Tuesday 17 October 2023 04:51 PM IST : By Seema Srvastava ’Bhavya’

छांव

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पीछे के कमरे से बाबू जी के खांसने की आवाज लगातार आ रही थी। प्रिया ने नाक-भौं सिकोड़ते हुए दरवाजे को लॉक कर कर लिया और एसी अॉन करके कानों में इयरफोन लगा कर गाने सुनने लगी। अब इस बेसुरी आवाज को सुनने से तो बेहतर है कि म्यूजिक ही सुना जाए। पता नहीं बाबू जी को कौन सी खांसी है कि लाख दवा-इलाज करा लो, ठीक ही नहीं होती है। खैर, उसने खांसी से ध्यान हटा कर गाने पर ध्यान लगाने की कोशिश की, पर खांसी की आवाज तो जैसे उसका पीछा ही नहीं छोड़ना चाहती थी, और तेज होती गयी। अंत में प्रिया से रहा ना गया, तो उसने एसी बंद किया, इयरफोन निकाल फेंका और बाबू जी के कमरे में पहुंच गयी।

‘‘पानी का गिलास रखा तो है बाबू जी, फिर आप क्यों नहीं पीते।’’ बाबू जी की खांसते-खांसते आंखें लाल हो गयी थीं।

‘‘अरे बेटा, जहां दवा असर नहीं करती वहां पानी क्या करेगा,’’ बाबू जी अपने तख्त पर निढाल पड़ गए थे।

‘‘बहू, आज जरा समय निकाल कर काढ़ा बना दो, तो शायद थोड़ा आराम मिले,’’ उन्होंने कांपते स्वर में कहा।

‘‘देखती हूं,’’ कहते हुए वह बाहर ड्रॉइंगरूम में आ गयी। सारा मूड ऑफ हो गया। सोचा था आराम से म्यूजिक सुनेगी, पर बाबू जी उफ्फ... उसने लंबी सांस ली और सोफे पर लुढ़क गयी।

‘शाम के 5 बजने वाले हैं, एक घंटे में नितिन के आने का टाइम हो जाएगा। साहिल शायद लॉन में है, है तो अभी 9 साल का, पर उसे गार्डनिंग का बहुत शौक है। शाम होते ही घर के काम फिर से चालू हो जाएंगे, ऊपर से बाबू जी का फरमान कि काढ़ा बना दो,’ उसने बुरा सा मुंह बनाया।

खयालों के सागर में वह गोते लगाने लगी। अम्मा थीं, तो कितना अच्छा था। बाबू जी के लिए उसे कुछ करना ही नहीं पड़ता था। अम्मा खुद ही बाबू जी की पूरी देखभाल करती थीं। बाबू जी अदरक वाली चाय के बहुत शौकीन थे। सुबह हुई नहीं कि अम्मा अदरक वाली चाय ले कर उनके पास हाजिर होती थीं। अब यह सब नौटंकी करने का तो प्रिया को कोई शौक नहीं है। ग्रीन टी पीना उसकी आदत है। अम्मा के जाने के बाद एक-दो बार जब वह ग्रीन टी ले कर बाबू जी के पास गयी, तो उन्होंने कहा, ‘‘बेटा, तुम तो जानती हो मैं हमेशा तुम्हारी अम्मा से अदरक वाली चाय ही बनवाता था, ये सब मुझे नहीं पसंद आता।’’

वह उलटे पैरों वापस आयी और दोबारा उसने बाबू जी को चाय के लिए पूछना ही बंद कर दिया। सीधे दलिया या पोहा बना कर दे देती नाश्ते के टाइम। अम्मा के रहते बाबू जी के बहुत नखरे थे। नाश्ते में मलाई वाला दूध या चाय-पकौड़े, अजवाइन वाली पूड़ी और आलू की भुजिया लेते।

