Friday 20 October 2023 04:19 PM IST : By Rita Kumari

भूलने की बीमारी

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मैं आजकल बहुत परेशानी में हूं, क्योंकि कहते हैं जैसे बल और सुंदरता का कोई विकल्प नहीं होता है, वैसे ही मुझे भूलने की बीमारी का भी कोई विकल्प नजर नहीं आता। वैसे तो भूलने की बीमारी पहले ज्यादातर उम्रदराज लोगों में ही होती थी, खासकर उन सासू मांओं में ज्यादा होती थी, जो अपनी दबंग बहुओं से लोहा नहीं ले पाती थीं, तो हथियार के रूप में अपनी बीमारी का ही प्रयोग करती थीं। उस हर बात को भूल जाती थीं, जिसकी वजह से उनकी बहू परेशान होती। पर अब तो यह बीमारी कम उम्र के लोगों में भी बड़ी सहजता से पैर पसार रही है। मेरे पड़ोस में 20 साल का लड़का अमन रहता है, वह जब भी किसी से कुछ काम की चीजें मांग कर ले जाता है, लौटाना भूल जाता है। टोकने पर कहता है, ‘‘क्या करूं आंटी, भूलने की बीमारी है। अभी लौटाता हूं।’’ पर लौटाता कभी नहीं है, फिर से भूल जाता है।

वैसे इस बीमारी से मेरे ताल्लुकात बरसों पुराने हैं। जब मैं छोटी थी, मेरे घर के बगल में विवेक अंकल रहते थे। उनके 90 वर्षीय पिता जी उनके चारदीवारी विहीन घर के सामने बैठे आने-जाने वाले से उसका नाम और पता पूछते रहते। जब भी मैं स्कूल जाने के लिए उनके घर के सामने से निकलती, हर रोज मुझे बुला कर मेरा नाम, पापा का नाम और पता पूछते। जब मैं स्कूल से लौटती, तब तक वह सब भूल जाते और फिर से वही सब प्रश्न पूछते। अकसर मैं उनके सवालों से बचने के लिए लंबे रास्ते से अपने घर जाती। वे मेरा नाम पूछते-पूछते स्वर्गवासी हो गए, पर उन्हें मेरा नाम याद नहीं हुआ।

मेरे पापा के एक दोस्त थे आलोक अंकल, जिन्हें भूलने की बीमारी थी। अकसर वह अपनी कोई महत्वपूर्ण चीज कहीं रख कर भूल जाते और जब उन्हें याद आता, बौखलाहट में यहां-वहां ढूंढ़ते हुए आसपास की सारी चीजें उलटपुलट कर रख देते। एक दिन वे अपनी पूरी सैलरी ले कर घर आए और पत्नी के हाथों में थमा कर भूल गए। मेरे यहां आए, तो उन्हें याद आया कि पापा से कुछ पैसे उधार लिए थे, उसे लौटाना है। उन्होंने जेब में रुपए निकालनेे के लिए हाथ डाला, वे नहीं थे। घबरा कर दूसरी जेब में हाथ डाला, तो पैसे वहां भी नहीं मिले। उन्होंने जल्दी-जल्दी अपनी सारी जेबें टटोल कर देख लीं। पैसे नहीं मिले, तो उन्होंने सोफा के कवर, कुशन सब टटोल डाले। पापा पूछते रहे कि क्या हो गया? क्या ढूंढ़ रहे हो? पर वे बदहवास से जवाब देने के बदले बगल में बैठे निखिल अंकल की जेब में ढूंढ़ने लगे, फिर झुक कर सोफा के अंदर देखने लगे। तभी इत्तेफाक से उनकी पत्नी कल्याणी आंटी आ गयीं। उन्हें देखते ही बोले, ‘‘कल्याणी... बर्बाद हो गया मेरी सारी सैलरी चली गयी।’’

वे आगे कुछ बोलते, उसके पहले ही कल्याणी आंटी बोलीं, ‘‘वह तो आप मुझे दे आए थे।’’

फिर तो एक जोरदार ठहाका गूंज उठा। पर उस दिन से पापा ने मम्मी को खास हिदायत दे दी थी कि कभी उनकी बगल वाले सोफा पर ना बैठे। पता नहीं आलोक का कब क्या खो जाए और वह बगल वाले को भी टटोलने लगे।

यह तो रही बचपन की बातें। जब बड़ी हुई, शादी हुई, तो ससुराल में तो एक से एक भुलक्कड़ मिले। मेरी सासू मां को अपनी चाबी इतने संभाल कर रखतीं कि वे खुद ही भूल जातीं कि उसे कहां रखी है। बिजली का बिल अकसर जमा नहीं होता, सासू मां को तब याद आता जब बिजली कट जाती। मैंने कहा, ‘‘मुझ पर छोड़ दीजिए मैं जमा करवा दूंगी,’’ पर इतनी जल्दी वे अपना मालिकाना हक बहू को कैसे सौंपतीं? उन्होंने बिल जमा करने की जिम्मेदारी अपने बेटे यानी मेरे पतिदेव को सौंपी। जब मैंने उन्हें बताया कि आपके बेटे को तो आपसे भी ज्यादा भूल जाने की बीमारी है, तो बिदक गयीं, ‘‘मेरे बेटे से ज्यादा होशियार बनने की कोशिश मत करो। घर के सारे काम तो वही देखता है, फिर बिजली का बिल क्यों नहीं समय पर जमा करेगा?’’

