Thursday 20 July 2023 04:09 PM IST : By Pragney Mehta

दीप्ति कुमारी

dipti-kumari

दुनिया में कुछ बुरी चीजें होती हैं और कुछ अच्छी। पर मैंने यह जाना कि दुनिया के दांत होते हैं और वे तुम्हें खाने की कोशिश करते हैं, बहादुर बने बिना तुम्हें दुनिया जीने नहीं देती। यह कहानी दीप्ति कुमारी की है, मेरी बेटी की, मैं यह कहानी आपको शुरू से बताना चाहती हूं।

हम 1995 में दिल्ली के पास के गांव शीतलपुरा में रहते थे। काफी अच्छा गांव था वह, जब तक वहां एक घटना नहीं घटी थी तब तक।

‘‘अरे निर्मला ! यह देखो ! कुसुमगढ़ से चाचा जी का निमंत्रण आया है, लिखा है उनकी बेटी शीला की शादी तय हो गयी है। जल्दी आओ देखो इसे,’’ मेरे पति ने हुक्का गुड़गुड़ाते हुए मुझे आवाज लगायी।

मैं रसोई से भागी-भागी आयी, ‘‘बधाई हो सुरभि-दीप्ति के पिता जी ! बहुत-बहुत बधाई !’’

‘‘शादी अगले हफ्ते की है। सुना है लड़का उनके पास ही के गांव का है और शहर में नौकरी करता है,’’ मेरे पति काफी खुश थे। उनकी आवाज सुन कर सुरभि और दीप्ति भी भागी चली आयीं। उस समय वे पास ही के स्कूल में पढ़ती थीं, सुरभि दसवीं में थी और दीप्ति छठी में।

‘‘पिता जी-पिता जी, शीला बुआ जी की शादी तय हो गयी है? अब हमें नए कपड़े चाहिए,’’ दोनों बच्चियों ने उत्साहपूर्वक कहा। पर उनके पिता जी तो बस निमंत्रण को ही निहार रहे थे।

‘‘7 बच गए हैं। तुम दोनों को स्कूल नहीं जाना क्या? चलो जल्दी से तैयार हो जाओ।‘‘ मैंने उन्हें प्यार से डांटा। दोनों स्कूल के लिए तैयार होने चली गयीं।

‘‘सुनिए चाचा जी की इकलौती बेटी है, वे चाहेंगे कि शादी धूमधाम से हो। आप भी तो दुलहन के भाई लगे, मेहमान बन कर थोड़ी ना जाएंगे। तैयारी में उनका हाथ बंटाना होगा, उसके लिए जल्दी जाना पड़ेगा और बच्चियां भी नए कपड़ों के लिए मांग कर रही हैं। क्या हम सब आजकल में कुछ खरीदारी के लिए जा सकते हैं?’’ मैंने अपने पति से पूछा।

‘‘अरे हां-हां अभी शाम को सोचते हैं, कब जा सकते हैं। मुझे खेती देखनी है, बड़ा काम है। अच्छा चलो मैं चलता हूं मुझे फसल में थोड़ा पानी सींचना है,’’ यह कह कर वे चले गए।

‘‘मम्मी-मम्मी, हम जा रहे हैं !’’ दोनों ने मुस्कराते हुए कहा और तूफान की तरह घर से भागते हुए स्कूल की तरफ निकल पड़ीं। आज से पहले मैंने दोनों को स्कूल के लिए इतना उत्सुक नहीं देखा था, बहुत खुश दिख रही थीं दोनों अपनी बुआ की शादी को ले कर।

अब मैं घर पर अकेली थी, खरीदारी के लिए क्या-क्या चाहिए, उसकी सूची बनाने लगी। सूची बनाते-बनाते मुझे सुरभि का खयाल आने लगा कि वह अब बड़ी हो गयी है, उसके लिए भी कुछ सालों में वर ढूंढ़ना शुरू करना पड़ेगा। जब सब कुछ बढ़िया चल रहा होता है, तब कब समय कैसे बीत जाता है, पता ही नहीं चलता। कब सुबह से दोपहर हो गयी, इसका अंदाजा ही नहीं हुआ। इतनी देर में दोनों बेटियां स्कूल से आ पहुंचीं। मैंने उनके लिए खाना परोस कर पूछा, ‘‘और बताओ सुरभि-दीप्ति, तुम दोनों का स्कूल का दिन कैसा रहा?’’

