Tuesday 02 April 2024 11:54 AM IST : By Dr. Shubhra Varshney

गेंदे के फूल

story-gende-ke-phool

ऑफिस के हैक्टिक रुटीन ने मुझे आज लंच टाइम तक ही पस्त कर दिया था। जबसे मेरा प्रमोशन हुआ, तब से मानो मेरी घड़ी ने भी प्रमोशन ले लिया था। वह मुझसे ज्यादा तेज भाग रही थी और मुझे भी भगा रही थी।

जबसे मैं कंपनी के इस ब्रांच का एरिया मैनेजर बना था, दिन और रात का भेद मिट गया था जैसे। जब नयी जिम्मेदारियां मिलीं, तो नया केबिन भी मिल गया था। सरसरी निगाह से देख आया था, बहुत शानदार था नया केबिन।

पिछले पांच साल पुराने केबिन में काटे थे। इन पिछले पांच सालों में यह केवल एकमात्र कमरा ना होकर मेरे जीवन का हिस्सा बन गया था। मेरी मिली जीत में, मेरे उत्साह, निराशा के पलों में और मेरे दुख भरे पलों में आंसुओं का साक्षी जो बना था, तो आज मुझसे यह केबिन छूटे नहीं छूट रहा था।

अब बॉस का आदेश आ गया था, तो फिर मुझे इसे अलविदा कहना ही था।

आज जब थक गया, तो केबिन शिफ्ट करने के बहाने अपनी प्यारी चेअर पर आकर बैठ गया । मेज की दराज खोलते ही मानो यादों का पुलिंदा भी खुल गया। ऑफिस के सहायक सखाराम से कहकर मैंने अपने लिए एक गरम कॉफी मंगवायी ।

कॉफी के हर घूंट में मुझे अपने पुराने दिन याद आ रहे थे, जो मैंने इस केबिन में बिताए थे। अब तक सैकड़ों कप कॉफी तो पी ही ली होंगी यहां।

दरज से सामान निकालकर टेबल पर रखता जा रहा था। तभी हाथ में आए कुछ सूखे गेंदे के फूल। उन्हें भी निकाल कर बस मेज पर रख ही पाया था कि बुक्स के बीच में से मेरी प्यारी डायरी हाथ में आ गयी, जिसे मैं अब तक भूले बैठा था।

डायरी लिखने का शौक न जाने कहां से आया था, पर ताज्जुब है कि मैं तब भी लिखता था, जब इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था। कॉफी के सिप और डायरी के पलटते पन्नों के साथ मेरी यादों के पन्ने भी पलट रहे थे। मेरे पहले प्यार की साक्षी जो थी यह डायरी।

मैं कॉलेज का सबसे बोर और पढ़ाकू लड़का घोषित था। बोर होने के बावजूद भी मेरे आसपास लोगों की कमी नहीं थी और होती भी कैसे, हमेशा टॉप करने वाला मैं जीनियस ही नहीं बल्कि हेल्पफुल भी था।

उस दिन भी मैं लाइब्रेरी की किताबों में गोते लगा ही रहा था कि एक खनखनाती आवाज ने मुझे बुक से बाहर निकाला, ‘आप ही राजीव हो?’

छोटे कद की एक दुबली-पतली लड़की, जिसके हाथ में कई सारी फाइलें और कंधे पर भारी बैग था, मेरे सामने खड़ी थी और आज मैं उसे पहली बार देख रहा था।

‘हां मैं ही हूं, कहिए क्या काम है?’ मैंने थोड़ी उदासीन आवाज में कहा।

‘मैं न्यू एडमिशन हूं... मेरा नाम शिल्पी है। भल्ला सर ने मुझे आपसे मिलकर पुराने नोट्स तैयार करने को कहा है।’

एकबारगी सोचा कि उसे मना कर दूं, इतना टाइम नहीं है अपने पास, मगर फिर उस कमजोर को भारी बैग उठाए देख मुझ में थोड़ी दया आ गयी।

बस वह दया ही भारी पड़ गयी। अब तो वह रोज मेरी ही सीट के बगल में बैठना चाहती। चंद दिनों में ही मैं जान चुका था कि वह बहुत औसत स्टूडेंट थी।

उसका मेरी सीट पर या उसके आसपास बैठना मानो मेरी शान के खिलाफ था। मैं कितनी भी कोशिश करता, लेकिन वह घूम-फिर कर मेरे पास ही आ कर बैठ जाती और सबसे ज्यादा अजीब बात मुझे यह लगती कि उसके बैग में अकसर गेंदे के फूल होते। पूछने पर बताती कि ये पीले रंग के फूल उसे जिंदगी की खुशबू देते थे। उसकी इस बात से मुझे और चिढ़ हो जाती थी। कैसी लड़की थी, जहां सबको गुलाब, कारनेशन, ऑर्किड पसंद थे, यह अभी तक गेंदे के फूलों पर ही अटकी पड़ी थी ।

मेरे दोस्त उसे मेरे पास बैठा देखकर मंद-मंद मुस्काया करते और मैं कुढ़ता रहता।

एक दिन मुझे सुबह से ही बधाइयां मिलने लगीं। कॉलेज में घुसा ही था कि देखा सब मुझे देख कर हंस रहे थे और कानाफूसी कर रहे थे। मेरे दोस्त समीर ने बताया, ‘मुबारक हो दोस्त, तुम तो रोमियो बनने वाले हो।’

‘यह क्या कह रहे हो तुम?’