जब पतिदेव ने बिजली का बिल जमा करने की जिम्मेदारी ली, तो उस महीने बिजली कटने पर मैंने फोन किया कि आसपास के सारे घरों में रोशनी है, सिर्फ हमारे घर में अंधेरा है, तो इन्होंने एक बिजली मिस्त्री को भेज दिया। जांच-पड़ताल के बाद पता चला सब ठीक है बस करेंट नहीं आ रहा है। जब मैंने बिल की बात याद दिलायी, तब जा कर पतिदेव को याद आया कि बिजली का बिल तो जमा ही नहीं हुआ है। पूरी रात गरमी में बैठ कर गुजारने के बाद भी सासू मां यह मानने को तैयार नहीं थीं कि उनके बेटे को भूलने की बीमारी है। वे यही कहती रहीं कि तुम्हारी तरह बेकार नहीं बैठा रहता है, जो इतने काम करेगा एक-दो छोटी बातें तो भूल ही जाएगा। उस छोटी सी बात के लिए सबको कितनी ही परेशानी उठानी पड़ी, यह समझते हुए भी नासमझ बनी रहीं।

हालांकि अकसर पतिदेव ऑफिस जाते समय कभी फाइल भूल जाते, कभी चाबी। कभी अपना सूट धुलने को देते, तो यह याद ही नहीं रहता कि किस लॉन्ड्री में दिए हैं और उसकी रसीद कहां रखे हैं। फिर तो उस रसीद के चक्कर में सारे घर की शामत आ जाती। थोड़ी देर में पूरा घर कुरुक्षेत्र के मैदान की तरह बिखरा हुआ नजर आता, पर वह रसीद नहीं मिलनी थी सो नहीं मिली। मुझे लगता यह भूलने की बीमारी जेनेटिक्स से आयी थी।

एक बार सासू मां भी अपनी 2 सिल्क की साड़ियां धुलने के लिए दे कर भूल गयीं। घर में यहां-वहां ढूंढ़तीं। वह तो परिचित ड्राईक्लीनिंग की दुकान थी, इसलिए एक दिन मुझे रोक कर बोला कि आपकी सासू मां 2 सड़ियां धुलने के लिए दे गयी थीं, अभी तक ले नहीं गयीं। तब मैंने दोनों साड़ियां ला कर सासू मां को दीं। जब मेरी बड़ी ननद आयीं, तो दोनों मां-बेटे की याददाश्त मजबूत करने के लिए बादाम खाने की सलाह दे कर गयीं। पर उन दोनों को बादाम ही खाना याद नहीं रहता। दोनों हफ्ते में एक-दो दिन ही बादाम खा पाते। जब मैं उन्हें याद दिलाती, तो दोनों मुझ ही झिड़क देतीं, ‘‘याद है, ज्यादा तेज बनने की कोशिश मत करो।’’

फिर बादाम देने की जिम्मेदारी उन्होंने घर की मेड सुशीला को सौंपी। इन दोनों की याददाश्त पर तो कोई फर्क नहीं पड़ा, हां सुशीला की याददाश्त जरूर काफी दुरुस्त हो गयी।

एक दिन मैं सुबह की चाय बना ही रही थी कि इनके बहुत ही करीबी मित्र प्रशांत जी आ गए। आते ही उन्होंने मेरे बेटे से कहा, ‘‘जा कर अपनी मम्मा से बोल कि प्रशांत अंकल आए हैं, चाय भी पिएंगे और नाश्ता भी करेंगे, वरना बाद में कहेंगी कि मैंने तो आपको देखा ही नहीं, इसलिए कुछ बनाया ही नहीं।’’

आवाज मेरे कानों तक पहुंच रही थी, इसलिए मैं किचन से ही बोली, ‘‘क्या बात है भाई साहब, इतने उखड़े-उखड़े से क्यों हैं? भाभी जी मायके...।’’

उन्हें जैसे इसी पल का इंतजार था। अपने दिल की भड़ास निकालने के लिए, ‘‘नाम मत लीजिए उसका, ऑफिस में उस निशा मैम ने अपने भूलने की बीमारी से सबका बेड़ा गर्क कर ही रखा था, घर में आपकी इस भाभी जी ने जीना हराम कर रखा है।’’

‘‘हुआ क्या?’’

