Friday 07 July 2023 11:14 AM IST : By Shanno Shrivastava

कोमलिका

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‘‘दिस इज द लास्ट कल फॉर मि. अमरेंद्र।दिल्ली एअरपोर्ट पर अपने नाम का अनाउंसमेंट सुन कर अचानक मेरी

तंद्रा भंग हुई, और मैं अपनी डबडबायी आंखों को पोंछता हुआ लगभग दौड़ता हुआ गेट नं. 4 की तरफ भागा। मैं इतना चेतना शून्य कैसे हो गया कि एअरपोर्ट पर घंटेभर से बैठे होने के बावजूद मुझे ना तो हवाई जहाज का डिपार्चर समय याद रहा और ना ही बार-बार अपने नाम की पुकार सुनायी दी।

हवाई जहाज में प्रवेश करके मैंने अपना बैग केबिन में रखा और अपनी सीट पर बैठ कर सीट बेल्ट बांध ली। उस समय मैं आंखें बंद करके सबसे दूर हो कर सिर्फ अपने अंतर्मन से जूझना चाह रहा था, पर तभी मेरा फोन बज उठा, ‘नेहा काॅलिंग...’

कल तक जिसका नाम देख कर दिल की धड़कनें बेकाबू हो जाया करती थीं और बातों का सिलसिला थमने को तैयार नहीं होता था, आज उसकी कॉल को रिसीव करने का भी दिल नहीं हुआ।

मैंने उसे प्लेन इज अबाउट टू टेक आॅफ....विल काॅल यू लेटर, लव यू का मैसेज डाल कर मोबाइल स्विच आॅफ कर दिया। इस समय उसे बिना हर्ट किए अवॉयड करने का इससे बेहतर तरीका और कोई नहीं था मेरे पास। पर ऐसा करने के कारण मेरा मन नेहा के लिए अपराध भाव से घिर गया। आखिर इन सबमें उस बेचारी का क्या कसूर है?

मन की बोझिलता को कम करने की कोशिश में मैंने अपनी निगाह खिड़की के बाहर टिका दी। हवाई जहाज बादलों के काले-सफेद झुंड के बीच उड़ रहा था। कुछ वैसे ही बादल मेरे अंतर्मन में भी उमड़-घुमड़ रहे थे। मेरा व्यथित मन बार-बार अतीत की ओर ही उड़ा जा रहा था।

परसों मेरी नेहा के साथ सगाई थी। सगाई की पूरी तैयारी हो चुकी थी। पर रस्म शुरू करने से पहले हम सब कोमलिका के पहुंचने का इंतजार कर रहे थे। हमने उसे फोन किया, पर लगातार घंटी बजने के बावजूद उसके फोन ना उठाने से हम चिंतित हो उठे।

तब मैंने उसकी रूममेट श्वेता को फोन किया, तो उसने बताया कि कोमलिका को तेज बुखार है और वह सो रही है। यह सुन कर हम सब घबरा गए। हमने जब वहां आने की बात कही, तो कोमलिका ने श्वेता से फोन ले लिया और कहा, ‘‘आप लोग परेशान ना हों, मैं श्वेता के साथ डॉक्टर के पास जा रही हूं। वहां से दवा ले कर सीधा सगाई में आ जाऊंगी।’’

पर हम इंतजार करते रहे और सगाई की रस्म पूरी भी हो गयी, पर कोमलिका नहीं पहुंची। हम सबके लिए यह बिलकुल अप्रत्याशित था। किसी को यकीन ही नहीं हो रहा था कि मेरी सगाई में कोमलिका नहीं आयी। कल तक सगाई की व्यवस्था में जी जान से लगी रहनेवाली कोमलिका आज सगाई में नहीं पहुंच पायी, यह बात अविश्वसनीय थी हम सबके लिए।

इस बात से मेरे अंदर एक खटका सा हुआ इसलिए दूसरे दिन सुबह-सुबह ही मैं कोमलिका का हाल लेने के लिए दिल्ली उसके हॉस्टल चला गया। वहां उसे पूरी तरह स्वस्थ देख कर मैं अवाक रह गया।

‘‘तुम तो बिलकुल ठीक हो, फिर तुम कल आयी क्यों नहीं?’’

