Monday 18 September 2023 04:54 PM IST : By Pushpa Bhatia

अहसास

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मेल बड़ी भाभी का था। मेल क्या था निरंजन भैया की शिकायतों का पुलिंदा था, जिसमें उनके फिर किसी महिला के साथ उलझ जाने के किस्से को बेहद बढ़ा-चढ़ा कर लिखा गया था। इसके अतिरिक्त पिछले वे सभी किस्से भी थे, जो हम सब भाई-बहन लगभग पूरी तरह भूल चुके थे। उनके हिसाब से इस बार मामला बेहद गंभीर है और मुझे और दिनकर को तुरंत खंडवा पहुंच कर स्थिति का जायजा ले कर मामले को निबटाना होगा।
बड़े भैया वैसे तो बेचारे भोले भंडारी हैं, लेकिन शुरू से थोड़े मजाकिया स्वभाव के हैं। बात-बात पर जोक्स सुनाना उनकी पुरानी आदत है। वह बात अलग है कि कभी-कभी मजाक करते-करते वे थोड़ी-बहुत बचकाना हरकतें भी करना शुरू कर देते हैं। उनकी इसी कमजोरी का फायदा उनकी सहकर्मी, अधीनस्थ महिलाकर्मी और मित्र पत्नियां जी भर कर उठाती हैं, जिससे कभी-कभी उनको काफी जहमत भी उठानी पड़ती है। भैया बन जाते हैं हास्य के पात्र और भाभी के कोप के भाजन। भैया के इसी स्वभाव के कारण भाभी हमेशा सशंकित रहती थीं, लेकिन इस बार तो उन्हें पूरा विश्वास था कि भैया उस महिला के साथ नूतन गृहस्थी बसानेवाले हैं।
“भाभी, आप बेवजह भैया पर शक कर रही हैं, उनके जैसा शरीफ इंसान किसी दूसरी महिला को आंख उठा कर भी देख नहीं सकता, साथ गृहस्थी बसाना तो दूर की बात है,” मैंने तुरंत फोन मिला कर भाभी को समझाने की नाकाम सी कोशिश की, तो वे और भड़क गयीं, “अब तक तेरे भैया ने मुझ पर जितने जुल्म ढाए, मैंने चुपचाप बर्दाश्त कर लिए, लेकिन अब और बर्दाश्त नहीं करूंगी।”
कलेजा धक से रह गया। जाने कैसे-कैसे कुविचार मन में आने लगे, ‘क्या करनेवाली हैं भाभी? तलाक या आत्महत्या? कहीं घर छोड़ कर जाने का निश्चय तो नहीं कर लिया?’
क्या करूं, किससे कहूं? दोनो बेटों का ब्याह हो गया। वैसे भी भैया-भाभी के निजी जीवन की बातें बच्चों के साथ डिस्कस करके मैं अपना कद छोटा नहीं करना चाह रही थी। जरा सी भनक लगी नहीं कि मजाक बनाना शुरू कर देते हैं, “इस उम्र में भी आपके भाई-भाभी लड़ते रहते हैं? तीस साल बहुत होते हैं एक-दूसरे को समझने के लिए।”
दृष्टि बालकनी में ईजी चेअर पर रिलैक्स मूड में बैठे दिनकर पर ठहर गयी। आज का ताजा पेपर सामने रखा था। मोबाइल पर अनूप जलोटा के भजन चल रहे थे। सही वक्त समझ कर मैंने भाभी का मेल उनके मोबाइल पर फॉरवर्ड कर दिया।
“ये क्या है?” अपने चेहरे पर अत्यंत सधी हुई रेखाओं का मुखौटा ओढ़ने में सिद्धहस्त दिनकर ने मुझसे प्रश्न किया।
“भाभी की शिकायतों का पुलिंदा।”
“नॉट इंट्रेस्टेड, तुम्हारी 50 वर्षीय भाभी में परिपक्वता तो नाममात्र की नहीं है, जब देखो रोने-बिसूरने बैठ जाती हैं।”
उनकी मुख मुद्रा देख कर मैं समझ गयी थी कि उनके अंत:स्थल में भी उथलपुथल है, शायद बड़ी भाभी या मेरे दोनों छोटे भाइयों में से किसी ने उन्हें भी भैया के अफेअर की सूचना दे दी थी।