‘‘मम्मी, मुझे बहुत मजा आया और हां, हम दोनों ने अगले हफ्ते की छुट्टी की भी बात अपने अध्यापिकाओं से कर ली है। वे भी हमें बधाई दे रही थीं शीला बुआ जी की शादी की। मधु मैडम तो कह रही थीं कि खूब मजे करना तुम दोनों,’’ सुरभि ने उत्साह के साथ यह बात मुझे सुनायी।

‘‘हे भगवान ! इतनी क्या जल्दी थी छुट्टी की बात करने की। एक बार पूछ लेती तुम दोनों,’’ मैंने डांटा।

‘‘मम्मी, बुआ जी की शादी है। हम तो जाएंगे ही, वैसे भी बहुत समय हो गया है किसी शादी पर गए हुए,’’ दीप्ति ने मुस्कराते हुए कहा।

‘‘चलो कोई बात नहीं है। पर आगे से मुझसे पूछ कर ही कोई भी फैसला लिया करो,’’ मैंने कहा, ‘‘अच्छा सुनो बच्चो, आज-कल में हम थोड़ी खरीदारी के लिए जाएंगे। तुम दोनों सोच लेना क्या-क्या लेना है।’’ इतनी देर में बच्चों के पिता जी भी खाना खाने के लिए आ गए। उनके हाथ में कुछ पैसे थे। ‘‘अरे निर्मला ! बच्चियों को शाम के लिए तैयार कर लो, सहकारी बैंक से कुछ पैसे लाया हूं। पास ही के बाजार से जो सामान लेना है, ले लेंगे।’’

शाम के 5 बज गए, हम सब बाजार की तरफ चल दिए। दुकान पर सुरभि ने एक लहंगा पसंद किया। ‘‘मम्मी-मम्मी, मुझे भी सुरभि दीदी की तरह का ही लहंगा दिला दो,’’ दीप्ति ने मेरी साड़ी पकड़ते हुए कहा, ‘‘और क्या मैं उसके साथ के बालों के क्लिप और सैंडल भी ले सकती हूं?’’ उसकी वे चमकीली आंखें देख कर मैंने अपने पति की तरफ देखा, उन्होंने हां कर दी। आखिर हां कैसे ना करते प्यारे बच्चों की जिद तो वे कभी मना नहीं करते थे। दीप्ति ने नीला लहंगा लिया और सुरभि ने लाल। उसके साथ के चमकीले जूते भी लिए।

‘‘अरे, तुम भी कोई साड़ी देख लो,’’ मेरे पति ने मुस्कराते हुए कहा।

‘‘आपको भी नए कपड़े लेने चाहिए, आखिर कुसुमगढ़ के लोग क्या कहेंगे कि दुलहन के भाई से यूरिया की गंध आती है,’’ मैंने चुहल करते हुए कहा।

वे हंस पड़े। कहने लगे, ‘‘कौन सी रोज-रोज शादी आती है? हम सब नए कपड़े लेंगे।’’ बस ऐसे ही खरीदारी करके घर लौट आए, खाना खाया, बच्चों की आंखों में तो नींद ही नहीं थी। पूरी रात बातें करती रहीं। कब जाने हम सबकी आंख लग गयी, बस इसी उत्साह में एक हफ्ता बीत गया।
अब वह दिन आ गया था, जब हमें शीतलपुरा से कुसुमगढ़ के लिए रवाना होना था। बच्चों ने बस में खिड़की वाली सीट चुनी, सुरभि मेरे साथ बैठ गयी और दीप्ति अपने पिता जी के साथ। शीतलपुरा से कुसुमगढ़ तक का रास्ता 8 घंटे का था, मेरी तो बस में बैठे-बैठे आंख ही लग गयी थी। कुसुमगढ़ पहुंचने पर चाचा जी ने हमारा स्वागत किया, चाय पी और चाची जी के साथ मैं शादी की तैयारी में हाथ बंटाने लगी।

रात को संगीत था। दोनों बेटियां खूब नाचीं, दीप्ति ने बीच में ढोलक बजाने का प्रयास भी किया, सभी गांव की औरतें हंसने लगीं। काफी अच्छी शाम थी वो। अगले दिन हल्दी की रस्म और शाम को शादी थी। दोनों बेटियों ने अपनी पसंद के लहंगे पहन लिए अौर गुड़ियों की तरह सज गयीं। मैं मां हूं, इसलिए मुझे अपनी बेटियां सबसे खूबसूरत लग रही थीं।

जयमाला का समय था। मेरे पति ने दीप्ति को कंधे पर चढ़ा लिया। ‘‘पिता जी, बुआ जी कितनी सुंदर लग रही हैं ना?’’ दीप्ति ने पिता जी से कहा।