‘‘मैंने कोशिश की थी, पर शरीर ने साथ नहीं दिया,’’ मुझसे नजरें चुराते हुए कोमलिका ने जवाब दिया।

मुझे कोमलिका एक अलग ही रूप में दिख रही थी, जिसमें उस कोमलिका का कोई अंश नजर ही नहीं आ रहा था, जिसे मैं बचपन से जानता था। उसकी बात भी किसी तरह मेरे गले नहीं उतर रही थी।

‘‘मुझसे कोई गलती हुई है क्या? या मुझसे नाराज हो? आज तुमने मेरे साथ-साथ पापा-मम्मी को भी हैरत में डाल दिया है। वे लोग तो यकीन ही नहीं कर पा रहे हैं कि मेरी सगाई में तुम नहीं आयी।’’

‘‘ अमरेंद्र, मैं बहुत शर्मिंदा हूं, इसके लिए मैं अंकल-आंटी से माफी मांग लूंगी, पर आपसे मेरी विनती है कि आप उन्हें यह बिलकुल ना बताइएगा कि मेरी तबियत खराब नहीं थी।’’

‘‘कोमलिका, मैं उन्हें कुछ बताऊं या ना बताऊं, पर दुख तो तुमने उन्हें जानबूझ कर ही पहुंचाया है ना ! उन्हें जानबूझ कर दुखी किया है, तो कारण भी कोई बड़ा ही होगा। आज वह कारण जाने बिना मैं यहां से जाऊंगा नहीं।’’

‘‘अमरेंद्र, अंकल-आंटी को मैं मना लूंगी, और अब आपकी शादी की हर रस्म पर एक दिन पहले से ही मौजूद रहूंगी, प्रॉमिस ! अब आप जाइए,’’ कह कर कोमलिका उठ कर जाने को हुई, तो जाने कैसे मेरे मुंह से वह बात निकल गयी, जो मैं महसूस कर रहा था, ‘‘कोमलिका, कहीं तुम मुझसे प्यार...?’’

प्रत्युत्तर में उसकी बड़ी-बड़ी आंखें मेरे चेहरे पर चिपक गयी थीं। उन आंखों में तैरते सैलाब को देख कर मैं कांप सा गया। मैं अपने आपको संभाल पाता, उससे पहले ही मुझे मेरे हाल पर छोड़ कोमलिका दौड़ती हुई वहां से चली गयी।
मैं किंकर्तव्यविमूढ़ सा जहां का तहां बैठा रह गया। तो क्या मेरे मन में उठा शक का बवंडर सही था? क्या कोमलिका इसलिए ही मेरी सगाई में शामिल नहीं हुई, क्योंकि वह मुझसे प्यार करती है ! और वह मुझे किसी और का होता हुआ नहीं देख सकती थी ! यह मेरे लिए एक जबर्दस्त झटका था। पर... अगर वह मुझसे प्यार करती थी, तो उसने यह बात मुझसे कभी कही क्यों नहीं?

मैंने नेहा के साथ अपनी सगाई के बाद नयी जिंदगी के रंगीन सपने सजाने शुरू ही किए थे कि कोमलिका के प्यार के इजहार से मैं एकदम लुटा हुआ महसूस करने लगा। और करता भी क्यों ना? आखिर मेरा भी तो पहला प्यार वह ही थी, यह बात अलग है कि कोमलिका की ही तरह मैंने भी यह बात अपने अंदर ही छिपा कर रखी थी।

मेरी आंखों से जाने कब से आंसू टपक रहे थे, मुझे पता ही नहीं चला। आंसुओं पर ध्यान तब गया, जब एअरहोस्टेस ने आ कर कहा, ‘‘आर यू ओके सर? मे आई हेल्प यू?’’ और मुस्कराते हुए मुझे पानी का गिलास पकड़ा दिया ।

