Monday 22 January 2024 05:00 PM IST : By Gopal Sinha

ये जो शॉपिंग का सुरूर है

shopping-freak

दशहरा बीत गया, दीवाली चली गयी, करवाचौथ भी चला गया। एक-एक करके सारे त्योहार चले गए, लेकिन नहीं गया हमारा शॉपिंग का जुनून ! यह तो बढ़ती उम्र के साथ कदम से कदम मिला कर बढ़ता ही जा रहा है। और तो और, हमारे इस शाैक को हवा दी है ऑनलाइन शॉपिंग साइट्स ने। ना पति को साथ ले जाने का झंझट, ना बच्चों की चिल्लपों, बस रजाई-कंबल ओढ़ कर लंबलेट हो जाओ बिस्तर पर और उंगलियां फिराते रहो मोबाइल पर और गोते लगाते रहो दुनिया भर की आकर्षक-मोहक चीजों के समंदर में। और जब तक सत्तर ब्रांड्स की बाइट्स ना छान लो, चैन नहीं पड़ता। ये खाक छानने की बात तो डिजिटल जमाने में आउटडेटेड हुई, अब तो केबी-एमबी और जीबी छानने का जमाना है।

लेकिन कुछ भी कहें, जो मजा मोलभाव करके बाजार में खरीदारी करने का है, वह ऑनलाइन शॉपिंग में कहां। हम खरीदने से पहले जब तक छू कर, खुरच कर, दबा कर चीजों को ना देख लें, संतोष कहां। हालांकि एक बार एक सब्जी वाले भैया ने हमको सुना ही दिया। हम टमाटर खरीद रहे थे और उसे दबा-दबा कर छांट रहे थे। सब्जी वाले ने थोड़ी देर तो सब्र रखा, फिर कह बैठा, ‘‘बहन जी, आपको भी इसी तरह पसंद किया गया था क्या?’’

गुस्सा तो बहुत आया, पर हम कुछ सोच कर चुप रह गए और बिना दबाए ही टमाटर खरीद कर ले आए। हमको पुराने दिन याद आ गए, जब हमको पसंद करने हमारे पति अपनी अम्मा संग आए थे और कभी बहाने से चला कर, तो कभी बुलवा कर परख रहे थे कि कहीं लड़की गूंगी-बहरी और लंगड़ी तो नहीं है। इसी उधेड़बुन में हम फ्री में धनिया-मिर्ची मांगना भी भूल गए, जिसे हम अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानते हैं।

शॉपिंग की हुड़क तब ज्यादा जोर मारती है, जब हमारी कोई सखी-सहेली अपना खरीद कर लाया सामान दिखा कर टशन मारे। मारे पीयर प्रेशर के हम बाजार की दौड़ लगा ही लेते हैं, हम किसी से कम हैं क्या ! बाजार में जगह-जगह लगे सेल के बोर्ड-बैनर हमें उसी तरह ललचाते हैं, जैसे किसी बच्चे को रंगबिरंगे गुब्बारे। लेकिन हम अकेले ही ऐसे नहीं हैं, यह तो तब पता चलता है, जब सेल में भारी भीड़ देखते हैं। बस एक ही दुख है कपड़ों की सेल में खरीदारी करने का, उनकी शर्त कि एक के साथ दो फ्री, दो के साथ पांच फ्री और तीन के साथ सात फ्री। अब इस चक्कर में ना चाहते हुए भी हमें अपनी ननद और सास के साइज का भी कपड़ा लेना पड़ता है। कितना पहनेंगे एक ही फैब्रिक और एक जैसे डिजाइन के कपड़े, बांटने तो पड़ेंगे ही।

sale-day

लेकिन इस वन प्लस टू-थ्री के ऑफर ने बेड़ा गर्क कर रखा है। एक बार सेल में वॉशिंग मशीन के कवर के साथ सिलाई मशीन का कवर फ्री में दे रहे थे, मैंने झटपट ले लिए। घर आ कर याद आया कि अपने पास सिलाई मशीन तो है ही नहीं। इसी तरह ना जाने कितनी बेकार की चीजों का अंबार मैंने अपने घर में लगा लिया है। क्या करें, शॉपिंग के समय फ्री में कुछ मिलता देख कर कंट्रोल ही नहीं होता।

खरीदारी में मोलभाव का अपना ही आनंद है, पर यह सबके बस की बात नहीं। कई लोग तो इतने नीरस होते हैं कि दुकान गए, सामान तुलवाया और जितने दुकानदार ने बताए, उतने पैसे दे कर आ गए। भला यह भी कोई बात हुई ! भई, मेहनत की कमाई है, ऐसे थोड़े ही ना लुटा देंगे। मेरी एक सहेली है इस कला की धुरंधर। एक बार छुटि्टयों में हमारे पास आयी, तो हम तो उसी के साथ बाजार जा कर शॉपिंग करने पहुंचे।

एक दुकान में घुसते ही सहेली ने कहा, ‘‘अरे यही तो हैं, हम कब से इनकी दुकान ढूंढ़ रहे थे।’’

मैं भौंचक्की सी उसे देख रही थी, तभी उसने दुकानदार से कहा, ‘‘भैया, कैसे हैं आप, काफी दिनों बाद आपकी दुकान पर आयी हूं...’’

