Tuesday 23 April 2024 11:54 AM IST : By Rinki Verma

कायापलट

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चैत महीने की सुबह कितनी खुशनुमा होती है। ठंड बीत जाने के बाद गरमी के आगमन की शुरुआत होती है। पतझड़ खत्म होते ही नयी-नयी कोपलों का फूटना वातावरण को एक सुखद अहसास से भर देता है।
सुबह-सुबह लॉन में एक गरम चाय के प्याले के साथ बैठी मृदुला जी इन्हीं खयालों में खोयी हुई थीं। जिंदगी भी ऐसी ही होती है। कुछ पुराने अहसास छूट जाते हैं और नए अहसास पनप जाते हैं, जो बेहद सुखद होते हैं। अभी कुछ दिनों पहले तक इसका अहसास भी कहां था। सुबह की ताजी हवा में जो बात होती है, वह एसी के बंद कमरों में कहां। सोचते हुए यादों की परत दर परत खुलती चली गयी।

बच्चे थे, तो घर कितना भरा-भरा रहता था। समय का बिलकुल पता ही नहीं चलता था। अपने लिए फुरसत के कुछ पल का मिलना मुश्किल था। पति विकास की अपनी व्यस्तता थी, जिस वजह से दोनों बच्चों की जिम्मेदारी पूरी तरह से मृदुला जी पर थी। उनके कॉलेज, कोचिंग, हॉबी क्लासेज सभी की व्यवस्था करने में ही दिन बीत जाता था। इन्हीं सब कामों में समय कब बीत गया पता ही नहीं चला। अहसास तो तब हुआ जब दोनों बेटे हॉस्टल चले गए। घर बिलकुल सूना हो गया। कुछ दिन तक तो ऐसा लगा जिंदगी में भरी व्यस्तताअों के बाद कुछ आराम का पल आया है। पर यही आराम धीरे-धीरे खालीपन में बदलने लगा। तन को आराम मिला, तो मन बीमार हो गया। एक अजीब सा सन्नाटा अंदर-बाहर फैल गया। मृदुला जी हमेशा उदास और चुपचाप रहने लगीं। यंत्रवत घर के सारे कामकाज निपटातीं और खाली समय में बेचैन हो उठतीं। पति विकास अपने कामों में ही व्यस्त होते।

‘‘आज तबीयत ठीक नहीं क्या,’’ एक दिन यों ही पूछ लिया विकास जी ने।

चौंक उठी मृदुला जी, ‘‘नहीं बस ऐसे ही, ठीक ही हूं,’’ धीरे से उन्होंने जवाब दिया।

‘‘कई दिनों से देख रहा हूं, कुछ ठीक नहीं लग रही हो। आज शाम को ही तुम्हारा चेकअप करवाता हूं, वे मेरे दोस्त डॉक्टर हरेंद्र हैं ना, उनसे ही। तुम शाम को तैयार रहना,’’ थोड़े से फिक्रमंद हो गए विकास।

शाम को अनमने मन से मृदुला जी डॉक्टर को दिखाने चली गयीं।

‘‘ये मेरी पत्नी हैं और मृदुला ये हैं डॉक्टर हरेंद्र।’’

‘‘हेलो,’’ कह कर डॉक्टर हरेंद्र ने मुस्करा दिया।

मृदुला जी ने एक औपचारिक निगाह डाली और जवाब में मुस्करायीं।

‘‘क्या तकलीफ है आपको?’’

‘‘जी कुछ नहीं, बस थोड़ी तबीयत ठीक नहीं।’’

‘‘आइए देखता हूं।’’ जैसे ही डॉक्टर हरेंद्र ने आला लगा कर चेकअप शुरू किया, मृदुला जी की आंखें डॉक्टर हरेंद्र के गंभीर चेहरे पर टिक गयीं। गजब का आकर्षक व्यक्तित्व था डॉक्टर हरेंद्र का। आंखों की गहराई दिल में उतरती चली गयी। उनकी आवाज से मंत्रमुग्ध हो उठीं मृदुला जी।

