Thursday 21 December 2023 03:59 PM IST : By Megha Rathi

मुस्कान की डिलीवरी

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‘‘वाह, यह घर तो वास्तव में बहुत खूबसूरत लग रहा है,’’ अदिति ने हरी बेलों से सजे उस बंगले को देखते हुए प्रशांत से कहा। बंगले के आगे एक बड़ा सा लॉन था, जिसमें विभिन्न प्रकार के फूल खिले हुए थे। एक झूला भी लगा हुआ था, जिसके पास गुलाबों की क्यारी थी। अदिति इस दृश्य को देख कर मंत्रमुग्ध हो गयी थी।

‘‘अंदर चल कर और देखते हैं,’’ कहते हुए वे दोनों बंगले के मुख्य द्वार पर आ गए। घंटी बजा कर वे दरवाजा खुलने का इंतजार करने लगे। वे दोनों प्रॉपर्टी डीलर का काम करते थे। इस बंगले के मालिक ने उनका विज्ञापन देख कर उन्हें फोन करके बुलाया था। वे अपने इस बंगले को बेचना चाहते थे।

‘‘कहिए, किससे मिलना है?’’ दरवाजा खोलने वाला व्यक्ति अपनी वेशभूषा से वहां काम करने वाला लग रहा था। उनका परिचय पूछने के बाद उसने उन्हें बैठक में ले जा कर बैठा दिया और थोड़ा इंतजार करने के लिए कहा।

अदिति बैठक की सजावट का मुआयना कर रही थी। लकड़ी के नक्काशीदार सोफे और मेज के साथ ही कोने में लकड़ी का ही खूबसूरत स्टूल रखा हुआ था, जिस पर मुरादाबादी पीतल के फूलदान में फूल लगे हुए हुए थे। दीवार पर एक बड़ी सी पेंटिंग लगी थी, जिसमें पहाड़ों की वादियों का दृश्य उकेरा हुआ था। पहाड़ियों की चोटी पर टिके बादल और घाटियों में देवदार के वृक्ष एकदम सजीव लग रहे थे। पूरी बैठक संपन्नता के साथ गृहस्वामिनी की कलात्मक रुचि को भी दर्शा रही थी।

‘‘नमस्कार, मेरी आप ही से बात हुई थी फोन पर?’’ तभी परदे को खिसकाते हुए एक बुजुर्ग दंपती बैठक आए।

‘‘नमस्कार, जी हां सर, आपकी मुझसे ही बात हुई थी। मैं प्रशांत मेहरा और यह मेरी पार्टनर अदिति रस्तोगी हैं,’’ प्रशांत ने तुरंत खड़े हो कर उनका अभिवादन किया। अदिति भी खड़ी हो गयी थी, मुस्कराते हुए उसने नमस्ते की।

‘‘मेरा नाम विवेक श्रीवास्तव है और यह मेरी पत्नी आशा हैं,’’ कहते हुए बुजुर्ग सज्जन ने उन्हें बैठने का इशारा किया और स्वयं भी उनके सामने वाले सोफे पर बैठ गए। अदिति ने देखा उन दोनों को चलने में तकलीफ हो रही थी।

‘‘हम इस बंगले को बेचना चाहते हैं, इसलिए आपको यहां बुलाया,’’ सोफे से पीठ टिका कर बैठते हुए विवेक जी ने कहा।

‘‘जी सर... आप बताइए, इसे कितने तक में बेचना चाहते हैं और साथ ही मुझे इस बंगले की जानकारी भी दे दीजिए, ताकि मैं ग्राहकों को बता सकूं,’’ प्रशांत ने विनम्र भाव से कहते हुए अपने मोबाइल का नोट पैड खोल लिया और विवेक जी द्वारा दी गयी सभी जानकारियों को लिख लिया।

‘‘अपनी साइट पर डालने के लिए हमें इस बंगले की कुछ तसवीरें भी लेनी होंगी,’’ अदिति के कहने पर विवेक जी ने अपना सिर हिलाते हुए किसी को आवाज दी, ‘‘राजू, यहां आओ।’’

