Friday 20 October 2023 05:18 PM IST : By Pragney Mehta

बारिश के आंसू और फूलों की वर्षा

barish-ke aansu

सावन का महीना शुरू हो गया था और दिल्ली में झमाझम बारिश हो रही थी। जिस तरह मेरे सामने मेरे कमरे की खिड़की पर बारिश की बूंदें गिर रही थीं, उसी तरह मेरी आंखों से आंसू गिर रहे थे। मेरे हाथ में अखिल का दिया पत्र था, जो मेरे आंसुओं से भीगने लगा। आज से 7 साल पहले वह मेरी जिंदगी में आया था। जिस तरह उसने मेरी जिंदगी में कदम रखा था उसी तरह एक दिन वह मेरी जिंदगी से गायब भी हो गया। यह सब एक छोटे से चमेली के फूल से शुरू हुआ। वह सफेद फूल आज भी मेरी डायरी में सुरक्षित है।

यह बात सन 2014 की है जब मैंने कॉलेज जाना शुरू किया था। मन ऊहापोह में था कि नया कॉलेज कैसा होगा, पुरानी सहेलियां कहां-कहां पढ़ेंगी, कुछ पता ना था। जिंदगी ने एक नया सा मोड़ लिया था, मन में उत्साह भी था कि कॉलेज को सावन के महीने में शुरू होना था- वही मौसम जो मुझे सबसे अधिक पसंद था और अनजाना सा एक भय भी कि नयी सहेलियां कैसी होंगी।

कॉलेज का पहला दिन तो बहुत खूब था, नयी सहेलियां बनीं, नयी किताबें मिलीं और इन्हीं के साथ मेरे पीछे बैठे लड़के की वे दो खूबसूरत आंखें भी मुझसे मिलीं। वह लड़का मुझे हर लेक्चर के बाद निहारता और मैं उसकी आंखों में खो जाती। मैं उसे देखती और वह मुझे, बस बात करने का कभी मौका ही नहीं मिला। एक दिन जब कॉलेज से घर लौटने लगी, आकाश पर काले बादल छाए हुए थे। मैं जल्दी से मेट्रो स्टेशन की ओर चल पड़ी। मुझे अपने घर शाहदरा जाना था। अचानक वर्षा शुरू हो गयी। इससे पहले कि मैं भीगती किसी ने मेरे सिर पर छाता तान दिया, मुझ पर बूंदें गिरनी बंद हो गयीं। मैंने पीछे मुड़ कर देखा, तो वह वही लड़का था, जो मुझे हर लेक्चर के बाद देखा करता था। मैंने तुरंत ही उससे उसका नाम पूछा, उसने अपना नाम अखिल बताया। बातचीत में पता चला कि वह मेरे घर के करीब रहता है। हम दोनों ने मेट्रो ली और घर की ओर चल दिए।

‘‘क्या मैं आपके साथ बैठ सकता हूं?’’ अखिल ने पूछा।

‘‘अरे हां-हां क्यों नहीं?’’ मैंने सकुचाते हुए कहा।

वह मेरे पास बैठ गया। एक छतरी के नीचे होने के बावजूद हम भीग चुके थे, क्योंकि बारिश बहुत तेज थी। मैंने उसे मुड़ कर देखा। उसके वह भीगे हुए बाल और भूरी आंखें, मैंने आज तक किसी लड़के को इतने करीब से नहीं देखा था। उसने भी मेरी तरफ मुड़ कर देखा। तभी उसने अपनी कमीज की जेब से चमेली का छोटा सा फूल निकाला और मुझे दिया। इतने में उसका स्टेशन आ गया और वह मुझे बाय कह कर चला गया। काफी देर तक मैं उसके बारे में सोचती रही। उसका दिया फूल मुझे ऐसा लगा जैसे उसने अपना दिल का टुकड़ा दे दिया हो। जाने कब मेरा स्टेशन पीछे ही छूट गया और फिर मैं मानसरोवर पार्क स्टेशन पर उतर गयी।

‘‘दीदी कैसी हो? क्या मैं अंदर आ जाऊं?’’ मेरी बहन सृष्टि ने दरवाजे से पुकारा और तभी मैंने वह पत्र अपने तकिए के नीचे छुपा दिया। ‘‘धृति दीदी, परसों आपको लड़केवाले देखने आ रहे हैं, तो आज शॉपिंग के लिए चलना है क्या?’’ सृष्टि ने पूछा।

‘‘आओ चलें, वैसे भी घर से बाहर गए काफी समय हो गया है। हम कनॉट प्लेस चलेंगे,’’ मैंने कहा।

‘‘हां दीदी, ठीक है, वैसे भी मम्मी ने कहा है कि आपको अच्छी सी साड़ी दिला दूं। अच्छा सुनो, क्या मैं अपने बॉयफ्रेंड को भी साथ ले चलूं?’’

