Wednesday 22 November 2023 03:39 PM IST : By Archana Gautam Meera

रूया

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उस चट्टान के चारों ओर ऊंची पहाड़ियां जैसे उसे ही टकटकी लगाए ताक रही थीं..। गोया उन्हें भी उसके मनोभाव का अंदाजा हो। दूर ढलान के नीचे समीर ने दो बार हॉर्न बजाया और जैसे हद से ज्यादा मजबूर हो कर मेहनाज ने उस सैंड ब्लू स्कार्फ को आंखें मूंद कर होंठों से लगाया और अस्फुट सा कोई नाम बुदबुदा कर घाटी में छोड़ दिया। अगले ही पल सर्द हवा के सरसराते तेज झोंके में लहराता वह स्कार्फ उसे अलविदा कहता सा उसकी पहुंच से दूर होता चला गया और वह हथेलियों में मुंह ढांप फफक पड़ी। यह जिंदगी उसके नाम है। तय था कि वह अब नहीं लौटेगी उसकी जिंदगी में दोबारा..। कभी भी नहीं। आखिरकार उसका नया चेहरा और पुरानी पहचान लौट आए थे, यह उसी की नेमत थी। तीसरी बार हॉर्न की आवाज जब उन पहाड़ियों से टकरा कर एक शोर में प्रतिध्वनित हो उठी, वह मुड़ी और तेजी से टीले तक आती पगडंडी पर उतराई की तरफ चुपचाप लौट पड़ी।

सैम ने कार से बाहर निकलते हुए हाथ लहरा कर उसे पुकारा, ‘‘कम ऑन मेह ! जल्दी लौटो, वरना बारिश शुरू हो जाएगी।’’ उतरते हुए उसके मुंह से ‘‘हां, आ तो रही हूं,’’ ऐसा मद्धिम स्वर निकला कि उसे खुद तक को ठीक से सुनायी ना दिया। वह लौट तो रही थी..। अपनी पुरानी जिंदगी में..। एक नया भविष्य ले कर...। पर क्या जो पीछे छोड़ आयी थी, वह उसका साथ कभी छोड़ पाएगा...

कार के समीप पहुंचते ही सैम ने उसे गले लगा कर उसकी पीठ थपथपायी और उसके लिए दरवाजा खोल ड्राइविंग सीट पर आ बैठा। मेहनाज की गहरी भूरी आंखों में गौर से कुछ तलाशते हुए उसके सर्द होंठों को चूम कर मुस्करा कर बोला, ‘‘तो चलें...’’

वह एकबारगी बुरी तरह उसके कंधे पर लग कर सिसक उठी, फिर खुद को संयत कर फीकी मुस्कान में गरदन हिला कर हामी भर दी।

कोई आधा किलोमीटर पार होते ही बारिश की नन्ही बूंदों से विंडस्क्रीन भरने लगी। घने चीड़ों और चिनारों के सायों के पीछे वह पुराना चर्च, पहाड़ियां, पगडंडियां..। सब उसे अलविदा कह रहे थे। उसने धीरे से विंडो पर अपना हाथ हिलाया। बारिश का झोंका बढ़ा, तो सैम गियर के पास रखी ब्रांडी के कुछ घूंट भर कर बायीं हथेली से उसका गाल थपक कर बोला, ‘‘ओह...। उसे एक सपना समझ कर भूल जाओ मेह।’’ उसका मन बोल उठा, ‘आई कैन नॉट... नेवर...। यह जिंदगी उसी ने बख्शी है...’