अम्मा भी खूब थीं। पैरों में प्रॉब्लम थी, फिर भी जैसे-तैसे बाबू जी का पूरा खयाल रखती थीं। उन्हें क्या पसंद है, क्या नहीं। खाने में भी वही हाल, खाना बनने की शुरुआत नहीं हुई कि बाबू जी बाहर से आवाज लगा देते, ‘‘सुनो, तुम मेरे लिए जरा मोटी बेसन की रोटियां बनाना और साथ में साग जरूर रखना, बहू बेचारी अकेले क्या-क्या करेगी।’’

तब इन बातों पर उसे हंसी आती थी, वह कहती, ‘‘अम्मा, आपने बाबू जी की आदत बिगाड़ के रखी है, हमेशा उन्हें कुछ अलग से चाहिए होता है। बताइए आप ठीक ना रहीं, तो बाबू जी का क्या होगा। आप तो जानती हैं मुझे ये साग और बेसन की रोटी बनाना बिलकुल पसंद नहीं और मैं सबकी पसंद का अलग-अलग बनाऊंगी, तो मेरा क्या होगा।’’

अम्मा हंस पड़तीं, ‘‘अरे, उनकी इकलौती बहू है तू, अब इतना तो तुझे सीखना ही पड़ेगा अपने ससुर जी के लिए। वैसे परेशान ना हो, इतनी जल्दी मैं कहीं जाने वाली नहीं, जाने से पहले तुझे सब कुछ सिखा के जाऊंगी।’’

और सच अम्मा ने धीरे-धीरे उसे सब सिखा दिया। बेसन की मोटी रोटियां घी में तर करके कैसे बाबू जी को देनी है और सरसों का साग, मेथी आलू का साग कैसे बनाना है, इन सबमें परफेक्ट हो गयी वह। यह बात अलग है कि उसे ये सब करना पसंद नहीं। शाम को वह खुद के लिए और नितिन के लिए ग्रीन टी या कॉफी बनाती, तो अम्मा बाबू जी के लिए गाढ़े दूध की अदरक वाली चाय।

सब कुछ कितने अच्छे से चल रहा था। छोटा सा खुशहाल परिवार। नितिन प्राइवेट कंपनी में इंजीनियर थे, थोड़े बिजी रहते। वह खुद अपना बुटीक खोलने का सोच रही थी, उसने फैशन डिजाइनिंग का कोर्स कर रखा था। तब तक साहिल का जन्म हो गया था, प्यारा सा बेटा। अम्मा-बाबू जी तो निहाल थे, सारा प्यार उड़ेलते साहिल पर। इस बीच उसने घर में ही अपना बुटीक खोल लिया। पैसे की प्रॉब्लम नहीं थी, इसलिए बहुत टाइम नहीं देती वहां और सप्ताह में 2 दिन बंद रखती।

बाबा-दादी की प्यारभरी छांव तले साहिल बड़ा हो रहा था। बाबू जी उसे गीता और रामायण के श्लोक सुनाते, उनके अर्थ समझाते। वह जब किचन में काम करती, तो अम्मा उसकी हेल्प करतीं। वह मना भी करती, तो हंसते हुए कहतीं, ‘‘तुम्हारी सास अभी इतनी बूढ़ी नही हुई है कि कुछ कर ना सके, अभी तो मैं तुम लोगों की पसंद की चीजें बना-खिला सकती हूं। और तुझे तो पता है तेरे बाबू जी कितने नखरे करते हैं, अकेले तू क्या-क्या करेगी।’’