‘‘कोई भी गंभीर बात नहीं, सब कुछ नाॅर्मल ही है। तीन दिन की दवा लिख रहा हूं, तीन दिन बाद आप मुझे दिखा लीजिएगा। उसके बाद दवा कॉन्टिन्यू करूंगा,’’ कह कर डॉक्टर हरेंद्र ने दवा की पर्ची पकड़ा दी।

‘‘आप डॉक्टर हरेंद्र को कब से जानते हैं,’’ मृदुला जी ने गाड़ी में अनायास ही पूछ लिया ।

‘‘काफी पहले से। बस औपचारिक सी दोस्ती है, डॉक्टर अच्छा है इसलिए तुम्हें दिखा दिया।’’

मृदुला जी चुप हो गयीं, पर मन बेचैन हो उठा, जैसे डॉक्टर हरेंद्र के बारे में आज ही सब कुछ जान लेना चाहती हों।
इन 3 दिनों में मृदुला जी की हालत अजीब सी हो गयी। हर समय डॉक्टर हरेंद्र का चेहरा सामने आ जाता। उनके ही खयालों में खोयी रहतीं। उनको खयाल में रखते हुए दवा एकदम समय से लेतीं। कभी खुद से ही सवाल करतीं, ‘यह मुझे क्या हो रहा है’, ‘मैं क्यों सोच रही हूं डॉक्टर हरेंद्र के बारे में।’ बार-बार झटक कर इस सोच से बाहर निकलने की कोशिश करतीं।

पर शायद लंबे समय से सूखी पड़ी दिल की मिट्टी किसी का सान्निध्य पा कर नम हो चुकी थी। प्रेम का बीज फूटने को आतुर था। एक नए अहसास का जन्म हो चुका था।

मृदुला जी के 3 दिन कशमकश और बेचैनी में गुजरे।

‘‘सुनिए आज दवा खत्म हो गयी, शाम को डॉक्टर को दिखाना है,’’ खुद को संभाल कर बोल पड़ीं मृदुला जी।

‘‘हां, याद है मुझे,’’ कह कर विकास अपने काम के लिए निकल गए।

मृदुला जी का सारा दिन बेचैनी में कट गया। ‘शाम को कौन सी ड्रेस पहनूं और हां, बालों को तो खुला ही रखूंगी। जूड़े में तो उम्र भी अधिक लगती है।’ गौर से अपने चेहरे को शीशे में देखने लगीं। उम्र निशानियां छोड़ने लगी है। मैं अपना बिलकुल खयाल नहीं रखती। इसी ऊहापोह में पूरा दिन गुजर गया।

शाम को विकास जी का फोन आया, ‘‘सुनो, आज एक जरूरी काम निकल आया है, डॉक्टर के पास कल चलते हैं।’’

‘‘नहीं...’’ मृदुला जी जैसे चीख पड़ीं, फिर अचानक खुद को संभाल कर कहने लगीं, ‘‘नहीं, थोड़ी तबीयत ठीक नहीं लग रही है। आप कहें, तो मैं खुद ही चली जाती हूं, पास में ही तो है।’’

‘‘अोके,’’ काम की जल्दबाजी में बोल पड़े विकास।

मन मांगी मुराद मिली हो जैसे। आज अकेले मिलूंगी और मन की सारी बात कह दूंगी। इन्हीं विचारों में खोयी हुई पहुंच गयीं डॉक्टर हरेंद्र के क्लीनिक।

बाहर थोड़ा इंतजार करना पड़ा, क्योंकि मरीजों की भीड़ थी। एक-एक पल भारी लग रहा था। आखिर मृदुला जी का नंबर आया और अंदर जाते ही डॉक्टर हरेंद्र का मुस्कराता चेहरा सामने आया।

‘‘और मैडम, क्या हाल है,’’ पूछ लिया डॉक्टर हरेंद्र ने।

‘‘जी बिलकुल ठीक,’’ चहक उठीं मृदुला जी।

‘‘इंप्रूवमेंट तो दिख रहा है। आइए देखता हूं।’’