‘‘सृष्टि, तुम्हारा बॉयफ्रेंड भी है?’’ मैंने आश्चर्य से पूछा।

‘‘हां दीदी, वह मुझे फेसबुक पर मिला था, सोचा आज आपके बहाने उससे मिल लूं, चलो फिर तय रहा आज हम आपके साथ कॉफी पिएंगे।’’

हम दोनों मेट्रो से कनॉट प्लेस पहुंचे। स्टेशन पर खड़े ही थे कि पीछे से किसी ने आवाज दी, ‘‘सृष्टि, कैसी हो?’’ हम दोनों ने पीछे मुड़ कर देखा। मैं उसे देख कर हैरान रह गयी। वे भूरी आंखें, वह खूबसूरत चेहरा मैंने कहीं देखा था।

‘‘धृति दीदी, ये रहा मेरा बॉयफ्रेंड अखिल, मैं इसे फेसबुक पर मिली,’’ यह सुन कर मेरे होश उड़ गए।

आखिर मेरी बहन को पूरी दुनिया में यही लड़का मिलना था, पर हां उसमें सृष्टि की भी कोई गलती नहीं थी। उसे क्या पता था कि वह तो मेरे कॉलेज का प्यार था। मेरा मन काफी उदास हो गया था। दिल कर रहा था कि मैं घर चली जाऊं और अपने तकिए को गले लगा कर खूब रोऊं।

‘‘दीदी, पहले कॉफी पीने चलें? आज अखिल को शाम को कुछ काम है, तो वह हमारे साथ शॉपिंग पर नहीं चल पाएगा,’’ सृष्टि ने मचलते हुए कहा। मैंने केवल सिर हिला कर हां कह दिया। हम कॉफी के लिए इंडियन कॉफी हाउस चले गए। सृष्टि बताने लगी कि यह अखिल की मनपसंद जगह है। आखिर मनपसंद क्यों ना होती, अखिल और मैं कॉलेज के दिनों में यहीं तो आया करते थे।

वह ऐसे जता रहा था मानो वह मुझे जानता ही ना हो। एक बार भी उसने मेरी तरफ नहीं देखा। शायद वह कॉलेज का नकली प्यार था, जो कभी हुआ ही नहीं था। सृष्टि और अखिल एक साथ बैठ गए और मैं मेज की दूसरी तरफ अकेली। मन में चाहे आज भी उसके लिए प्यार बचा हुआ था, लेकिन वे दोनों एक साथ इतने अच्छे लग रहे थे जैसे एक-दूसरे के लिए ही बने हों। जब दोनों एक-दूसरे को देखते तब मुझे मन में थोड़ी सी ईर्ष्या जरूर होती, पर आखिर वह मेरी बहन के लिए ही था। वैसे भी मेरी शादी कुछ दिनों में तय होने ही वाली थी, इसलिए मैं उन्हें जुदा करने के बारे में नहीं सोचना चाहती थी।

‘‘अखिल, अपने बारे में कुछ धृति दीदी को बताओ,’’ सृष्टि ने अखिल से कहा।

‘‘मैंने अपनी डिग्री कॉमर्स कॉलेज से ली थी, फिर मैं लंदन उच्च शिक्षा के लिए चला गया और मैं अब एक बड़ी कंपनी में काम करता हूं...’’

मैं यह सब उतरा मुंह ले कर सुन रही थी। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं उससे कभी ऐसे मिलूंगी। मैं बातें तो सुन रही थी, लेकिन एक भी शब्द मेरे जेहन में नहीं बैठ रहा था।

‘‘अच्छा सृष्टि, अब मैं चलता हूं, मुझे थोड़ा काम है। बहुत दिनों बाद दिल्ली लौटा हूं, सो बहुत से छोटे-मोटे काम निपटाने हैं।’’ सृष्टि ने उसे हंस कर विदा किया। मैं उसे जाता हुअा देखती रही।
हम बाजार में घूम रहे थे, तभी सृष्टि ने मुझसे अजीब सा सवाल किया, ‘‘दीदी, अगर आप बुरा ना मानो, तो क्या आपसे एक सवाल पूछ लूं?’’ मैंने अपना सिर हिला कर हामी भरी।

‘‘आपको अखिल कैसा लड़का लगा, दीदी?’’ सृष्टि ने हंसते हुए पूछा।

‘‘मुझे वह अच्छा लगा। अच्छी नौकरी है उसके पास, अच्छा दिखता है...’’ मैंने अपनी बात पूरी भी नहीं की थी कि सृष्टि ने ऐसा कुछ कह दिया, जिसने मेरे टूटे हुए दिल को और भी तोड़ दिया, ‘‘तो दीदी हम शादी कर लें?’’ ये शब्द जब सृष्टि के मुंह से निकले तब मेरे मन में कुछ चटक गया। मेरे दिल में जो उम्मीद की आखिरी किरण थी वह भी बुझ गयी।