मिलजुल कर सब ठीक चल रहा था। बाबू जी भी कितने खुश रहते थे। साहिल के साथ-साथ उसके दोस्तों के साथ भी कैरम खेलते, पार्क में जाते, अच्छी-अच्छी कहानियां सुनाते। फिर एक दिन अचानक अम्मा ऐसा सोयीं कि दोबारा ना उठ सकीं। सारा घर मानो वीरान हो उठा, बहुत रोयी थी वह अम्मा के लिए, अकेली पड़ गयी थी। बाबू जी का हाल तो बहुत बेहाल था। किसी तरह नितिन उन्हें संभालते।
अम्मा के जाने के बाद बाबू जी बिलकुल चुप और शांत होते गए। साहिल स्कूल, ट्यूशन और एक्टिविटीज में बिजी होता गया, नितिन काम में। प्रिया ने भी अपने बुटीक में मन लगाना शुरू कर दिया। शुरू में एक-दो बार प्रिया ने बाबू जी की पसंद की चीजें बनाने की कोशिश की और बनायी भी, पर धीरे-धीरे उसे ये सब बोझ लगने लगा। रोटियां बनाते वक्त अकसर उसे याद आता बाबू जी का वाक्य, ‘मेरे लिए बेसन की रोटियां बनाना और साग भी,’ पर वह यह सब अलग से नहीं कर सकती। नाश्ते में कौन पूड़ी-भुजिया, ये-वो करे, सीधे कुकर में दलिया गला कर बाबू जी को दे आती। दो-तीन बार साहिल ने टोका भी, ‘‘बाबा, आप तो पहले दलिया नहीं खाते थे।’’

‘‘अब हम सब खाते हैं, और अच्छे बच्चों को सब कुछ खाना चाहिए,’’ वे हंसते हुए कहते। पर उस हंसी में छुपा हुआ दर्द और पलकों की कोरों का गीलापन कहां देख पायी थी प्रिया?

धीरे-धीरे बाबू जी ने खुद को एक कमरे और एक दायरे में कैद करना शुरू कर दिया। दिनोंदिन वे कमजोर हो रहे थे, पर किसी को नजर नहीं आ रहा था। अम्मा बाबू जी के लिए पहले गरमियों में घड़ा रखती थीं, क्योंकि बाबू जी को फ्रिज का पानी सूट नहीं करता था, पर अम्मा के जाने के बाद यह सब कौन करे। उसने उन्हें फ्रिज का पानी देना शुरू किया, तभी से उन्हें खांसी की शुरुआत हो गयी, तो ठीक होने के नाम ही नहीं लेती। ऊब कर उसने जग में सादा पानी रखना शुरू कर दिया। अब बाबू जी पहले जैसे साहिल के साथ भी ना खेलते, ना पार्क जाते, अपने कमरे में लेटे-लेटे जाने क्या सोचते।
यह सब देख कर प्रिया को बड़ी कोफ्त होती। सच... बुजुर्गों को संभालना भी कितना कठिन काम है, वह सोचती।

एक दिन उसने बातों-बातों में नितिन से कहा, ‘‘नितिन, हम बाबू जी को क्यों ना किसी आश्रम में शिफ्ट कर दें।’’

नितिन ने उसे खा जाने वाली नजरों से देखा, तो वह सहम गयी।

‘‘मेरा मतलब,’’ कह कर उसने बात संभाली, ‘‘यहां बाबू जी अम्मा के बिना बहुत अकेले हो गए हैं, उनका मन नहीं लगता, कोई साथी नहीं है उनका, बोर होते हैं, लेटे-लेटे बीमार होते जा रहे हैं।’’

‘‘क्यों परिवार में मैं हूं, तुम हो, साहिल है, वे अकेले क्यों हैं?’’ कहते हुए नितिन गुस्से से निकल गया।

‘‘हुंह, मुझे क्या,’’ वह भी उठ गयी।

एक दिन नितिन ऑफिस के काम से शहर के बाहर गया थे। तब वह पहली बार घर में अकेली थी साहिल और बाबू जी के साथ। उसे डर भी लग रहा था। उसने कहा, ‘‘बाबू जी, आज आप ड्रॉइंगरूम में सो जाइए, मुझे डर लगता है।’’

तब बाबू जी के चेहरे में एक चमक दिखी थी उसे, जो शायद इस बात की थी कि उनकी जरूरत और महत्व दोनों हैं।

और सच वह चैन से सोयी थी, बाबू जी ना होते तो... सोच कर ही डर लगा था उसे, तब समझ में आया था ताकत और शरीर नहीं, साथ और साया ही मायने रखता है।

पर आज उसे ये सब बातें क्यों याद आ रही हैं। झटके से उठी वह, साहिल अभी तक लॉन में ही है। पौने 6 बज गए नितिन के आने का टाइम हो गया है। बाबू जी के खांसने की आवाज अभी भी कानों में पड़ रही थी।