जैसे ही डॉक्टर हरेंद्र करीब आए, मृदुला जी की धड़कनें तेज हो गयीं। मन के भाव छुपाते हुए भी नहीं छुप पा रहे थे। और हरेंद्र डॉक्टर जो ठहरे, मन के भाव को अच्छी तरह समझ गए। एक गहरी नजर से देखा मृदुला जी को। फिर धीरे से मुस्करा दिए।

डॉक्टर हरेंद्र दवा लिख रहे थे, तभी मृदुला जी बोल पड़ीं, ‘‘डॉक्टर साहब, क्या मैं आपसे बात कर सकती हूं, जब मेरी इच्छा हो?’’

‘‘बिलकुल, ये लीजिए मेरा फोन नंबर,’’ डॉक्टर हरेंद्र ने दवा के साथ ही लिख दिया, ‘‘और हां, इस बार दवा एक हफ्ते की है। हफ्तेभर बाद आप दिखाइएगा।’’

‘‘जी,’’ कह कर उठ गयीं मृदुला जी।

तीन-चार दिन तो मृदुला जी को खुद को संभालने में ही लग गए। फिर हिम्मत कर फोन कर ही बैठीं।

‘‘हेलो,’’ डॉक्टर हरेंद्र की गंभीर आवाज सुनते ही हड़बड़ा उठीं, ‘‘क्या मैं आपसे बात कर सकती हूं।’’

‘‘हा-हा-हा...’’ एक हंसी के साथ जवाब दिया डॉक्टर हरेंद्र ने, ‘‘जी बिलकुल मैडम, और बताइए क्या हाल है।’’

‘‘हाल बेहाल है,’’ अनायास ही बोल पड़ीं मृदुला जी।

‘‘अरे ! क्या हो गया?’’ पूछा डॉक्टर हरेंद्र ने।

‘‘कुछ नहीं बस ऐसे ही। आपसे बातें करने का मन था इसलिए,’’ औपचारिक बातों के बाद मृदुला जी ने फोन रख दिया।

फिर तो यह सिलसिला चल पड़ा, हर 2-3 दिन के अंतराल पर बातें हो जातीं। मृदुला जी खुश रहने लगीं। मृदुला जी में आश्चर्यजनक बदलाव दिखने लगा। सुबह उठ कर मॉर्निंग वॉक करने लगीं। डाइट चार्ट फॉलो करने लगीं। शरीर को छरहरा बनाने की कोशिश करने लगीं। तरह-तरह के फेस पैक और हेअर पैक का इस्तेमाल शुरू हो गया। बीच-बीच में डॉक्टर हरेंद्र से बातें भी होती रहीं और मिलना भी होता रहा। एक महीने में पूरी कायापलट हो गयी।

इधर विकास मृदुला जी में आए परिवर्तन से काफी खुश थे। मृदुला जी को देख कर उन्हें काफी अच्छा लग रहा था। उनकी चिंता काफी हद तक दूर हो गयी थी।

एक सुबह मृदुला जी ने डॉक्टर हरेंद्र को फोन किया, ‘‘मैं आपसे मिलना चाहती हूं। क्या मैं आपके पास आ सकती हूं?’’

‘‘श्योर मैडम। आ जाइए। फाइनली एक बार आपका अच्छे से चेकअप कर दूं। वैसे आप बिलकुल ठीक हो चुकी हैं।’’

फोन बंद कर मृदुला जी कमरे से जैसे ही बाहर निकलीं, पति विकास ने बांहों में भर लिया, ‘‘तुम बिलकुल ठीक हो गयी। मैंने बिलकुल सही डॉक्टर को तुम्हें दिखाया। वैसे क्या जादू किया डॉक्टर हरेंद्र ने तुम पर,’’ हंसते हुए कह रहे थे विकास।

घबरा सी गयीं मृदुला जी, जैसे कोई चोरी पकड़ी गयी हो। खुद को संभालते हुए धीरे से कहा, ‘‘कुछ नहीं, उन्होंने दवाइयां ही ऐसी दीं, जो मुझे सूट कर गयीं। शाम को चेकअप के लिए बुलाया है, जाऊंगी।’’

