Thursday 23 November 2023 11:28 AM IST : By Sangeeta Mathur

दूध पीती बच्ची

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‘‘वृंदा, देख अपने यूरोप ट्रिप के लिए मैं ये गमबूट्स और यह फर कोट आॅर्डर कर रही हूं। यह दूसरा वाला सेट तू आॅर्डर कर दे। अदल-बदल कर पहन लेंगे,’’ लैपटाॅप से नजरें हटाते हुए चित्रा खुशी-खुशी वृंदा की ओर घूमी। मगर उसे उदास सा अपने ही खयालों में गुम देख हैरान रह गयी।

‘‘ओए, कहां खोयी हुई है? यूरोप पहुंच गयी क्या?’’ चित्रा ने जोर से वृंदा की चुटकी ली, तो एकबारगी वह हड़बड़ा गयी, पर फिर संभल गयी।

‘‘अरे नहीं यार, वहां जाने का तो मेरा मन ही नहीं हो रहा,’’ वृंदा ने निराशा से गरदन झटकी, तो चित्रा सचमुच चौंक उठी।

‘‘क्या कहा तूने? तू यूरोप नहीं चल रही? पर प्लान बना रहे थे तब तो तू कुछ नहीं बोली। अचानक क्या हो गया? घर पर तो सब ठीक है ना?’’

‘‘हां, सब ठीक है। बस ऐसे ही कुछ सोच रही थी,’’ वृंदा अब भी अन्यमनस्क सी थी।

‘‘अपनी सबसे अच्छी दोस्त को भी नहीं बताएगी?’’ कहते हुए चित्रा उससे और सट कर बैठ गयी।

वृंदा जबरन चेहरे पर फीकी सी मुस्कान ले आयी। चित्रा जिस हक से उससे पूछ रही है, वह अपनी जगह वाजिब है। उसने हमेशा अपनी परेशानियां वृंदा से शेअर की हैं। अपने मां-बाप का अलगाव, अपनी हॉस्टल की परेशानियां, अपने बदलते क्रश... कभी कुछ भी तो नहीं छुपाया।

वृंदा अभी सोच ही रही थी कि व्यग्र चित्रा ने अगला प्रश्न कर डाला, ‘‘तुझे घूमना-फिरना पसंद नहीं? मुझे अब याद आ रहा है गोवा ट्रिप के समय भी तू ऐसे ही अन्यमनस्क सी बनी रही थी।’’

‘‘ऐसा कुछ नहीं है यार। घूमना-फिरना तो मुझे बेहद पसंद है। समझ ले, पापा-मम्मी से यह शौक मुझे विरासत में मिला है। मैंने जब स्कूल भी जाना शुरू नहीं किया था, तब से उनके साथ देश का कोना-कोना घूम रही हूं। पापा को अपनी नौकरी में प्रमोशन के लिए दरअसल काफी सेमिनार्स, काॅन्फ्रेंसेस और कोर्सेस करने होते थे, तो वे अपने खर्चे से मम्मी और मुझे भी साथ ले जाते थे। मम्मी बताती हैं कि अपनी उन ट्रिप्स को हम इतना एंजाॅय करते थे कि प्रमोशन के बाद भी जब-तब ऐसी ट्रिप्स पर जाने का यह क्रम उन्होंने जारी रखा। हालांकि मुझ नन्ही सी जान को हर जगह साथ ले जाने में उन्हें बहुत दिक्कतें भी आती थीं। मेरा खाने-पीने, पहनने का ढेर सारा सामान, खिलौने, दवाइयां आदि लाद कर ले जाना होता था। पर मुझे दादी-नानी के पास छोड़ने के बजाय उन्हें ये परेशानियां वहन करना भाता था।’’

चित्रा को उत्सुकता से सुनता देख वृंदा और भी उत्साह में आ गयी थी, ‘‘पापा बता रहे थे जब मैं ढाई साल की थी तब वे मुझे ले कर मसूरी घूमने गए थे। वहां कैंप्टीफाॅल की सीढ़ियों पर मुझे गोद में ले कर उतरने-चढ़ने के लिए उन्होंने एक आदमी को किराए पर लिया। लेकिन मैं पूरे रास्ते एक बार भी उसकी गोदी में नहीं गयी। पापा-मम्मी ही बेचारे मुझे अदल-बदल कर ले कर चढ़े और उतरे। वह आदमी फ्री में अपनी मजदूरी ले कर मुस्कराता हुआ चल दिया।’’

चित्रा ठठा कर हंस पड़ी, ‘‘मतलब तू बचपन से ही शैतान है... मजाक कर रही हूं। और बता, मजा आ रहा है सुन कर।’’

