Friday 19 April 2024 10:33 AM IST : By Dipti Mittal

कुछ रातों की सुबह नहीं होती भाग-2

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नैना के खटखटाने पर प्रखर ने दरवाजा खोला, तो देखा सामने सजीधजी नैना खड़ी थी। हाथों में बुके और वाइन लिए वह किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी। प्रखर उसे फटी आंखों से देखता रह गया। नैना उस पर चंचल सी उड़ती नजर डाल कमरे के अंदर चली आयी। कुछ पलों बाद प्रखर की सुध लौटी, तो कुछ उलझे से शब्द बमुश्किल से उसकी जबान से फिसले, ‘‘तुम यहां, इस समय... तुम्हें यहां ऐसे नहीं आना चाहिए था नैना...’’ सुन कर नैना खिलखिला पड़ी। वह चल कर प्रखर के बेहद करीब आ गयी और उसकी आंखों में झांकने लगी, जिनमें अनेक सवाल लहरा उठे थे।

‘‘कितने दोगले हो ना तुम प्रखर... यही तो चाहते थे ना तुम, अब जब आ गयी तो कह रहे हो, नहीं आना चाहिए था...’’

‘‘मैंने ऐसा कब चाहा था नैना?’’

‘‘अच्छा? तुम्हें क्या लगता है मुझे नहीं मालूम कि ऑफिस में तुम्हारी नजरें हर वक्त मुझ पर ही गड़ी रहती हैं... तुम्हारी बातें घूमफिर कर मुझ पर आ कर रुकती हैं... कभी सोचा है क्या गुजरती है मुझ पर, कैसे झेलती हूं तुम्हारी आग की लपटों सी नजरें अपने शरीर पर... जैसे अनगिनत सांप रेंग रहे हो... सबके सामने मेरे साथ फ्लर्ट करना, मेरे करीब से गुजर जाना, मुझे छूना... तुम्हारे लिए यह सब खेल है ना? तुम्हारी हर हरकत मुझे आवाज देती है प्रखर और आज जब खुद चल कर तुम्हारे पास आयी हूं, तो कह रहे हो, नहीं आना चाहिए था...।’’ प्रखर अजीब उलझन में था। जो वह चाहता था, वह हो रहा था फिर क्या था, जो उसे रोक रहा था... डरा रहा था।

उसे डरा देख नैना हंस पड़ी, ‘‘तुम बिलकुल नहीं बदले प्रखर, अभी भी उतना ही डरते हो ना...’’ कहते हुए नैना ने प्रखर के गले में बांहें डाल दीं। ‘‘याद है अपना 20वां जन्मदिन जब मैं चोरी-छिपे तुम्हारी छत पर आ गयी थी... तुम्हारे कमरे में...ठीक रात 12 बजे... तब भी तुम ऐसे ही घबरा गए थे ना,’’ प्रखर अभी भी सन्न खड़ा था, ‘‘देखो, वह रात आज कैसे खुद को दोहरा रही है... 12 बजने को हैं, वही पल, वही तनहाई, तुम्हारा जन्मदिन और बस मैं और तुम...’’ उसकी नशीली आंखें प्रखर की आंखों में अपने लिए मोहब्बत खोजने लगीं, मगर प्रखर के माथे पर पसीने की बूंदें झिलमिलाने लगीं...सांसें जलने लगीं... वह बेहद असहज हो रहा था। उसने नैना के खुद से दूर झटकना चाहा, तो वह थोड़ा लड़खड़ा गयी।

‘‘जो भी हो नैना, तुम्हें यहां नहीं आना चाहिए था,’’ वह हकलाता सा बोला।

‘‘क्यों नहीं आती, इतने सालों बाद तुमने मुझसे कुछ मांगा था... अपने जन्मदिन पर मेरा साथ, अपना बर्थडे गिफ्ट... ना देती, तो कैसे माफ कर पाती खुद को?’’ नैना का गला भर आया। आंखों में समंदर लहरा उठे, जिसकी कुछ बूंदें छलक कर गालों को भिगो गयीं। उसे यों गमगीन देख प्रखर ने उसका चेहरा अपने हाथों में थाम लिया।