मैं पूजाग्रह में जा कर अपनी दिवंगत दादी की फोटो के समक्ष बैठ कर रोने लगी। जब तक थीं, उनके हृदय में हमेशा बड़े भैया के लिए वात्सल्य और ममता का ही स्रोत रहता था, इसीलिए वे उनकी कोई भी आलोचना, चाहे वह भाभी द्वारा की गयी हो या किसी अन्य के द्वारा, सहन नहीं कर पाती थीं।
“नन्ही उम्र में आढ़ती की दुकान पर कपड़ा नापने से ले कर क्या-क्या बोझ नहीं ढोए बेचारे ने ! अपने लिए तो जिया ही नहीं कभी,” दादी मुझे और दिनकर को कई बार बता चुकी थीं।
“दूसरे 3 भाई-बहन भी तो थे, फिर निरंजन भैया पर ही सबकी उम्मीदें क्यों टिकी रहती थीं,” ममता और सुरक्षा की छांव तले पले-बढ़े दिनकर का हृदय भैया के प्रति सहानुभूति से द्रवीभूत हो उठता।
“अपने-अपने कर्मों का फेर है बेटा। मां के गर्भ में ही था कि गिरधारी का लाखों का व्यापार चौपट हो गया। मकान-दुकानें सब बिक गयीं। तभी से बहू ने निरंजन के लिए ग्रंथि पाल ली। लेकिन इस सबमें बेचारे निरंजन का क्या दोष?”
मुझे भी लगता था कि बड़े भैया जैसा नेकदिल इंसान कहीं ढूंढ़ने से भी नहीं मिल सकता। बस एक ही कमी उनमें है कि किसी भी बात को या तो गंभीरता से नहीं लेते या फिर किसी को अति गंभीरता से ले लेते हैं। माता-पिता की इकलौती संतान और घर की सबसे बड़ी बहू होने के नाते बड़ी भाभी भी हमेशा प्रमुखता पाती रही थीं। बड़े भैया शुरू-शुरू में उन्हें भी छुईमुई बना कर ही रखते थे। उनकी हर इच्छा-अनिच्छा का ध्यान भी रखते थे। कालांतर में दोनों, दो बेटों के माता-पिता बने। कंपनी के काम से बंबई, मद्रास, कलकत्ता भैया जहां भी गए, सपरिवार ही गए, फिर भी बड़े भैया का ध्यान भाभी की ओर से जरा सा भी हटता, तो रूठ कर वे उन पर तोहमतें लगाना शुरू कर देतीं, “इनकी तो ना घर के प्रति कोई जिम्मेदारी है, ना ही बच्चों के प्रति। खुद दोनों हाथों से पैसा लुटाते हैं, लेकिन क्या मजाल जो मुझे पूरा घर खर्च भी दे देते हों।”
“अगर बच्चों पर ध्यान नहीं दिया होता, तो दोनों बेटों ने इंजीनियरिंग और एमबीए कैसे कर लिया? दोनों कॉरपोरेट वर्ल्ड में नाम कमा रहे हैं?” सहोदर नहीं थे, लेकिन भैया के संग दिनकर का रिश्ता सगे भाइयों से भी बढ़ कर था।
पिछले कुछ दिनों से अनायास ही भाभी ना जाने कैसे घर-गृहस्थी से विमुख हो कर एक धार्मिक पंथ की ओर मुड़ गयी थीं। शुरू-शुरू में भैया ने भी उत्साह दिखाया, लेकिन जब भाभी का सत्संग मोह व्यसन बन गया, तो उन्हें उलझन सी होने लगी थी। उन्होंने कई बार चाहा कि मां या पत्नी से कुछ कहें, पर प्रतिप्रश्न के बारे में सोच कर फिर चुप हो जाते।
‘इतने बड़े प्रतिष्ठान के इंजीनियर, घर सुसज्जित सामानों से लैस, दोनों बेटे अपने-अपने कैरिअर में पूर्ण रूप से व्यवस्थित, फिर भी भाभी ने शिकायतें कर-करके बड़े भैया को हम सभी भाई-बहनों के बीच हास्य का पात्र बना दिया। बेचारे कभी भी बड़प्पन का गौरव ना पा सके,’ लेटे-लेटे मैं अपने आपसे बातें कर रही थी।