उनकी आवाज सुन कर वही व्यक्ति सामने आया, जिसने उनके लिए दरवाजा खोला था।

‘‘राजू, ये लोग बंगले की कुछ तसवीरें लेना चाहते हैं, तुम इनके साथ जा कर इन्हें घर दिखा दो।’’

‘‘ठीक है, आप लोग मेरे साथ आइए,’’ कहते हुए राजू ने उन्हें अपने पीछे आने का इशारा किया।

उठते हुए अदिति ने देखा कि आशा जी अपना घुटना सहला रही थीं।

‘‘तुमने आज दवाई नहीं ली क्या अपनी?’’ विवेक जी ने धीरे से पूछा, ‘‘मैं ले कर आता हूं, तुम यहीं बैठी रहो।’’

‘‘अपनी भी ले आना, आपने भी तो नहीं ली अभी तक,’’ आशा जी ने कहा।

‘‘अरे बूढ़ी तुम हुई हो, मैं तो अभी भी जवान हूं,’’ कहते-कहते ही विवेक जी को खांसी आ गयी।

‘‘हां-हां, साफ दिख रहा है वह तो,’’ आशा जी ने प्यार से उलाहना देते हुए कहा, ‘‘अब जाओ, दवा लो अपनी।’’ उनकी बातें राजू के पीछे जाते हुए प्रशांत और अदिति तक भी पहुंच गयी थीं। एक-दूसरे को देखते हुए वे मुस्करा उठे।

‘‘सर-मैडम अकेले ही रहते हैं क्या?’’ प्रशांत ने राजू से पूछा।

‘‘हां, उनके दोनों बेटे अपने-अपने परिवार के साथ विदेश में रहते हैं। पहले तो कभी-कभी यहां आ जाते थे, पर अब तो काफी समय से नहीं आए,’’ राजू उन्हें घर के हर हिस्से को दिखा रहा था। सीढ़ियों के बिलकुल पास एक कमरा उन्होंने अपने पोते-पोतियों के लिए बनवाया हुआ था। ऊपर 4 कमरे थे, जिनकी बालकनी लॉन की तरफ खुलती थी। हर कमरे में बड़े से फ्रेम में विवेक जी के पूरे परिवार की तसवीर लगी हुई थी। लेकिन सुंदर सजे हुए कमरों में अजीब सी वीरानगी फैली हुई थी। प्रशांत और अदिति अपने मोबाइल से हर कमरे की तसवीर ले रहे थे। पर्याप्त तसवीरें लेने के बाद वे बैठक में आ गए।

‘‘बैठिए, राजू, तुम चाय बना कर ले आओ,’’ आशा जी ने उनके आते ही कहा।

‘‘अरे नहीं मैडम, हम चलते हैं अब, चाय फिर कभी। अब तो आना-जाना लगा ही रहेगा,’’ प्रशांत ने संकोचवश मना करते हुए कहा, लेकिन आशा जी और विवेक जी ने उन्हें रोक लिया और उनसे बातें करने लगे। ऐसा लग रहा था जैसे बहुत दिनों बाद उन्हें कोई बातें करने के लिए मिला था। अदिति और विवेक को भी उनसे बात करना अच्छा लग रहा था।

‘‘मुझे एक बात बताइए, इतने सुंदर घर को आप बेचना क्यों चाहते हैं?’’ अचानक ही अदिति के मुंह से वह सवाल निकल गया, जिसे उसने बहुत देर से रोका हुआ था।
प्रशांत ने आंखों ही आंखों में अदिति को झिड़का, लेकिन अब तो बात निकल ही चुकी थी।

‘‘इतने बड़े घर में सिर्फ हम दोनों ही रहते हैं। बच्चे तो यहां आ कर रहेंगे नहीं। उन लोगों ने तो अब अमेरिका की नागरिकता भी ले ली है,’’ ठंडी सांस भरते हुए विवेक जी ने कहा।

