Monday 25 September 2023 11:03 AM IST : By Gopal Sinha

अतिथि तुम क्यों आए

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मधुमति हमारी पड़ाेसिन हैं और हर बार की तरह इस बार की छुटि्टयों में भी जबर्दस्त अस्त-व्यस्त या अति व्यस्त होनेवाली हैं। तो क्या कोई बिपरजॉय सरीखा तूफान आनेवाला है ! जी नहीं उनके घर मेहमान पधारनेवाले हैं। पर मेहमान तो भगवान समान होते हैं, उनसे कैसा शिकवा ! सच पूछो, तो मधुमति की मेहमाननवाजी करके ऐसी हालत हो चुकी है कि अगर भगवान उनके समक्ष साक्षात अवतरित हो जाएं, तो वे उनके आने से भी खौफ खाएंगी। अतिथि देवो भव की घुट्टी पीने-पिलानेवाले इस देश की यह अबला आखिर मेहमानों से संत्रस्त क्यों है, यह जानने के लिए हमने उन्हीं से बात की, लेकिन हां... हम उनके घर मेहमान बन कर नहीं गए, उन्हें अपने घर मेहमान बना कर बुलाया। वे आयीं और जो बताया, उन्हीं की जबानी हूबहू पेश है-

जब मेरी शादी हुई, तो बड़े अरमान ले कर पतिदेव के साथ दूसरे शहर रहने आयी थी कि खूब मौज-मस्ती करेंगे, घूमेंगे-फिरेंगे। लेकिन मेहमानों के आने का सिलसिला उन्हीं दिनों से जो शुरू हुआ, वह आज तक बदस्तूर जारी है। हमारे दोनों तरफ के जो-जो रिश्तेदार हमारी शादी में नहीं आ पाए थे, बाल-बच्चों समेत हमसे मिलने पधारने लगे। वह हमारी शादी का पहला ही साल था। पतिदेव कॉलेज में लेक्चरर हैं और कॉलेज गरमियों में बंद होता ही है, सो हमने प्लान बनाया था कि अबकी गरमी की छुटि्टयों में मियां-बीवी किसी हिल स्टेशन पर दो-चार दिन गुजार आएंगे। मोबाइल पर हिल स्टेशनों के मनमोहक दृश्यों के चित्र और उससे भी मन लुभावन टूर पैकेजेज देख-देख कर प्रफुल्लित हुई जा रही थी, तभी ग्वालियर से मौसी का वीडियो कॉल आ गया। मौसी का हंसता-खिलखिलाता मुखड़ा देख कर मेरा खुशी का बल्ब जिस तेजी से जला था, अगले ही पल उसी तेजी से फ्यूज भी हो गया। प्रणाम-पाती होने के बाद मौसी ने हालचाल पूछा और साधिकार कहा, ‘‘मुन्नी, हम ना इस बार गरमी की छुटि्टयों में तुमसे और दामाद जी से मिलने आ रहे हैं, हम तुम्हारी शादी में नहीं आ पाए थे ना... वो तुम्हारे मौसा का स्कूल महीनेभर के लिए बंद होगा ना...’’

लो जी, मौसा जी का स्कूल बंद है, तो दामाद जी का भी कॉलेज बंद होगा उन दिनों, हम भी कहीं जा सकते हैं, यह पूछने का ना तो रिवाज है, ना ही जरूरत ! अब मौसी तो ‘मां सी’ होती है, उन्हें कैसे मना कर सकते थे, हमने भी चेहरे पर नकली खुशी ओढ़ी और उल्लास से कहा, ‘‘क्या बात है मौसी, आप यहां हमारे पास आ रही हैं, मैं बहुत खुश हूं। ये भी खूब खुश होंगे यह जान कर...’’ खैर, हम मौसी-मौसा के स्वागत की तैयारी में जुट गए।

इसी बीच एक और लीला हो गयी और इसके लीलाधर थे मेरे पतिदेव। मुझे ससुराल में किसी ने कहा था कि ये यारों के यार हैं, तो मैंने लाइटली लिया था कि दोस्ती-यारी तो सबकी होती है, इनकी भी है, तो क्या गलत है। लेकिन मैं गलत निकली। सालभर तो उन्होंने किसी तरह अपनी मित्र मंडली को रोक कर रखा, पर एक दिन कॉलेज से शाम को अचानक चार दोस्तों के साथ घर पधारे और शहद पगे स्वर में कहा, ‘‘तुम्हारा बनाया खाना लंच में इन लोगों के साथ शेअर करता हूं, तो इन्हें इतना पसंद आता है कि तारीफों के पुल बांधते रहते हैं। आज मैं इन्हें डिनर के लिए ले आया हूं...’’

