Monday 27 November 2023 02:34 PM IST : By Gopal Sinha

मूर्खता में छिपी चतुराई

murkhhta-me-chhipi-chaturai

हर चीज की हद होती है, पर मूर्खता की कोई हद नहीं ! आप किसी भी सीमा तक मूर्ख हो सकते हैं और इसके लिए कोई आपको रोकेगा भी नहीं। लेकिन यह ना सोचें कि मूर्ख बनना और बने रहना इतना आसान है। भई, इस फील्ड में भी बड़ा कॉम्पिटीशन है, क्याेंकि मूर्ख होने के बड़े फायदे हैं। हमारे एक कलीग थे, जब भी कोई ऑफिस का काम उन्हें सौंपा जाता, वे निहायत ही बेचारगी से कह देते, ‘मुझे तो यह आता ही नहीं।’ फिर दूसरे कलीग काे उनकी मदद चाहे-अनचाहे करनी ही पड़ती और वे यत्नपूर्वक मूर्ख बने रहने की कोशिश करते। शायद इन जैसों को देख ही यह कहावत बनी होगी कि जीवन के सुख चाहिए, तो भोंदू बन के जी... कोई उन्हें मजाक में ऐसा कह भी देता, तो वे बुरा नहीं मानते, क्योंकि उन्होंने भोंदू बन कर जीवन का सुख पाने का गूढ़ रहस्य जान लिया था। क्या आप इन जैसों को मूर्ख कह सकते हैं, जो अपना काम निकालने के लिए जबरन मूर्ख बने रहते हैं ! मोरल ऑफ द स्टोरी यही है कि कभी-कभी मूर्ख भी समझदार को अपनी मासूम चालाकी से मूर्ख बना जाते हैं।

वैसे कुछ लोग वाकई इतने भोले होते हैं कि कोई भी उन्हें मूर्ख बना सकता है। अपने दफ्तर में ही एक सहकर्मी हैं, जिनका एक दिन प्रिंटआउट नहीं निकल रहा था। किसी ने उनसे मजाक में कह दिया कि पहले डाॅक्यूमेंट पर अपना नाम लिखो, फिर प्रिंट कमांड दो। उन्हाेंने वैसा ही किया, पर फिर भी प्रिंट नहीं निकला। फॉल्ट प्रिंटर में था, लेकिन इस मूर्खता पर उनकी खूब हंसी उड़ी।

इसी तरह की एक और घटना है। हमारे दफ्तर में एक नए एंप्लाई ने जॉइन किया। गरमियों के दिन थे, उसे आलस आ गया और किसी से बोला, ‘‘यार, सोने का मन कर रहा है।’’ दूसरा सहकर्मी बेहद मजाकिया था, उसने कहा, ‘‘तो इसमें मुश्किल क्या है। हमारे यहां सोने का प्रावधान है। बस तुम एचआर डिपार्टमेंट से स्लीपिंग फॉर्म ले लो और भर कर एमडी से साइन करा लो। फर्स्ट फ्लोर पर एक रूम है, जहां सोने का इंतजाम है।’’ क्या बताएं, उस नए एंप्लाई ने इसे इतना सीरियसली ले लिया कि वाकई एचआर डिपार्टमेंट में जा कर स्लीपिंग फॉर्म मांग बैठा। एचआर वालों को पहले तो कुछ समझ नहीं आया, पर बाद में सारा मामला जान कर सब खूब हंसे। बेचारे उस एंप्लाई को कई दिनों क्या रातों तक नींद नहीं आयी होगी, इतना पक्का है।