झुक कर उसने खुद ही ब्रांडी उठायी और कुछ घूंट यों गटके जैसे वह सचमुच वर्तमान में होने का अहसास खुद को दिला रही हो। ड्राइव करते सैम के कंधे से टिक कर सर्पिल ढलान से उतरती कार के साथ पीछे जाते चिनारों की ऊंची कतार के ऊपर गुजरते आसमान के टुकड़ों में इन बीते दिनों के कोलाज इकट्ठे करने लगी।

वह क्रिसमस की भीगी रात थी। रुई के फाहे फिजां में तैर रहे थे और वह जल्दी से जल्दी अपने अपार्टमेंट में पहुंच कर ढेर हो जाने को बेताब थी कि तभी सामने से आती तेज हेडलाइट्स ने उसकी थकन से बेहाल नशे के हल्के सुरूर में डूबी आंखों को चौंधिया दिया और ना जाने क्या हुआ, कैसे अपना बैलेंस एकदम से खो दिया उसने और उसकी कार इतनी बुरी तरह सामने के वाहन से टकरायी कि गोलाई में चकराती सी रेलिंग तोड़ कर एक ओर को झूल गयी। उसके चेहरे का दायां हिस्सा इतनी जोर से झनझनाया कि वह बेहोश हो गयी।

रात जगमगा रही थी और उसकी उम्मीदों और हसरतों के सारे सितारे अंधेरे ने निगल लिए। उसे जब होश आया, वह किसी अजनबी छत के नीचे थी और फुसफुसाती आवाजों के करीबतर होते ही उसे याद आ गया कि उसकी कार का जोरदार एक्सीडेंट हुआ है और यह भी कि शायद वह अस्पताल में है। उसने धीरे-धीरे अपने शरीर को महसूस किया, हाथ-पैर हिलाए। सब सही-सलामत लगा। फिर अचानक चेहरे के दाएं हिस्से में तीव्र वेदना का आभास हुआ और उसके हाथ के वहां तक जाने से पहले ही नर्स ने पकड़ लिया। नहीं... नहीं... ऐसा नहीं हो सकता...। उसे लगा पूरी छत गोलाई में घूमती जा रही है और वह ज्यादा कुछ सोचने से पहले ही फिर बेहोश हो गयी।

जब उसे दोबारा होश आया, उसे पता चल चुका था कि उसकी दुनिया में भूचाल आया और उसका सब कुछ बर्बाद कर गुजर गया। उसके चेहरे का आधा हिस्सा बुरी तरह क्षतिग्रस्त था। उसका चेहरा...। उसके लिए सब कुछ। उसका कैरिअर, उसकी सोशल इमेज, उसकी जिंदगी। उसे लगा इससे तो मर जाना बेहतर होता। अब वह क्या करेगी...। वह बिलखती रही और डॉक्टर्स उसे समझाते रहे। नींद के इन्जेक्शन्स, सेडेटिव्स और पेनकिलर्स की जरूरतों से छूटते ही उसे कानूनी प्रक्रिया का सामना करना पड़ा।

उसके चेहरे की चोटें अभी पूरी तरह से भरी भी नहीं थीं। वह इस चेहरे के साथ किसी का भी सामना करने को बिलकुल तैयार नहीं थी और उसने गुमनामी की चादर में खुद को लपेट लिया। उसे कोई उम्मीद नहीं थी कि ग्लैमर की इस दुनिया में अब उसके लिए कोई जगह, कोई मुकाम बचा था। वह गहरे अवसाद में थी यह सच था, पर यह भी तो सच था कि इस एक झटके ने उसके लिए अब तक के हर अपने को बेगाना कर दिया था।

चकाचौंधभरी यह दुनिया जो कल तक उसकी अपनी थी। ये बड़े-बड़े होर्डिंग्स...। ये टीवी पर दिनभर आते एड्स...। ये मैगजीन्स और इंटरनेट की सुर्खियां अब सब उसके लिए अपने दरवाजे बंद करती जा रही थीं। उसकी दुनिया उजड़ गयी थी। मेहनाज...। टॉप मॉडल मेहनाज अब अपनी बाकी की जिंदगी गुमनामी में जीने को लगभग धकेल दी गयी किस्मत के हाथों। सैम उसे हर रोज काम के बाद मिलने आता, लेकिन उसे उसकी आंखों में अपने लिए सहानुभूति देखना गवारा ना हुआ और वह...

