Thursday 25 April 2024 01:01 PM IST : By Kusum Bhatt

पार्क में लड़की

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दिसंबर की ठिठुरती शाम थी, दिनभर बारिश होने से सड़कें धुल कर चमक रही थीं। रोज की तरह पार्क में आज लोग नहीं थे, सिर्फ एक किशोर जोड़ा बोगनवेलिया के झुरमुट के नीचे बैठा प्रेमालाप में मग्न था, इसके सिवा पार्क सूना था। लड़की ने इधर-उधर देखा, पार्क के दूसरे कोने पर झाड़ी के झुटपुट अंधेरे के बीच लड़की-लड़का उसे दिखायी दिए। वे दोनों आलिंगनबद्ध थे। वह गेट के पास ही पाम पेड़ के नीचे लोहे की बेंच पर बैठ गयी। बेंच गीली थी, पर उसकी आंखें लड़की-लड़के पर टिकी थीं। ऊपर पाम के पत्तों में कुछ पानी की बूंदें अटकी थीं, जो हल्की हवा के सरसराने से लड़की के ऊपर गिरती, वह सिहर कर खड़ी होती फिर बैठ जाती। अंधेरा तेजी से गहराने लगा और ठंड भी बढ़ गयी थी। मसूरी की पहाड़ियों में बर्फ गिरने से हाड़ कंपकंपानेवाली हवा भी चल रही थी।

लड़की के भीतर भूकंप उठ रहा था। वह सोच रही थी कि क्या करे, जो समस्या उसके साथ जुड़ी थी, उससे पार पाना उसे फिलहाल नजर नहीं आ रहा था। क्या करे, कहां जाए उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। बस चुपचाप चली आयी थी यह कह कर कि अब इस घर में कभी लौट कर नहीं आएगी। वह उम्मीद से उनकी ओर देख रही थी, पर जाहिर कर रही थी वह अपनी बात की पक्की है, उसे ताज्जुब हुआ किसी ने भी कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की। जैसे वे बुत हों, उसके इतने बड़े फैसले से उनके बीच तनिक भी हलचल नहीं हुई। मतलब उसके आने-जाने, जीने-मरने से उन्हें कोई लेना-देना नहीं था और अगर था भी, तो वे जाहिर नहीं कर रहे थे। लड़की ने एक बार भी समझने की कोशिश नहीं की कि लाठी-कानून के जोर पर प्रेम नहीं पनपता, पत्थरों के नीचे संवेदनाएं कुचली जाती हैं। धुएं के बीच कुछ दिखायी नहीं देता।

रविवार के दिन अमूमन बाजार बंद रहता है। सिर्फ एक केमिस्ट की दुकान खुली थी, उसने दवा ली और रिस्पना के पास लवली रेस्तरां में बैठ गयी। चाट का ऑर्डर दिया, तो उसे याद आया कि उसने सुबह से कुछ नहीं खाया। हालांकि सास उसे 3 गरम आलू परांठे चाय के साथ दे गयी थीं, पर उसने प्लेट खिसका दी थी कि सास उसे मना ले। भोजन देना उसकी जिम्मेदारी थी।

उसने समोसे भी मंगवा लिए और खा-पी कर सड़क पर चलने लगी, पर कहां जाए..? उसे समझ नहीं आ रहा था। अब 4 बज चुके थे, अभी भी बारिश की संभावना थी। दो दिनों से लगातार मूसलाधार वर्षा हो रही थी। सड़क के एक छोर से दूसरे छोर तक वह यों ही चलती रही, फिर थक कर पुलिया पर बैठ गयी। पिता को फोन करने का मन हुआ, फिर सोचा पिता परेशान होंगे। वैसे ही उसने अपनी मर्जी से विवाह का जोर दे कर उनकी नाक में दम कर रखा था।

‘क्या प्रेम विवाह करके ये दिन देखने पड़ते हैं? क्या सोचा था लड़का मेरी मुट्ठी में होगा।’ वह पिता को बार-बार फोन करने को होती, फिर उनका बुझा चेहरा याद आता, तो सहम जाती। क्या सोचा था लड़का उसके आगे-पीछे घूमेगा, खूब प्यार करेगा, वह उसे सर्कस का बंदर बना कर रखेगी, पर यहां तो पासा ही उल्टा पड़ गया। लड़का उसे बुआ की बेटी चिंकी के विवाह में मिला था। दोनों की मुलाकात हुई, सुधांशु चिंकी का ममेरा देवर था, जो उसके खूबसूरत ना होने पर भी बार-बार उसे देखे जा रहा था। दोनों की नजरें मिलतीं, तो लड़का नजरें चुराने लगता।

उसे लगा कि लड़के को पहली नजर में उससे प्रेम हो गया है। वह आईना देखती, काले मोटे गाल, बड़ी-बड़ी आंखें, गदरायी भारी देह, जिसे लोग काली मोटी बिल्ली कह कर चिढ़ाते रहे बचपन से, लड़का उसी देह का सम्मान कर रहा है। वह हिमाचल के एक गांव से देहरादून आयी थी। सुधांशु से उसकी दो मुलाकातों के बाद वह चिंकी की ससुराल जाने लगी। सुधांशु उसे वहीं मिलता और मोटरसाइकिल पर उसे कभी सहस्रधारा तो कभी मालदेवता व गुच्छूपानी घुमाने ले जाता।