‘‘मम्मी बता रही थी एक बार हम किसी गेस्ट हाउस में रुके थे। पापा दिन में सेमिनार में चले गए थे और मम्मी की आंख लग गयी। उनकी आंख खुली, तो अंदर से कमरे की सिटकनी खुली हुई और मैं नदारद। मम्मी बेचारी गेस्ट हाउस के सारे कमरे, गलियारे छान आयीं। कइयों के तो किवाड़ खटखटा कर पूछ लिया, पर मैं नहीं मिली।’’

‘‘हं, कहां चली गयी थी तू?’’ चित्रा ने उत्सुकता से पूछा।

‘‘सुन तो सही ! पूछते-पूछते मम्मी पीछे बनी रसोई में पहुंच गयीं। तो देखा मैं रसोइयों के साथ लोइयां बना कर मजे से रोटियां बेल रही थी।’’

‘‘घर पर आप करने नहीं देतीं कि आटा खराब करेगी,’’ मैंने मासूमियत से कहा, तो मम्मी सहित सबकी हंसी छूट गयी थी। मम्मी प्यार से मुझे गोद में उठा कर ले आयीं।’’

‘‘कितनी प्यारी यादें हैं ना तेरे पास !’’ चित्रा ने ठंडी आह भरी।

‘‘और जब छोटा भाई बीनू आ गया, तो फिर हम उसे भी ले कर जाते थे। हालांकि धीरे-धीरे ऐसे आराम के पल निकालना मुश्किल होता चला गया, क्योंकि चारों की छुट्टियां हो, ऐसा मुश्किल से ही हो पाता था। कभी मम्मी के स्कूल में परीक्षाएं चल रही होतीं, कभी मेरी कोचिंग क्लास तो कभी बीनू के टर्म एग्जाम... लेकिन तब भी हम दो दिन निकाल कर आसपास तो घूम ही आते। पास की किसी वाइल्ड लाइफ सेंचुरी हो आते या किसी रिजाॅर्ट में ही दो दिन रह आते। सच बताऊं, तो उन दो दिनों में ही हमें मानो पूरे पैकेज्ड फॉरेन टूर का आनंद आ जाता, क्योंकि बेसिकली हमारा मोटिव तो साथ में क्वाॅलिटी टाइम बिताना होता था। जब इच्छा सिर्फ अच्छी कॉफी पीने की हो तो कप महंगा हो या सस्ता, यह मायने नहीं रखता। हर ट्रिप के फोटोग्राफ्स हमने सहेज कर रखे हुए हैं। तुम्हें दिखाती हूं,’’ वृंदा ने उत्साह से अपना मोबाइल खोल लिया था।

‘‘यह देखो, फेरीवील में बैठी मम्मी बच्चों की तरह किलक रही हैं। उन्हें झूलों में बैठना बहुत अच्छा लगता है। यह रिजाॅर्ट में बोटिंग करते हुए...’’

‘‘अरे एक पतवार तो तुम्हारे पापा ने थाम रखी है,’’ चित्रा ने आश्चर्य प्रकट किया।

‘‘पापा को बोटिंग का बहुत शाैक है। पैडल बोट नहीं मिलेगी, तो बोट वाले से पतवार ही ले लेंगे। उनका बस चले, तो दोनों पतवार वे ही थाम लें। हम और मम्मी ही उन्हें यह कह कर रोक लेते थे कि अभी हमें और ट्रिप्स पर जाने के लिए जीना है,’’ अपने मजाक पर वृंदा खुद ही हंस पड़ी थी।

‘‘और यह देखो हमारे छोटे भाईसाहब ! उनका बस चले, तो दुनिया के सारे एडवेंचर ये अकेले ही कर लें।’’

‘‘अरे यह क्या कर रहा है?’’ चित्रा ने फोटो को बड़ा करके देखते हुए पूछा।

‘‘आइस स्पोर्ट ! हमने मनाली में किए थे। पापा बता रहे थे जब तक हम दोनों ये स्पोर्ट्स करते रहे, मम्मी की सांस हलक में अटकी रही। पूरे वक्त वे हनुमान चालीसा का ही जाप कर रही थीं।’’

‘‘कितनी खुशियां दी हैं ना तुम्हारे पापा-मम्मी ने तुम्हें बचपन में?’’

