Wednesday 20 March 2024 01:00 PM IST : By Pama Malik

फरेब भाग-2

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इलाहाबाद अब प्रयागराज एक छोटा, ब्रिटिश ऐतिहासिक इमारतों वाला, गंगा के तट पर बसा पारंपरिक नगर है। सिविल लाइंस स्थित होटल बहुत महंगा ना था। मैं बैंक आने लगा, लोग अच्छे थे, सप्ताहभर में फ्लैट मिल जाने का आश्वासन भी मिल गया था। रात में प्रतिदिन मम्मी घंटों मुझसे बात करती, दिनभर का ब्योरा लेती, मैं उनसे बात करते-करते सो जाता।

आज पहला रविवार था, मुझे देर तक सोने की आदत नहीं थी, किंतु मेरी आंखें देर से खुलीं। चाय पीते-पीते मैंने वे पेपर निकाले, जो मम्मी की अलमारी से चुराए थे। पता देखा और पिता की तसवीर देखने लगा। दुबले-पतले प्रभावहीन व्यक्ति, जो किसी रूप में मेरी सुंदर मां के योग्य ना थे। किंतु उन्होंने एक छोटे से बच्चे के साथ उन्हें घर से निकाल दिया, तलाक दे दिया। मेरी मां बेसहारा, पुत्र के साथ न्याय की आस में संघर्ष करती रही और अंत में कोर्ट के द्वारा बच्चे की परवरिश के लिए गुजारा भत्ता और एक फ्लैट मिला। मां को ठौर मिल गया। बाद में वे भी नौकरी करने लगीं, जिंदगी ठिकाने लग गयी।

‘इनसे मिलना हाेगा, वर्षों पुराना हिसाब चुकता करना है,’ मैं बुदबुदाया। नहा-धो कर नाश्ता किया और टेंपो करके अल्लापुर बागम्बरी गद्दी की ओर चल पड़ा। ठीक स्थान पर पहुंच गया। पुराने पारंपरिक ढंग से बने मकान कतार से खड़े थे। वह एक पुराना आलीशान बंगला था, लेकिन रखरखाव के अभाव में विदीर्ण हो चला था। वर्षों रंग-रोगन का मुंह ना देखने वाला बंगला बेतरतीबी से उगे पौधों और कुछ वृक्षों वाले एक घने बगीचे से घिरा था। मुझे विचित्रानुभूति हो रही थी। मैंने साहस करके बेल बजा दी। आज रविवार है, जरूर सभी घर पर होंगे सभी ! मुझे तो पता ही नहीं था कि घर पर कौन-कौन है, जरूर मम्मी से संबंध विच्छेद के बाद पापा ने दूसरी शादी कर ली होगी।
कई मिनट बाद दरवाजा खुला। सामने पापा ही थे, लंबे दुबले-पतले, रुग्ण, कुछ उदासीन से लग रहे थे। शेव बढ़ी थी, पाजामा-कुरता पहने वे कहीं से भी मेरी ‘सुंदर मां’ के समकक्ष नहीं लग रहे थे।

‘‘कौन हो तुम?’’ पापा के चेहरे पर जिज्ञासा उभरी।

‘‘मैं प्रवीर, श्रीमती इंद्राणी खन्ना का बेटा।’’

‘‘अरे, प्रवीर, मंटूस बुलाता था मैं तुम्हें, अंदर आओ?’’

एक वीरान चेहरे पर बहार आ गयी, ‘‘मां ! देखो मंटूस आया है।’’

मैं अंदर आ गया, घर में सब कुछ था, लेकिन गृह स्वामिनी की उदासीनता से सब बिखरा और असंयोजित था। पापा जैसी दुबली-पतली दादी भी थीं। वील चेअर पर बैठे दादा जी के भी दर्शन हुए, सब मुझे देख कर खुश थे, किंतु बेजान से थे। घर, वातावरण, घर के सदस्यों के चेहरे पर स्थायी वीरानी छायी थीं। मैंने इधर-उधर देखते प्रश्न किया, ‘‘और कौन-कौन हैं?’’

‘‘हम तीन ही हैं घर में।’’

‘‘मां को छोड़ने के बाद आपने दूसरी शादी नहीं की?’’ मेरे स्वर में तल्खी थी।

‘‘नहीं, किंतु मैंने तुम्हारी मां को नहीं छोड़ा। मां, आप मंटूस के पास बैठिए मैं चाय बना लाता हूं।’’

पापा किचन में चले गए, दो जोड़ी वृद्ध, असहाय एकटक देखती-बेंधती आंखें, वे निगाहें जैसे मेरी आत्मा में उतरी जा रही थीं। मुझे बेचैनी सी हुई। अचानक दादी ने पूछा, ‘‘तुम्हें इंदू ने यहां आने से नहीं रोका?’’