‘‘तुम मैरिड हो नैना... एक मां भी... अगर...’’ प्रखर के शब्द कहीं हलक में अटके रह गए, जब नैना ने अचानक उसके तपते होंठों को चूम लिया। प्रखर को लगा जैसे सालों से तपते जिस रेगिस्तान में वह भटक रहा था, आज उस पर शीतल फुहारें बरस रही हैं। मगर रेत से उठती इस गरमी को संभालना उसके बस में ना हो...। उसका रोम-रोम थरथराने लगा, हाथ कांपते हुए नैना की कमर पर आ गए। नैना की महक उसे बेसुध बना रही थी। वह अपने पहले और शायद आखिरी प्यार नैना को बांहों में कस कर भींच लेना चाहता था, मगर उसके भीतर कोई बैठा था, जो उसे रोक रहा था।

‘‘यह क्या है नैना...’’ उसने कांपते लबों से कहा।

‘‘तुम्हारा बर्थडे गिफ्ट... यही गिफ्ट चाहते थे ना तुम उस रात अपने जन्मदिन पर... पर मैं नहीं दे पायी थी... देखो मैंने इसे तुम्हारे लिए अभी तक संभाल कर रखा था,’’ नैना की आंखों से दर्द बरसने लगा।
प्रखर के जेहन में 18 साल पुरानी वह रात उभर आयी, जो उन दोनों के जीवन में तूफान बन कर आयी थी। कुछ तूफान से हुए नुकसान की भरपाई कभी नहीं हो सकती... वह तूफान भी कुछ ऐसा ही था। बीस साल का प्रखर और उसकी 18 साल की मासूम मोहब्बत नैना, जो उसके पड़ोस में रहती थी। प्रखर ने उसे कबसे चाहना शुरू किया, यह तो उसे भी याद नहीं था। याद था तो बस इतना कि जबसे उसने प्रेम को समझना शुरू किया था, उसके लिए प्रेम का दूसरा नाम नैना था। प्रेम को देखना होता, तो अपनी छत से नैना के आंगन में झांक लेता... प्रेम को जीना होता, तो कहीं रास्ते में सहेलियों संग जा रही नैना को छू कर गुजर जाता। फिर वह छुअन दोनों को देर तक गुदगुदाती रहती। दोनों प्रेम को यों ही चुपके-चुपके पी लिया करते थे।

एक छोटे शहर की आम मध्यमवर्गीय लड़की की तरह नैना भी अपने पिता और भाइयों से डरती थी। इसलिए अपने प्रेम को बेहद छिपा कर रखती। प्रखर के माता-पिता नहीं थे, वह अपने बड़े भाई-भाभी के साथ रहता था, जिनके लिए वह बोझ ही था। उनसे प्रखर को कभी अपनापन नहीं मिला, मगर उसे कोई अफसोस नहीं था। उसके मन के सारे खाली कोने ‘नैना’ नाम से भर चुके थे। उसकी आंखों में दिन-रात एक ही सपना पलता... कैसे जल्द से जल्द अपने पैरों पर खड़ा हो और नैना के साथ एक खुशगवार जिंदगी का आगाज करे। वे दोनों मौका मिलते ही सबसे छिपते-छिपाते अंधेरी छत के एक कोने में, हाथों में हाथ थामे अपनी मोहब्बत वाले घर के हसीं ख्वाब बुनते... उसकी दीवारों के रंग, परदे का फैब्रिक, बेडरूम की खिड़की, खिड़की से झांकता चांद... और आसमान को देख उस ख्वाब के मुकम्मल होने की दुआएं करते।

अपने 20वें जन्मदिन पर प्रखर ने नैना से वादा लिया कि वह रात को छत पर बने उसके कमरे में आएगी और उसे मुबारकबाद के साथ तोहफे में पहला चुंबन देगी। सुन कर नैना के गाल शरम के मारे लाल हो गए थे। कैसे-कैसे बहाने बना कर कहा, ‘बिलकुल मुमकिन नहीं...’ मगर प्रखर ने ना जाने कितनी कसमों का बोझ उसके सीने पर रख दिया था। प्रेमी कितना भी डरा-सहमा क्यों ना हो, प्रेम उसमें दुस्साहस भर ही देता है, अपने प्रेम की खातिर नैना ने भी दुस्साहस कर डाला।

रात 12 बजे से पहले वह हाथ में लाल गुलाब लिए प्रखर के कमरे में खड़ी थी, उसे सालगिरह की मुबारकबाद देने, उसका मुंहमांगा तोहफा देने... मगर उसे यों आया देख प्रखर घबरा गया, ‘‘अरे, तुम तो सच में आ गयी, मैं तो तुम्हारा इम्तहान ले रहा था।’’

‘‘तो पास हुई या फेल?’’ नैना ने उसकी आंखों में आंखें डाल कर पूछा।

‘‘अरे बाबा पास, वह भी पूरे नंबर से... चलो अब जाओ यहां से, भाभी नीचे जाग रही हैं...’’