‘‘ठीक है, दिखा लेना। मैं निकलता हूं,’’ कह कर निकल गए विकास।

जिस पल का बेेसब्री से इंतजार था मृदुला जी को, वह पल सामने था। वे डॉक्टर हरेंद्र के सामने बैठी थीं।

‘‘आप तो बिलकुल निखर गयीं मैडम,’’ मुस्करा रहे थे डॉक्टर हरेंद्र।

‘‘जी, आपका ही असर है,’’ मृदुला जी एक झटके में बोल उठीं।

‘‘मतलब !’’ चौंक उठे हरेंद्र।

‘‘मैं आपसे अब और नहीं छुपाना चाहती, मैं आपसे प्यार करने लगी हूं,’’ अधीर हो उठीं मृदुला जी।
डॉक्टर हरेंद्र मृदुला जी की बातें सुन कर थोड़ी देर शांत रहे। फिर गंभीर हो कर कहना शुरू किया, ‘‘आप जो कह रही हैं, उसे समझ भी रही हैं। कभी सोचा है इसका परिणाम क्या होगा। हम दोनों की अपनी-अपनी फैमिली है। हम पहले से ही सामाजिक रिश्तों में बंधे हैं। क्या यह समाज हमें इसकी इजाजत देता है।’’

‘‘मुझे समाज की परवाह नहीं,’’ बिफर पड़ीं मृदुला जी, ‘‘अपनी खुशी के लिए एक-दूसरे का साथ ही तो चाह रहे हैं। क्या हमें हक नहीं अपनी जिंदगी जीने का।’’

‘‘बेशक सही चाह रहे हैं, पर यह चाहत बहुत कुछ बिखेर देगा,’’ कह उठे हरेंद्र, ‘‘आपके अंदर जिस अहसास ने जन्म लिया है, वह बहुत खूबसूरत है। प्रेम ऐसा ही होता है। यह कभी भी, कहीं भी, किसी से भी हो सकता है। हम इसे कैसे जीते हैं, यह हम पर निर्भर करता है। प्यार कभी भी किसी को रिक्त नहीं करता। प्यार हमें भर देता है चारों तरफ से। आपके अंदर जिस प्यार ने जन्म लिया है, उसे अपने परिवार पर लुटाइए। आप अपने परिवार के साथ जितना खुश रहेंगी, आपको देख कर मुझे उतना ही अच्छा लगेगा। जरा सोचिए। कल आपके पति आपके बारे में जानेंगे, तो क्या सोचेंगे। आपके बच्चे बड़े हो गए हैं, उनका सोचिए। मेरा क्या है, मैं तो मर्द हूं, मुझे ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा। पर आप तो औरत हैं, वह भी एक सम्मानित परिवार की। मैं यह नहीं कहता कि कुछ गलत है, पर जो है उसके साथ हमें विवेक के साथ चलना है। ये आपके अहसास हैं, इन्हें संभाल कर रखिए और खुद को भी संभालिए,’’ कह कर डॉक्टर हरेंद्र शांत हुए।

मृदुला जी की आंखों से लगातार आंसू निकल रहे थे। उन्हें पूरी दुनिया घूमती नजर आयी। चक्कर खा कर वहीं बैठ गयीं।

डॉक्टर हरेंद्र ने उन्हें हौले से उठाया, पानी पिलाया और उनके हाथों को अपने हाथों में लेते हुए बहुत ही शांत और प्यारभरे अंदाज में कहा, ‘‘मेरी कही हुई हर बात को शांति से और गंभीरता से सोचिएगा। आपको आपका जवाब मिल जाएगा। मैं उम्मीद करता हूं कि आप समझेंगी।’’

मृदुला जी धीरे से उठीं, शरीर जैसे निष्प्राण हो गया हो। थके कदमों से घर की अोर चल पड़ीं।