वह बादलों की कतरनों में अतीत का चित्र जोड़े चली जा रही थी। न्यूज की सुर्खियों में उसके एक्सीडेंट की खबरें भरी पड़ी थीं। लोगों का आना-जाना, कभी प्रशासन..। कभी मीडिया..। कभी सहकर्मी और मित्र। सैम भी काम से छुट्टी ले कर पूरे दिन उसके साथ बना रहता। फिर धीरे-धीरे न्यूज की रीलों में उसके चेहरे के बिगड़ जाने का जिक्र उसे नश्तर चुभोने लगा। भीड़ जो कभी उसकी एक झलक पाने को तरसती थी, उस पर तरस खा रही थी। सैम का भी अपना काम था और वह अकेली पड़ गयी थी। अपने इस अकेलेपन के साथ वह कहीं दूर चली जाना चाहती थी... सबसे दूर...। डॉक्टर्स और दोस्त उसे ढाढ़स दे रहे थे कि कॉस्मेटिक सर्जरी से वह अपनी खूबसूरती वापस पा लेगी, भले ही इसमें कुछ वक्त लगे। पर उसे पता था इसमें बहुत ज्यादा वक्त और उससे भी कहीं ज्यादा पैसा लगनेवाला था।

अगले ही हफ्ते उसके सारे असाइनमेंट्स कैंसिल कर नयी मॉडल को साइन कर लिया गया था। और सब पीछे छोड़ कर वह इस अनजान शहर में चली आयी थी। कुछेक दिन उसने टूरिस्ट लॉज में बिताए फिर एक सस्ता अपार्टमेंट देख शिफ्ट हो गयी। उसके अकाउंट्स में जो बचा था, उसमें इससे ज्यादा और दूर तक वह गुजारा नहीं कर सकती थी। अपने चेहरे को वह ज्यादातर एक स्कार्फ से ढके रहती और लोग इतने पर भी उसकी सुडौल, छरहरी काठी को घूरते। उसे अजीब सी वितृष्णा होती लोगों के बीच...

जब से मॉडलिंग की जिद पकड़ कर उसने घर छोड़ा, घर वालों ने उससे नाता तोड़ लिया। कैरिअर की राह कितनी मुश्किल थी। कितनी बार वह टूट कर जुड़ी, लेकिन जिस मुकाम को इतनी मुश्किल से पाया, उसे बस एक झटके में खो दिया। कितनी घुटन थी अब जिंदगी में। इस शहर में आए दसेक दिन हुए होंगे उसे..। जब उसे वे लमहे इतनी गहरी उदासी में घसीट ले गए थे कि वह अजीब कशमकश में अपनी जिंदगी का खात्मा करने चल पड़ी थी।

...कॉलबेल इतनी जोर से बज उठी थी कि उसने हाथ में पकड़ा चाकू वापस रख दिया और एकदम से गुस्से में भर कर दरवाजा खोला...। हू इज दिस...। और सामने गेटकीपर, लिफ्टमैन या वॉशरमैन की जगह उसे खड़ा देख चौंक पड़ी। दरवाज़े पर 36-37 की एक अजनबी औरत खड़ी थी। उसने काले रंग का झूलता हुआ लिबास पहन रखा था। कंधों पर बिखरे सिल्की बाल, चेहरा भरा-भरा, आंखें उसकी गेहुंआ बादामी रंगत से बेमेल, ‘‘क्या मैं अंदर आ सकती हूं...। मुझे रूया कहते हैं।’’ उसके जवाब से पहले ही बढ़ आए उसके हाथ और झिझकते हुए उसने भी हाथ बढ़ा दिया था, ‘‘किसी ने मुझे बताया कि आप यहीं रहती हैं...। आप मेहनाज हैं अगर मैं आपको सही पहचान रही हूं...’’

अचानक मेहनाज जैसे होश में आयी। उसका चेहरा खुला था। वह पिछले आधे-पौने घंटे से शीशे के सामने खड़ी अपने बिगड़े हुए चेहरे को टटोलती रही थी और टेबल पर पड़ा चाकू उठा कर अपनी कलाई रेतने ही वाली थी...

