Monday 29 January 2024 12:46 PM IST : By Savitri Rani

तैरती कश्ती का प्रतिबिंब भाग- 2

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‘‘दिखाने वाली नहीं, जीवनभर के लिए बंधन में बंधवाने वाली हूं,’’ अब मौसी ने चुटकी ली, फिर जरा संजीदगी से बोलीं, ‘‘मेरे पड़ोस में एक लड़की है। ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं है। बारहवीं में पढ़ती है, लेकिन बिलकुल वैसी है जैसी तुझे चाहिए।’’

‘‘क्या वह लड़की मेरी मां की इज्जत करेगी? उनको मान-सम्मान देगी?’’ राजीव ने पूछा।

‘‘बिलकुल करेगी। आखिर मेरी परवरिश पायी है उसने,’’ मौसी सीना ठोक कर गर्व से बोलीं।

‘‘और उसके माता-पिता मान जाएंगे इतनी जल्दी शादी के लिए? मेरा मतलब वह अभी बहुत छोटी है ना,’’ राजीव ने अपनी शंका जाहिर की।

‘‘अरे बेटा, तू मेरा भांजा है, उनकी हां के लिए ये कारण बहोत है। वे तो खुसी से मान जावेंगे। वैसे भी गांव में छोरियों की सादी इसी उम्र में होवे है। गौना साल भर बाद करवा लियो। जब तुझे नौकरी मिल जावेगी और उसकी बारहवीं भी हो जावेगी। लेकिन मैं चाहूं के, तू एक बार मिल ले उससे, सरिता नाम है उसका,’’ मौसी ने बताया।

‘‘नहीं मौसी। आपको पसंद है और मां को मान-सम्मान देगी तो बस, मुझे और कुछ नहीं चाहिए। बस शादी जल्दी करनी होगी, क्योंकि मैं भाई की साली से शादी का विकल्प जल्दी से जल्दी खत्म कर देना चाहता हूं,’’ राजीव ने संजीदगी से कहा।

अपने खयालों में खोयी सरिता अपने बीते हुए कल को निहार रही थी कि सीमा ने उसे कंधे पकड़ कर जोर से हिलाया, ‘‘कहां खो गयी, हमारी गांव की गोरी?’’

‘‘बस जरा अपने गांव के भ्रमण पर निकली थी,’’ सरिता हंसते हुए बोली, ‘‘और बस इस तरह राजीव की मां की मौन स्वीकृति के साथ हमारी शादी बहुत ही सादगी से मेरे परिवार और राजीव की मौसी की मौजूदगी में हो गयी।’’

एक दिन सरिता और सीमा शाम की सैर पर निकलीं। सरिता का उतरा हुआ चेहरा देख कर
सीमा ने पूछा, ‘‘तुझे क्या हुआ?’’

‘‘कुछ खास नहीं यार, आज मां का फोन आया था,’’ सरिता ने चिंता में डूबे हुए बताया।

‘‘तो?’’ सीमा ने पूछा।

‘‘तो, वे मेरी बहन गीता की शादी को ले कर परेशान हैं,’’ सरिता ने अपनी आदत के अनुसार बात को पूंछ की तरफ से शुरू किया।

‘‘हां, लेकिन वह तो पीएचडी कर रही है ना? है भी कितनी सुंदर। भला उसकी शादी की क्या प्रॉब्लम?’’ सीमा ने हैरत से पूछा।

‘‘हां, होनी तो नहीं चाहिए, लेकिन वह मुझसे तुलना करती है, कहती है कि दीदी तो सिर्फ ग्यारहवीं पास थी, फिर भी उसे इतना अच्छा लड़का मिल गया। दीदी के पास इतना बड़ा घर, बड़ी सी गाड़ी, बैंक बैलेंस सभी कुछ है। तो मैं तो उससे बेहतर दूल्हा डिजर्व करती हूं,’’ सरिता ने खुलासा किया।

‘‘ओह, तो ये बात है। तो अब?’’ सीमा ने पूछा।

‘‘अब क्या, जब से उसकी बैचलर हुई है, तब से मां-पिता जी उसके लिए रिश्ता ढूंढ़ रहे हैं। लेकिन वह हर रिश्ते में हमारी जैसी संपन्नता, राजीव जैसा लड़का और घर-परिवार ढूंढ़ती है,’’ सरिता ने समस्या की असली वजह बतायी।

‘‘हां, अब राजीव भैया जैसा भला इंसान और इतना बुलंद कैरिअर तो हर किसी का नहीं हो सकता,’’ सीमा ने कहा, ‘‘फिर तेरी तो सासू मां भी मां से बढ़ कर हैं।’’

‘‘वही तो। बस इसी कारण से उसकी उम्र बढ़ती जा रही है और लड़का मिलना और भी मुश्किल होता जा रहा है,’’ सरिता चिंता में डूबी थी।

‘‘मेरी मां कहती हैं कि जिसको ऊपर वाले ने खास तौर से नवाजा हो, उससे कैसी तुलना?’’ सीमा ने कहा।

‘‘यही तो नहीं समझती वह, अब यह तो मेरी किस्मत थी कि राजीव मुझे मिले और उनकी वजह से ये ऐशोआराम की जिंदगी मिली। अब उसकी किस्मत में पता नहीं क्या लिखा है,’’ सरिता ने एक लंबी सांस लेते हुए कहा।

‘‘हूं, वैसे भी तैरती हुई कश्ती तो सबको दिखायी देती है, लेकिन उससे होड़ और ईर्ष्या करते-करते कितनी कश्तियां डूबीं, यह कोई नहीं देख पाता। तैरती कश्ती का प्रतिबिंब यही तो कहता है,’’ सीमा ने गंभीरता से कहा।

‘‘सही कहा तूने और मैं यह प्रतिबिंब अपनी बहन के नसीब में नहीं देखना चाहती, खासकर अपनी वजह से तो बिलकुल भी नहीं,’’ सरिता का असली डर उसकी जबान पर आ ही गया।

‘‘पर तू कर भी क्या सकती है?’’ सीमा ने पूछा।

‘‘हां, कर तो कुछ नहीं सकती। अब अपनी खुशकिस्मती को भला कोई कैसे लौटा सकता है।’’

सरिता की विवशता भी कैसी अजीब है? अपनी छोटी बहन को वह समझाए भी तो क्या और कैसे? किस्मत ने जो नियामत उसे बख्शी है, उसका कारण भी भला क्या बताए?

सीमा सैर से वापस तो आ गयी, लेकिन इसी गुत्थी में उलझी रही। क्या सरिता की बहन की उम्मीदें गलत है? यह कैसी बैलेंस शीट है ऊपर वाले की? किसी के अकाउंट में क्रेडिट ही क्रेडिट, तो किसी के अकाउंट में डेबिट ही डेबिट। किसी को बिना मेहनत सब मिलता है, तो किसी को घिस-घिस कर भी नहीं मिलता। लेकिन फिर सोचा कि पिछले जन्म से कोई कितना क्रेडिट या डेबिट ले कर आया है, वही तो नयी बैलेंस शीट का आधार बनेगा। शायद यही फर्क है सरिता और उसकी बहन गीता की किस्मत की बैलेंस शीट में, जो सभी समानताओं के बावजूद अपनी जगह अटल है।