मैंने उदासी में उससे कहा, ‘‘हां, तुम दोनों शादी कर लो, सुखी रहोगे।’’

सृष्टि ने मुझे गले लगा कर शुक्रिया कहा। तभी उसकी नजर दुकान की शो-विंडो में सजी एक गुलाबी साड़ी पर पड़ी। उसने मुझे वह साड़ी देखने को कहा। साड़ी बहुत सुंदर थी, वह हल्का गुलाबी रंग, गुलाब की एंब्रॉइडरी और उसका रेशम दुकान में लगी लाइटों से चमक रहा था। उसने मुझे वह साड़ी लेने को कहा। परंतु उसकी कीमत 20 हजार रुपए थी। मैंने आज तक कभी इतनी महंगी साड़ी नहीं पहनी थी, मैंने तभी मना कर दिया।

‘‘दीदी, आप भी ना कमाल हो ! शादी बार-बार नहीं होती। आपको लड़के वाले इस साड़ी में देख कर एक ही पल में पसंद कर लेंगे और लड़के का तो मुंह खुला का खुला ही रह जाएगा,’’ सृष्टि ने हंस कर कहा।

आज जो कुछ मैं भी मेरे साथ हुआ, मेरा दिल शादी करने का नहीं था, पर अब घर वालों को क्या बताती ! अपने चेहरे पर मुस्कान ला कर मैंने हर बात भगवान पर छोड़ दी। जो होगा देखा जाएगा, भगवान सब कुछ पहले से ही सोच कर रखते हैं। जब तक हम घर पहुंचे तब तक काफी अंधेरा हो चुका था। उस रात मैंने कुछ नहीं खाया- एक तो अखिल की याद और दूसरा लड़के वालों के आने का डर ! बस अपना तकिया पकड़ कर रोते हुए सो गयी।

अगली सुबह मुझे अपने दफ्तर जाना था। एक दिन बाद लड़के वाले मुझे देखने आने वाले थे। मेरा मन कुछ भी करने को नहीं था, पर मुझे अपनी नौकरी पर तो जाना ही था। मैं नहा-धो कर तैयार हुई, बाल सुखाए और मेट्रो स्टेशन पहुंची। मैंने अपनी 8 बजेवाली मेट्रो मिस कर दी थी, मेरे दिमाग में बस अखिल का ही चेहरा आ रहा था, मैं उसे अपने जेहन से निकाल ही नहीं पा रही थी। मुझे सब कुछ याद आ रहा था- वह कॉलेज की क्लास मिस करके कैंटीन में बैठ जाना, कॉलेज के बाद मेट्रो में घूमना और बारिश में एक ही छाते के नीचे रख कर हल्के-हल्के भीगना। मैं अपनी पुरानी यादों में खोयी थी कि ट्रेन आ गयी और मैं अपने ऑफिस रवाना हो गयी। थोड़ी देर में सीलमपुर का स्टेशन आ गया। यह वही स्टेशन था, जहां अखिल उतरा करता था और फिर मैं उसके खयालों में खो जाती थी। पर अब सब कुछ बदल जाने पर भी मैं उसके बारे में ही सोच रही थी।

तभी एक जानी पहचानी आवाज ने मुझसे पूछा, ‘‘क्या मैं यहां बैठ सकता हूं?’’ मैंने मुड़ कर देखा, तो वह अखिल ही था। मैं कुछ ना बोली। उसे देख कर जितनी खुशी थी उतना ही गुस्सा भी था। आखिर उसने दिल्ली आ कर मुझसे मिलने की कोशिश क्यों नहीं की और इतने सालों से फोन पर बात तक नहीं की, ऐसे कई सवाल मेरे मन में आ रहे थे।

वह मेरे पास आ कर बैठ गया और मुझसे पूछा, ‘‘तुम इतनी उदास क्यों हो?’’

मैंने कहा, ‘‘तुम यहां से चले जाओ, मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी।’’ फिर भी उसने बात शुरू की। उसने कहा, ‘‘मेरा फोन लंदन में खो गया और मेरे पास किसी का फोन नंबर नहीं था इसलिए मैं तुम्हें फोन नहीं कर पाया और क्या तुम जानती हो कि मैंने तुम्हें चमेली का ही फूल क्यों दिया?’’
मेरी आंखों में आंसू आ गए। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि यह सब मेरे साथ क्यों हो रहा है। यह अहसास बिलकुल ऐसा था जैसे किसी ने कोई पुराना घाव कुरेद दिया हो। तभी मैंने अपनी डायरी में से उसका दिया फूल निकाला और पूछा, ‘‘बताओ, तुमने मुझे यह क्यों दिया था?’’