उसने हड़बड़ा कर सोफे पर पड़ा स्कार्फ चेहरे पर लपेट लिया और भूरी रंगत और लापरवाह अंदाजवाली उस रूया से तनिक दूर बैठ गयी। ना जाने क्या था उस युवती में, जो उसे खींच रहा था जैसे उसकी ओर...। उसने खुद ही अपने बारे में बता दिया था कि वह एक पेंटर है और अपनी प्रदर्शनी की थीम के लिए यहां एकांत में काम कर रही है।

‘‘...यहां बहुत सुकून है... है ना... और इतनी ख़ूबसूरत हैं ये वादियां कि बस...’’

मेहनाज को उसकी आवाज के गहरेपन में एक सर्द खामोशी और कई मोड़ महसूस हुए, गोया उसकी आवाज के हर उतार-चढ़ाव में कई बातें छुपी हों। उसने पहली बार ऐसी आवाज सुनी थी। ऐसी कशिशभरी गहरी आवाज, जो उसके पूरे बोहेमियाना अंदाज से बखूबी मेल खाती थी और उसकी शख्सियत को गजब का गॉथिक देती थी। मेहनाज को यह बात भली लगी थी कि आगंतुका ने उससे एक्सीडेंट और घायल चेहरे की बाबत जवाब-तलब नहीं किया था। वह मेह को भली-भली सी लगी और उसका आना सुकूनदेह। जैसे अचानक आयी थी, अचानक उठी और उसे हल्के से गले लगा कर हाथ हिलाती चली गयी।

बात-बात पर मुस्कराती थी वह। पर ना जाने क्यों मेहनाज को उसकी मुस्कान में अजीब सी खामोश गहराइयां मिलती थीं। ऐसा लगता... उसकी स्माइल फोल्डेड हो... कई परतों में... कई मोड़ों पर अनजान संवाद खड़े हों। वह रूया के जाने के बड़ी देर बाद तक उसकी भीनी-भीनी खुशबू में उसे अपने करीब पाती रही। उसने छोटी सी गोलाकार डाइनिंग टेबल पर पड़े चाकू को सिहर कर देखा। क्या होता अगर उसने आ कर कॉलबेल ना बजायी होती...। इस सब से बाहर आने को उसने सिर झटका और बालों को बिखेर बाथटब के गुनगुने पानी में डूब गयी।

यह पुराना, छोटा सा अपार्टमेंट था। कुछ इस तरह डिजाइन किया गया, जिसमें लिविंग-किचन- वॉशरूम सब एक साथ थे। सामने बालकनी थी, जहां वह बहुत कम जाती थी। उसका ज्यादा वक्त लैपटॉप पर खुद की पुरानी तसवीरें देखने में गुजरता। मेल्स का जवाब वह दे नहीं रही थी और फोन्स स्विच ऑफ कर रखे थे।

उसकी इस गुमनाम जिंदगी में अकेलेपन, दर्द, गम और बेबसी के अलावा कुछ था ही कहां। बचपन से ही तो उसके आसपास के लोगों और माहौल ने उसे उसकी इस खूबसूरती के पैमाने में ही देखा था। इतना ज्यादा कि उसे अपने सुंदर चेहरे और तराशे हुए शरीर से अलग कोई और ऐसी काबीलियत खुद में नजर ही नहीं आ रही थी, जो उसे जीने का सहारा दे और उसने कोशिश भी तो नहीं की थी कुछ अलग करने की।