‘‘हां बेटी, एक दिन तुम्हारी भी शादी होगी, देखना तुम्हारी शादी मैं इससे भी धूमधाम से करूंगा,’’ उन्होंने दीप्ति के कान में कहा।

‘‘क्या मेरी शादी में बुआ जी की तरह पटाखे होंगे?’’ दीप्ति ने अपने पिता जी की तरह उनके कान में कहा।

‘‘हां-हां पटाखे, अलग-अलग तरह के फूल सब कुछ होगा, तुम तब तक काफी बड़ी भी हो जाओगी,’’ दीप्ति के पिता जी ने हंसते हुए कहा।

दीप्ति शरमा उठी और कहने लगी, ‘‘मुझे बुआ जी की तरह का ही लहंगा दिलाना पिता जी।’’

यह बात सुन कर उसके पिता जी हंस पड़े और दोबारा उसे अपने कंधों पर चढ़ा लिया। पर मैंने उनकी आंखों में नमी देखी, शायद इसलिए कि बच्चे बहुत जल्दी बड़े हो जाते हैं और अपने खुद के फैसले लेने लायक भी हो जाते हैं। उनकी आंखें नम देख कर मेरी आंखें भी भर आयीं।

फेरों का समय हो गया था, पंडित जी मंत्र पढ़ रहे थे और वर-वधू फेरे लेने लगे। दीप्ति और सुरभि अपनी बुआ और फूफा जी पर फूल बरसाने लगीं। शादी समाप्त हुई, मैंने बच्चों को दूसरे बच्चों के साथ खेलने को कहा। दोनों भागे-भागे चले गए। दोनों बच्चे काफी देर तक खेले, क्योंकि विदाई में अभी समय था। सुरभि ने आसपास देखा, उसे मैं या उसके पिता जी दिखायी नहीं दिए।

‘‘दीप्ति सुनो, मैं जरा बाथरूम से अभी आयी, तुम तब तक यहीं खेलो,’’ यह कह कर वह चली गयी। थोड़ी देर में मैंने बच्चों की तरफ देखा, पर मुझे उसमें सुरभि नहीं दिखायी दी। मैं जल्दी से दीप्ति के पास गयी। जैसे ही मैं दीप्ति के पास पहुंची, मुझे बाथरूम की तरफ से चिल्लाने की आवाज आयी। मैं दीप्ति का हाथ पकड़ कर भागी देखा, तो 4-5 लड़के सुरभि को बाथरूम से खेत की तरफ खींच कर ले जा रहे थे। मैंने तुरंत ही अपने पति को आवाज लगायी।

आवाज सुन कर सभी लोग मुझे देखने लगे, मैं सबसे मदद मांगने लगी। जब मेरे पति सुरभि को उन शैतान लड़कों से बचाने के लिए जा रहे थे, तभी उनमें से एक लड़के ने मेरे पति के पैरों की आवाज सुन ली, वे चारों शराब के नशे में धुत्त थे। उन्होंने सुरभि को जमीन पर पटका और लाठियां ले कर मेरे पति की तरफ दौड़ पड़े। मेरे पति ने भी खेत में पड़े फावड़े को हाथ में उठा लिया। उन्होंने 4 में से 2 लड़कों को उससे पीटा, पर बाकी 2 ने उन्हें लाठियों से खूब मारा। मैं सबसे हाथ जोड़ कर मदद की भीख मांग रही थी कि मेरी बेटी और मेरे पति को बचा लो, पर किसी ने भी मदद नहीं की। तभी उनमें से एक लड़के ने मेरे पति के सिर पर जोर से लाठी मारी। वे चिल्लाते हुए जमीन पर गिर गए। उनकी चीख सुन कर चाचा जी बाहर आ गए और वे लड़के उन्हें देख कर भाग गए।

चाचा जी उन्हें पास के अस्पताल ले गए, पूरी रात मेरे पति को होश नहीं आया। सुरभि रोए जा रही थी कि यह सब उसकी वजह से हुआ है। मैंने उसे गले लगा कर कहा, ‘‘इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है, यह सब उन दरिंदों ने किया है।’’

तभी डॉक्टर साहब आ गए और कहने लगे, ‘‘निर्मला जी, आपके पति को होश आ गया है, पर उनको लकवा मार गया है।’’

यह सुन कर मैं तुरंत ही अपने पति के वाॅर्ड की तरफ भागी। सुरभि तो अपने पिता जी का हाथ पकड़ कर रोने लगी और खूब माफी मांगने लगी। डॉक्टर साहब भी पीछे-पीछे आ गए।

