेंट से निकल गयी। एक अधेढ़ दढि़यल सहयात्री ने टिप्पणी की-‘ये हैं आजकल की पढ़ी-लिखी लड़कियां। मेकअप करने के लिए टाइम रहता है इनके पास। टिकट चेक करने के लिए नहीं।’ तब तुम्हें इतना गुस्सा आया कि बस चलता, तो उनकी दाढ़ी नोच लेते। है ना ?’’

‘‘हां, ऐसा ही हुआ था। ये समझो कि वह बस आयी और मेरा दिल ले कर चली गयी। या कहो मेरा दिल ले जाने के लिए ही आयी थी, सिर्फ 5 मिनट के लिए उस कंपार्टमेंट में। मैं चाहता हूं तुम मुझे उसे तलाशने में मदद करो। और तब तक मम्मी-पापा को मुझे और दूसरी लड़कियां बताने से रोको। एक बार वह मिल भर जाए, सब सेट हो जाएगा। और फिर देखो उसने यह कहा भी था- मैं तुम्हें फिर मिलूंगी। कहां और कैसे, मैं नहीं जानती,’’ अपने में खोए से अमित ने कहा।

‘‘बरखुरदार, ओ मेरे शेखचिल्ली ! तुम हो किस दुनिया में? ‘सी यू’, ‘हम फिर मिलेंगे’ ऐसा हर दूसरा यात्री पहले से कहता है। यह सामान्य शिष्टाचार भर है। इसका यह अर्थ बिलकुल भी नहीं है कि वह तुम पर आसक्त हो कर ऐसा कह कर गयी। समझे?’’
‘‘इसका मतलब तुम अब भी यही कह रहे हो कि तुम उसे ढूंढ़ने में मेरी मदद नहीं करोगे।’’

‘‘अच्छा बाबा, करूंगा। पर एक शर्त पर।’’

‘‘कैसी शर्त?’’

‘‘शर्त यह कि तुम्हें मेरे पूछे प्रश्नों का जवाब देना होगा।’’

‘‘पूछो। दूंगा।’’

‘‘पर तुम्हारा जवाब सिर्फ ‘हां’ या ‘नहीं’ में होना चाहिए। यदि एक भी प्रश्न का जवाब ‘हां’ आया तो ही मैं तुम्हारी मदद करूंगा। अन्यथा तुम्हें मेरा कहा मानना होगा। ठीक?’’

‘‘ठीक है।’’

‘‘याद रहे उत्तर सिर्फ हां या नहीं में चाहिए। कोई स्पष्टीकरण या सफाई मत देने लगना। सुनो, पहला प्रश्न हैÑतुमने उसका नाम पूछा?’’

‘‘नहीं।’’

‘‘उसके माता या पिता का नाम-पता किया?’’

‘‘नहीं।’’

‘‘उसके भाई-बहन या दोस्त का कोई जिक्र हुआ?’’

‘‘नहीं।’’

‘‘तुम्हें उसका पता मालूम है?’’

‘‘नहीं।’’

‘‘उसकी जाॅब के बारे में कोई जानकारी?’’

‘‘नहीं।’’

‘‘पढ़ाई के बारे में?’’

‘‘नहीं।’’

‘‘उसका फोन नंबर लिया?’’

‘‘नहीं।’’

‘‘अपना नंबर या पता उसे दिया?’’

‘‘नहीं।’’

‘‘ई-मेल का लेनदेन?’’

‘‘नहीं।’’

‘‘अंतिम प्रश्न है तुमने उसकी कोई फोटो खींची? बता कर या चुपके से?’’

‘‘नहीं।’’

गौरव ने सारे प्रश्न उत्तर मोबाइल में रेकाॅर्ड कर लिए और दोस्त को सुनाए। सभी में अमित का जवाब ‘नहीं’ रहा। एक में भी ‘हां’ नहीं मिला। गौरव ने उसे बिलकुल नहीं समझाया कि भले आज पूरी दुनिया नेट से कनेक्टेड है। लेकिन इतने सारे ‘नहीं’ के बाद किसी को तलाश कर पाने का एक भी सूत्र आज हमारे पास नहीं है। कि तकनीक कितनी भी विकसित हो गयी हो, पर सिर्फ एक वाक्य के शब्द, जो किसी का दिल झंकृत कर गए हों, को पकड़ कर उस व्यक्ति तक नहीं पहुंचा जा सकता है।

जारी...