उसने मेरी आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘क्योंकि गुलाब तो हर प्यार करने वाले एक-दूसरे को देते हैं और शायद मेरी जगह कोई और होता, तो वह भी तुम्हें गुलाब ही देता, पर मैं तुम्हारे लिए कुछ खास करना चाहता था, यह नायाब फूल दे कर। यह बिलकुल तुम्हारी तरह है, तुम्हारे बालों की तरह मुलायम, तुम्हारी आंखों की तरह चमकीला और तुम्हारी सादगी की खुशबू इसमें बसती है। यह फूल भी तुम्हारी तरह सावन के महीने को पसंद करता है।’’

‘‘अच्छा सुनो, जो हुआ सो हुआ बस सृष्टि का दिल मत तोड़ना,’’ मैंने कहा।

‘‘अरे नहीं-नहीं ऐसा कुछ नहीं होगा !’’ अखिल ने मुझे मुस्कराते हुए कहा, ‘‘अच्छा मेरा स्टेशन आ रहा है, मैं चलता हूं मुझे कुछ काम है।’’

मैंने उसे कहा, “अच्छा मुझे कल लड़के वाले देखने आ रहे हैं और जल्द ही मेरी शादी हो जाएगी। आशा करती हूं कि तुम मेरी शादी में जरूर आओगे।’’

उसने मेरे दोनों हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘हां-हां मैं जरूर आऊंगा, मैं वादा करता हूं,’’ और वह अपने स्टेशन पर उतर गया।

मुझे मन में हल्की सी खुशी हुई कि उसने मुझसे बात तो की, पर गम भी था कि वह मुझसे पहले जैसा प्यार नहीं करता। शायद यही मेरे नसीब में था। मैं अपने ऑफिस पहुंची, पर काम में मन नहीं लग रहा था। तभी मेरी बॉस दिव्या मेरे पास आ गयी और मुझसे पूछा, ‘‘क्या बात है धृति, आज काम में मन नहीं लग रहा और उदास भी लग रही हो?’’

‘‘नहीं मैम बस थोड़ी उदास हूं, क्योंकि कल मुझे लड़केवाले देखने आ रहे हैं,’’ मैंने कहा।

वे हंस दीं, ‘‘कोई बात नहीं आज तुम छुट्टी ले लो। मैं जानती हूं कि लड़के वालों के आने से मन में घबराहट होती ही है, पर तुम चिंता ना करो। तुम बहुत होनहार लड़की हो, तुम्हें दुनिया का सबसे अच्छा प्यार करनेवाला लड़का मिलेगा।’’

मैंने दिव्या मैम को धन्यवाद किया और घर जाने से पहले कुछ देर बाजार में विंडो शॉपिंग करने चली गयी। घर पहुंचते-पहुंचते बहुत थक गयी, खाना खाया और तुरंत सो गयी। वह दिन आ गया जब लड़केवालों को आना था। किसी तरह शाम हुई। मां और सृष्टि ने मुझे वह गुलाबी साड़ी पहनायी और चाय बनाने को कहा। सब मेहमान बैठक में बैठ चुके थे और बातचीत कर रहे थे। मैं और सृष्टि चाय बना रहे थे और वह मुस्कराती जा रही थी। मुझे लगा कि वह मेरी शादी को ले कर उत्सुक और खुश थी, पर मुझे घबराहट थी कि लड़का कैसा होगा। यही सब सोचते-सोचते सृष्टि और मैं चाय की ट्रे ले कर बैठक में गए।

सामने अखिल को बैठा देख कर मैं चौंक गयी, मेरे हाथ कांप गए। मुझे सृष्टि ने संभाला। एकाएक सब हंसने लगे, यहां तक कि अखिल के माता-पिता भी। मैं सृष्टि का मुंह देखने लगी, तब मुझे उसने हंस कर कहा, ‘‘सरप्राइज दीदी! हम सभी को पता था कि तुम अखिल से विवाह करना चाहती हो। उसने मुझे दिल्ली आ कर फेसबुक पर संपर्क किया और अपने दिल का हाल बताया कि वह तुमसे कितना प्यार करता है और केवल तुमसे ही शादी करना चाहता है। मैंने यह जान कर मम्मी-पापा को यह बात बता दी और उन्हें भी इस योजना में शामिल कर लिया। सॉरी दीदी ! हमने आपके साथ एक छोटी सी शरारत की।’’ तभी अखिल ने खड़े हो कर मेरे हाथ में चमेली का फूल और अंगूठी दी और हंस कर पूछा, ‘‘धृति, क्या तुम मुझसे शादी करोगी?’’ मैंने प्यार से हां कहा और शरम से लाल हो गयी। सबने एक-दूसरे को बधाई दी और हम दोनों पर चमेली के फूलों की वर्षा की।