रूया अकसर आने लगी, कभी भी... किसी भी वक्त... दोनों साथ खातीं-पीतीं, हंसतीं-बतियातीं और बांहों में बांहें डाल वादियों में सैर पर निकल जातीं। रूया से वह सारी बातें एक मासूम बेतकल्लुफी से कर लेती। इतना बोलती कि उसे लगता वह बरसों से इतना नहीं बोली। उसके मन पर जमी काई खुश्क हो कर पपड़ियाने लगी थी। रूया के अंतर्मन के बेलौस उजाले ने उसकी रूहानियत के दरीचे खोल दिए थे, जहां से रेशा-रेशा उसकी ताजी खुशबुओं में जी उठा था मानो। इश्क के अजब मंजर को पा कर उसने सब खो कर भी सब पा लिया था। हां, उसे रूया से रूहानी इश्क हो गया था...। स्वतः स्फूर्त, जैसे अंधेरे में कोई दीया रोशन हो जाए। रूया का प्यार उसे धीरे-धीरे जिंदगी की तरफ मोड़ रहा था।

जख्म दिल के हों या जिस्मानी, भरने में वक्त लेते ही हैं...। अवसाद उसे अब भी जकड़े हुए था।
चार साल पहले जब वह समीर से ‘तारपीडो’ में एक फोटोशूट के दौरान मिली थी, उसे ग्लैमर की इस चौंधियाती दुनिया में पहली बार टीनएज की दहलीज पर छोड़ा अपना घर, अपने लोग और अपनापन महसूस हुआ था। सैम का हरदम उसके साथ खड़े रहना, उसकी जिद-गुस्से और नाज-नखरे उठाना, उसे उसके करीब लाता चला गया था। दुनिया जिसे मुहब्बत कहती है- उन दोनों को एक-दूसरे से थी। इस मुहब्बत की दुनिया में वह पाती थी अपनी कामयाबी, खूबसूरती, अपना तजुर्बा और अपनी सोशल इमेज...। उनकी इस बॉन्डिंग का कोई बेस था और यह वजह भी थी कि उसने खुद को उससे दूर कर लिया... पर रूया...। रूया उसे तब मिली थी, जब उसकी दुनिया के वजूद का ढांचा टूट कर झूल रहा था। उस जुड़ाव में रूहानी गहराई थी, चाहत थी मेहनाज को उसके साथ की... शिद्दत से...। यह मुहब्बत का अनोखा मुकाम था, दोस्ती से कुछ ज्यादा...। बहरहाल अब उसे मौत की नहीं, दोबारा से जिंदगी की तड़प थी। उसमें अपने टूटे हुए वजूद को खड़ा करने का साहस जुड़ता चला जा रहा था, जो उसे रूया की हौसलाअफजाई ने बख्शा था।

उसे याद है वह सैम को ले कर अकसर पजेसिव हो जाती थी। खासकर जब किसी कम उम्र नयी मॉडल के साथ उसका सेशन होता। देह के परे किसी रिश्ते का होना ही सचमुच कोई मुकम्मल रिश्ता हो सकता है वह सोचती...।

उन कुछ मुलाकातों के दरम्यान वह अकसर मेहनाज के साथ ही होने लगी थी। उसके ख्वाबों में उसका आना रोज का हो चला था। हालांकि जख्म भर चले थे उसके, पर अवसाद में धंसती जा रही थी मेहनाज..। नींद आती भी तो उचटी हुई सी...

कई दफा उसने हिम्मत जुटायी कि वह घर वालों से मदद मांगे... उधार... आर्थिक मदद। कॉस्मेटिक रिपेयर से उसकी कनपटी से चीकबोन तक के कुचल गए हिस्से के ठीक हो जाने की पूरी संभावना थी, पर...। उसके लिए डॉ. अजा के अलावा किसी और पर भरोसा नहीं कर सकती वह और उनकी फीस...। वह इससे कमतर जिंदगी जी नहीं सकती थी और इसके लिए भी पैसे चाहिए थे। ना जाने कितनी देर, कितनी दूर तक बसर करना पड़े उसे...। सोच कर वह कम से कम खर्च करती। उसके वृद्ध रिटायर्ड माता-पिता, जिनकी वह स्वयं ही जब-तब आर्थिक मदद करती थी, क्या ही कर पाते...। उसे इस हाल में देख कर वे तो टूट ही जाएंगे। और इतनी जल्दी दोबारा अच्छे कॉन्ट्रैक्ट्स, शोज और एड्स की उम्मीद रखना उसने इस इंडस्ट्री में किए तजुर्बे में कभी देखा नहीं। सैम जो कि फैशन फोटोग्राफर है अपने स्टूडियो के लिए कुछ दिन पहले तक उसी की मदद पर टिका था...