पूरी रात डॉक्टर हरेंद्र की बातें दिमाग में घूमती रहीं। सुबह थोड़ी देरी से सो कर उठीं और यंत्रवत अपने काम में लग गयीं।

पर शायद जो बीज खुदबखुद दिल की गहराई में जमा हो, वह कभी किसी के मिटाने से नहीं मिटता। धीरे-धीरे एक सप्ताह बीत गया। जब मृदुला जी का मन शांत हुआ, तो उन्हें डॉक्टर हरेंद्र की बातें सही लगने लगीं। उनके मन में डॉक्टर हरेंद्र के लिए इज्जत और बढ़ गयी। सोचने लगीं वे क्या करने जा रही थीं। कदम कैसे भटक गए। मन ही मन ईश्वर का धन्यवाद किया। यह सोच कर खुश हुईं कि उनके अहसास एक सही इंसान से जुड़े, जो उन्हें सही रास्ता दिखा रहा है। होंठों पर एक मुस्कराहट फैल गयी और डॉक्टर हरेंद्र का नंबर डायल करने लगीं।
उधर डॉक्टर हरेंद्र बेचैन हो उठे। ना जाने कैसी होंगी मृदुला। दिल का एक कोना सुगबुगा उठा था। कोई बीज इधर भी अंकुरित हो चुका था। पर पुरुष मन ज्यादा संयत होता है। शायद तरलता की कमी होती है, इसलिए शांत ही थे डॉक्टर हरेंद्र।

‘‘क्या मैं आपसे एक बार मिल सकती हूं,’’ मृदुला जी ने फोन मिला कर बिना किसी औपचारिकता के पूछ लिया।

‘‘श्योर,’’ हरेंद्र ने जवाब दिया।

‘‘ठीक है, मैं शाम को आती हूं,’’ कह कर मृदुला जी ने फोन रख दिया।

डॉक्टर हरेंद्र के सामने बैठी मृदुला जी कह रही थीं, ‘‘मैं बस आपको धन्यवाद कहने आयी हूं, आपने मुझे सही रास्ता दिखाया। जो हुआ मैंने जानबूझ कर नहीं किया। मेरे अंदर एक अहसास ने स्वयं जन्म ले लिया, जिसे मैं खोना नहीं चाहती। मैं आपसे प्यार करती हूं और करती रहूंगी, पर मेरा वादा है अब मैं इसे आपके सामने आने भी नहीं दूंगी। बस मेरी एक इच्छा थी कि मैं एक बार आपके सीने से लग जाऊं,’’ आंखें तरल हो उठीं मृदुला जी की।

एक गहरी दृष्टि से देखा डॉक्टर हरेंद्र ने। धीरे से कहा, ‘‘पहली बार और आखिरी बार,’’ कह कर बांहें फैला दीं डॉक्टर हरेंद्र ने।

वह एक पल का मिलन जन्म-जन्मांतर का हो गया। थोड़ी देर बाद दोनों ही अपनी आंखें पोंछ रहे थे। मृदुला जी अपने घर की तरफ लौट रही थीं और डॉक्टर हरेंद्र विकास को फोन कर रहे थे, ‘‘सर जी, मैडम बिलकुल ठीक हैं, थोड़ा समय निकाल कर ले जाइए किसी हिल स्टेशन पर। थोड़ा हवा-पानी बदल जाएगा। एक-दूसरे के साथ क्वाॅलिटी टाइम बिताइए, अच्छा होगा।’’

‘‘थैंक्यू डॉक्टर, मैं बहुत खुश हूं। आज ही टिकट करवाता हूं,’’ विकास ने जवाब दिया। एक हफ्ता मसूरी की हसीन वादियों में गुजारने के बाद विकास और मृदुला जी कल शाम को लौट आए।

तभी मृदुला जी ने देखा विकास भी उठ गए थे और लॉन में आ कर पीछे से उनके सिर पर अपना सिर टिकाते हुए बोले, ‘‘एक कप चाय तो पिला दीजिए मैडम।’’

‘‘जी अभी लायी,’’ कह कर हंसती हुई मृदुला जी घर के अंदर आ गयीं।