“शुचि क्या सोच रही हो?” दिनकर ने पुकारा, तो मैं वर्तमान में लौट आयी थी।
“सपने में भैया-भाभी की समस्या का समाधान ढूंढ़ रही थी।”
“यथार्थ का समाधान यथार्थ के धरातल पर ही खोजो,” उन्होंने गंभीरता से कहा, तो मैं उनकी बात का अर्थ खोजने लगी, “कैसे?”
“मुझे दो दिन के लिए खंडवा जाना है टूर पर। तुम भी चल सकती हो मेरे साथ,” इस उम्र में भी मायके जाने के विचार से मन पुलक उठा था।
तीस वर्ष बीत जाने के बाद भी दिनकर की खातिर-तवज्जो हमेशा की तरह दोनों भाइयों, भाभियों ने एक जश्न की तरह की। रात को बड़ी भाभी की समस्या के हल के लिए महफिल जमी। दोनों भाई-भावजों ने बड़े भैया के अवगुणों की चर्चा जम कर की। उन सबकी बात से यही सार निकला कि आजकल बड़े भैया का उसी लड़की के साथ चक्कर चल रहा है, जिसे बड़ी भाभी ने भैया से मिलवाया था और जिसकी नौकरी भाभी के कहने पर भैया ने ही लगवायी थी।
“भलाई का तो जमाना ही नहीं रहा,” मैं मन मसोस कर रह गयी,” भाभी के प्रति शुक्रगुजार होने के बजाय उन्हीं का घर तोड़ रही हैं?”
“बोल चुके तुम सब लोग या अभी कुछ कहना बाकी है?”

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दिनकर अब तक तटस्थ, निर्विकार सब सुनते रहे। अचानक सबको अहसास हुआ कि उन्हें ये सब अरुचिकर प्रतीत हो रहा है। दरअसल, उनकी सभी बहुत इज्जत करते थे।
“ये कैसा एकपक्षीय निर्णय है तुम लोगों का? अपने ही रक्त संबंध को दोष देते समय तुम सब भूल रहे हो कि बड़े भैया के संस्कारों एवं आचरण पर एक उंगली उठाते समय अन्य चार तुम्हारे संस्कारों पर भी पड़ रही हैं ! इतना याद रखो, रक्त संबंध या मानवीय रिश्तों को झटके से उखाड़ फेंकने में ना अब तक कोई सफल हुआ है, ना हो सकता है, ना ही तोड़ पाया है।”
विस्मय विमूढ़ हो कर हम सब यहां तक कि बड़ी भाभी भी दिनकर का चेहरा देखने लगे।
“जरा सोच कर देखो, जिस इंसान ने अपना हर दायित्व संपूर्ण निष्ठा से अपनाया हो, उसके बदले में उसे इस परिवार से मिला क्या? मां का पक्षपातपूर्ण व्यवहार और भाई-भाभियों का तिरस्कार, घृणा, उपालंभ और अवमानना की गंदी धूल? हर इंसान जीवन में किसी ऐसे मित्र, साथी या संबंधी की कामना करता है, जो उसकी भावनाओं की कद्र करता हो। लेकिन दूसरों की क्या कहूं, भाभी आप तो उनकी सहचरी, सहधर्मिनी हैं, आपने भी तो उनकी भावनाओं और संवेदनाओं को समझने की कोशिश कभी नहीं की। बल्कि अपने पति के साथ रिश्ता ही तोड़ लिया ! वह रिश्ता जिस पर दांपत्य की नींव टिकी है।” मैंने महसूस किया कि इस उम्र में भी बड़ी भाभी के कपोल आरक्त हो उठे थे, नजरें शरम से झुक गयी थीं।
“आपके धर्मानुसार यह सब शारीरिक मोह अब इस वयस में वर्जित है और अब यह समय धर्म चर्चा का है। यदि ऐसा ही है, तो आप अपने बच्चों का मोह, गृहस्थी का मोह, सुरक्षित छत के साये में रहने का मोह क्यों नहीं छोड़ पातीं? जरा सा भी पति के अन्य कहीं आकर्षित होने से विचलित क्यों हो जाती हैं?