‘‘हां और क्या !’’ वृंदा चित्रा का मंतव्य समझे बिना अपनी ही धुन में बोलती रही, ‘‘इसीलिए तो माता-पिता का स्थान भगवान से भी उच्च माना गया है। क्योंकि भगवान तो सुख-दुख दोनों देते हैं, लेकिन माता-पिता तो हमेशा सुख ही सुख देते हैं। मैं तो कहती हूं अपने वे नहीं होते, जो आपके रोने पर आते हैं। अपने तो वे होते हैं, जो आपको रोने ही नहीं देते,’’ बोलते-बोलते वृंदा रुक गयी।

चित्रा की नम आंखें बता रही थीं कि अनजाने ही उसके अतीत को कुरेद कर वृंदा ने उसे दुखी कर दिया है।

‘‘आई एम सॉरी !अपनी धुन में तब से बोले चली जा रही हूं। तुम्हारा खयाल ही नहीं रहा,’’ वृंदा सचमुच शर्मिंदा थी।

‘‘अरे नहीं, बल्कि तेरे मुंह से यह सब सुन कर बहुत अच्छा लग रहा है। मैं दिल से तेरे लिए बहुत खुश हूं। लेकिन अभी भी यह नहीं समझ पा रही हूं कि बचपन से घूमने-फिरने की इतनी आदी होते हुए भी तू यूरोप ट्रिप पर क्यों नहीं चलना चाह रही? क्या तुम लोग वहां भी हो आए हो?’’

‘‘अरे नहीं, वो तो हमेशा से हमारा ड्रीम डेिस्टनेशन रहा है... मैं तुझे कैसे समझाऊं?’’ अच्छा सुन, तुझे चौपाटी की चाट पसंद है?’’

‘‘हद से ज्यादा। चलें शाम को। मेरे तो अभी से मुंह में पानी आने लगा है। गोलगप्पे का खट्टा-मीठा पानी और चटपटी टिकिया !’’ चित्रा ने चटकारा भरा।

‘‘नहीं, आज नहीं। अभी पिछले सप्ताह ही तो गए थे।’’

‘‘अरे वहां तो मैं रोज चलने को तैयार हूं।’’

‘‘अच्छा तो पिछले पूरे महीने क्यों नहीं गयी? बाजार बंद था या तेरा हाजमा खराब था?’’

‘‘वो... तू नहीं थी ना ! तू अपने घर गयी हुई थी। और अकेले जाने का मन नहीं हुआ। जबकि मैं 2-3 बार उधर से गुजरी भी थी।’’

‘‘बस समझ ले यही स्थिति मेरी है। जब हम गोवा गए थे, कदम-कदम पर मैंने बीनू और पापा मम्मी को मिस किया था। क्रूज पर मुझे यह सोच कर मन ही मन हंसी आ रही थी कि अभी पापा होते, तो शायद इसे भी चलाने की जिद करते। एक्सपर्ट के साथ डाइविंग करते सनी को तुम सब छेड़ रहे थे कि इसकी रेकाॅर्डिंग करके तेरी मम्मी को भेजेंगे।’’

‘‘और तुझे उस वक्त बीनू याद आ रहा था, राइट?’’

‘‘हां। रेस्तरां में मैंने डबल चीज पिज्जा आॅर्डर किया था, लेकिन मुझसे आधा भी नहीं खाया गया। जबकि इससे डबल साइज पिज्जा मैं बीनू के साथ छीनते-झपटते मिनटों में चट कर जाती हूं। वह भूख ही अलग होती है। तुम्हें शायद विश्वास नहीं होगा, पर आज भी लोकल कहीं जाने के लिए वे लोग मेरी राह देखते हैं। सालभर पहले हमारे शहर में खुला सेवन वंडर्स पार्क मेरे घर वालों ने अभी पिछले महीने मेरे साथ ही देखा। बीनू मुझे छेड़ रहा था कि तेरे बिना पापा-मम्मी कहीं जा सकते हैं क्या? तो मम्मी बीच में ही बोल पड़ीं थी, ‘‘अब ज्यादा मत बोल बीनू तू। उस दिन नए खुले नॉनवेज रेस्तरां में जाने का प्लान बनाया, तो तूने ही यह कह कर मना कर दिया था कि दीदी आ रही है, साथ ही चलेंगे...’’ उनकी एक दूसरे की टांग खिंचाई में भी इतना प्यार और अपनापन था कि मैं तो देख-सुन कर ही आत्मविभोर हो रही थी।’’

‘‘ओह, अब मैं समझी। तुम यूरोप घूमना चाहती हो, पर हम फ्रेंड्स के संग नहीं,
अपनी फैमिली के संग। तो यह बात सबको बोल क्यों नहीं देती? बेमन से सारी प्लानिंग में क्यों शामिल हो रही हो?’’