‘देखती हूं साहिल कहां है?’ सोचती हुई वह लॉन में पहुंची, तो देखा साहिल पौधों में पानी दे रहा था। कुछ गमलों में और कुछ जमीन में। साहिल उनको भी पानी दे रहा था, जो पौधे यों ही उगे थे अौर थोड़ा सूख रहे थे।

‘‘अरे बेटा, इन्हें पानी क्यों दे रहे हो, ये तो बेकार पौधे हैं, उनमें ना फूल होते हैं, ना फल।’’

‘‘क्यों मम्मा, पेड़-पौधे तो ये भी हैं ना, हरेभरे रहेंगे, तो हरियाली तो देंगे ही। जरूरी नहीं मम्मा कि सब पेड़ फूल या फल दें, पर ये सूख रहे हैं, तो इनमें पानी डालूंगा, तो ये हरेभरे हो कर झूमेंगे-हंसेंगे, हमें ताजी हवा देंगे, हमारी आंखों को अपनी हरियाली से टॉनिक देंगे। और ये हमारी जमीन पर उगे हैं, तो इनका ध्यान हमें रखना पड़ेगा। मैं इन्हें ऐसे मुरझाने नहीं दे सकता। और मम्मा, आप ही बता रही थीं कि जब एक बार आप दोपहर में बाहर गयी थीं, तो बहुत गरमी थी। आप सोच रही थीं कि किसी पेड़ की छांव मिले, तो आराम मिले। तो कोई पौधा बेकार कैसे हो सकता है? किसी ना किसी को तो इस पौधे की छांव भी मिलेगी, चाहे वह कोई पक्षी ही हो।’’

प्रिया दंग रह गयी। इतने छोटे से बच्चे को इतनी समझ है कि कोई पौधा बेकार नहीं है, तो वह कैसे अपने जीते-जागते बाबू जी को... वह अंदर दौड़ पड़ी, जा कर सीधे बाबू जी के कमरे में रुकी।

‘‘अरे क्या हुआ बहू, क्यों हांफ रही हो,’’ बाबू जी किसी तरह बोले।

‘छांव छांव छांव...’ उसके दिमाग में ये शब्द गूंज रहे थे, ‘‘कुछ नहीं, आप आइए मेरे साथ,’’ वह उन्हें खींचते हुए बोली।

‘‘कहां?’’ वे चौंके।

‘‘चलिए, बाहर लॉन में बैठिए , ठंडी हवा चल रही है, मैं चेअर रखती हूं।’’ बाबू जी अवाक उसके साथ चल दिए। उसने लॉन में चेअर रखी, बाबू जी को बैठाया और सर्वेंट को आवाज लगायी, ‘‘रमेश, जरा दौड़ कर पास की दुकान से अदरक लाना।’’

बाबू जी कुछ समझ नहीं पा रहे थे।

साहिल खुश हो गया, ‘‘दादा जी आज मेरे साथ खेलेंगे, मजा आएगा। आज फिर मैं उनको कैरम में हराऊंगा, वरना हमेशा तो कमरे में ही रहते हैं।’’

‘‘हां बेटा, दादा जी तुम्हारे साथ खेलेंगे,’’ प्रिया ने कहा, तो साहिल खुश हो कर ताली बजाने लगा। वह अंदर जाने लगी, तो बाबू जी ने पूछा, ‘‘तुम कहां जा रही हो बहू?’’

‘‘बाबू जी, आपके लिए अदरकवाली चाय लाने और काढ़ा बनाने।’’ बाबू जी की आंखें खुशी से नम हो गयीं।

प्रिया ने तुरंत फोन मिलाया, ‘‘नितिन, रास्ते से घड़ा ले लेना, बाबू जी को फ्रिज का पानी नुकसान करता है।’’

बाबू जी मुस्करा दिए और प्रिया, वह तो मगन हो गयी, उसके सिर पर इतनी प्यारभरी छांव तो है।