प्रखर को यों सकपकाया देख पता नहीं क्यों नैना को बड़ा अच्छा लगा। जिस डर को आज सुबह से वह जी रही थी, वही अब प्रखर के चेहरे पर पसरा देख उसे हंसी आ गयी।

‘‘अब आयी हूं, तो तोहफा दे कर ही जाऊंगी, वरना तुम्हारा क्या भरोसा, कल फिर से कसमें दे कर वापस बुला लोगे...’’ नैना की आंखों में शरारतें हिलोरें मारने लगीं। प्रखर भी सब भूल कर उसकी ओर खिंचने लगा। दोनों करीब हो रहे थे... एक-दूसरे की उफनती सांसें, तेज धड़कनें महसूस कर रहे थे। यह उनके प्रेम का सबसे खूबसूरत पड़ाव था... ऐसा पड़ाव, जिसकी कल्पना में प्रेमी जन खुली आंखों से रातें काटते हैं, मगर हर पड़ाव मंजिल तक ले जाए, यह जरूरी तो नहीं...।

प्रखर की भाभी ना जाने कैसे वहां आ गयीं और उन्हें साथ देख लिया। दो मासूम पाक प्रेमी पलभर में कलंकित हो गए। वह प्रेम जो एकांत में दुनिया की सबसे पवित्र, सबसे खूबसूरत शै थी,
एक बाहरी नजर पड़ते ही बदचलनी, बेशरमी... ना जाने कैसे-कैसे नामों से जुड़ गयी। निष्पाप नैना पर गंदे तानों की बरसात होने लगी, वह भाभी के कदमों में गिर पड़ी। कितना रोयी, कितना सिसकी कि यह बात किसी भी तरह उसके घर ना पहुंचे। दोनों की लाख कसमें खाने पर भाभी शांत हुईं और इस शर्त पर मानीं कि नैना फिर दोबारा उस घर की ओर आंख उठा कर भी नहीं देखेगी, वरना अंजाम अच्छा ना होगा।

उस रात प्रखर बुरी तरह बिखर गया। उसकी एक मासूम ख्वाहिश नैना पर बिजली बन कर गिरेगी, उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था। खुद से ना जाने कितना बार सवाल करता रहा, क्या गलती थी उनकी... क्या प्रेम करना इतना बड़ा अपराध है...अगर है, तो क्यों कवियों ने, सूफियों ने प्रेम के नाम पर बड़े-बड़े कसीदे गढ़े हैं, क्यों उसे इबादत अौर खुदा का दूसरा नाम कहा गया है?

अपने जन्मदिन की वह रात प्रखर कभी नहीं भूला, उसने फिर कभी अपना जन्मदिन नहीं मनाया। नैना ने भी अपना वादा निभाया, पलट कर फिर कभी उस घर की अोर नहीं देखा। मगर प्रखर की आंखों के सपने अभी नहीं मरे थे। वह जल्द से जल्द कुछ बन जाना चाहता था, ताकि नैना को अपने बलबूते पर पा सके, मगर इस बनने की कवायद में बहुत देर हो गयी। इसी बीच नैना की शादी हो गयी। फिर भी वह प्रखर से दूर नहीं हो पायी, एक टीस बन कर उसके दिल में बस गयी, जो आज भी उसे दर्द दे रही थी।
गुजरा कल याद करके प्रखर की आंखें डबडबा गयीं। उसने आंखें बंद की, तो नैना ने उसके गालों पर लुढ़कते अंगारों को अपने होंठों में समेट लिया। इस बार प्रखर ने उसे नहीं रोका। नैना उसके सीने पर टिक गयी और प्रखर की बांहें खुदबखुद उसकी कमर से लिपट गयी। इस वक्त उसकी बांहों में मिसेज साहनी नहीं थी... उसकी पहली मोहब्बत नैना थी। वह लमहा, जो उस रात अधूरा रह गया था, आज मुकम्मल हो रहा था। ठीक 12 बजे घड़ी के दोनों कांटे भी प्रखर और नैना की तरह एक हो गए। नैना ने दोबारा प्रखर के अधरों पर जन्मदिन की मुबारकबाद दी, उसने प्रतिरोध नहीं किया, प्रखर का दिलोदिमाग अब उसके बस में नहीं था। दोनों सब भूल कर बस यह लमहा जी रहे थे।

कुछ देर बार होश आया, तो प्रखर नैना की कमर से अपनी बाजुओं की पकड़ ढीली करता हुआ दूर हट गया। ‘‘क्या हुआ?’’ नैना बुदबुदायी।

‘‘मेरे लिए क्यों तुम सब ताक पर रख चली आयीं...’’