अब मूर्खता की शुरुआत कहां से हुई, किसने की, यह शोध का विषय है। हमने तो बचपन में कवि कालीदास की कथा सुनी थी कि वे पेड़ की जिस डाल पर बैठे थे, उसी को काट रहे थे, इस बात से अनभिज्ञ कि डाल कटने पर उनका गिरना निश्चित है। वह तो भला हो उन राहगीरों का, जिन्होंने कालीदास को गिरने से पहले आगाह कर दिया। लेकिन देखिए, कैसा संयोग है कि जिस व्यक्ति को मूर्ख समझा जा रहा था, उसी ने अभिज्ञान शाकुंतलम जैसे महाकाव्य की रचना कर डाली। हालांकि इसमें कोई दो राय नहीं कि कालीदास को महान विद्वान बनाने में उनकी पत्नी विद्योत्तमा का जबर्दस्त रोल रहा था। अगर वे उन्हें ना झिड़कतीं, तो... हम यह नहीं कह रहे कि किसी मूर्ख पुरुष को विद्वान बनाने के लिए एक अदद विदुषी पत्नी की जरूरत होती है! यह सनातन सत्य है कि पत्नियां अपने पतियों को सदा से मूर्ख समझती आयी हैं।

इसी तरह एक और विद्वान थे, वरदराज, जिन्हें विद्यालय में उनके सहपाठी मूर्ख समझते थे। लेकिन कालांतर में यही वरदराज संस्कृत के प्रकांड विद्वान बने और उनका दोहा हर किसी की जबान पर है-

करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान

रस्सी आवत जात के सिल पर पड़त निशान !

तो आज जो मूर्ख है, वह कल आपसे बड़ा विद्वान भी साबित हो सकता है, इसीलिए अपने आसपास के मूर्खों से पंगा लेने का नहीं, उनकी इज्जत करने का।

कहते हैं कि ज्ञानी की संगति में मूर्ख व्यक्ति विद्वान बन जाता है और मूर्ख की संगति में विद्वान व्यक्ति मूर्ख बन जाता है। लेकिन हमारी राय जरा अलग है। आप खुद को विद्वान समझते हैं, तो किसी मूर्ख की संगति में कुछ दिन रह कर देखिए। आपको ऐसी-ऐसी बातें मालूम चलेंगी, जिन्हें कोई विद्वान सोच भी नहीं सकता। आपकी विद्वता और निखर उठेगी।

तो सवाल उठता है कि आखिर हम किसे मूर्ख कह सकते हैं। इसका जवाब हमें विदुर जी दे सकते हैं। महाभारत काल के इन ज्ञानी पुरुष को आप जानते ही होंगे। विदुर नीति कहती है कि बिना ज्ञान के घमंड में रहनेवाले, बिना परिश्रम के ही धनवान बनने की चाह रखनेवाले, अपना काम छोड़ कर दूसरों के काम करनेवाले, शत्रु को मित्र बनानेवाने और मित्रों से ईर्ष्या-द्वेष रखनेवाले, अपने काम का भेद खाेल देनेवाले, बिन बुलाए ही किसी सभा में पहुंच जानेवाले, बिना पूछे ही बोलनेवाले और खुद की गलती का आरोप दूसरों पर मढ़ देनेवाले लोग ही मूर्ख कहलाते हैं। अब आप अपना या पड़ाेसियों का आकलन इन मानदंडों पर ना करने लगें, बहुत संभव है कि ज्यादातर लोग मूर्खों की जमात में ही शामिल दिखेंगे।

मूर्ख किसम-किसम के होते हैं। काेई पैदाइशी मूर्ख होता है, तो कोई मूर्खता को अडॉप्ट कर लेता है। कोई जानबूझ कर मूर्ख बनता है, तो कोई अनजाने में मूर्ख बन जाता है। कई बार मूर्खता बुराई के रूप में प्रकट हाेती है, तो कभी यह ज्ञान की जननी भी बन जाती है। किसी ने तो मूर्खता का क्लासीफिकेशन भी कर दिया है। मूर्खता की तीव्रता के आधार पर लोगों को मूर्ख, महामूर्ख, वज्रमूर्ख, मूढ़ और जड़ की श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है। मेरी सलाह यही है कि आप किसी से मूर्खता का वर्गीकरण पूछने की गलती ना करें, मैं यह गुनाह कर चुका हूं। मेरे पूछते ही सामनेवाले ने कहा, ‘‘क्यों, तुम कहां फिट हो, यह जानना चाहते हो।’’