“आपके सत्संग ने आपको, विचारों की परिपक्वता, ईर्ष्या, राग, द्वेष से मुक्ति भले ही ना दिलायी हो, परंतु अपनों को अपने से दूर कैसे किया जाता है, यह अवश्य ही सिखा दिया है। क्या दिया है भाभी आपने अपने पति को भावनात्मक तौर पर? यहां तक कि उनके बच्चों तक को उनसे दूर कर दिया?”
कुछ देर मौन रह कर दिनकर भर्राए गले से फिर बोले, “बच्चे अपने-अपने कैरिअर में व्यस्त हो गए, और आप अपने सत्संग में। भैया बिलकुल अकेले रह गए ! काश भाभी, आप लेशमात्र भी अपने पति को समझ पातीं कि वे भी इंसान हैं। इस उम्र में उन्हें भी आवश्यकता है एक साथी की, एक सहचरी की, जिसके साथ वे अपना सुख-दुख बांट सकें। लेकिन आपने उन्हें दिया ही क्या? मरघट जैसा घर का वातावरण, जहां सांय-सांय करता सन्नाटा होता है या तल्खीभरी बहस या अवहेलना। ऐसी हालत में बड़े भैया तो क्या, कोई भी होता टूट जाता, भैया भी टूट गए। संवेदना के धरातल पर जिधर संबल मिला उस ओर भटक गए।”
सभी सिर झुकाए चुपचाप सुनते रहे।
“पत्नी गांव-गांव, शहर-शहर जा कर अपनी शिकायतों का प्रचार करे, तो बेचारी, अबला नारी और पति किसी असहाय या जरूरतमंद की सहायता भी करे तो चरित्रहीन? तुम औरतें घर-बाहर, जहां भी अपना कोई हमदर्द मिलता है अपना मन हल्का कर लेती हो, लेकिन पुरुष? वह क्या करे, कहां जाए? उसे भी किसी हमदर्द की जरूरत होती है। कोई ऐसा हो, जो उसका दर्द, उसकी भावनाओं को समझे। यह तो निरंजन भैया के अच्छे संस्कार हैं, वरना कोई और होता, तो पत्नी की इतनी उपेक्षा से घर छोड़ देता। बड़े भैया अपनी हद जानते हैं। वे ऐसी अवांछनीय हरकत कभी ना करते, अगर उन्हें भाभी और आप सब परिवारजनों का सहयोग मिला होता तो।”

अब तक निर्विकार खड़ी भाभी के अंतस का लावा फूट पड़ा, “तुम लोगों को मेरी बात पर विश्वास नहीं है ना ! आज भी आपके भैया शिनोय होटल में उस महिला के साथ लंच कर रहे हैं।”
“तो चलिए, हम सब भी शिनोय होटल चल कर लंच ले लेते हैं,” दिनकर मुस्करा कर बोले, “वहां का मैनेजर मेरा दोस्त है, टेबल बुक करवा लेता हूं।”
सबको दिनकर का प्रस्ताव पसंद आया। कुछ ही देर में हम सब शिनोय होटल पहुंच गए। होटल के कॉरिडोर में बेचैन कदमों से भैया चहलकदमी करते हुए मिल गए, “अरे तुम लोग यहां !”
