Friday 15 September 2023 04:09 PM IST : By Pritam Singh

लेफ्टी

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उसके पापा ने कार का दरवाजा खोल कर उसे बिठा दिया। जैसे ही उन्होंने दरवाजा बंद किया, उसे घुटन महसूस होने लगी। वह आभूषणों से लदी थी। उसने झट से पीछे मुड़ कर देखा। उसकी मां, चाची, बुआ, मौसी, मामी की गीली आंखें अब भी उसे निहार रही थीं। उसका सब कुछ पीछे छूट रहा था। बचपन, अल्हड़ दिनों की शरारतें, मां की डांट, पापा की झिड़की, स्कूल की सखियां जैसे उसे रोकने का अथक प्रयास कर रहे थे।

सीमा छरछरी काया, गौर वर्ण, लंबे कद वाली युवती थी। आज उसका विवाह हो चुका था। बचपन से पढ़ाई में हमेशा अव्वल आने की जैसे उसने जिद पकड़ रखी थी। उसके एमबीए करते ही अच्छे घर से रिश्ता आ गया था।

कार ने गति पकड़ ली। भावी जिंदगी उसके समीप व सामने थी। ससुराल में गीत गाती औरतों ने उसे उतारा। पूर्ण रीति-रिवाजों के साथ उसका गृहप्रवेश कराया गया। पूरे दिन उसे औरतों ने घेरे रखा। उस दिन उसे ऐसा लगा जैसे सूरज आसमान में डट कर बैठ गया हो।

सीमा का पति कुणाल निजी कार्यालय में जॉब करता था। ससुर श्रीकांत जी टेलीफोन डिपार्टमेंट में सरकारी कर्मचारी थे। सास सावित्री गृहिणी थीं, वहीं ननद छवि कला संकाय में तृतीय वर्ष की छात्रा थी। अगले दिन सीमा की पहली रसोई थी। सुबह-सुबह सास उसे रसोई से अवगत करा रही थीं। उन्होंने सीमा को आलू निकाल कर देते हुए कहा कि आलू के परांठे व इसी की सब्जी ठीक रहेगी। मीठे में खीर बनाने की हिदायत दे कर उसका हाथ बंटाती रहीं। लगभग एक घंटे तक रसोई महकती रही। तभी कमरे से फुदकती छवि लंबी श्वास भरते हुए वहां दाखिल हुई।

“भाभी जी, ये नाचीज कनीज आपकी सेवा में हाजिर है। हमारे लायक कोई काम हो, तो बेझिझक हुक्म कीजिए,” वह गरदन झुकाती हुई बोली।

“नहीं दीदी, मैं कर लूंगी,” सीमा ने कहा।

“पहले अपना मोबाइल पटक कर आ, फिर आना यहां,” सास ने छवि से तेज आवाज में कहा।

“लगता है महारानी जी का दिमाग यहां की आबोहवा में गरम है, पर जहां तक मोबाइल की बात है, कयामत भी आ जाए तो हमें मोबाइल से जुदा नहीं कर सकती, गुस्ताखी माफ,” कहती हुई वह तेज कदमों से निकल गयी।

फिर सब खाना खाने बैठे। श्रीकांत जी ने सीमा की तारीफ में कसीदे पढ़े। कुणाल ने खीर बढ़िया बतायी। सास रटे-रटाए जुमले गाती रही, अच्छा ही है, ठीक बना वगैरह। छवि की तरफ से तो खाना लाजवाब था।
अगली सुबह जब सीमा आरती करने लगी, तो सावित्री भी आ पहुंचीं। पीछे-पीछे कुणाल व छवि भी आ खड़े हुए। सीमा ने दीपक जला कर आरती की थाल उठायी।

“सीधे हाथ से आरती करना,” सास ने टोका। आश्चर्य से सीमा ने मुड़ कर देखा।

“बाएं से शुभ नहीं रहता,” सास ने गहरी श्वास लेते हुए कहा।

“वॉट मॉम, शुभ-अशुभ कुछ नहीं होता, हाथ लेफ्ट हो या राइट, मन में श्रद्धा होनी चाहिए,” छवि मां को समझाते हुए बोली।

सीमा ने कल्पना भी नहीं की थी कि उसे बाएं हाथ से काम ना करने का उलाहना ससुराल में मिलेगा।

“तुझे क्या पता, चुप कर,” सावित्री ने उसे झिड़क दिया।

“मम्मी, सीमा पहली बार पूजा कर रही है, उसे करने दो,” कुणाल बोला।

“ठीक है,” शायद बेटे के सामने मां बहू को ज्यादा कुछ बोल नहीं पायी।

आरती के दौरान सावित्री सीमा के बाएं हाथ को निरंतर देखती रहीं। उन्हें सीमा का बाएं हाथ से काम करना नहीं भाया था।