‘‘तुम्हारे लिए नहीं आयी हूं, अपने लिए आयी हूं... सिर्फ अपने लिए...’’ नैना आगे बढ़ कर फिर उसके सीने में जा छिपी, जैसे दुनिया में बस वही उसकी इकलौती पनाह हो, ‘‘आज यहां आना, तुम्हारे साथ इस रात को जीना मेरा अपना चुनाव है प्रखर... क्या अपनी जिंदगी की एक रात पर भी मेरा हक नहीं है... क्या मैं थोड़ा भी वक्त सब कुछ भूल कर सिर्फ अपने लिए नहीं जी सकती... आज मैं सिर्फ नैना हूं प्रखर, सिर्फ नैना... क्या तुम सिर्फ आज के लिए यह नहीं भूल सकते कि मैं किसकी बेटी, किसकी पत्नी या किसकी मां हूं... क्या आज मैं तुम्हारे लिए सिर्फ मैं नहीं हो सकती?’’

नैना किसी पंछी की तरह फड़फड़ा रही थी। वह खुद को थोड़ी देर के लिए ही सही उन बंधनों के पिंजरे से आजाद करना चाहती थी, जिसमें वह बरसों से रिश्तों के नाम पर कैद थी... वे रिश्ते जो किसी ना किसी डर, समझौते या मजबूरी की नींव पर टिके थे... इसीलिए तो वे इतने कमजोर थे कि नैना को अपने पुराने प्रेमी की बांहों में आने से नहीं रोक पाए। नैना की मिन्नतें भरी आंखें प्रखर को बूंद-बूंद पिघलाने लगीं। उनके सम्मोहन के आगे प्रखर को भीतर से रोकने वाला शख्स आखिर कितनी देर टिका रहता...उसे झुकना ही पड़ा।
दुनिया की नजरों से दूर दो प्रेमी आज फिर साथ थे। उनके ख्वाबों का आशियाना भले ही हकीकत की जमीन पर खड़ा ना हो पाया हो, मगर जहनी तौर पर वे उसी के बाशिंदे थे। भले ही उस कमरे की दीवारों का रंग, बिस्तर की चादर, खिड़की पर झूलते परदे वैसे नहीं थे, मगर खिड़की से झांकता पूनम का चांद बिलकुल वैसा ही था। खुद को भूल एक-दूसरे में डूबी नैना और प्रखर की देह उसकी रोशनी में चांदी सी चमक रही थी। उस चांद के साथ आसमान में खिले तारे भी उनके प्रेम के साक्षी बन रहे थे... वह प्रेम जो आज सारे बांध तोड़, मन से परे जा कर देह से होता हुआ बिस्तर की सिलवटों में बह रहा था।

एक खूबसूरत सफर से गुजरते हुए रात अपने आखिरी पड़ाव पर आ पहुंची। मंजिल पर पहुंचे दो थकेमांदे मुसाफिरों के मानिंद नैना और प्रखर एक दूसरे की बांहों में सुकून से पड़े थे। उनकी उंगलियां एक-दूसरे में उलझी हंस-खेल रही थीं। नैना आंखें मूंद इस पल को घूंट-घूंट पी रही थी और प्रखर नैना के बालों को सहलाते हुए खिड़की पर दस्तक दे रही भोर की लाली को देख रहा था।

‘‘क्या हुआ, गिल्ट में हो?’’ प्रखर के माथे पर आयी सिलवटें देख नैना ने धीमे से पूछा।

‘‘हां... हूं तो... खुद को अस्मित का अपराधी महसूस कर रहा हूं...’’

‘‘कहा था ना भूल जाओ सब, आज मैं सिर्फ नैना हूं और कुछ नहीं...’’

‘‘रात के अंधेरे में सब भूल गया था, पर यह सुबह सब याद दिला रही है... मैं यहां आ कर बेकार ही तुम दोनों के बीच आ गया,’’ प्रखर की आवाज अपराधबोध से भारी होने लगी।

‘‘तुम तो हमेशा हमारे बीच रहते हो प्रखर...तुमको जहन में लाए बिना मैं उसके साथ दो आत्मीय पल भी नहीं गुजार सकती। जानते हो कितना दर्दनाक होता है ऐसा दोहरा रिश्ता... ऐसा छलावा... किसी रिसते घाव जैसा...’’ नैना तड़प उठी।

‘‘मैं भी तो हर किसी में तुम्हें ही खोजता हूं...जबकि जानता हूं अंत में मुझे नाकामी और दुख ही मिलेगा... इसीलिए आज तक किसी रिश्ते में नहीं बंध पाया।’’ उनके प्रेम के साथ उनकी पीड़ाएं भी साझा थीं। ‘‘मगर... वह तुम्हारा हसबैंड है, तुम्हारा ध्यान रखता है, बहुत तारीफ करता है तुम्हारी...’’