‘‘उन्हें नहीं पता कि मैं यहां आया हूं।’’

‘‘कैसी है वह और तुम क्या कर रहे हो? वर्षों बाद तुम्हें देख कर हम सबको बहुत खुशी हुई। तुम्हारे दादा जी पक्षाघात के शिकार हैं, ठीक से बोल नहीं पाते। हम सबने तुमसे मिलने की आस छोड़ दी थी।’’

‘‘दादी, मुझे बैंक में जॉब मिल गयी है, यहीं आपके शहर में। मां ने बहुत कष्ट उठाए, अकेले मुझे पाला-पोसा अपने साहस, सामर्थ्य से। आप सबने भी तो कोई खोज-खबर नहीं ली, वैसे मम्मी ठीक हैं।’’

दादी चुपचाप मुझे देखती रहीं फिर बोलीं, ‘‘इंदू ने कोर्ट से अॉर्डर लिया था कि तुम्हारे पिता यदि तुमसे मिलने की कोशिश भी करेंगे, तो वह उन पर केस कर देगी।’’

‘‘क्यों?’’ मैं व्याकुल हो गया।

‘‘तुम्हारी मां ने कोर्ट से अॉर्डर लिया था। उसने तुम्हारे पिता को खतरनाक, मानसिक रोगी और हिंसक बताया था। उसने बताया कि तुम्हारे पिता तुम्हारी मां को मानसिक, शारीरिक रूप से भयंकर प्रताड़ना देते हैं। उसने डॉक्टर मृत्युंजय की झूठी मेडिकल रिपोर्ट कोर्ट में दर्ज की थी, जिसमें तुम्हारे पिता के शारीरिक, मानसिक दशा का वर्णन है,’’ दादी अनवरत बोल रही थीं।

‘‘दादी, आप यह सब क्या मनगढ़ंत कहानियां सुना कर मेरी मां का चरित्र हनन कर रही हैं?’’

‘‘मैं क्यों झूठ बोलूंगी, सब सच है। तुम्हारी मां ने केवल फ्लैट और रुपयों के लिए मेरे सीधे-साधे पुत्र से शादी की थी। उसका डॉ. मृत्युंजय से विवाह पूर्व का रिश्ता था, रूप-रंग में सीधे-साधे मेरे बेटे से उसकी पटरी नहीं बैठी। वह उसे रास नहीं आया, सो झूठी कहानियां गढ़ कर उसने तुम्हारे पिता से संबंध-विच्छेद कर लिया। तुम्हारे भरण-पोषण के लिए मोटी रकम और फ्लैट का आवेदन किया, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया।’’

‘‘पापा ने कुछ नहीं कहा?’’ मैं पूर्ववत व्यग्र था।

‘‘दहेज, प्रताड़ना और घरेलू हिंसा का ऐसा भय तुम्हारी मां ने मेरे डरपोक बेटे को दिखाया कि वह वैसा ही करता गया जैसा वह कहती गयी।’’

मैं निशब्द बैठा रहा गया।

‘‘आज 35 हजार रुपए में तुम्हारे पिता हम पति-पत्नी का पालन-पोषण कर रहे हैं। स्वयं खाना बनाता है, खिलाता है, नौकरी करता है, सामान, दवा आदि लाता है, गुरुतर दायित्व के कारण ना कहीं आता है, ना जाता, ना मित्रों को घर बुलाता है। कारावास की सजा भुगत रहा है तुम्हारा बाप, ना किए गए अपराध का दंड झेल रहा है,’’ दादी धीरे-धीरे सिसकने लगीं, ताकि पापा उन्हें ना सुन लें। मैं हतप्रभ बैठा था। मुझमें इतनी हिम्मत ही नहीं बची थी कि मैं दादी को दिलासा देता।

‘‘मैंने तुम्हें सब कुछ बताया, क्योंकि तुम्हारे पिता अपने मुंह से तुम्हें कुछ नहीं बताएंगे,’’ दादी ने वार्तालाप में पूर्ण विराम लगाया, क्योंकि पापा ट्रे में खाने का बहुत सारा सामान ले कर मुस्कराते हुए अंदर आ रहे थे। मां की आंखों के आंसू देख कर उन्हें डपटा, पिता को अपने हाथ से कॉफी, ब्रेड-बटर खिलाया, उनका मुंह पोंछा और जुट गए मुझे इसरार से खिलाने, मिठाइयां, पकौडि़यां, पापड़ चिप्स, ब्रेड बटर और भी जाने क्या-क्या, मैं आंखों में आंसू भरे सब खाता रहा, पेट भर गया तब भी। बहुत देर बाद मैं आने के लिए उठा, बारी-बारी से सबके पैर छुए। वे निशब्द, आंखों से आशीर्वाद देते रहे। मैं बोला, ‘‘पापा, मैं यहीं आ कर रहूंगा आप सबके साथ, शाम को ही होटल से सारा सामान ले कर आता हूं।’’

‘‘बेटा, तुम्हारी मां इसका विरोध करेंगी, नाराज होंगी, हम फिर मुसीबत में पड़ जाएंगे,’’ पापा बोले।

‘‘कुछ नहीं होगा, आप निश्चिंत रहे।’’