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उस दिन वह अपने सिरहाने पर लगी पेंटिंग को देखे जा रही थी। क्या इत्तेफाक है- पेंटिंग में खूबसूरत आधा चेहरा ही दिखाया गया था, बाकी का आधा हिस्सा रंगों से महरूम अंधेरे का हिस्सा...। अपने अक्स के ठीक बाजू में पेंटिंग की छवि देख वह गम के सैलाब में डूबने-उतराने लगी। सूख चला जख्म टीस दे रहा था। उसे ऐसा लगा कि यह बेबसी उसे जीने नहीं देना चाहती, उसे मर जाना चाहिए...। इस जीवन का यही अंत है और वह बालकनी पर आ कर नीचे देखने लगी... नीचे... नीम अंधेरा था... बालकनी के ठीक नीचे गहरी खाई थी... उसने रेलिंग पर हाथ टिकाए और दायां पैर रेलिंग पर रख एक पल सांस रोक आंखें मूंद कर छलांग लगानी चाही कि तभी उसे किसी ने पीछे खींच लिया... वह संतुलन बिगड़ जाने से लड़खड़ायी और बदहवास हो गयी... यह रूया थी... ‘‘क्या कर रही थी मेह... कहां जाना चाहती हो... किससे दूर जा रही हो... कितनी खूबसूरत है यह जिंदगी, उनसे पूछो जो...’’

उस शाम रूया उसे उदासी से देखती रही। वह चुप बैठी उसे देखे जा रही थी टकटकी बांधे। मेहनाज को लगा रूया सब जान जाती है... सब पढ़ लेती है... उसने मेहनाज के मन को स्कैन कर लिया है और समझ गयी है कि वह जिंदगी से पीछा छुड़ाने जा रही थी। मेहनाज तकिये में मुंह छुपा कर फूट-फूट कर रोती रही। रूया खामोशी से सोफे पर बैठ गयी।

उसे बहुत जोर से भूख लग रही थी, जब उसकी आंखें खुलीं। सोफे पर रूया नहीं थी। दरवाजा ठीक सामने होता था और बंद चिटकनी उसे साफ दिखायी दे रही थी। उसकी रिस्ट वॉच 3 बजा रही थी। बालकनी का दरवाजा खुला था। हल्के सलेटी रंग का झीना परदा हवा से उड़-उड़ कर अंदर आ रहा था। उसे लगा रूया वहां खड़ी सिसक रही है..। वह हड़बड़ा कर झटके से उठी और परदा हटा कर उसे पुकारा, ‘‘रूया...’’ पर वहां कोई नहीं था। ओह..। शायद यह सपना था। पेनकिलर्स की वजह से उसे गहरी नींद आ जाया करती है। कई दफा विभ्रम भी होते हैं... और कई-कई बार तो वह दर्द के सैलाब में सुन्न घंटों टब में पड़ी रहती है। उसने गहरी सांस ली। निस्तब्ध घाटी में हल्की नीली उजास पसरी थी। वह किचन की तरफ मुड़ी ही थी कि डर से सिहर गयी। रूया अजब सर्द अंदाज में पलंग की दूसरी तरफ खड़ी हो उसे चुपचाप देख रही थी... डर और विस्मय से वह लगभग चीख उठी, ‘‘क्या हुआ, तुम ठीक तो हो...’’ अगले ही पल उसे रूया वहां नहीं दिखी। उसने अपनी आंखें मलीं ताज्जुब से, अभी भी सपने में है या विभ्रम बार-बार हो रहा है... उसने आंखों पर पानी के छींटे भी मारे और चेहरे को तौलिए से हल्के हाथों थपकती वॉश बेसिन के शीशे में देखा... चौंक उठी वह... रूया दरवाजे से बाहर निकल रही थी... लपक कर उसने दरवाजे से बाहर झांका और उसका नाम पुकारा... ‘‘रूया...’’
रूया कॉरिडोर में नहीं थी। लिफ्ट ऊपर की ओर जाती दिखी। लिफ्ट के नीचे आते ही वह तेजी से कॉरिडोर से गुजर कर लिफ्ट में घुसी और टॉप फ्लोर का बटन पुश कर दिया। आज पहली बार वह उसके घर जा रही थी। उसे याद आया कि स्कार्फ उसके चेहरे पर नहीं है, पर उसने लापरवाही से कंधे झटक दिए। अभी सब सोए पड़े होंगे और वैसे भी रूया की मुहब्बत ने उसे हर दर्द से बेखबर कर दिया था। लिफ्ट के ठीक सामने दाहिनी ओर ही बहुत सुंदर सी नेमप्लेट पर उसका नाम लिखा था- रूया अयाद। वह कोई 3-4 मिनट तक रुक-रुक कर बेल बजाती रही, तभी शराब के नशे में लड़खड़ा कर झूमता एक आदमी लिफ्ट से बाहर आया। उसने झट अपने खुले बाल चेहरे पर गिरा लिए। उस आदमी ने बगल के दरवाजे में चाबी घुमाते हुए उससे पूछा, ‘‘एक्सक्यूज मी, किसी को ढूंढ़ रही हैं आप?’’