‘‘पिता जी, आप कुछ बोल क्यों नहीं रहे?’’ सुरभि उनका हाथ दबाते हुए पूछने लगी।

डॉक्टर साहब ने कहा, ‘‘इनके दिमाग पर काफी चोट लगी है। ब्रेन हेमरेज हुआ है, ये अब कभी बोल नहीं पाएंगे, ना चल पाएंगे, पर आपकी बात जरूर समझ पाएंगे।’’ यह बात सुन कर हम सब रोने लगे।

जैसे-तैसे शाम को मेरे पति को डिस्चार्ज कर दिया। अस्पताल सरकारी था और चाचा जी का वहां रसूख था, इसलिए उन्होंने मेरे पति के लिए व्हीलचेअर भी दी। हम चाचा जी के घर पहुंचे। वहां पर शीला और उसके पति विकास अभी भी मौजूद थे। वे भी काफी दुखी थे, दोनों माफी मांगने लगे, पर मैं कुछ नहीं बोल पा रही थी।

‘‘तुम सब जब तक चाहो यहां रह सकते हो,’’ चाचा जी ने मुझे कहा, पर मेरा मन नहीं था वहां और रहने का, मैंने उन्हें कहा, ‘‘शुक्रिया चाचा जी, पर हम कल एक गाड़ी करेंगे और गांव रवाना हो जाएंगे। दीप्ति और सुरभि के पिता जी भी गांव जा कर कुछ देर आराम करना पसंद करेंगे और अब मुझे उनकी खेती भी देखनी है।’’

चाचा जी ने दोनों बेटियों को गले से लगा लिया और कहा, ‘‘पैसे की परवाह मत करना। जितना चाहिए होगा मैं इलाज के लिए दूंगा।’’ शीला ने भी दोनों बेटियों को गले लगाया और फिर विकास के साथ अपने नए घर चली गयी। वह रात चाचा जी के घर मेरे लिए बहुत लंबी थी, मुझे नींद ही नहीं आ रही थी। अपने पति का हाथ पकड़ कर काफी देर तक रोती रही। दीप्ति और सुरभि अभी बच्ची थीं, तो चाचा जी उनको शीला के कमरे में सुलाने के लिए ले गए। हमने अगले दिन गाड़ी की और शीतलपुरा की तरफ रवाना हो गए।

हम गांव पहुंचे, सामान रखा और पड़ोसियों ने मेरे पति को बिस्तर पर लिटा दिया। कुछ दिन बीत गए, सुरभि के साथ जो कुछ भी हुआ था, वह बात अब गांव में आग की तरह फैल चुकी थी। सब लोग कुछ ना कुछ मसाला लगा कर बात का बतंगड़ बना रहे थे। पता नहीं किस-किस तरह के लांछन भी लगाए जा रहे थे। स्कूल में भी सुरभि की सहेलियां उससे बात नहीं कर रही थीं। सुरभि ने स्कूल जाना छोड़ दिया।

एक शाम को मैं खेत को सींचने के बाद अपने पति को आंगन में बिठा कर रसोई में चली गयी। तभी सुरभि वहां आयी और अपने पिता जी के पास बैठ कर रोने लगी। ‘‘मुझे माफ कर दीजिए पिता जी, मुझे माफ कर दीजिए। मेरी वजह से इतना कुछ हुआ,’’ सुरभि रोते-रोते बार-बार यही दोहराए जा रही थी। वह थोड़ी देर बाद वापस अपने कमरे चली गयी।

रात को खाना खाने के लिए जब मैंने आवाज लगायी, तब वह बाहर नहीं आयी। दरवाजा खोल कर देखा, तो उसके हाथ में कीटनाशक की बोतल दिखी, मैं जोर से चिल्ला उठी। आसपास के पड़ोसी इकट्ठा हो गए। अगले दिन हमने सुरभि का संस्कार कर दिया। मैं उस दिन सबको चिल्ला-चिल्ला कर कह रही थी कि इसमें सुरभि की कोई गलती नहीं थी, उसके साथ कुछ भी गलत नहीं हुआ था। परंतु वे सब मुझे चुपचाप सुन रहे थे। इन गांववालों के लांछनों ने मेरी बेटी मुझसे छीन ली थी। उस दिन के बाद मैंने दीप्ति को कभी मुस्कराते नहीं देखा। उसके चेहरे से नूर गायब हो गया था, पर उसकी आंखों में दृढ़ता देखी थी, दृढ़ता कि हमेशा बहादुर बनो।

