पिछले कुछ दिनों से मुझे धुंधला दिखायी दे रहा है। दूर की चीजें मुझे साफ-साफ नहीं दिखतीं, इसका पता उस दिन चला जब बालकनी में खड़ी श्रीमती जी ने सामनेवाले फ्लैट की बालकनी की ओर इशारा करके कहा, ‘‘देखो, कितने सुंदर गुलाब उनके गमले में खिले हैं, अपना तो बस एक ही खिल कर रह गया...’’
सच बताऊं तो मुझे गुलाब क्या, उसका गमला भी नहीं दिख रहा था, सो जोर लगा कर देखने की कोशिश की और कहा, ‘‘हां, कितने अच्छे लाल गुलाब खिले हैं।’’
श्रीमती जी ने मुझे घूर कर देखा और बोलीं, ‘‘तुम्हें लाल गुलाब कहां दिख गए, वहां तो सफेद गुलाब हैं।’’
उस दिन तो बात किसी तरह रफादफा हो गयी, लेकिन अगले ही दिन मेरी एक्स्ट्रा स्मार्टनेस ने मुझे फंसा ही दिया। श्रीमती जी अकसर उसी सामनेवाली बालकनी के बारे में बताती थीं कि एक कुत्ता उसमें रेलिंग पर सिर लटकाए बैठा रहता है और नीचे सड़क पर जानेवाले हर आदमी को देख कर गुर्राता रहता है। उस दिन सुबह जब मैं बालकनी में गया, तो मुझे वही मुंह लटकाए कुत्ता दिखा। मैंने तुरंत पत्नी जी को आवाज दी और कहा कि देखो, आज भी कुत्ता कैसे इंसानों की तरह रेलिंग से मुंह लटकाए बैठा है। मेरे इतना कहते ही श्रीमती जी ने मुझे कुछ अजीब नजरों से देखा और बोलीं, ‘‘क्या फालतू की बात कर रहे हैं। अरे, वहां कोई कुत्ता नहीं बैठा है, वो तो उनके दादा जी हैं, जो कल ही गांव से आए हैं और बालकनी से नीचे झांक रहे हैं।’’
मुझे काटो तो खून नहीं। अब मैं क्या कहता, बताना ही पड़ा कि मुझे दूर का साफ-साफ दिख नहीं रहा कुछ दिनों से। और फिर क्या था, श्रीमती जी फौरन चली गयीं गूगल बाबा के दरबार में, जहां सबकी मुरादें-नामुरादें पूरी हो जाती हैं। तमाम देसी-विदेशी साइटें खंगालने के बाद निष्कर्ष यह निकला कि इस दिक्कत के लिए कोई डीवाईआई टिप काम नहीं करेगा, मुझे आंखों के डॉक्टर से मिलने जाना होगा। शुक्र है श्रीमती जी को गूगल ने सही राह दिखायी, वरना मेरी आंखों में ना जाने कभी गुलाबजल डाला जाता, तो कभी किसी पत्ते को पीस कर उसका अर्क लगाया जाता।
बहरहाल, मेरी नजर के कमजोर होने का राज जिस दिन उजागर हुआ, उसके 3 दिन बाद आई स्पेशलिस्ट का अपॉइंटमेंट मिला। और यही 3 दिन मेरी जान के लिए आफत की पुड़िया साबित हुए। कल तक फर्राटे से स्कूटी चलानेवाले मुझ गरीब से ड्राइविंग का अधिकार छीन लिया गया। पत्नी जी ने साफ-साफ कह दिया, ‘‘आप जहां भी जाएंगे, स्कूटी से नहीं, ऑटो से जाएंगे। ठीक से कहीं दिखा नहीं और आपने किसी को ठोंक दिया, तो लेने के देने पड़ जाएंगे। क्या पता रेडलाइट ही ना दिखे और आप चालान कटवा बैठें।’’ इतना होता, तो झेल भी लेते। मोबाइल-टीवी हर उस चीज से मैं महरूम कर दिया गया, जो मेरे टाइम पास का साधन थी।
बात यहीं तक रहती, तो गनीमत थी, आगे का किस्सा और जिगर चाक करनेवाला था। पड़ोस में पंडित जी रहते हैं, सुबह-सुबह आ धमके और सीधा श्रीमती जी की ओर मुखातिब हुए, ‘‘ऐसा है आपने कल फोन करके बताया, तो मैंने भाई साहब की कुंडली देखी। दरअसल, इनकी कुंडली के दूसरे भाव में सूर्य है और बारहवें भाग में चंद्र, जिसकी वजह से इन्हें गंभीर नेत्र रोग होने की आशंका है। यह तो अच्छा है कि इसी भाव में मंगल नहीं है, वरना इनके ब्लांइड होने का खतरा भी रहता।’’