दोनों के घर वालों ने सगाई पर जोर दिया, पर लड़की ने सगाई के दिन ही लड़के का दिल तोड़ दिया था, उसने लड़के से हीरे की अंगूठी लाने की मांग कर दी थी। लड़के के पास जैसे-तैसे सोने की अंगूठी खरीदने का जुगाड़ था, फिर दावत में भी पैसा खर्च होना था, हीरा उसके सपनों में जरूर था, पर वह हीरे तक नहीं पहुंच सकता था। वह ओला-उबेर का ड्राइवर था। वह सिर्फ बीए पास था, नौकरी करते हुए प्राइवेट एमए कर रहा था। उसके सपने बड़े थे, पर देश में भयंकर बेरोजगारी के चलते उसे ठीकठाक रोजगार भी नहीं मिला था। लड़की भी बीए पास थी। बुआ ने कहा भी कि वह भी कुछ काम कर ले, सेल्सगर्ल का या छोटे बच्चों के स्कूल में पढ़ा ले अथवा कंपनी में रिसेप्शनिस्ट लग जाए, पर उसकी स्वअर्जित कमाई में कोई रुचि नहीं थी। उसे घूमना-फिरना, टीवी देखना, गप्पें मारना पसंद था। मेहनत करना उसके स्वभाव में नहीं था। उस पर उसकी सोच थी कि स्त्री की रक्षा के लिए सरकार ने अनगिनत कानून बनाए हैं। वह लड़के पर छोटी-मोटी इच्छाओं की पूर्ति ना करने पर कानून का दबाव डाल सकती है। उसके स्वभाव में अक्खड़पन आने लगा।

फिलहाल लड़का दोस्तों से उधार मांग कर ज्वेलरी की दुकान से सबसे कम कीमत की अंगूठी ले आया था। सगाई निर्विघ्न संपन्न हो गयी, पर लड़की फिर नाजायज मांग करने लगी थी। ससुराल वाले तंग आ गए, तो उन्होंने सगाई तोड़ दी थी। इधर लड़की ने थाने में रिपोर्ट लिखा दी कि लड़के ने उसके साथ जबरन संबंध बनाए और अब शादी से मुकर रहा है। उधर गांव में उसके पिता की बिरादरी में बदनामी हो रही है। वह कोर्ट में जज के सामने खूब रोयी और याचना की कि उसकी शादी सुधांशु से ही हो, जज भी उसके आंसू देख कर पिघल गए और शीघ्र ही दोनों को कोर्ट मैरिज करने का आदेश दिया।

शादी हो गयी, पर सदमा लगने से लड़के की मां बीमार हो गयी। फिर भी लड़की में कोई परिवर्तन नहीं आया, वह घर में कोई काम नहीं करती थी, रोज झगड़े होने लगे थे। घर में पुलिस आती, बारी-बारी घर वालों को थाने बुलाती। पुलिस वाले पैसे भी ऐंठते और हथकड़ी लगाने की धमकी भी देते। लड़का और उसके घर वाले एकदम टूट गए। आर्थिक और मानसिक परेशानियों के बीच कोर्ट में विवाह हुआ, तो कानून की धमकी घर में हर वक्त गूंजती रही। पर लड़की जाने किस मिट्टी की बनी हुई थी। घर में सबके चेहरों पर आतंक देख वह चहकने लगती। किसी की पीड़ा का उसे लेशमात्र अहसास ना होता। वह सोचती कि दबंगई के बल पर ही वह अपनी मर्जी का सुखद जीवन जी सकती है।

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पर टूटे दिल का लड़का पत्थर हो चुका था, उसकी संवेदनाएं सुन्न पड़ने लगीं। घर में कलह का एकछत्र राज्य था। सास बीमारी में भी बहू की सेवा करने को अभिशप्त चिड़चिड़ी, कटुभाषिणी हो गयी। पुलिस अब 2-3 दिन में एक चक्कर लगाती कि सब ठीकठाक चल रहा है कि नहीं? लड़की उनके सामने टसुए बहाती कि उसे पत्नी-बहू का सम्मान नहीं मिल रहा। पुलिस पति को डंडा दिखाती तो लड़की का सीना चौड़ा होता। रात को वह भूखी बाघिन उस भीतर से किरिच-किरिच टूटे हुए लड़के पर झपटती, उसे अपनी ओर खींचती, वह फर्श पर जड़ पड़ा रहता। अगले दिन खूब शराब पीता और जीवन का अंत करने की सोचता। कई दिनों से पति की बेरुखी से वह खीझ कर उसे अपनी राह पर लाने के तरह-तरह के उपाय खोजती पर लड़का ठूंठ पेड़ की तरह खड़ा था, जिस पर कभी कोई कोंपल उगने के आसार नहीं रहे। वह खूब पीता और लड़खड़ाते हुए बरामदे में बिछे खटोले पर गिर पड़ता। मां टूटती देह से रोटी लाती, वह बमुश्किल एक रोटी खाता और मां को कातर नजरों से देख कर लुढ़क जाता। लड़की उसे भीतर के कमरे में ले जाने की कोशिश करते-करते थक जाती, पर वह अपनी जगह से टसमस नहीं होता।

क्रमशः