“हां, आज मेरा प्रस्ताव था यहां होटल में खाना खाने का, अच्छा हुआ आप भी मिल गए,” मैंने मुस्करा कर कहा।
“नहीं-नहीं, मैं तुम लोगों का साथ नहीं दे पाऊंगा,” भैया विचलित हो उठे, “अरे, भई घर में हलवा-पूरी, मालपुआ बनवाते, इतने दिनों बाद शुचि और दिनकर आए हैं,” भैया के नेत्रों में हल्का सा वेदना मिश्रित जल भर आया।
“ये मेरा ही सुझाव था होटलवाला, सबको आराम मिलेगा, एंजॉयमेंट भी रहेगा।”
“तो फिर किसी फाइव स्टार में जाते, यहां क्यों चले आए?”
कुछ देर तक यही बातें चलती रहीं। तभी भाभी ने मेरा ध्यान मुख्य द्वार की ओर आकर्षित किया। एक सांवली-सलोनी, साधारण सी आत्मविश्वास से परिपूर्ण युवती एक मंझोले कद के आकर्षक युवक के संग चली आ रही थी।
“अरे आप सब यहां? अमित, इनसे मिलो, मेरे फैन, फ्रेंड और फिलॉसफर, हमारे विभाग के वरिष्ठ अधिकारी। सच पूछो, तो मुझे सर ने सहारा ना दिया होता या मेरी समय-समय पर मदद ना की होती, तो आज हमारा परिवार सड़क पर होता। इस सबका श्रेय अलका जी पर जाता है। इन्होंने ही निरंजन सर से कह कर मेरी नौकरी लगवायी। मैं तो घर-घर जा कर कंप्यूटर रिपेअर करती थी। एक बार निरंजन सर के घर कंप्यूटर ठीक करने आयी, तो सर ने मेरी मदद का वादा किया और अपनी कंपनी में नौकरी पर लगा लिया, तभी तो मैं तुम्हारे साथ विवाह करने के लिए राजी हुई हूं” फिर वह हम सभी की ओर उन्मुख हो कर बोली, “सच में आप सबको निरंजन सर जैसे भाई पर गर्व होना चाहिए। यह मेरे विवाह का कार्ड है, विवाह के बाद हम दोनों अमेरिका चले जाएंगे, क्योंकि अमित को वहां नौकरी मिल गयी है।”
भाभी की फटी-फटी आंखें, सब भाई-बहनों के अवाक खुले मुख, और टेबल पर रखे लाल-पीले गुलाबों से महकता-खिलता गुलदस्ता देख कर मन में उम्मीद की किरण प्रज्ज्वलित हुई कि भविष्य में भैया-भाभी का जीवन जरूर सुखमय हो जाएगा, लेकिन मन में संशय का नाग भी फन फैलाए खड़ा था कि दिनकर, बड़े भैया और भाभी के निजी जीवन, यहां तक कि अंतरंग क्षणों की बातें भी इतने विस्तार से कैसे जानते हैं?
“नीरू, तुम शायद भूल रही हो कि निरंजन चाहे कॉलेज में मुझ से सिर्फ एक साल ही सीनियर थे, लेकिन हमारे बीच घनिष्ट मित्रता भी थी। ये सब बातें उन्होंने मुझसे स्वयं शेअर की थीं।”
खंडवा छोड़ते समय मुझे अहसास हुआ कोई भी समस्या इतनी जटिल नहीं, सिर्फ समझानेवाला सही होना चाहिए।