पंडित जी की बातों से श्रीमती से ज्यादा मैं घबरा गया। माना कि श्रीमती जी थोड़ा ग्रह-नक्षत्रों पर यकीन करती हैं, पर इस बात के लिए पंडित से सलाह लेने की क्या जरूरत थी। जा तो रहे हैं डॉक्टर के पास, वह कोई ना कोई उपाय तो सुझा ही देगा। फिर पंडित ने इससे निजात पाने का जो कठिन उपाय बताया, उससे अच्छा तो मुझे नेत्रहीन होना ही श्रेयस्कर लगा था। पंडित जी बम फोड़ कर और बढ़िया नाश्ता डकार कर चले गए, और पीछे छोड़ गए धार्मिक अनुष्ठानों की लंबी लिस्ट। अब मुझे कल रोज अलसुबह सूर्य देवता को जल अर्पित करना है, ब्लाइंड बच्चों को अपनी पसंदीदा चीजें दान करनी है, आदित्यहृदय स्रोत का पाठ भी करना है वगैरह-वगैरह।
श्रीमती तो ठहरी पक्की भारतीय नारी, पति की सच्ची सहधर्मिणी, इतने पर ही कहां रुकनेवाली थीं। शाम को उनके दूर के भाई जो योग कक्षाएं चलाते हैं, आ गए। मैं फौरन से पेश्तर समझ गया कि इन महाशय को भी पत्नी जी ने ही बुलाया है। आते ही चरण स्पर्श करने के साथ ही योगी जी शुरू हो गए, ‘‘दीदी, अगर जीजा जी पहले से ही कुछ यौगिक क्रियाएं करते, तो ये दिन ना देखने पड़ते। अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है, आइए जीजा जी, मैं आपको नेत्र ज्योति बढ़ाने के कुछ विशिष्ट योग अभ्यास कराता हूं। देखना, कुछ ही महीनों में आपकी नजर पहले से भी तीक्ष्ण हो जाएगी।’’ फिर तो हमारे योगी साले ने त्राटक, आंखों को ऊपर-नीचे घुमाने, भस्त्रिका प्राणायाम के साथ-साथ ना जाने भांति-भांति के योगासन करके दिखाए और रोज करने की हिदायत दी। हम जानते थे कि हमसे यह नौटंकी ना कभी हुई, ना अब हो पाएगी। पर सारी खुदाई एक तरफ, जोरू का भाई एक तरफवाली प्राचीन काल से चली आ रही ब्रहृमास्त्र सरीखी कहावत याद आ गयी और मैं झूठमूठ का योगाभ्यास करने बैठ गया।
अभी तो डॉक्टर से मिलने जाने में 2 दिन बचे थे, ना जाने अब क्या गुल खिलनेवाला है, यह सोच कर मन विचलित हुआ जा रहा था। मेरी नजर कमजोर होने की खबर धीरे-धीरे सोशल मीडिया पर उर्फी जावेद के वीडियो की तरह मोहल्लेभर में वायरल हो गयी और फिर शुरू हुआ दौर सुझावों-सलाहों का, घरेलू नुसखों का। पड़ोस की एक आंटी आयीं और बता गयीं कि मुझे भीगे हुए बादाम, किशमिश और अंजीर खाने चाहिए। मिसेज वर्मा ने मेरी पत्नी को सुझाव दिया कि भाई साहब को देसी घी का सेवन कराएं, साथ में मिश्री, आंवला और सौंफ भी खिलाएं। तेरह नंबर फ्लैटवाले मिश्रा जी ने बताया कि उनके भाई की भी नजर कमजोर हो गयी थी, और उसने हरी पत्तेदार सब्जियां और गाजर खा-खा कर नेत्रज्योति बुझने से बचा ली। मोहल्ले के नीमहकीम अंसारी चाचा बता गए कि मछली मेरी आंखों के लिए बहुत उम्दा रहेगी। रोज खाया करो। और साथ लाए अपने बैग में से एक छोटी सी शीशी निकाल कर देते हुए बोले, ‘‘यह नुसखा मैंने खास आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए ईजाद किया है। इसकी दो बूंद रोज रात को सोते समय आंखों में डाल लेना, फिर देखना इसका कमाल।’’ मैंने सवाल किया कि चाचा, जो लोग नॉनवेज नहीं खाते, उनकी आंखों की रोशनी कैसे बची रहती है। तो उन्होंने झट से कहा, ‘‘बरखुरदार, शाकाहारियों के लिए भी कुदरत ने एक से बढ़ कर एक चीजें मुहैया की हैं, वे गाजर खाएं, पत्तेवाली सब्जी खाएं, शकरकंद खाएं वगैरह-वगैरह।’’ मेरे सामने यक्षप्रश्न खड़ा था कि मैं किसकी सलाह मानूं, किसकी नहीं।
खैर, किसी तरह दो दिन कटे और डॉक्टर से मिलने की घड़ी आ गयी। डॉक्टर से मिलने से पहले एक जोड़ी टेक्निशियंस ने मेरी आंखों का मुआयना कई तरह के यंत्रों से किया। कभी मुझसे एबीसीडी पढ़वाते, कभी कोई मशीन मेरी आंखों में फूंक मारती। मुझे लगा कि डॉक्टर से मिलवाने से पहले वे पूरी तरह आश्वस्त हो जाना चाहते थे कि मेरी आंखें वाकई खराब हो चुकी हैं। मुझे वेटिंग रूम में बैठा दिया और आंखों में कुछ जलनेवाली दवाई डाल कर आधा घंटा आंखें बंद रखने के लिए कहा। साथ में श्रीमती जी थीं, तो मुझे ज्यादा फिक्र नहीं थी, पर आधे घंटे तक आंखें बंद किए रहना, उफ... अभी 15 मिनट भी ना बीते होंगे कि वही नर्स आयी और आंखों में दोबारा वही मिर्चीवाली दवा डाल कर चली गयी।
तकरीबन 10 मिनट बाद मेरा नाम पुकारा गया, तो समझ गया कि अब डॉक्टर से मिलने के लिए मैं पूरी तरह फिट हो चुका हूं। डॉक्टर ने भारी-भरकम मशीनों से मेरी आंखों में तेज रोशनी की किरणें डाल-डाल कर मुआयना किया और बताया कि मेरी आंखों की मसल्स कमजोर होने की वजह से लेंस रेटिना पर ठीक से फोकस नहीं कर पा रहा है और मुझे चश्मा लगेगा। उन्होंने पर्ची पर कुछ लिख कर श्रीमती जी को पकड़ा दिया और अपनी ही दुकान से चश्मा बनवाने की बात कही।
मित्रो, मैंने चश्मा बनवा लिया है और अब मुझे सब कुछ दूर का भी साफ-साफ दिख रहा है। लेकिन अब एक अलग किस्म का दुख मुझे खाए जा रहा है। जब तक मेरी दूर की नजर कमजोर थी, सड़कों पर लगे राजनैतिक पार्टियों के एक-दूसरे पर छींटाकशी करते पोस्टर मुझे नहीं दिखते थे। मोहल्ले में बालकनी में खड़े हो कर कौन किसके साथ नैनमटक्का कर रहा है, यह भी नहीं दिखता था। पार्टियों में दूर खड़ी सुंदर से सुंदर महिला भी मुझे क्लियर नहीं दिखती थी, तो घर हो या बाहर, मैं श्रीमती जी के सौंदर्य में ही खोया रहता था। मोहल्ले की जिन भाभियों के सौंदर्य की मैं मन ही मन दाद देता था, अब उनके चेहरे के दाग और झुर्रियों ने मेरी आस्था हिला दी है। मैं सिनेमाहॉल में मूवी देखने नहीं जाता था, क्योंकि मुझे साफ दिखता नहीं था, अब वो बात रही नहीं, तो मूवी का खर्चा भी बढ़ गया। पहले बाथरूम की सफाई करने से बच जाता था, क्योंकि बाथरूम मुझे साफ ही दिखता था, लेकिन अब बहाना भी नहीं बना सकता। सच बताऊं, तो मैं यह निर्णय नहीं ले पा रहा हूं कि मेरी स्थिति कमजोर नजर के साथ बेहतर थी, या नजर ठीक हो जाने के बाद। पहले कम से कम नजर ही कमजोर थी, नजरिया तो सही था, पर अब तो...