मैंने गिलास से पानी पिया और रुमाल निकाल कर अपना चेहरा साफ किया। अब क्या करूं? क्या नेहा से सगाई तोड़ दूं? और कोमलिका से विवाह कर लूं? आखिर अब तो मेरा प्यार एकतरफा नहीं है, मुझे पता चल चुका है कि कोमलिका भी मुझे प्यार करती है, तो फिर क्यों हम दूसरों के खातिर अपनी खुशियां कुर्बान करते रहें?

पर दूसरा है कौन, जिसके बारे में मैं ना सोचूं? नेहा? नेहा भी अब दूसरी कहां रह गयी है। अब तो मेरी मंगेतर है वह। मेरी मनोदशा से अनभिज्ञ वह इस समय सतरंगी सपनों में डूबी होगी अौर बेसब्री से मेरे लैंड करने की सूचना के साथ-साथ किसी रोमांटिक मैसेज का इंतजार कर रही होगी। उसके सपनों को चकनाचूर करना क्या ठीक होगा?

और मम्मी-पापा? क्या मेरे ऐसा करने पर उनका सम्मान आहत नहीं होगा? क्या अपने स्वार्थ के लिए मम्मी-पापा के उस विश्वास को तार-तार कर दूं, जो वे मुझ पर करते हैं।

मेरा मन फिर से अतीत की ओर लौट गया। उस गरमी की दोपहर मम्मी-पापा के साथ मैं अपने चाचा जी के यहां जा रहा था। कार हमारे ड्राइवर बृजमोहन अंकल चला रहे थे, जिन्हें प्यार से हम बीजी अंकल कहा करते थे। बीजी अंकल सालों से हमारे घर के सदस्य की तरह रह रहे थे। उस दिन उनकी बेटी के स्कूल में एनुअल फंक्शन था। बीजी अंकल बता रहे थे कि उनकी बेटी बहुत होनहार है, अपनी कक्षा में हमेशा फर्स्ट आती है और अपने स्कूल के सभी टीचर्स की फेवरेट स्टूडेंट है। आज उसके स्कूल में एनुअल फंक्शन है और वह अनेक कार्यक्रम में हिस्सा ले रही है। अंकल पापा को बता रहे थे कि वह अपनी बेटी को एमबीए कराना चाहते हैं, ताकि वह किसी बड़ी कंपनी में किसी बड़े पद पर काम कर सके।

बीजी अंकल समय से अपनी बेटी के स्कूल पहुंच सकें, इसलिए पापा ने उनसे कहा, ‘‘बीजी, तुम हमें ड्रॉप करके बिटिया के स्कूल चले जाना। हम टैक्सी करके वापस आ जाएंगे।’’ बीजी अंकल बहुत खुश हुए थे। पर ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था। हमें पहुंचा कर लौटते समय बीजी अंकल का एक्सीडेंट हो गया।

पापा के फोन पर सूचना मिलते ही मम्मी-पापा तुरंत अस्पताल पहुंचे, पर तब तक बीजी अंकल की जीवन लीला समाप्त हो चुकी थी। उनकी पत्नी पहले से ही नहीं थीं। अतः मम्मी-पापा को सबसे पहले उनकी अनाथ हो चुकी बेटी की चिंता हुई और बिना एक पल गंवाए उनकी बेटी कोमलिका को उसके स्कूल से सीधा अपने घर ले आए। आठ साल की नन्ही सी कोमलिका कुछ समझ नहीं पा रही थी कि ये सब क्या हो रहा है? ये लोग कौन हैं और उसे इस तरह यहां क्यों लाया गया है? मेरी मम्मी ने उसे अपने सीने से चिपका लिया था और तब तक अपनी गोद से नहीं उतारा था, जब तक उसके दादा-दादी नहीं आ गए थे।