सुरभि के जाने के बाद कई दिन मैं खेत में काम करने के लिए नहीं गयी। घर में मुझे हर कोने में वह दिखायी देती। उसका सारा बचपन इसी घर में बीता था, मुझे वह कभी गेंद के साथ 4 साल की बच्ची के रूप में दिखती, तो कभी अपनी बहन के साथ खेलती दिखती। दिन-रात मुझे बस उसी की याद आने लगी थी। मुझसे ना तो अब खेत संभाला जा रहा था, ना दीप्ति और सुरभि के पिता जी की तबियत। मैंने फैसला किया कि गांव छोड़ कर दिल्ली जाऊंगी। शायद कुछ पैसे जमा करके अपने पति का कुछ इलाज भी करा सकूं। हमने अपने खेत बेच दिए और कुछ दिनों में जमरूदपुर, नयी दिल्ली चले गए।

मैंने ग्रेटर कैलाश में घरों की सफाई का काम शुरू कर दिया था। पैसे कम थे और मेरा वैसे भी दुनिया से विश्वास उठ गया था, इसलिए दीप्ति को स्कूल नहीं भेजा। वह मेरे साथ घरों की सफाई में हाथ बंटाने लगी। कुछ महीने बीत गए थे, जिंदगी पहले से थोड़ी बेहतर हो रही थी, पर मैं सुरभि को भुला नहीं पा रही थी। हर महीने इतने पैसे जमा हो जाते थे, जिससे हम तीनों का खाना-पीना, कमरे का किराया और मेरे पति की दवाई हो जाती थी।

एक दिन मैं एक घर से काम करके दूसरे घर जा रही थी, मुझे एक बूढ़ी महिला अपने गेट पर खड़ी दिखायी दी। उन्होंने मुझे आवाज लगायी, ‘‘क्या तुम यहां आ सकती हो, 2 मिनट?’’ मैं उनके पास पहुंची और पूछा, ‘‘हां जी बताइए, मैं आपके किस काम आ सकती हूं?’’

‘‘मुझे एक मेड की जरूरत है। हाल ही में मेरे पति गुजर गए और अब मेरी उम्र हो चली है, इसलिए अब अकेले घर नहीं संभाला जाता। क्या तुम मेरे घर काम करोगी? वैसे मेरा नाम अंजलि है।’’

उनके पति के गुजर जाने की बात सुन कर मैंने भी अपनी बेटी की बात उन्हें सुनायी। हम दोनों औरतों में एक चीज समान थी, हम दोनों ने हाल ही में कोई अपना खोया था। उन्होंने मुझे अपने घर काम करने के लिए कहा और मैंने हां कर दी।

अगले दिन मैं दीप्ति को अंजली मैडम के घर ले गयी। इतने बड़े घर में दीप्ति ने मेरी काफी मदद की, अंजलि मैडम बस हमें कुर्सी पर बैठ कर काफी देर तक देख रही थीं। मैंने आश्चर्य से उनसे पूछा, ‘‘सब ठीक है ना अंजलि मैडम? हमने काम में कुछ गलत तो नहीं कर दिया?’’ उन्होंने मुस्कराते हुए कहा, ‘‘नहीं-नहीं, काम तो सब अच्छा ही कर रही हो, पर निर्मला मुझे एक बात बताओ, इतनी छोटी बच्ची को साथ क्यों लाती हो? इसे स्कूल क्यों नहीं भेजती?’’ मैंने उदासी में जो कुछ भी सुरभि के साथ कुसुमगढ़ में हुआ था सुनाया और कहा, ‘‘अब मेरा दुनिया से विश्वास उठ गया है इसलिए इसे हमेशा अपने साथ रखती हूं।’’

‘‘अच्छा, इसलिए तुम इसको अपने साथ लाती हो। तुम फिक्र ना करो। मैं पास ही के स्कूल में प्रिंसिपल थी, मैं इसका एडमिशन वहां करा दूंगी, तुम फीस की चिंता ना करो। मेरा बेटा विदेश में रहता है, हर महीने कुछ पैसे भेज देता है और वैसे भी मेरे पति की पेंशन मुझे अभी भी मिलती है।’’ फिर उन्होंने दीप्ति से पूछा, ‘‘अच्छा, ये तो बताओ तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘मैम, मेरा नाम दीप्ति है,’’ दीप्ति ने जवाब दिया।

‘‘दीप्ति ! यह तो बड़ा प्यारा नाम है। क्या तुम इसका मतलब जानती हो?’’ उन्होंने दीप्ति से पूछा।