इतनी रात को नाइट सूट में एक अजनबी के सामने खड़ा होना उसे अटपटा लगने लगा। वह हकलायी, ‘‘हां, मैं मिस रूया से मिलने आयी हूं।’’ अजनबी की आंखें कुछ सिकुड़ गयीं, ‘‘आई एम सॉरी बट इट्स बीन फोर मंथ्स सिंस मिस रूया अयाद पास्ड अवे...’’

‘‘बट...’’ मेहनाज को लगा कि वह फिर से किसी सपने में है। वह लगभग कंपकंपाती हुई अपने कमरे में लौटी, तो सफेद पड़ चुकी थी, पसीने में नहायी हुई। उसे याद नहीं, उसने कब फोन ऑन किया, कब समीर को फोन किया और कब तक दोनों हाथों में सिर थामे जड़वत बैठी रही। शायद घंटों... या जब तक समीर ने आ कर उसे बांहों में नहीं भर लिया। वह कितनी देर रोयी, उसे याद नहीं।

जब प्लास्टिक सर्जरी के लिए उसे टेबल पर लिटाया गया, तब उसकी चेतना कुछ शब्द दोहरा रही थी- मेहनाज... जिंदगी पर यकीन रखो, जितनी बेशकीमती है उतनी खूबसूरत। तुम्हारी रूह खूबसूरत है। एक दरवाजा बंद हो भी गया तो क्या... यहां कई दरीचों से हो कर कई मुकाम हासिल कर सकती हो तुम... फिर थिएटर की बत्तियां जलीं और उसे याद आया कि कैसे अकसर लोग उन दोनों को बातें करते देख चौंक उठते थे। तो क्या रूया उन सबको नजर नहीं आती थी और लोग इसलिए मुड़-मुड़ कर उसे घूरते थे जब वह उससे बातें करती थी...। फिर कुछ और शब्द सिक्योरिटी गार्ड के उसके जेहन में गूंजे...। एक एक्सीडेंट में अयाद मैम के दाएं हाथ को लकवा मार गया था। एग्जीबिशन लगाना चाहती थीं अपनी पेंटिंग्स की, लेकिन इलाज लंबा चलता रहा, पेंटिंग्स सारी बिक गयीं औने-पौने दामों में। एक दिन सुना घाटी में कूद कर खुदकुशी कर ली उन्होंने, लाश तक नहीं मिली उनकी।

मेहनाज पर एनेस्थीसिया हावी होने लगा था। शब्द धुंधला रहे थे...। आवाजें धीमी होती चली जा रही थीं...।