अपने दादा-दादी के आने पर कोमलिका दौड़ कर उनसे लिपट गयी थी। वे लोग भी सुधबुध खो बैठे थे। बड़ी मुश्किल से मेरे मम्मी-पापा ने ही उन्हें संभाला था अौर धैर्य बंधाया था।

दो-तीन दिनों बाद वे लोग कोमलिका को अपने साथ ले कर गांव जाने की तैयारी करने लगे। तब पापा ने उन्हें रोकते हुए कहा था, ‘‘बीजी चाहता था कि उसकी बेटी बड़ी हो कर एमबीए करे और बड़ी आॅफिसर बने। अपनी मृत्यु के चंद घंटे पहले ही उसने यह बात हमसे की थी। अगर आप लोग कोमलिका को ले कर गांव चले जाएंगे, तो उसकी इच्छा अधूरी रह जाएगी। और वैसे भी गांव में कोमलिका की शिक्षा बाधित हो जाएगी। मेरी सलाह यही है कि अब आप लोगों को कोमलिका के भविष्य की खातिर यहीं रहना चाहिए और उसे पढ़ाना चाहिए।’’

पापा की बात सुन कर कोमलिका के दादा-दादी के अनवरत बहते आंसू और उनकी गोद में चिपकी कोमलिका को देख कर मैं भी रो पड़ा था। दादा जी ने रोते हुए कहा था, ‘‘किसके सहारे रहेंगे हम इस अनजान शहर में। जो सहारा था हमारा, वह तो बेसहारा छोड़ कर चला गया।’’

तब पापा ने विनम्रता से कहा था, ‘‘काका जी, बीजी हमारा ड्राइवर जरूर था, पर हमारे लिए घर के सदस्य से कम नहीं था। उसने 15 साल हमारी सेवा की है। मैं आपकी यहां रुकने और कोमलिका की पढ़ाई के लिए हर संभव मदद करूंगा।’’

पापा ने गैरेज को खाली करा कर उसे वन रूम सेट का रूप दे कर कर उन्हें रहने को दे दिया। माली का काम कोमलिका के दादा जी को दे कर तथा घर के अंदर के कामों में दादी की मदद ले कर मम्मी-पापा ने उन लोगों के महीने की आमदनी की भी व्यवस्था कर दी। कोमलिका ने फिर से स्कूल जाना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे उनकी जिंदगी पटरी पर आने लगी।

कोमलिका मुझसेे हिलने-मिलने लगी थी, पर मैं जब भी उसेे देखता, तो मेरा बालमन उसके प्रति बहुत द्रवित हो उठता था। उसके मम्मी-पापा दोनों नहीं हैं, यह सोच मैं हर समय किसी ना किसी तरह से उसकी मदद करने के बहाने ढूंढ़ा करता था। कभी मैं अपनी कोई पेंसिल बॉक्स यह कह कर मम्मी को पकड़ा देता कि अब यह मुझे पसंद नहीं है, किसी को दे दो, क्योंकि मुझे पता होता था कि मम्मी अब यह पेंसिल बॉक्स कोमलिका को ही देंगी। मम्मी के साथ बाजार जाता, तो मैं मम्मी से कहता था, ‘‘मम्मी, एक फ्रॉक कोमलिका के लिए भी ले लो।’’ मैं तो एक ही फ्रॉक लेने को कहता था, पर मम्मी उसके लिए एक साथ कई चीजें लिया करती थीं, फिर उसे बुला कर बड़े प्यार से पहनाती और सजाती थीं। मम्मी खाने में जब भी कुछ खास बनातीं, कोमलिका के लिए भी जरूर भिजवा देतीं थीं, बावजूद इसके मैं स्वयं अकसर अपनी प्लेट ले कर उसके ही पास चला जाता और लॉन में बैठ कर उसके ही साथ खाता-पीता था।