एक और मशविरा, मूर्ख लोगों से कभी बहस ना करें। पहले वे आपको अपने स्तर पर ले आएंगे और फिर अपने अनुभव से आपको पराजित कर देंगे। आप कितने ही समझदार क्यों ना हों, मूर्ख व्यक्ति के सामने समझदारी का परिचय ना दें। इससे आप भी उनकी जमात में शामिल हो जाएंगे। हरिशंकर परसाई जी का यह कहना बिलकुल सही है कि आत्मविश्वास कई प्रकार का होता है जैसे धन का, बल का, ज्ञान का, लेकिन मूर्खता का आत्मविश्वास सर्वोपरि होता है। महान दार्शनिक सुकरात ने पाया कि जो मूर्ख है और जानता है कि वह मूर्ख है, वह दुनिया का सबसे समझदार व्यक्ति है। लेकिन जो मूर्ख है और नहीं जानता कि वह मूर्ख है, वह दुनिया का सबसे बड़ा मूर्ख है।

एक बार एक सज्जन मिले, जो कोई एजेंसी चलाते थे। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे अपने काम के लिए एक मूर्ख आदमी की तलाश है।’’

मैंने हैरानी से पूछा, ‘‘क्या कह रहे हैं? आज जब हर कोई अपने काम में ग्रोथ के लिए समझदार व्यक्ति की तलाश कर रहा है, आपको इसी काम के लिए मूर्ख आदमी चाहिए, ऐसा क्यों?’’

उन्होंने कहा, ‘‘समझदार इंसान अपनी समझ चलाएगा। जो मैं कराना चाहूंगा, वह नहीं करेगा। इसीलिए किसी ऐसे इंसान को ढूंढ़ रहा हूं, जो इतना मूर्ख हो कि उससे किसी भी तरह के काम कराए जा सकें।’’ मूर्खों की मार्केट वेल्यू जान कर मैं चकित था।

मूर्ख होने के अपने अलग ही फायदे हैं। आप मूर्ख को देख कर जितना खुश होते हैं, विद्वान को देख कर नहीं। हंसी का उद्भव ही मूर्खता से होता है। दूसरे को मूर्ख मान लेने से अपना मानसिक बोझ कम होता है। लोग उल्लू को मूर्खता का प्रतीक मानते हैं। मैं कहता हूं कि अगर वह मूर्ख ही होता, तो मां लक्ष्मी के चरणों में क्यों विराजता। किसी कम धनवान देवता की शरण में भी जा सकता था।

आज कौन किसे मूर्ख नहीं बना रहा। सोशल मीडिया की अदभुत खबरें हों, रील्स हों या टीवी पर चलती निरर्थक बहसें, दर्शक मूर्ख बनाए जाते हैं। हम सारा दिन मोबाइल पर सर्फ करते रहते हैं, जरा दिन के आखिर में जांचिए कि इससे क्या पाया क्या खोया। यानी हम समझदार हैं, तो भी अनजाने में मूर्खों जैसी हरकत करने से बाज नहीं आते। दुनिया बेबकूफी के दम पर चल रही थी, चल रही है और चलती रहेगी।

जब सारे एक-दूसरे को बेवकूफ बनाने में जुटे हैं, तो मैं क्यों ना बेवकूफ बनाऊं ! दिमाग में यह खतरनाक आइडिया आते ही मैं खुद को दुनिया का सबसे अक्लमंद समझने लगा। फिर यही तो मौका है जब लोग बेवकूफ बनाने को ले कर बुरा नहीं मानते। मूर्ख दिवस के अवसर पर आप भी जरा आत्ममंथन कीजिए कि क्या कभी आपने कोई बेवकूफी भरी हरकत नहीं की है क्या ! अंत में इतना ही कहना है कि आप होशियार हैं, यह अच्छी बात है, पर हमें मूर्ख ना समझें, यह उससे भी अच्छी बात है।