श्रीकांत जी के आदेश पर नए जोड़े के भावी जीवन की खुशहाली के लिए सभी गणेश मंदिर में धोक लगाने गए थे। जब सीमा ने पंडित जी से प्रसाद के लिए अपना बायां हाथ आगे बढ़ाया, तो सावित्री तुरंत बोलीं, “सीधे हाथ में।”

कुछ दिनों बाद श्रीकांत जी ने घर की सुख-शांति के लिए सुंदरकांड का पाठ रखवाया। दिनभर ब्राह्मणों ने आध्यात्मिक छटा बिखेरे रखी। सभी भजनों में रम गए। पाठ संपन्न होने के पश्चात ब्राह्मणों को भोजन कराया जाना था। रसोई से निकल कर सीमा उनको भोजन परोसने लगी। तभी एक ब्राह्मण ने उसे रोका, “बाएं हाथ का प्रयोग मत कीजिए।”

सीमा के पैरों तले जमीन खिसक गयी। उसने ऐसा सुनने की आशा भी नहीं की थी।

सास-ससुर व पति अन्य कार्यों को निपटाने में लगे थे। इतना सुनते ही उनका ध्यान उधर गया। सावित्री ने भाग कर सीमा के हाथ से सब्जी का चमचा छीना और कहने लगीं, “बहू, तुम रसोई से पूड़ियां ले आओ, मैं परोसती हूं,” फिर सभी ब्राह्मणों को भोजन कराया गया।

देर रात जब सावित्री व सीमा रसोई के बचे काम निपटा रही थीं, तब सास गरम लहजे में बोलीं, “तुमसे कितनी बार कहा है कि आध्यात्मिक कार्यों व मंदिरों में व भोजन परोसते वक्त दाएं हाथ का प्रयोग करो, मगर तुम्हारे कान में जूं तक नहीं रेंगती।”

“लेकिन मम्मी जी मुझसे नहीं हो पाता, मेरा मतलब इसी हाथ की आदत है,” धीमे स्वर में सीमा ने कहा।

“कैसे नहीं होता, थोड़े दिन सीधे हाथ को काम में लोगी, तो आदत बन जाएगी,” कह कर सावित्री पैर पटकती हुई चली गयीं।
दिन-प्रतिदिन सीमा का बायां हाथ सावित्री की आंखों की किरकिरी बनता जा रहा था। कुणाल व छवि अधिकतर सीमा का पक्ष लेते थे। उन दोनों के लिए यह बात दकियानूसी थी। सीमा के लिए ऐसा बर्ताव नया नहीं था। विवाह से पहले भी अकसर उसको बाएं हाथ पर टोका जाता था। तंग आ कर सीमा ने एक दोपहर सास से स्पष्ट शब्दों में अपनी पीड़ा व्यक्त कर दी, “मम्मी जी, मुझसे दाएं हाथ से काम नहीं होता, मैं भूल जाती हूं कि मुझे दाएं हाथ का प्रयोग करना है।”

सावित्री झट से दौड़ कर एक कपड़े की पट्टी ले कर आयीं, “इसका भी इलाज है मेरे पास,” कहती हुई सावित्री उसके बाएं हाथ की कोहनी से ले कर हथेली तक बांधने लगीं। सीमा तो मानो गाय बन गयी थी। फिर सावित्री ने निर्देश दिया, “सुन, अब झाड़ू लगाने, चमचा पकड़ने, पानी की बाल्टी उठाने, पोंछा मारने व अन्य सभी कार्य सीधे हाथ से करना और हां कुणाल, छवि व उनके पापा के आने से पहले पट्टी खोल लेना और रोज सुबह उनके जाते ही वापस बांध लेना।”

तब सावित्री ने लाल मिर्च उसके दाएं हाथ में पकड़ायी और कहने लगीं, “ले मिर्ची कूट, रोज दाएं हाथ को काम में लेगी तो आदत बनेगी।”

दूसरे दिन से ही पति, ससुर व ननद के घर से निकलने के साथ ही सीमा अपने हाथ पर पट्टी बांध लेती थी और शाम को उनके आने से पहले उसे खोल लेती थी। अभी 3-4 दिन भी निकले नहीं थे कि सीमा का दृढ़ निश्चय जवाब देने लगा। पोंछा, झाड़ू व चमचा तो फिर भी वह दाएं हाथ से कर पा रही थी, मगर दिक्कत बाल्टी उठाने में आयी। दो कदम उठा कर फिर रखनी पड़ती। सावित्री सीमा को आंगन में बैठी देखती रहतीं। उस पर अपना नियंत्रण रखने पर नाज करतीं।
एक दिन सावित्री ने सीमा के आगे केरियों से भरी परात रख कर उन्हें दाएं हाथ से काटने का आदेश दिया। सीमा चुपचाप केरियां काटने लगी।