समय के साथ-साथ कोमलिका मेरे घर की अहम सदस्य बनती चली गयी थी। मम्मी तो कोमलिका पर इतनी निर्भर होती चली गयीं कि उसके बिना उनका एक भी काम नहीं हो पाता था। घर में कोई खास मेहमान आने वाले होते थे, तो मम्मी कोमलिका के नाम की रट लगाना शुरू कर देती थीं। कोमलिका मम्मी की मदद करके उनके साथ मेहमानों का भी दिल जीत लिया करती थी।

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मुझे ठीक से याद नहीं कि शुरुआत कब हुई थी, पर कोमलिका के मासूम सौंदर्य के साथ-साथ उसकी सहनशक्ति, कलात्मकता अौर समझदारी देख कर धीरे-धीरे उसके प्रति मेरा आकर्षण बढ़ने लगा था। मुझे उसके साथ बात करना और बैठना अच्छा लगने लगा था। कई बार मैं बिना किसी वजह के भी उसके साथ घंटों बैठा रह जाता था। किसी दिन अगर वह अपनी पढ़ाई या किसी भी वजह से घर में नहीं आती थी, तो मैं बेसब्री से उसके आने का इंतजार करता था। धीरे-धीरे मुझे इस बात का अहसास होने लगा कि यह सब अनायास नहीं हो रहा है, बल्कि मैं कोमलिका से प्यार करने लगा हूं।

वह बहुत कठिन दौर था मेरे लिए। एक तरफ मेरे ऊपर मेरी भावनाएं हावी हो रही थीं, तो दूसरी तरफ मुझे इस बात का अहसास भी था कि मेरा यह कदम मेरे परिवार और कोमलिका की बदनामी का कारण बन सकता है। पर मैं स्वयं से जीत नहीं पा रहा था। कोमलिका दिन-प्रतिदिन मेरे दिलोदिमाग पर छाती चली जा रही थी। मेरा मन पढ़ाई से उचटने लगा था और मैं कोमलिका को देखने और उससे बातें करनेे के बहाने तलाशने लगा था।

दुर्भाग्यवश उसी दौरान कोमलिका का घर के अंदर आना-जाना कम हो गया। मम्मी ने बताया कि उसकी परीक्षाएं शुरू होने वाली हैं। मैं उसे देखना चाहता था, पर वह कमरे के बाहर भी कम ही निकलती थी। मैं अकसर उसकी सिर्फ एक झलक पाने के लिए घंटों खिड़की से उसके कमरे की ओर देखा करता था।

मैं बहुत बेचैन और परेशान रहने लगा था, तभी मेरा सलेक्शन आईआईएम हैदराबाद में हो गया और मैं एमबीए करने के लिए हैदराबाद चला गया। वहां जा कर मैं कोमलिका को पूरी तरह भुला तो नहीं पाया, पर स्थिति को स्वीकार करना सीख गया। एमबीए खत्म होते ही एक मल्टीनेशनल कंपनी के लिए मेरा कैंपस सलेक्शन हो गया अौर मैं बंगलुरू चला गया।

उधर कोमलिका का लक्ष्य भी निर्धारित ही था। ग्रेजुएशन पूरा करते ही उसने भी कैट की परीक्षा दी और अच्छी रैंक की वजह से दिल्ली की एक अच्छी संस्था में उसे प्रवेश मिल गया। स्वयं गारंटर बन कर पापा ने उसका एजुकेशन लोन पास करा दिया। वह भी एमबीए करने के लिए हॉस्टल में रहने चली गयी।

पिछले दो सालों में जबसे कोमलिका हॉस्टल में गयी, तबसे मेरी उससे मुलाकात एकाध बार ही हुई थी। जब कभी मैं छुट्टियों में घर आता, तो कोमलिका हॉस्टल में होती थी और वह घर आती थी, तो मैं बंगलुरू में होता था।