‘‘बहुत मन से बनवाया था इस घर को... यह सोच कर कि सभी साथ रहेंगे। घर बच्चों की खिलखिलाहटों से भरा रहेगा, लेकिन... पहले बड़ा बेटा अपनी अच्छी जॉब के कारण वहां चला गया। उसके बाद छोटे बेटे ने भी काफी प्रयास करके अमेरिका में जॉब हासिल कर ली। शुरू-शुरू में वे अकसर आते-जाते थे, लेकिन... फिर घटते-घटते उनका आना ना के बराबर हो गया,’’ आशा जी की आवाज में दर्द के साथ ही उनकी पलकों पर आंसू भी छलक आए थे, जिन्हें उन्होंने अपनी साड़ी की कोर से पोंछ लिया, ‘‘यह बंगला बेच कर हम फ्लैट में चले जाएंगे। वहां आसपास पड़ोसियों को देख कर मन भी बहल जाएगा, यहां तो जल्दी से कोई दिखता भी नहीं।

अदिति और प्रशांत के मन भी भीग गए। उनकी आंखों के आगे उनके माता-पिता के चेहरे आते ही उनके मन में यह सुकून भर गया कि भले ही उनकी आमदनी ज्यादा ना हो, पर वे अपने माता-पिता के साथ तो हैं।

‘‘आंटी, आपकी बहुएं भी अपने माता-पिता से मिलने नहीं आतीं?’’ अदिति अनजाने में ही आशा जी को मैडम की जगह आंटी कह गयी थी, यह अहसास होते ही उसने माफी मांग कर अपनी भूल सुधारनी चाही, तो आशा जी ने उसे रोक दिया।

‘‘कोई बात नहीं, तुम हमें आंटी-अंकल ही कहो।’’

तभी राजू चाय के साथ नमकीन-बिस्किट भी रख गया। अदिति ने तुरंत उठ कर सभी को चाय के कप दिए और अपना कप ले कर बैठ गयी।

अदिति के बैठने के बाद आशा जी ने बताया कि उनकी दोनों बहुएं सगी बहनें हैं। बहुओं के इकलौते भाई-भाभी की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गयी थी। अपने 8 साल के पोते के साथ उनकी बहुओं के माता-पिता अकेले ही रहते हैं।

‘‘कितना अच्छा हो, अगर वे लोग भी आपके साथ ही रहें तो... आपको भी कंपनी मिल जाएगी और उनको भी,’’ कहते हुए अदिति ने अपनी जीभ दांत से काट ली। वह फिर बिना सोचे अपनी बात कह गयी थी। भारतीय समाज में माता-पिता का बेटी-दामाद के साथ रहना आसानी से लोग स्वीकार नहीं कर पाते और यहां तो दो समधियों के एक साथ, एक ही छत के नीचे रहने की बात थी।

अदिति की बात सुन कर विवेक जी और आशा जी भी हतप्रभ रह गए। प्रशांत ने भी अदिति को घूर कर देखा।

‘‘बेटा, इस उम्र में किसी के साथ तालमेल बैठाना भी तो मुश्किल होता है ना !’’ आशा जी ने माहौल को संयत करने की कोशिश करते हुए कहा।

‘‘आंटी, मन में इच्छा हो, तो सब हो जाता है। जैसे आपके लिए मुश्किल है वैसे ही उनके लिए भी मुश्किल होगा, लेकिन सोच कर देखिए, एक साथ रहने से आप सभी की अकेलेपन की समस्या दूर हो जाएगी,’’ अदिति ने कहा।

प्रशांत ने माहौल में आए भारीपन को भांपते हुए अदिति को चलने का इशारा किया और खड़ा हो गया।

‘‘अच्छा सर, चलते हैं। मैं ये सभी जानकारियां अपनी साइट पर डाल दूंगा और जैसे ही कोई अच्छा ग्राहक मिलता है, मैं आपको सूचित कर दूंगा।’’