‘‘जी मैम, इसका मतलब होता है, चमक,’’ दीप्ति ने जवाब दिया।

‘‘बस तुमको भी अपने नाम की तरह चमकना है। खूब पढ़ो-लिखो और माता-पिता का नाम रोशन करो। चाहो, तो तुम मेरे पास रह सकती हो, दीप्ति,’’ अंजली मैडम ने दीप्ति को पास बैठा कर कहा।

‘‘पर लड़के होंगे उस स्कूल में?’’ मैंने उनसे पूछा।

‘‘लड़कों की फिकर मत करो, वह गर्ल्स स्कूल है और वहां सेल्फ डिफेंस भी सिखाते हैं। दीप्ति को थोड़ा दुनिया के साथ मिलने-जुलने दो, ऐसे यह और बहादुर बनेगी।’’

‘‘थैंक यू मैम,’’ दीप्ति ने अंजलि मैडम से कहा।

‘‘मैम? अरे तुम मुझे मां कह सकती हो। अगर तुम्हारी मम्मी को कोई प्रॉब्लम ना हो, तो तुम आज रात से ऊपर वाले कमरे में भी रह सकती हो, मुझे वैसे भी घर खाली-खाली लगता है। और सोमवार से तुम्हारा स्कूल भी मैं शुरू करवा दूंगी।‘‘

दीप्ति मुझे देखने लगी, मैंने सिर हिला कर हां कर दी। दीप्ति ने अंजलि मैडम को मां बोल कर शुक्रिया कहा।

कई साल बीत गए, दीप्ति अब दसवीं में थी। अब काफी अच्छी अंग्रेजी बोलने लगी थी, मुझे भी उसने कई शब्द सिखा दिए थे। इतने में दीप्ति के पिता जी भी दिल के दौरे से गुजर गए। अब सिर्फ हम दो ही थे। हर शाम को दीप्ति मुझे और अंजलि मैडम को कराटे के कई करतब दिखाती थी, मुझे उसे देख कर बहुत खुशी होती थी। काश ! सुरभि भी दीप्ति के साथ यह सब सीख पाती।

दीप्ति पढ़ने-लिखने में अच्छी थी, उसे बहुत इनाम भी मिले। एक दिन स्कूल में नाटक था, उसमें उसे मेन रोल भी मिला था। पर जैसा कि मैंने कहा दुनिया में अलग-अलग तरह के लोग होते हैं, उसी प्रकार उसके स्कूल में भी कई लड़कियां उससे जलने लगी थीं। एक दिन क्लास के बाद एक लड़की ने उसे कहा, ‘‘वाइप दैट स्माइल ऑफ योर फेस ! तुम्हारी मम्मी मेरे घर काम करती है, बी इन योर लिमिट्स।’’

दीप्ति उस दिन रोते-रोते घर आयी, उसने मुझे यह बात सुनायी। मैंने उसे बस गले से लगा लिया और कहा, ‘‘कोई बात नहीं दीप्ति, समय बलवान होता है। सब ठीक हो जाएगा। उस लड़की का नाम क्या है?’’ मैंने उससे पूछा।

उसने कहा, ‘‘राधिका ! राधिका और उसकी कई सहेलियां मुझे तंग करती हैं। अदिति, श्रुति, नैन्सी सब मुझे तंग करती हैं,’’ वह रोते-रोते कहने लगी।

मैंने कहा, ‘‘डरने से कुछ नहीं होगा। तुम बस अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो, ये सब तुमसे जलते हैं। स्कूल खत्म होने के बाद तुम इनसे कभी नहीं मिलोगी, पर पढ़ाई तुम्हारे साथ हमेशा रहेगी।’’

उसने इस बात के बाद रोना बंद कर दिया और फिर खाना खा कर सोने चले गयी। मैं भी अंजलि मैडम को रात की दवाई दे कर घर चली गयी।

अगले दिन उसकी कराटे और सेल्फ डिफेंस की क्लास थी, उसमें उसकी स्पोर्ट्स टीचर ने दो-दो लड़कियों का ग्रुप बना दिया और सेल्फ डिफेंस सिखाने की क्लास शुरू कर दी। बेचारी दीप्ति को राधिका के साथ प्रैक्टिस करनी पड़ी। सभी ठीक चल रहा था, तभी राधिका ने उसे जोर से मुंह पर मुक्का मार दिया और कहने लगी, ‘‘आई टोल्ड यू टु स्टे इन योर लिमिट्स !’’