मां ने मेेरे लिए तो नेहा को पहले से ही पसंद कर रखा था। मेरी जॉब लगते ही मम्मी उसे बहू बना कर घर में लाने को आतुर हो उठीं। शादी के नाम पर मेरे मन में एक बार फिर से कोमलिका का खयाल आया था, क्योंकि भले ही मैंने अपनी भावनाओं को दबा दिया था, पर मन से निकाल नहीं पाया था। लेकिन शायद उसके मन में मेरे लिए एेसी कोई भावना ना हो, यह सोच कर मैंने उसकी तरफ से अपना ध्यान हटा कर नेहा के लिए हां कर दी थी।
आज जब कोमलिका के मन की बात मुझे पता चल गयी है, तब अचानक मुझे वह दिन याद आ रहा है, जब एक बार नेहा अपने मम्मी-पापा के साथ मेरे घर आयी थी। उन लोगों के जाने के बाद मम्मी ने कोमलिका से कहा था, ‘‘नेहा हमें बहुत पसंद है, हमने मन ही मन उसे अमरेंद्र के लिए चुन रखा है। तुम बताओ तुम्हें कैसी लगी नेहा? अच्छी रहेगी ना दोनों की जोड़ी?’’ तब अचानक ‘अभी आयी आंटी’ कह कर कोमलिका वहां से चली गयी थी और काफी देर बाद वापस आयी थी। मुझे अब समझ में आ रहा है कि वह इस तरह अचानक क्यों चली गयी थी और वापस आने पर उसकी आंखें लाल क्यों थीं?

मुझे बेहद हैरान कर दिया है कोमलिका ने ! अपने संवेगों पर इतना नियंत्रण रखना कैसे सीखा उसने? काश ! उसने बस एक बार अहसास तो करा दिया होता मुझे। फिर तो मैं उसे अपने दिल की रानी बना कर रखता जीवनभर !

प्लेन के लैंड करने से लगे झटके की वजह से मैं यादों के गुबार से बाहर आ गया। केबिन से अपना बैग ले कर यंत्रचालित सा मैं हवाई जहाज की सीढ़ियां उतर गया। मेरा दिमाग अभी भी अपना संतुलन कायम नहीं कर पाया था। कोमलिका के इजहार ने मेरे सुषुप्त प्यार को हवा दे दिया था।

कोमलिका को तो शायद बचपन से खोने अौर सहन करने की आदत पड़ चुकी थी, पर मेरे लिए यह मुश्किल था। कोमलिका को तो शायद अपने जीवन में अपने माता-पिता से एक गुड़िया तक खरीदने की जिद करने का मौका नहीं मिला था, पर मुझे तो मांगने से पहले ही हर चीज मिल जाती थी।

पर अब बस ! मैं अब उसके जीवन में कोई कमी नहीं रहने दूंगा। अब अपनी ख्वाहिशों का गला और नहीं घोंटने दूंगा मैं कोमलिका को। प्यार को तरसती उसके खाली झोली को भरने के लिए मैं संघर्ष करूंगा, अब खुशियों के पल उसकी झोली में डालने से मुझे कोई नहीं रोक सकता। मुझे उससे बात करनी ही होगी। चौबीस घंटे की जद्दोजहद के बाद मैं यह निर्णय ले चुका था कि अब चाहे जो भी करना पड़े, मैं शादी कोमलिका से ही करूंगा।

टैक्सी में बैठते ही मैंने अपना मोबाइल स्वीच आॅन किया। मैंने तय कर लिया था कि कोमलिका को अब अपनी सचाई भी बता कर उसे अपनी जीवनसंगिनी बनाने का अपना निर्णय सुना दूंगा।

मोबाइल आॅन करते ही कतार में खड़े ढेर सारे मैसेज एक-एक करके स्क्रीन पर चमकने लगे। सबको अनदेखा करता हुआ मैं मन ही मन कोमलिका को फोन पर कहनेवाले शब्दों की तलाश कर ही रहा था कि अचानक स्क्रीन पर श्वेता का मैसेज दिख गया। अपने लिए श्वेता का मैसेज देख कर मुझे आश्चर्य हुआ और मैं उसे पढ़ने से खुद को रोक ना सका।