‘‘हसबैंड...’’ ये शब्द दोहरा कर नैना कसैली सी हंसी हंस पड़ी, ‘‘उसने ना कभी मुझे प्यार किया, ना ही मुझसे प्यार चाहा... हमारा रिश्ता तो हमेशा किसी बिजनेस डील सा, बस गिव एंड टेक का ही रहा। यू नो वन थिंग, ऑफिस में वह मेरे लिए तुम्हारे झुकाव नोटिस कर रहा था और उसे हवा देने के लिए ही वह अपनी बातों से तुम्हारा ध्यान मेरी ओर खींचने की कोशिश कर रहा था। दरअसल वह तो यही चाहता था कि मैं तुम्हारे करीब आऊं... उसके फायदे के लिए...’’ नैना की आंखों में दर्द उभर आया, ‘‘यू नो प्रखर, अगर उसे यह सब पता भी चल गया ना, तो उसे जरा भी बुरा नहीं लगेगा... वह तो बस यह देखने में बिजी हो जाएगा कि इस रात का फायदा उसे कब और कैसे पहुंचता है,’’ नैना का मन वितृष्णा से भर आया।

‘‘ऐसा है, तो छोड़ दो ना उसे, लौट आओ मेरे पास...’’ प्रखर की आवाज में उम्मीदें लहराने लगीं।

‘‘नहीं, पाॅसिबिल नहीं है...’’ नैना ने गहरी सांस छोड़ी, ‘‘भले वह अच्छा पति ना हो, मगर मेरी बेटी का पिता है... जिया अपने पापा को बहुत प्यार करती है। अपनी वजह से मैं उस मासूम की जिंदगी में कोई तूफान खड़ा नहीं कर सकती...’’ कुछ देर रुक कर नैना बिस्तर से खड़ी होने लगी, तो प्रखर ने उसका हाथ खींच लिया।

‘‘कहां जा रही हो?’’

‘‘वापस अपने किरदारों में... वे जो मुझ पर जबरन लाद दिए गए हैं और जिन्हें ढोना ही अब मेरी नियति है...’’

‘‘और मैं?’’ नैना से दूर होने की बात सोच कर ही प्रखर बेचैन हो उठा।

‘‘शायद मैं फिर किसी दिन इतना साहस जुटा लूं कि तुमसे दोबारा मिलने आ जाऊं... और शायद फिर कभी ना जाऊं... मैं नहीं जानती यह होगा या नहीं होगा... मैं बस इस पल को जानती हूं, जिसमें हम अभी साथ हैं...’’ दोनों देर तक हाथ थामे, खामोशी को ओढ़े, एक-दूसरे को निहारते रहे। दोनों जानते थे इस खूबसूरत रात की सुबह हो चुकी है, अलविदा कहने का वक्त आ गया है। नैना ने बिस्तर के नीचे पड़ी अपनी ड्रेस को किसी किरदार की तरह पहन लिया और प्रखर के माथे पर एक चुंबन जड़ वह उस कमरे से निकल गयी।

कार की ड्राइविंग सीट पर बैठते ही नैना, नैना नहीं रही थी, वह मिसेज साहनी, जिया की मां और एक मैनेजर हो चुकी थी। उसके दिमाग में नयी उधेड़बुन शुरू हो चुकी थी... जिया उठी होगी या नहीं, नाश्ते में क्या बनेगा, अस्मित को कितने बजे एअरपोर्ट से पिक करना है, ऑफिस में क्या ईमेल करनी है, प्रखर की बर्थडे पार्टी के अरेजमेंट्स... और भी ना जाने क्या-क्या। सुबह पर सूरज की दस्तक के साथ नैना का दिन तो नए सिरे से शुरू हो चुका था, लेकिन प्रखर... वह अभी भी कमरे में बिखरी अपनी पहली मोहब्बत को समेटते हुए उसी रात को जी रहा था, क्योंकि वह जानता था अगर यह रात गुजर गयी, तो दोबारा नहीं मिलेगी। प्रेम में कुछ रातों की कभी सुबह नहीं होती।