यह बात उसकी स्पोर्ट्स टीचर ने सुन ली, वे दीप्ति के पास गयीं और कहने लगीं, ‘‘क्या ये लड़कियां तुम्हें तंग करती हैं, दीप्ति? डरो मत मुझे इनके नाम बताओ।’’ दीप्ति ने घबराते हुए सभी लड़कियों के नाम बताए। स्पोर्ट्स टीचर कहने लगीं, ‘‘जो अगले महीने तुम्हारी फेअरवेल है, तुम सब उसमें नहीं जा सकतीं,’’ और फिर अंग्रेजी में कहा, ‘‘आई विल कॉल योर पेरेंट्स ! तुम इस लड़की को कुछ ज्यादा ही तंग कर रहे हो। यह हमारे स्कूल रूल्स के खिलाफ है।’’

उसके बाद उन्होंने दीप्ति को कभी परेशान नहीं किया, बस उसे घूरती रहती थीं। पर मैं जानती थी कि वे जरूर कुछ षड्यंत्र रच रही होंगी। इस बात को एक-दो हफ्ते बीत गए, मुझे दीप्ति खुश दिखने लगी थी। स्कूल में वे लड़कियां कोने में बैठ कर कोई बातें करती रहती थीं।

‘‘अरे ! अदिति, श्रुति और नैन्सी, हमारी फेअरवेल इस गंवार, गांव वाली लड़की की वजह से खराब हो गयी है। क्या हम अपनी खुद की फेअरवेल करें?’’ राधिका ने अपनी सहेलियों से कहा।

‘‘मेरे पास इससे बढ़िया आइडिया है। क्यों ना हम अपने बॉयफ्रेंड के साथ जहां दीप्ति रहती है, वहां से थोड़े पैसे चुरा लाएं? सुना है काफी बड़ा घर है और शाम को आंटी अकेली होंगी और वैसे भी दीप्ति की वजह से हम फेअरवेल पर नहीं जा पाएंगे,’’ श्रुति ने मुस्कराते हुए कहा।

‘‘अरे तुम पागल तो नहीं हो गयी?’’ अदिति ने श्रुति के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘तुम्हें पता है अगर पकड़े गए, तो पुलिस केस बनेगा और मेरे माता-पिता तो मुझे मार ही डालेंगे।’’

‘‘अरे नहीं, अदिति ! यह सच्ची में अच्छा आइडिया है। दीप्ति की वजह से हमारी फेअरवेल खराब हुई है और उसी को इसकी भरपाई करनी पड़ेगी। हम चोरी के लिए तब जाएंगे, जब शाम को दीप्ति स्कूल फेअरवेल के लिए आयी होगी, सभी अपने-अपने बॉयफ्रेंड्स को साथ ले आना। और बात रही पुलिस केस की, तो वह भूल जाओ। घर में जो आंटी रहती हैं, उन्हें लगेगा कि दीप्ति ने घर में चोरी की है और इस चोरी का इलजाम दीप्ति पर ही लगेगा। हमारा बदला इसी तरह से पूरा हो जाएगा ! बस अब यह तय रहा,’’ राधिका ने उत्सुक हो कर कहा।

अब फेअरवेल को 4 दिन बचे थे। अंजली मैडम ने दीप्ति को पास के मॉल से एक सुंदर ड्रेस दिला दी।

फेअरवेल का दिन आ गया था। जब दीप्ति उस ड्रेस को पहन कर अपने कमरे से बाहर आयी, तो मैं उसे देखती रह गयी, वह सफेद ड्रेस उसके तन पर चमक रही थी। उसकी वे काली जुल्फें उस दिन बड़ी सुंदर लग रही थीं।

जब दीप्ति स्कूल के हॉल पहुंची, तो लड़कियां उसे देखती रह गयीं। कई लड़कियां उससे यह पूछने लगीं कि यह ड्रेस उसने कहां से ली है, और कई उसकी सहेलियां बन गयीं। दीप्ति ने अपनी फेअरवेल में अपनी नयी सहेलियों के साथ खूब मजे किए।

शाम के 5 बज गए थे, फेअरवेल खत्म होने में समय था, तभी दीप्ति को अचानक से अंजली मैडम को दवाई देने का खयाल आया, वह फेअरवेल उसी समय छोड़ कर घर की तरफ चल पड़ी। उस शाम मुझे भी खयाल आया कि दीप्ति तो अपनी फेअरवेल पर गयी है, और मैं भी अंजलि मैडम को दवाई देने के लिए उनके घर की तरफ चल पड़ी, पर दीप्ति मुझसे पहले वहां पहुंच चुकी थी।

‘‘अरे दीप्ति ! तुम अपनी फेअरवेल छोड़ कर मेरे लिए आयी। मैं खुद अपनी दवाई ले लेती, एक दिन की तो बात थी,’’ अंजली मैडम ने उसे गले लगा लिया।