सुन कर मैं थोड़ी असहज हो गयी, क्योंकि रात के खाने की तैयारी तो मैं कर चुकी थी। अब दो लोगों के खाने में चार और एडजस्ट तो हो नहीं सकते, सो दोबारा मैं खाना बनाने में जुट गयी। इनसे इतना कहने का बहुत मन हुआ कि पहले बता देते, तो सहूलियत होती, लेकिन इन्होंने पहली बार यह सरप्राइज दिया था, तो नहीं कहा। सोचा, इन्होंने अगर दोबारा ऐसा किया, तो जरूर कह दूंगी कि पहले से नहीं बताओगे, तो खाना बाहर से मंगाना। इसके बाद तो मेहमानों के आने सिलसिला चल निकला। कभी बुआ जी, कभी चाचा जी, कभी इनके दीदी-जीजा जी, तो कभी मेरे बहन-बहनोई... हर बार गरमी की छुटि्टयां आतीं और हम मेहमानों के स्वागत में जुटे रहते। ना कहीं घूमने जा पाते, ना छुटि्टयों में छुट्टी मिल पाती। हां, एक बात जरूर हुई कि पहले मेहमान घर आते थे, तो कदर होती थी, अब मेहमान घर आते हैं, तो गदर होती है।

इससे पहले कि मधुमति अपनी दास्तान-ए-मेहमां को आगे बढ़ातीं, मेरे मन में उठा यह सवाल बाहर आ ही गया। मैं पूछ बैठी, ‘‘एक बात बताओ मधु, जब आप मेहमानों से इतनी त्रस्त हैं, तो उन्हें आने से मना क्यों नहीं करतीं। भाई साहब भी तो आपको परेशान देख कर परेशान होते होंगे।’’

‘‘इन्होंने मुझे परेशान देख कर एक बार कहा भी था कि जब तुम्हें इतने लोगों को आना-जाना पसंद नहीं, तो ऐसा कुछ क्यों नहीं करतीं कि ये आना बंद कर दें। लोगों के आने पर इसी तरह जिंदादिली से स्वागत करती रहोगी, हर पल मुस्कराती रहोगी, बढ़िया-बढ़िया पकवान बना कर खिलाती रहोेगी, तो कौन नहीं आना चाहेगा तुम्हारे पास। अब आप ही बताओ, मैं क्या करूं... कैसे मना करूं... हैं तो अपने ही ना, फिर इतने अपनेपन से आते हैं कि चाह कर भी मना नहीं कर पाती। और फिर जब आ जाते हैं, तो खातिर तो करनी ही पड़ेगी ना। ठीक है, हम इस चक्कर में कहीं नहीं जा पाते, लेकिन इतने सारे लाेगों से घर बैठे मिलना-जुलना हो जाता है, यह कम है क्या...’’

मैं तो मधुमति की बातें सुन कर मन ही मन उनकी हिम्मत की दाद दिए बिना ना रह सकी। उनसे पूछा, ‘‘अब आगे क्या इरादा है आपका? क्या इसी तरह अपना मन मार कर मेजबानी में लगी रहेंगी या अपने लिए भी कुछ सोचेंगी?’’

‘‘अब तो इतने साल बीत चुके हैं इसी रूटीन को निभाते-निभाते कि क्या अपने लिए सोचूं। मौसम बदला, साल बदला, नहीं बदला, तो मेरी किस्मत। बच्चों को भी कहीं घुमाने नहीं ले गयी आज तक। बहुत हुआ, तो अपने मायके जाती हूं या ससुराल, वह भी विशेष मौकों पर ही। कई बार मेहमानों का गुस्सा बच्चों पर उतार देती हूं।’’

तभी मुझे इंटरनेट पर पढ़ा वह शेर याद आ गया कि मेहमान के आने पर जो बच्चे उधम मचाते हैं, मेहमान के जाने के बाद अच्छी तरह कूटे जाते हैं। इनके बच्चे चाहे उधम ना मचाते हों, पर कूटे जरूर जाते होंगे, यह पक्का है। मेहमाननवाजी का स्ट्रेस कहीं तो उतरेगा।