श्रीवास्तव दंपती से विदा ले कर बाहर आते हुए प्रशांत ने अदिति पर अपनी खीझ उतार दी। ‘‘बिना सोचे-समझे क्यों बोलती हो? हमारा काम मकान बिकवाने का है केवल इतना याद रखो। बहुत अनौपचारिक मत बनो, बी प्रोफेशनल अदिति।’’

‘‘आई नो प्रशांत, पर मैं उनके अकेलेपन को देख कर भावुक हो गयी थी, इस कारण...।’’

‘‘बात तो सही कह रही हो, इस उम्र में अकेले रहना सचमुच तकलीफदेह है, लेकिन वे अपने बच्चों के पास जा कर भी तो रह सकते हैं।’’

‘‘हां, लेकिन तुमने आंटी की बात सुनी थी... इस उम्र में तालमेल बैठाने की, इसका मतलब कि वे लोग विदेश के परिवेश में सहज नहीं रह पा रहे होंगे, शायद इसी कारण...’’ अदिति सोच में डूब गयी।

ऑफिस में आ कर उसने अपना लैपटॉप खोला और उस बंगले की तसवीरों के साथ आवश्यक जानकारी अपनी साइट पर अपलोड कर दी।

कुछ लोगों ने बंगला खरीदने में रुचि दिखायी, लेकिन बात पूछताछ से आगे नहीं बढ़ सकी। प्रॉपर्टी खरीदने व बेचने में समय लगता है, प्रशांत व अदिति अपने अनुभव से यह बात समझ चुके थे, इसलिए उन्होंने अपने प्रयासों में कोई कमी नहीं रखी। वे विवेक जी को फोन करके अपनी कोशिशों के बारे में बताते रहने के साथ उनका हालचाल भी लेते रहते थे।

एक दिन विवेक श्रीवास्तव जी ने प्रशांत और अदिति को फोन करके अपने साथ रात्रि भोज के लिए आमंत्रित किया, ‘‘आज कोई भी बहाना नहीं, आज रात का खाना तुम दोनों हमारे साथ ही खाओगे। तुम्हारी आंटी का आदेश है यह।’’ अधिकारपूर्वक दिए गए इस निमंत्रण को वे नकार नहीं पाए।

‘‘आज कोई खास दिन है क्या सर?’’ प्रशांत के पूछने पर उन्होंने केवल इतना कहा, ‘‘यही समझ लो।’’ लेकिन कारण बताने से उन्होंने इंकार कर दिया।

उनके घर जाने के पहले अदिति ने फूलों का एक गुलदस्ता खरीदा, ‘‘प्रशांत, मौका कोई भी हो, फूल हर अवसर की शोभा बढ़ा देते हैं,’’ अदिति की बात से विवेक सहमत था।

श्रीवास्तव दंपती के घर में आज काफी रौनक लग रही थी।

‘‘मुझे लगता है विदेश से इनके बेटे-बहू आए हुए हैं,’’ अदिति ने कहा ।

‘‘हो सकता है उनका जन्मदिन हो या शादी की सालगिरह...’’ प्रशांत और अदिति अटकलें लगाते हुए दरवाजे तक पहुंचे।

दरवाजे पर ही उन्हें राजू मिल गया। राजू का चेहरा भी उल्लास से भरा हुआ था और वह काफी व्यस्त दिख रहा था। वह उन दोनों को बैठक में ले गया।

‘‘आ गए तुम दोनों, हम तुम्हारा ही इंतजार कर रहे थे,’’ आशा आंटी उन दोनों को देख कर खुश हो गयीं। उन्होंने देखा कि बैठक में आज काफी लोग थे। सेंटर टेबल पर एक केक भी रखा हुआ था।

‘‘इसका मतलब, आज एनिवर्सरी या जन्मदिन ही है, मैं सही था,’’ प्रशांत फुसफुसाया।
तभी विवेक जी की आवाज ने उन दोनों का ध्यान खींचा, ‘‘लेडीज एंड जेंटलमैन, हम इतनी देर से जिनका इंतजार कर रहे थे, वे लोग आ गए हैं। इनसे मिलिए, ये हैं प्रशांत मेहरा और ये अदिति रस्तोगी,’’ नाटकीय अंदाज से कहते विवेक जी हाथ पकड़ कर उन दोनों को बैठक के बीच में ले आए।