‘‘अरे मां ! कोई बात नहीं, तबियत पहले, फिर कोई और काम,’’ दीप्ति ने उन्हें कहा और अंजलि मैडम हंस पड़ीं। तभी नीचे से दरवाजे से किसी के अंदर आने की आवाज उन दोनों ने सुनी। ‘‘आप यही रुकिए मां, मैं देख कर आती हूं,’’ यह कह कर दीप्ति सीढ़ियों से नीचे चली गयी।
दीप्ति ने राधिका और उसकी सहेलियों को कई अलमारियां, कई ड्राअर्स खोलते हुए देखा, उनके बॉयफ्रेंड्स भी उनकी मदद कर रहे थे। दीप्ति ने सीढ़ियों के पास में पड़े हुए छाते को हाथ में उठा लिया और उनकी तरफ दौड़ी।

राधिका की सहेलियां और उनके बॉयफ्रेंड दीप्ति को मारने लगे। पर तभी दीप्ति ने कराटे से सभी को धूल चटानी शुरू कर दी। इतने में अंजलि मैडम ने नीचे से कई लड़के-लड़कियों के लड़ने की आवाज सुनी और तभी उन्होंने पुलिस को कॉल कर दी। तभी एक लड़का किचन से चाकू ले आया और दीप्ति के पेट में मार दिया, दीप्ति दर्द के मारे चिल्ला उठी। उसके पेट से खून निकलते देख सभी वहां से भाग उठे। अंजलि मैडम नीचे आयीं और उन्होंने दीप्ति के पेट में चाकू देखा, तो वे सीढ़ियों पर ही बेहोश हो गयीं।

जब तक मैं अंजलि मैडम के घर पहुंचीं, तब तक काफी देर हो चुकी थी। मैंने दरवाजा खोला और दीप्ति की जो हालत देखी, उससे मैं डर गयी। उसकी सफेद ड्रेस अब लाल हो चुकी थी। मैंने उसे पास ही के सोफे पर बैठा दिया और अंजलि मैडम को दूसरे सोफे पर लेटा दिया। अंजली मैडम के फोन करने की वजह से पुलिस भी वहां आ चुकी थी। मुझे पास ही में पुलिस के सायरन की आवाज आने लगी। पुलिस वालों ने एंबुलेंस में दीप्ति को लिटा दिया। दीप्ति के साथ मैं भी एंबुलेंस में बैठ गयी और दीप्ति का हाथ पकड़ कर रोने लगी।

‘‘मम्मी, मैं बहादुर हूं ना?’’ दीप्ति ने मेरी तरफ देख कर पूछा। मैंने सिर हिला कर हां कहा।

यह बात ग्रेटर कैलाश में फैल चुकी थी, आस-पड़ोस के सभी लोग यह जानते थे कि अंजलि जी के घर चोरी हुई है और कोई घायल हुआ है। मैं बस चुपचाप डॉक्टर के बाहर आने का इंतजार करने लगी। कुछ देर में डॉक्टर बाहर आए और कहने लगे कि, ‘‘निर्मला जी, आपकी बेटी को अब होश आ गया है आप चाहें, तो उससे मिल सकती हैं।’’

मैं भागी-भागी दीप्ति के पास गयी, तब तक अंजलि जी भी अपनी गाड़ी से आ चुकी थीं। दोनों वाॅर्ड के अंदर गए और दीप्ति को पहले से बेहतर हालत में देखा। उसने अपनी दोनों मांओं को देखा और हल्का सा मुस्करा उठी। पुलिस भी दीप्ति का बयान लेने के लिए उसी वाॅर्ड में थी। दीप्ति ने महिला इंस्पेक्टर की तरफ इशारा करते हुए हल्की आवाज में कहा, ‘‘एक दिन मैं इनकी तरह बनना चाहती हूं, समाज में जितनी गंदगी है उसे साफ करना चाहती हूं, जिससे कोई भी मेरी बहन सुरभि की तरह किसी भी लड़की के साथ कुछ गलत करने का ना सोचे।’’

यह सुन कर महिला पुलिस इंस्पेक्टर ने उसे कहा, ‘‘हां-हां, क्यों नहीं? तुम एक दिन जरूर पुलिस ऑफिसर बनोगी, तुम इतनी बहादुर जो हो।’’

दीप्ति को राष्ट्रपति की तरफ से इनाम भी मिला और आज वह आईपीएस ऑफिसर है और लड़कियों की प्रेरणा है।