मधुमति इतनी वेटरन मेजबान हैं, इतना झेलने के बाद भी मुस्कराती रहती हैं, तो मैंने सोचा क्यों ना उनसे मेहमाननवाजी की कुछ टिप्स ली जाएं। उन्हें तो मानो इसी का इंतजार था कि कोई उनसे मेहमानों के बारे में पूछे। कहने लगीं, ‘‘मैंने इतने सालों में मेजबानी पर इतनी रिसर्च कर ली है कि पीएचडी हासिल हो जाए। बहरहाल, कुछ निचोड़ आपके सामने पेश करती हूं। देखिए, मेहमानों की कई किस्में होती हैं जैसे बता कर आनेवाले मेहमान, बिना बताए आनेवाले मेहमान यानी अचानक टपक पड़नेवाले अतिथि, एक बंदा बता कर 6 बंदे आनेवाले मेहमान, आ कर ऐट होम फील करनेवाले मेहमान, बच्चों के साथ आनेवाले और बच्चों को उनकी शैतानियों पर डांटने के बजाय खींसें निपोरनेवाले मेहमान, धड़ल्ले से मेजबान का निजी सामान इस्तेमाल करनेवाले मेहमान, आते ही पसंद का खाना खाने की फरमाइश करनेवाले मेहमान, पड़ोसियों की नजरों में मेजबान को नीचा दिखानेवाले काम करनेवाले मेहमान, दूसरे रिश्तेदारों की चुगली करनेवाले मेहमान, गंदे जाेक्स क्रैक करनेवाले मेहमान, आपस में लड़ने-झगड़नेवाले मेहमान, मेडिकल टूरिज्म पर आए मेहमान, मेजबान के घर को बेस कैंप बना कर आसपास के टूरिस्ट प्लेस पर घूमने जानेवाले मेहमान, घूमने जाते समय मेजबान को साथ ले जाने की जिद करनेवाले मेहमान, घूमने जाते समय मेजबान या उनके बच्चों से एक बार भी साथ चलने को ना कहनेवाले मेहमान, ढेर सारा खाना खा जानेवाले मेहमान, कंजूस मेहमान, मेजबान के निजी मामलों में दखलंदाजी करनेवाले मेहमान, मोरल पुलिसिंग करनेवाले मेहमान, मेजबान के टाइम की वेल्यू ना करनेवाले मेहमान, दो दिन की बता कर दस दिन रहनेवाले मेहमान, खुद तो बार-बार आनेवाले मेहमान और मेजबान को कभी अपने घर ना बुलानेवाले मेहमान और सबसे खतरनाक हैं वे मेहमान, जो एक बार आ गए, तो जाने का नाम ना लें,’’ इतना कह कर मधुमति ने लंबी सांस ली, तो मैं उनके विराट अनुभव की कायल हो गयी।

मधुमति ने आगे कहा, ‘‘हर मेहमान को हैंडल करने का तरीका अलग-अलग होता है, जो अनुभव के साथ ही आता है। मेहमानों के कारण आपको तकलीफ होती हो, रूटीन बिगड़ता हो, तो उनके सामने कोई भी बहाना बनाने से परहेज ना करें। कोई मेहमान पसंद ना हो और वे आना चाहें, तो उनके आने के दिन की पक्की जानकारी ले लें और उस दिन घर में ताला लगा कर कहीं रफूचक्कर हो जाएं। जो खाने की तारीफ करके खाता ही चला जाए, तो अगली बार कुछ ऐसा बनाएं, जो मेहमान का जायका बिगाड़ दे, कोई पाप नहीं लगेगा। मेहमान के साथ आए बच्चे उधम मचाएं, तो अपने बच्चों को सिखा दें कि अकेले में उन्हें धमका दें कि ऐसा करेंगे, तो पिटेंगे। लालची किस्म के मेहमान आनेवाले हों, तो उनके आने से पहले अपनी कीमती या ललचानेवाली चीजें छुपा दें। जो मेहमान आपको अपने घर ना बुलाएं, उनके घर जरूर जाने की बात करें, वे खुद ही आपके घर आना छोड़ देंगे। एक बार मेरे घर एक मेहमान आए, तो मैंने अपने 6 साल के बेटे से उन्हें प्रणाम करने के लिए कहा। बेटे ने पूछा कि ये कौन हैं, तो मैंने कहा कि ये तुम्हारे नाना जी जैसे हैं, तो बेटे ने छूटते ही कहा, ‘‘ये कैसे नाना जी हैं। मेरे नाना जी आते हैं, तो ढेर सारी चॉकलेट, मिठाइयां ले कर आते हैं, ये तो खाली हाथ आए हैं।’’ आए हुए मेहमान इतना शर्मिंदा हुए कि उन्हें तुरंत बेटे के लिए मिठाई मंगवानी पड़ी। और फिर वे दोबारा आज तक नहीं आए हैं। तो अपने बच्चाें को इतना ही स्मार्ट और हाजिरजवाब बनाएं। बाकी मौके की नजाकत को देखते हुए अनचाहे मेहमान से पीछा छुड़ाने का जो नायाब तरीका आपको सूझे, आप बेहिचक आजमाएं।’’

मधुमति के पास मेहमानों से पीछा छुड़ाने के इतने यूनीक आइडियाज हैं, पर फिर भी वे मेहमानों से त्रस्त रहती हैं, तो उसकी वजह है उनका मीठा स्वभाव, जिससे उनके घर मेहमानों का आना बंद नहीं होता। पर हम तो इन तरीकों पर अमल कर सकते हैं, एक बार आजमा कर तो देखिए !