‘‘क्योंकि मैं ऐसा बोलूंगी तो सब दूध पीती बच्ची कह कर मेरा मजाक उड़ाएंगे। कहेंगे 26 साल की हो कर भी तुम्हें पापा-मम्मी के साथ घूमना है ! ग्रो बेबी ग्रो ! तुम्हारी उम्र की लड़कियां सेल्फी स्टिक के संग पूरा वर्ल्ड टूर कर आती हैं,’’ वृंदा रुंआसी हो उठी थी।

‘‘तुम ऐसी बातों पर ध्यान ही मत दो। बल्कि मैं तो कहती हूं उन्हें कड़ा जवाब दो कि सेल्फी ने ही हमें इतना सेल्फ सेंटर्ड बना दिया है कि हमारे आसपास कोई हमारी फोटो लेने वाला ही नहीं बचा। आत्मीय रिश्ते कैसे होते हैं, ऐसे लोग सोच भी नहीं सकते। लेकिन मैं समझ रही हूं। ऐसे रिश्तों में हाथ और आंख का सा संबंध होता है। हाथ पर चोट लगती है, तो आंख से आंसू निकलते हैं। और आंसू निकलने पर हाथ ही उन्हें पोंछता है। तुम्हें दूध पीती बच्ची कहने वाले दरअसल खुद नासमझ बच्चे हैं, जिन्हें यह नहीं पता कि इंसान उम्र से बच्चा या बड़ा नहीं होता। मुझे ही देख लो। बिखरे परिवार के कटु अनुभवों ने मुझे बचपन से ही बड़ा बना दिया है। जबकि मीठे आत्मीय अनुभवों ने तुम्हारा बचपन कभी जाने ही नहीं दिया,’’ चित्रा का बरसों का अनुभव कुछ शब्दों में सिमट आया था, जिसने वृंदा को भी अभिभूत कर दिया।

‘‘मैं तो ऐसे लोगों से यह भी पूछना चाहती हूं कि क्या 26 साल की उम्र सिर्फ स्वच्छंद जीवन जीने के लिए ही होती है? इंसान को इस उम्र तक आ कर थोड़ा जिम्मेदार भी तो हो जाना चाहिए। पता है चित्रा, तुम लोग जब यूरोप ट्रिप प्लान कर रहे होते हो, तो मेरा मन कैसी-कैसी कल्पनाएं कर रहा होता है? डिज्नीलैंड में मैं मम्मी को सभी राइड्स पर किलकता देख रही होती हूं। वेनिस में पापा को गलियों के बीच गोंडुला घुमाते देख रही होती हूं। और स्विट्जरलैंड में बीनू को स्नोफाॅल के बीच स्पोर्ट्स करते देख रही होती हूं। इटली में हम सब मस्ती से पिज्जा उड़ा रहे होते हैं...’’

वृंदा की बात अधूरी ही रह गयी, क्योंकि बीच में ही उसके मोबाइल पर कॉल आ गया था।

‘‘हां मम्मी... मैं ठीक हूं।’’

‘‘कल किटी में सनी की मम्मी मिल गयी थीं। बता रही थीं सनी आया हुआ है और तुम सब दोस्त यूरोप घूमने जा रहे हो। तूने बताया नहीं? खैर, मैं तो यह कह रही थी कि वहां बहुत ठंड होती है, तो गरम कपड़े पूरे ले कर जाना। तू कहे, तो मैं सनी के संग यहां से ओवरकोट, स्कार्फ आदि खरीद कर भेज दूं। तू वहां कहां यह सब खरीदने के लिए परेशान होगी। और हां, उसके साथ दो तरह की मठरी और मेवे के लड्डू भी बना कर भेज देती हूं। पता नहीं तुझे वहां का खाना पसंद आए या ना आए, तो यह सूखा नाश्ता हमेशा साथ रखना। महीनों खराब नहीं होगा। वैसे कब जाने का प्लान है?’’

‘‘सोच तो अगले महीने का रही हूं। पर दोस्तों के साथ नहीं। आप, पापा और बीनू के साथ।’’

‘‘हम चारों? यूरोप ट्रिप पर? तेरे पापा की लाॅटरी लगी है क्या?’’ मम्मी का मजाकिया स्वर सुनायी दिया। पर वृंदा गंभीर थी।

‘‘नहीं मम्मी, पापा की लॉटरी नहीं लगी है। पर आपकी बेटी अब कमाने लग गयी है। वह अपने पैरों पर खड़ी हो गयी है। यह क्या किसी लॉटरी से कम है क्या? और हां, अगले सप्ताह उसे बोनस भी मिलने वाला है।’’

दूसरी ओर से कोई आवाज नहीं आयी। लेकिन इस निशब्द रुदन को सुनने में वृंदा के कान पर्याप्त सक्षम थे। इसलिए उसने अपनी बात जारी रखी, ‘‘लड्डू, मठरी जरूर बना लेना मम्मी, पर चार गुना ज्यादा। मुझे पता है आपको और पापा को वहां का खाना कम पसंद आएगा। शाम को पापा और बीनू आ जाएं, तो स्काइप पर पूरा प्रोग्राम फाइनल करते हैं,’’ वृंदा ने फोन रख दिया, तो चित्रा ने यह कहते हुए उसके दोनों गाल खींच लिए, ‘‘यह दूध पीती बच्ची तो बड़ी सयानी हो गयी है।’’