‘‘होना क्या है? आज छुट्टी थी इसलिए कल शाम में मैंने पिक्चर जाने का प्रोग्राम बनाया। ईवनिंग शो के दो टिकट मंगवा कर सीमा को तैयार रहने के लिए फोन कर दिया और निशा मैम से एक घंटा पहले ऑफिस छोड़ने की परमिशन भी ले ली। ऑफिस से निकलते समय निशा मैम से बोलने गया, तो बोलीं कि वे अपनी कार ले कर नहीं आयी हैं, इसलिए मैं उन्हें रास्ते में उनके घर पर ड्राॅप कर दूं। जैसे ही मैं उनके घर के गेट पर पहुंचा, उन्हें अपना खाली पोर्टिको देख कर याद आया कि कार तो दूसरे दिन बनने के लिए देनी थी, आज तो वे कार ले कर ऑफिस गयी थीं। तब उन्होंने कहा कि मुझे ऑफिस तक छोड़ दो, ज्यादा देर नहीं होगी। मैं मरता क्या ना करता, उन्हें वापस ले कर ऑफिस लौटा। वहां पहुंच कर उन्हें पता चला कि बैग में तो कार की चाबी है ही नहीं। बैग में तलाश करने के बाद मुझे थोड़ी देर रुकने के लिए बोल कर वे ऑफिस में हर उस स्थान पर चाबी ढूंढ़ने लगीं, जहां चाबी के होने की संभावना थी। चाबी ना मिलनी थी ना मिली। मैं हिम्मत जुटा कर बोला, ‘‘मैम... पिक्चर का टाइम हो चला...।’’

‘‘मैं इतनी मुसीबत में हूं और तुम्हें पिक्चर की पड़ी है।’’

मैडम को चाबी की पड़ी थी और मुझे अपने घर में होनेवाले तांडव की। पर मरता क्या ना करता, वहीं खड़ा रहा। पूरे घंटेभर के छानबीन के बाद मैडम के कार की चाबी उन्हीं के बैग के फटे हुए कपड़े में घुसी हुई नजर आयी। चाबी देख मैडम के चेहरे पर सौ पावर के बल्ब जल उठे और मेरे मन में श्रीकृष्णजी की तरह संभावित महाभारत को रोकने के लिए तरह-तरह की योजनाएं जन्म लेने लगीं। पिक्चर समाप्त होने के समय पर घर पहुंचा, दिल ही दिल में यह मनाते हुए कि सीमा को भी मैडम वाली बीमारी लग जाए और वह भूल जाए कि आज मैंने उससे क्या वादा किया था या ईश्वर की कृपा हो और उसके मायके से उसका भाई आ जाए। पर यह सब दिल को बहलानेवाली बात ही साबित हुई। मेरे पहुंचते ही उसने धड़ाम से दरवाजा बंद कर दिया। कितना ही समझाया कि रखो पूरा घर तमाम, बस दे दो केवल बाहर का एक कमरा। पर वह नहीं मानी। रात पार्क में गुजरी मच्छरों से लड़ते, सार्वजनिक शौचालय से फ्रेश हो कर सीधा आपके दरवाजे पर आ बैठा हूं। कहीं आप भी भूल गयीं कि बंदा बैठा है, सो संदेशा ही भिजवा दिया कि आपके चाय-नाश्ता भूलने की संभावना समाप्त हो जाए।’’

खैर, मैंने प्रशांत जी को नाश्ता करा उनके घर का रुख किया। बड़ी मुश्किल से सीमा को समझाया-बुझाया, तो प्रशांत जी की गाड़ी पटरी पर आयी।

घर आयी, तो दूसरा हंगामा खड़ा था। सासू मां जिस काली गाय को रोटी खिलाने गयी थीं, उस गाय ने उन्हें टक्कर मार दी थी। मेरे पूछने पर कि वह काली गाय पहले भी उन्हें दौड़ा चुकी है, फिर क्यों उसे रोटी देने गयी। उन्होंने बड़ी मासूमियत से कहां कि वे भूल गयी थीं कि इसी गाय ने उन्हें दौड़ाया था। उनकी इस भूल से इस बार उनके पांव में फ्रैक्चर हो गया और उनके साथ-साथ मेरी भी मुसीबत हो गयी। दो महीने बाद जा कर सब ठीक-ठाक हुआ है।

अब एक राज की बात बताऊं, इन दिनों मेरी चेतना का भी विस्तार होने लगा है। भूलने की बीमारी के फायदे समझ मुझमें भी बहुत कुछ भूल जाने की बीमारी पनपने लगी है।