हम दोनों एक-दूसरे को देखते रहे, अचानक जाने किस भावना के वशीभूत हो कर मैं उनसे लिपट गया, उन्होंने भी मुझे बांहों में भींच लिया, भरे मन से मैं वहां से लौटा। सामान पैक करते हुए मैंने कई निर्णय किए। एक कार करके मय सामान पापा के पास जाना था, तभी मम्मी का फोन आ गया।
‘‘प्रवीर ! तुमने आज फोन नहीं किया?’’
‘‘हां, मैं व्यस्त था। सुबह पापा से मिलने गया था।’’

‘‘क्या? तुम्हें उनके घर का पता कैसे चला, तुमने मुझसे पूछे बिना वहां जाने का साहस कैसे किया?’’ मम्मी चीख पड़ीं। वे क्रोधित थीं।

‘‘वह सब मैं बाद में बताऊंगा, पहले आप बताइए, आपने इतने वर्ष कितनी बातें मुझसे छुपा कर रखीं। उन पर आप शोषण-प्रताड़ना का आरोप लगाती रहीं, मुझे बताया पापा ने आपको तलाक दिया, जबकि इन सब बातों कोई सचाई ना थी।’’

‘‘यह सब कहानी तुम्हें किसने सुनायी प्रवीर? सब झूठ है।’’

‘‘तो सच क्या है बताइए ना मम्मी? क्या आप और मृत्युंजय अंकल विवाह पूर्व ही एक-दूसरे के नजदीकी मित्र ना थे, पापा से शादी के बाद आपको लगा कि इतने सीधे, साधारण व्यक्ति के साथ आपका गुजारा संभव नहीं, तो आपने संबंध विच्छेद के लिए उन पर झूठे आरोप लगाए। फ्लैट और निर्वाह राशि के लिए कोर्ट में आवेदन किया। सब कुछ आपकी योजनानुसार हुआ, बस गड़बड़ यह हुआ कि सारी सचाई मेरे सामने आ गयी।’’

‘‘तुम्हें झूठी, मनगढ़ंत बातें बतायी गयी हैं।’’

‘‘झूठ-सच का फर्क कर सकता हूं, पापा ने अपने मुंह से एक शब्द आपके विरुद्ध नहीं कहा, लेकिन फिर भी मैं सब कुछ जान गया हूं। आपने अंकल से चुपचाप कोर्ट मैरिज कर ली, क्योंकि इस रिश्ते को जगजाहिर करने पर आपको अनुबंध राशि ना मिलती।’’

उधर सन्नाटा छा गया, मम्मी एकबारगी चुप हो गयीं।

‘‘खैर छोडि़ए मम्मी, आप अंकल के साथ सुखपूर्वक रहिए। आपने मेरे लिए बहुत कुछ किया, मैं आपसे बहुत प्यार करता हूं, बेटे का फर्ज निभाऊंगा, किंतु अभी मैं पापा के पास जा रहा हूं। उनको, मेरे वृद्ध बीमार दादा-दादी को मेरी जरूरत है।’’

‘‘प्रवीर ! तुम इस तरह मुझे अकेला नहीं छोड़ सकते !’’

‘‘आप अकेली कहां है, अंकल आपके साथ हैं, मैं भी आता रहूंगा, मां हैं आप मेरी।’’

‘‘प्रवीर ! याद रखना, मैंने कोर्ट से तुम्हारी कस्टडी ली थी, जिसमें तुम्हारे पिता से तुम्हारी एक निश्चित दूरी तय थी। तुम्हें पाने के लिए पुनः कोर्ट का दरवाजा खटखटाऊंगी, तुम्हारे पिता मुश्किल में पड़ जाएंगे।’’

‘‘मम्मी, आप मुझे धमकी दे रही हैं। याद रखिएगा मैं 25 वर्ष का हो गया हूं, अपनी मरजी से कहीं भी रह सकता हूं। कोर्ट में आपके फरेब का पर्दाफाश कर सकता हूं।’’

उस ओर पुनः खामोशी छा गयी, कुछ देर बाद मम्मी की सिसकियों की आवाज आयी। उन्होंने कहा, ‘‘मुझसे भूल हो गयी बेटा, मुझे माफ कर दो, लौट आओ।’’

‘‘आऊंगा मम्मी, लेकिन पिता के प्रति भी मेरा कुछ दायित्व है। पापा अब आपको निर्वाह राशि नहीं भेज पाएंगे। बहुत आर्थिक कष्ट उठाया है उन्होंने, उनके बोझ को कम करने जा रहा हूं, आपको और मृत्युंजय अंकल को नए जीवन की शुभकामनाएं,’’ कह कर मैंने फोन काट दिया। टैक्सी आ गयी थी, सारा सामान लाद कर मैंने फोन से पापा को सूचित किया, ‘‘पापा, मैं आ रहा हूं, रात का खाना संग खाएंगे।’’

‘‘आओ बेटा, हम सब तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं,’’ पापा ने उत्फुल्ल स्वर में कहा।

मैंने फोन काट दिया, मेरे चेहरे पर संतोषपूर्ण मुस्कराहट फैल गयी।