दुकानदार उसकी बात काट कर बोला, ‘‘अरे मैडम, हम आपको पहचानते नहीं क्या, पिछली बार तो आपने कितनी सारी खरीदारी की थी।’’ सुन कर सहेली खीं-खीं करके हंस पड़ी और मैं उन दोनों के मुंह देखती रही, क्योंकि मेरी यह सहेली पहली बार इस शहर में आयी थी।

खैर, सहेली ने तपाक से बिंदास अंदाज में कहा, ‘‘यार, अपनी दुकान समझ कर तुझे जो लेना है, ले ले। पैसों की चिंता नहीं करना।’’

दुकानदार ने भी कहा, ‘‘हां मैडम, जो पसंद आए बताते जाइए।’’ मेरी हैरानी का पारा उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था, क्योंकि दुकानदार ने सहेली की लच्छेदार बातों में आ कर 3 हजार रुपए की चीज 1600 रुपए में खुशी-खुशी दे दी।

कई बार शॉपिंग पर जाना शर्मिंदगी की वजह भी बनती है। पिछले दिनों गांव से मेरे कुछ रिश्तेदार आए हुए थे। पैसा तो बहुत था उनके पास, पर शऊर नहीं। उन्हें शादी के लिए कपड़ों की खरीदारी करनी थी, लिहाजा हम कपड़े की एक पहचान वाले की दुकान में पहुंचे। दुकानदार ने रिश्तेदारों के साथ आया देख कर हमें कोल्ड ड्रिंक भी पिलायी। वे लोग पचासों साड़ियां, सूट व ड्रेस मटीरियल देखने के बाद यह कह कर बिना कुछ खरीदे उठ लिए कि उन्हें कुछ पसंद नहीं आया। सिर्फ यही नहीं, कपड़े देखते समय उन वे पति-पत्नी आपस में इस तरह झगड़ पड़ते, मानो आसपास कोई और हो ही नहीं। बेचारा दुकानदार चुपचाप हमारा मुंह देखता रहा। मारे शर्मिंदगी के हम उस दुकान में अभी तक दोबारा नहीं गए हैं।

अगले दिन जब उन लोगों ने किसी और दुकान में चलने के लिए कहा, तो अचानक ही मुझे चक्कर आने लगे और तबियत खराब होने का जेनुइन बहाना बना कर उन्हें अकेले ही भेज दिया। शॉपिंग पर ना जा पाने का दुख झेलना मंजूर था, लेकिन दोबारा वैसी जिल्लत झेलना मुझे गवारा नहीं था।

शॉपिंग को आज की मॉल संस्कृति ने और सहज बना दिया है। जो चीज चाहिए, वह तो डिस्प्ले में हैं ही, जो नहीं चाहिए उसकी भी ढेरों वेराइटी साथ में मौजूद होती है। अब इसमें मुझ जैसा आम खरीदार कैसे ना फंसे। जरूरत अचानक ही पैदा हो जाती है और एक के बजाय तीन खरीद कर ही चैन आता है। करेला और वह भी नीम चढ़ा यह कि कैश की कोई चिंता रह नहीं गयी है अब। हर हाथ में मोबाइल है और हर मोबाइल में यूपीआई पेमेंट की सुविधा। यह भी ना हो, तो डेबिट-क्रेडिट कार्ड तो है ही।

हम महिलाएं मॉल सिर्फ शॉपिंग के लिए नहीं जाती हैं, सेल्फी जैसा पुण्य कार्य भी वहां बखूबी संपन्न किया जाता है। मेरी एक सहेली पति से शॉपिंग के लिए कह कर मॉल में घुसी, तो 3 घंटे बाद बाहर निकली। पति ने पूछा कि इतनी देर में क्या-क्या लिया, तो शान से बोली, ‘‘एक लिपस्टिक और 40 सेल्फी।’’

सेल्फी के अलावा मॉल में शॉपिंग के लिए जाने की एक और वजह होती है, वह है गॉसिंपिंग। सहेलियों से बतियाने का जो मजा शॉपिंग मॉल में आता है, वह कहीं और नहीं। जो इस वक्त वहां मौजूद नहीं, उसकी तो छीछालेदर सुनिश्चित होती है।

इधर हम शॉपिंग के बहाने मस्ती करते हैं, उधर हमारे पति हमारे इंतजार में ऊंघ रहे होते हैं। रिसर्च भी कहती है कि पुरुष 26 मिनट की ही शॉपिंग बोर हो जाते हैं, जबकि महिलाएं 2-3 घंटे तो खरीदारी में यों ही बिता देती हैं। अलबत्ता कुछ पति शॉपिंग करती खूबसूरत हसीनाओं को देख-देख कर अपनी बोरियत दूर करते रहते हैं। मेरी तो कोशिश यही रहती है कि पति को शॉपिंग में साथ ना ले जाऊं। ना उनके बोर होने का खतरा और ना ही उनकी बोरियत दूर करने के लिए आजमाए जाने वाले ‘नयनसुख’ तरीके का जोखिम।

अब पति चाहे बोर हों, पर हमारे लिए शॉपिंग कई मायनों में फायदेमंद है। वॉक के लिए बीस बहाने बनाने वाली मैं शॉपिंग पर जाने के नाम से झट से तैयार हो जाती हूं और हजारों स्टेप्स मॉल या बाजार में चल लेती हूं बिना उफ किए। यह तो तय है कि जो आलसी हैं, वे ऑनलाइन शॉपिंग करते हैं और जो हमारी तरह ‘हेल्थ कॉन्शस’ वे मार्केट या मॉल में जा कर। फिर शॉपिंग तनाव दूर करने का बेहतरीन जरिया है, यह तो हमारे शोधकर्ताओं ने साबित कर दिया है। तो हमारी शॉपिंग पर नजर ना लगाइए। हमें बिंदास खरीदारी करने दीजिए।