उस दिन छवि कॉलेज से जल्दी लौट आयी। यहां-वहां सीमा को ढूंढ़ते हुए वह छत पर चली आयी, “अच्छा तो रानी साहिबा यहां हैं, कनीज ने पूरा महल छान मारा।” छवि ने मजाकिया अंदाज में कहा। इतना सुनते ही सीमा ने बाएं हाथ की पट्टी जल्दी से हटा कर छुपा दी।

“दीदी, आज आप जल्दी आ गयीं।”

“हां भाभी, एग्जाम आने वाले हैं, तो प्रिपरेशन के लिए आज से छुट्टी दे दी,” फिर केरियां देख कर बोली, “अरे वाह ! केरियां, मलिका ने हमारा दिल खुश कर दिया।”

तभी सावित्री आ गयीं, “तू इंटरवल में ही आ गयी?”

“वॉट मॉम, कॉलेज में इंटरवल नहीं होता, बताया तो था,” छवि बोली।

“हां, हां, ठीक है, जा कर दो कप चाय बना ला,” सावित्री ने हुक्म दिया।

उधर केरियां काटते हुए सीमा की उंगली पर चाकू जा लगा, “आह..!” वह चीखी।

“क्या हुआ भाभी? अरे खून ! मैं फर्स्टएड बॉक्स लाती हूं।” फिर छवि ने घाव साफ करके बैंडेड लगा दी।

रात में कुणाल ने सीमा का घाव देख कर पूछ लिया, “कहीं तुम मां के कहने पर तो दाएं हाथ से काम नहीं कर रही थी?”

“नहीं, ये क्या बोल रहे हैं आप? मेरी लापरवाही की वजह से कट लग गया,” बड़ी कुशलता से सीमा झूठ बोल गयी।

“लेकिन मम्मी तुम्हें बार-बार दाएं हाथ से काम करने को टोकती रहती हैं, तो मुझे लगा कहीं...”

“आपको लगा कि उनकी वजह से यह हुआ?” सीमा बीच में ही कुणाल की बात काटते हुए बोली।

कुणाल ने गरदन हिला कर हामी भरी।

“पूरे दिन के बाद तो कुछ समय मिल पाता है हमें और आप है कि उसे यों ही गवां दे रहे हैं,” बात बदलते सीमा बोली।

“अच्छा तो चलो कुछ देर छत पर चलते हैं,” कहते हुए कुणाल ने सीमा का हाथ पकड़ा और खींच ले गया छत पर। फिर डेढ़ घंटे तक दोनों अपनी ही बातों में खोए रहे।

तभी छवि उनके कमरे का दरवाजा खुला देख सीधे ऊपर आ पहुंची। वहां दोनों को बातों में डूबा देखा, तो जोर से खांस कर अपनी उपस्थिति दर्ज करायी, “अच्छा तो दो हंसों का जोड़ा यहां विराजमान है,” उसने चुहल की।

“मगर हंसों के जोड़े को अब सभा स्थगित करनी पड़ेगी, कबाब में हड्डी जो आ चुकी है,” अब मजाक की बारी कुणाल की थी।

छवि के तेवर बदले, “मुझे हड्डी कहा भैया...” बोलते हुए कुणाल पर झपटी।

बच कर भागता हुआ कुणाल सीढ़ियां लांघ कर कमरे में घुस गया। ऊपर ननद-भाभी की हंसी हवा में तैर रही थी।

अगले दिन छवि बालकनी में पढ़ाई कर रही थी। सीमा रसोई में व्यस्त थी। सावित्री खाना खा रही थीं। अचानक रपटने की तेज आवाज से सीमा दौड़ कर आयी। छवि सीढ़ियों से गिरी पड़ी दर्द से कराह रही थी। सावित्री ने आ कर देखा तो ऐसा लगा मानो उनको सांप सूंघ गया था। सीमा ने छवि को उठा कर तुरंत बेड पर लिटाया।

“मम्मी जी, मैं दीदी को अस्पताल ले जा रही हूं,” कहते हुए सीमा छवि की स्कूटी पर उसे अस्पताल ले गयी।

एक घंटे बाद जब सीमा लौटी, तो छवि के दाएं हाथ में प्लास्टर बंधा था। वह मां से लिपट गयी, “मॉम, आई एम फाइन।”

“क्या फाइन, मुंडी ऊपर करके मत चला कर,” सावित्री ने झूठा गुस्सा किया।

श्रीकांत जी जब ऑफिस से लौटे, तो सावित्री ने उन्हें सारी बात बतायी। वे छवि के पास बैठ गए।