मेरे स्वर में आश्चर्य कम गुस्सा ज्यादा था।

‘तुमने बोर्ड पर लगी लिस्ट में नाम नहीं देखा। कॉलेज में होने वाले प्ले में तुम रोमियो और शिल्पी जूलियट बनी है।’

समीर कह ही रहा था कि मैंने उसकी बात काटते हुए कहा, ‘मैं कब प्ले में भाग लेता हूं?’

‘यार बोर्ड पर तो यही नाम लिखा हुआ है और जहां तक मुझे याद है, हमारी क्लास में तो तू ही अकेला राजीव है।’

मैं दनदनाता हुआ बोर्ड तक गया, वास्तव में मेरा ही नाम लिखा था। सर के पास अपना सवाल लेकर गया, तो पता चला कि शिल्पी ही दोनों नाम देकर गयी थी।

गुस्से से भरा मैं उसका इंतजार करने लगा। उसके आने की देर थी कि मेरा लावा बह निकला।

‘किस से पूछ कर तुमने मेरा नाम दिया?’

वह कुछ बोल पाती, उससे पहले मैं दोबारा फट पड़ा, ‘मैं रोमियो और तुम जूलियट बनोगी। कभी देखा भी है खुद को...पढ़ने में कैसी हो तुम और कहां मैं, कुछ कहता नहीं हूं तो तुमने सीमा पार कर दी...’ मैं एक सांस में अपना गुबार निकाल चुका था।

मेरे आसपास क्लास के लड़के-लड़कियों की भीड़ जमा हो चुकी थी। शिल्पी सबको देखकर रुआंसी हो आई थी। उसकी आंखें भर गई थीं।

खैर वह प्ले तो ना होना था और ना हुआ, लेकिन अगले दिन से शिल्पी ने मेरे साथ बैठना बंद जरूर कर दिया। अब तो वह सामने पड़ कर भी जैसे मुझे नहीं देखती थी।

वह तो मुझसे दूर हो गयी थी, पर पता नहीं क्यों अब मेरा मन बेचैन होने लगा था। आखिर वह मुझे क्यों इग्नोर कर रही थी ? कारण तो मुझे पता था, पर दिल मानने को तैयार नहीं था।

शिल्पी अब बहुत कम बोलती थी। क्लास में इतने ध्यान से लेक्चर अटेंड करते हुए मैंने उसे पहले कभी नहीं देखा था।

सेमेस्टर एग्जाम्स के बाद मेरा रिजल्ट पूर्ववत ही था। हर बार की तरह मैंने इस बार भी क्लास में टॉप किया था, लेकिन टॉप फाइव की लिस्ट में शिल्पी का नाम देखकर सबके मुंह खुले के खुले रह गए थे।

अब नजारा उल्टा हो गया था। अब तो मेरी कोशिश होती थी कि मैं शिल्पी के करीब जाकर बैठूं, लेकिन उसे तो जैसे मुझसे एलर्जी सी हो गयी थी।

एक दिन मैंने उसे रोक कर पूछ ही लिया, ‘क्या परेशानी है तुम्हें मुझसे?’

वह तो जैसे मेरे बोलने का ही इंतजार कर रही थी, उसने बैग से निकाल कर एक लेटर मुझे थमा दिया। उसमें उसने लिखा था कि मैंने रोमियो बदल लिया है।

मैं बहुत अच्छी तरह जानता था कि शिल्पी ने यह बात मुझे चिढ़ाने के लिए लिखी थी।

मैं अपनी डायरी अभी पढ़ ही रहा था कि अचानक सखाराम की आवाज ने मुझे वर्तमान में ला दिया था। अब मैं एक स्टूडेंट नहीं, मेच्योर कर्मचारी था और मेरा अपना एक परिवार था।

‘‘सर एक कप कॉफी और ले आऊं क्या?’’

‘‘नहीं मैं घर जा रहा हूं अब,’’ मैंने सब सामान समेटकर दराज में रखते हुए कहा। मैं तेजी से पार्किंग की तरफ बढ़ रहा था। जल्दी-जल्दी कार निकाली और ऑफिस से घर की ओर निकल पड़ा।

लेटर हाथ में लेकर कुछ सोचता हुआ सा मैं अपने घर तक आ गया था। पत्नी ने चिरपरिचित मुस्कान के साथ मेरे लिए दरवाजा खोला।

मैं अंदर घुसा ही था कि गेंदे की खुशबू ने मेरा मन प्रसन्नता से भर दिया। पत्नी को बांहों में लेते हुए मैंने हंसते हुए उससे पूछा, ‘‘अच्छा जरा एक बात तो बताओ, यह दूसरा रोमियो कौन था, जिसे तुमने चुना था। मैं कभी तुमसे यह नहीं पूछ पाया था, अब पूछ रहा हूं...।’’

मेरी बात सुन कर मेरी पत्नी शिल्पी शरारत से मुझे देख कर हंस पड़ी। उसकी हंसी में गेंदे के फूलों की महक घुल हुई थी।

अब मेरे घर का वह कमरा मेरी और शिल्पी की हंसी से गुलजार हो रहा था और हमारे कमरे को महकाते गेंदे के फूल मानो मुस्कराने लगे थे।