वे दोनों विवेक जी के इस व्यवहार से आश्चर्यचकित थे। वे नासमझीवाले भाव से विवेक जी को देख रहे थे, ‘‘सर, यह सब... हम कुछ समझ नहीं पा रहे,’’ अचकचाते हुए अदिति ने पूछा, तो विवेक जी मुस्करा दिए।

‘‘आशा आंटी तुम्हारी आंटी हैं और मैं सर... मुझे भी तुम दोनों अंकल ही कहोगे और अब यह प्रोफेशनल रिश्ता खत्म,’’ अचानक ही विवेक जी गंभीर हो गए, ‘‘क्योंकि... अब हम इस घर को नहीं बेच रहे हैं।’’

‘‘क्या आपके बच्चे वापस आ रहे हैं?’’ अदिति उत्साहित हो गयी।

विवेक जी के चेहरे पर एक अर्थपूर्ण गहरी मुस्कान आ गयी, ‘‘नहीं।’’

‘‘तो फिर?’’

‘‘वह इसलिए, क्योंकि अब ये सब लोग हमारे साथ इसी घर में रहेंगे। जानते हो ये लोग कौन हैं?... ये हमारे समधी और समधिन जी, इनका पोता शुभम बच्चों के कमरे में अपने मित्रों के साथ है और ये सब लोग हमारे पुराने मित्र हैं।’’

प्रशांत व अदिति कुछ समझ रहे थे और कुछ समझ नहीं पा रहे थे। तभी आशा आंटी ने कहा, ‘‘अदिति, उस दिन तुम अपनी बात कह कर चली गयी थीं, लेकिन हमने काफी दिनों तक इस विषय पर गंभीरता से सोचा। तब हमें समझ आया कि हमारे कुछ दोस्त भी तो इसी अकेलेपन के दर्द से गुजर रहे हैं। चूंकि हमारा घर बड़ा है, तो हम सभी एक साथ रह सकते हैं एक-दूसरे का सहारा बन कर।’’

‘‘हालांकि यह आसान नहीं था,’’ विवेक जी ने बात का सूत्र अपने हाथ में ले लिया था, ‘‘इन सभी को मनाना-समझाना, खासतौर पर हमारे समधी-समधिन को, बहुत टेढ़ी खीर था, लेकिन हमने भी हार नहीं मानी। हम सभी लोग घर खर्च में सहयोग करेंगे और मिलजुल कर काम करेंगे। अपनी सहायता के लिए हमने राजू के परिवार को भी यहीं बुला लिया है। उसके बच्चों का दाखिला भी एक अच्छे स्कूल में करा दिया है। शुभम से उसके बच्चों की दोस्ती हो गयी है।’’

‘‘अभी तक हमने समाज से लिया ही है, अब समाज को देने की बारी हमारी है, क्योंकि अब हम अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो चुके हैं। अब हम सभी अपनी-अपनी रुचि के अनुसार समाज सेवा के काम भी करेंगे,’’ आशा आंटी की बात सुनते हुए प्रशांत और अदिति के चेहरों पर भी मुस्कान आ गयी।

‘‘इसे कहते हैं मुस्कान की डिलीवरी,’’ अदिति फिर से बिना सोचे-समझे बोल पड़ी थी, लेकिन इस बार प्रशांत ने डांटते हुए नहीं, बल्कि प्यार से उसकी तरफ देख कर सही मौका देखते हुए हाथ में पकड़ा फूलों का गुलदस्ता अपने घुटनों पर बैठते हुए अदिति की ओर बढ़ा दिया। बैठक तालियों के शोर से गूंज उठी, श्रीवास्तव दंपती का घर खिलखिलाहटों से भर गया था।