“चोट को ठीक होने में 3-4 हफ्ते लगेंगे, अब एग्जाम कैसे देगी?” उन्होंने प्रश्न किया।

“मैं भी पूरे रास्ते बस इसी उलझन में था, पापा,” कुणाल दफ्तर से लौट आया था। कुर्सी ले कर वहीं बैठ गया।

“पांच दिन ही बचे हैं पापा,” छवि ने बताया।

“नेहा को बुला लेते हैं, उसके ट्वेल्थ के एग्जाम भी हो चुके हैं, इसी बहाने कुछ दिन यहां रह लेगी। तू गीता मौसी से बात करके दोनों को परसों यहां बुलाले,” श्रीकांत जी ने सुझाव दिया।

“अरे हां पापा, ये ठीक रहेगा,” बोलते हुए कुणाल ने फोन घुमा दिया।

परीक्षा वाले दिन नेहा और छवि घर से निकल ही रहे थे कि नेहा का चश्मा हाथ से गिर पड़ा, जिसने टूट कर ही दम लिया। नेहा बर्फ की तरह जम गयी। छवि को ऐसा लगा जैसे वह जमीन में धंसती जा रही थी। सीमा ने स्थिति का जायजा ले कर तुरंत छवि की परीक्षा देने का निर्णय लिया। वह अपनी प्यारी ननद को किसी मुसीबत में फंसे रहना कैसे देख सकती थी। सीमा छवि की हस्त लेखक (स्क्राइब) बन कर परीक्षा देने लगी।

लगभग सवा महीने छवि के इम्तिहान चले। उसने मां का सीमा के प्रति इन दिनों रवैया देख लिया था, पर वह चुप रही। मगर जब मां ने उस दिन सीमा को हाथ पर पट्टी बांधने को कहा, तो उसका सब्र टूट गया और वह मां पर बरस पड़ी।

“बस मॉम बहुत हो गया... क्यों भाभी को परेशान करती रहती हैं आप? क्या बाएं हाथ से काम करना कोई अपराध है...? जब से भैया का विवाह हुआ है, आप भाभी को काम करने पर टोकती ही आ रही हो... पहले बाएं हाथ से पूजा मत करो, प्रसाद सीधे हाथ में लो, बाएं हाथ से भोजन मत परोसो... इन सब बातों से कुछ नहीं होता, मॉम।”

“तू नहीं समझती ये शगुन-अपशगुन की बातें,” सावित्री ने बात को दबाना चाहा।

“अच्छा, मैं नहीं समझती तो मॉम एक बात बताओ... भाभी बचपन से पूजा करती आ रही हैं, तब उनसे भगवान तो कभी नाराज नहीं हुए... जब भाभी रुपए बाएं हाथ में पकड़ती हैं, तो वे पैसे मैं नहीं बदले... भाभी सुबह पापा को बाएं हाथ से अखबार पकड़ाती है, मगर सारी खबरें तो बुरी नहीं हुईं... घर का खाना भाभी के हाथ का बना खाने से हममें से कोई भी बीमार नहीं हुआ... स्कूटी की कंपनी ने कभी बायीं ओर एक्सीलेटर नहीं बनाया, फिर भी भाभी ने वह चलानी सीखी... और सबसे बड़ी बात मेरे हाथ में फ्रैक्चर होने पर बाएं हाथ से कार्य करने वाली ने ही मेरी परीक्षा दी मॉम, नहीं तो मेरे 3 साल खराब ही हो चुके थे... तो फिर आखिर क्यों आप भाभी को दाएं हाथ से काम करने को कहती हो... इससे फर्क नहीं पड़ता मॉम, यह बिलकुल वैसे ही है, जैसे हम दाएं हाथ से काम करते है, मेरी तीनों फ्रेंड्स गायत्री, मीनाक्षी, रेणू भी तो लेफ्टी हैं मॉम, वे तो कभी बाएं हाथ पर पट्टी नहीं बांधतीं और ना जाने कितने लोग लेफ्टी हैं, क्या वे भी दाएं हाथ से कार्य करने का अभ्यास करते हैं, बोलो मॉम।”

अब तक तक सावित्री अपनी बेटी को बच्ची समझ कर उसकी बातों पर ध्यान नहीं देती थीं, मगर आज उसके मुंह से इतनी समझदारीभरी बातें सुन कर उन्हें अपनी गलती का अहसास हो गया था।

सीमा निशब्द सी सास के आंसू पोंछने लगी। सावित्री का मन पंख के समान हल्का हो गया। उन्होंने सीमा के हाथ पर बंधी पट्टी को एक क्षण में खोल कर वहीं रखे डस्टबिन के हवाले कर दिया।

यह देख कर छवि और सीमा के चेहरे पर मुस्कान तैर गयी।