श्वेता ने लिखा था- अमरेंद्र, मैं आपको कुछ बताना चाहती हूं। पर आपको कसम है कोमलिका की कि आप उसे यह बिलकुल नहीं बताएंगे कि मैंने आपको कुछ बताया है। मैं आपको सचाई सिर्फ इसलिए बतानाा चाहती हूं, क्योंकि मैंने आपके लिए कोमलिका के प्यार को शिद्दत से महसूस किया है और उसे तिल-तिल मरते देखा है। कोमलिका ने

मुझे बताया था कि वह तो आपको बचपन से ही बहुत पसंद करती थी, पर जब उसे इस बात का अहसास हुआ कि आप भी उसे पसंद करने लगे हैं, तो वह बहुत घबरा गयी। उसे अपने आप पर तो भरोसा था, पर इस संदर्भ में उसे आप पर भरोसा नहीं था, क्योंकि वह जानती थी कि आपको पसंद की हर चीज पा लेने की आदत है। अगर आपके मन में उसके लिए प्यार पनपा, तो आप उसे हर हाल में पा लेना चाहेंगे और यही कोमलिका नहीं चाहती थी।

उसका कहना था कि अगर ऐसा हुआ, तो लोग यही सोचेंगे कि एक मालिक ने अपने ड्राइवर की अनाथ हो चुकी बेटी पर तरस खा कर उसे अपने घर में शरण दी और वह उनके ही बेटे को फंसा कर घर की बहू बनने का सपना सजाने लगी। इसलिए वह जानबूझ कर आपसे दूर-दूर रहने लगी। आपको खुद से दूर करने के प्रयास में वह तिल-तिल मरी है, पर उसे सुकून इस बात का है कि उसने अपनी ओर उंगली उठाने का मौका किसी को नहीं दिया। उसके लिए अपनी खुशी उतनी महत्वपूर्ण नहीं है, जितनी आपकी और आपके परिवार की खुशी।

आपकी सगाई के दिन वह बहुत बेचैन थी। बहुत रोयी भी थी, पर अब उसने अपने आपको संभाल लिया है। इस समय वह आपके घर गयी हुई है। कह रही थी अंकल-आंटी के पैर पकड़ कर सगाई में ना शामिल हो पाने के लिए क्षमा मांगेगी। उसे अफसोस इस बात का हो रहा था कि उसके ना होने से आंटी को बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ा होगा। उन्होंने उसके भरोसे ना जाने कितने सारे काम छोड़ रखे रहे होंगे।

अमरेंद्र, कोमलिका ने जो त्याग किया है, वह करना किसी भी लड़की के लिए आसान नहीं है। पर उसे जो करना था वह कर चुकी है और अब आपकी बारी है। आपको उसके त्याग का सम्मान करना होगा। उसने बचपन से सिर्फ खोया ही खोया है। उसके पास अपनी कोई संपत्ति है, तो वह है केवल उसका आत्मसम्मान। उसकी इस धरोहर पर आंच मत आने दीजिएगा, मेरी आपसे बस इतनी ही विनती है।

श्वेता का मैसेज पढ़ कर मैं फिर से बौखला सा गया। मुझे ऐसा महसूस होने लगा कि मेरे बेचैन अौर अशांत मन के अंदर का झंझावत कभी खत्म नहीं हो पाएगा। मैंने अपना सिर सीट पर टिका अपनी लाल हो चुकी आंखों को भींच कर बंद कर लिया। पर इस बार आंखों से बहते आंसुआें को रोकने की मैंने कोई कोशिश नहीं की। मैं जीभर कर रो लेना चाहता था, क्योंकि मैं अपना निर्णय बदल रहा था। मैंने तय कर लिया था कि मैं कोमलिका की भावना का सम्मान करूंगा। उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचे, ऐसा कोई भी कदम उठाने को मैं सोच भी नहीं सकता था। खो कर भी खुश कैसे रहा जाता है, यह उससे ही सीख लूंगा उसकी ही खुशी की खातिर।