Thursday 25 April 2024 03:17 PM IST : By Kusum Bhatt

पार्क में लड़की भाग-2

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आज लड़की ने सोचा उसके इस फैसले से उस पर असर जरूर होगा। आखिर यह कोई छोटा मोटा फैसला तो था नहीं, कभी घर ना लौटने का बड़ा फैसला था। वह उनकी आवाज सुनने को छटपटा रही थी। उसने जोर से कहा कि उसके सिर में तेज दर्द हो रहा है, कोई उसे डॉक्टर को दिखा सकता है? पर वे सब पति, सास, ससुर, देवर बुत बने रहे। उसने कहा कि उसके पास दवा के लिए पैसे नहीं हैं, उन्होंने जैसे सुना ही नहीं।

अब वह पति के पास जा कर चिल्लायी, ‘‘बहरे हो क्या? मुझे पैसे चाहिए, खुद ही दवा ले आती हूं।’’ पति ने टीवी का वॉल्यूम और तेज कर दिया। उसे इतना गुस्सा आया कि सामने रखा पेपरवेट टीवी पर मार कर चकनाचूर कर दे, पर वह कुछ ना कर सकी और हताश हो कर बोली, ‘‘मैं जा रही हूं, अब नहीं लौटूंगी।’’ पति के कान पत्थर हो गए, वह फिर रसोई में गयी। सास खाना बना रही थी। एक हाथ से कमर पकड़ रखी थी, दूसरे से कुकर में दाल डाल रही थी। उसने रसोई का दरवाजा बजाया, ‘‘मैं जा रही हूं... अब नहीं लौटूंगी...।’’ सास ने सुना नहीं, खटर-पटर में लगी रही। वह ससुर के पास गयी, ससुर टेलर मास्टर थे, कपड़ा सिल रहे थे, उसने जोर से कहा, ‘‘मैं जा रही हूं, लौटूंगी नहीं अब...’’

उनके पांव चलते-चलते रुक गए, एक उड़ती नजर दरवाजे पर डाली, फिर खट-खट मशीन चलने लगी। लड़की भीतर से फड़फड़ा उठी, किसी को भी उसके होने ना होने से कोई फर्क नहीं पड़ता? अंतिम उम्मीद ले कर वह देवर के कमरे में गयी। वह प्राइवेट स्कूल में गेम्स टीचर था, आज छुट्टी थी। वह खाने का इंतजार कर रहा था। लड़की उसके कमरे की देहरी पर जा कर चिल्लायी, ‘‘तुम बच्चों के बीच रहते हो। एक तुम ही इस घर में मनुष्य हो, बाकी सब राक्षस हैं। तुम मेरा दुख समझ सकते हो...’’ देवर जोड़-घटाव करने में व्यस्त था। उसने नजर उठा कर देखा, दरवाजे को काला साया निगल रहा है ! क्षणभर को उसकी रूह कांपी, फिर वह व्यस्त हो गया। लड़की को लगा देवर ने उसकी तरफ खुली आंखों से देखा है, तो उसकी बात जरूर सुनेगा, उसने आवाज में जबरन मिठास घोलते हुए कहा, ‘‘मैं घर छोड़ कर जा रही हूं, अब नहीं लौटूंगी।’’ इस बार उसकी आवाज में बारिश की गंध थी। वह दरवाजा पकड़ कर कुछ देर खड़ी रही... फिर हताश हो कर अपने कमरे में गयी, पर्स खोला पर्याप्त रुपए थे। इतने में बहुत सारी दवा आ सकती थी, पर उसे सिर्फ सिर दर्द था और अपने सुरसा मुख की तरह फैलते अहंकार का बुखार।

दिनभर सड़क पर फिरती लड़की शाम के झुटपुट में पार्क में जा कर थोड़ी देर बैठी, तो हल्की-हल्की बूंदें टप-टप गिरने लगी। किशोर प्रेमिल जोड़ा भी अपने-अपने बसेरे में जाने के लिए एक-दूसरे का हाथ पकड़े अपनी चमकती बाइक के पास जाने लगा था।

रात के 10 बज गए, तो दुकानों के शटर भी खट-खट बंद हो रहे थे। अमावस की रात, अब लड़की को डर लगने लगा, उसे लगा था कि घर वाले उसे फोन करते-करते थक जाएंगे, पर वह फोन नहीं उठाएगी। लड़की पार्क से बाहर निकलने लगी, तो चौकीदार ने देख लिया। वह लपक कर आया और जमीन में डंडा बजाया, ‘‘ए लड़की ! कहां से आ रही है इतनी रात में?’’

उसने चौकीदार को देखा। अक्खड़, बदतमीज आदमी, इसे शायद कानून नहीं पता कि लड़की के साथ बदतमीजी करने पर क्या सजा हो सकती है, कौन सी धारा लगेगी? वह सोचने लगी, बता दूं इसे...?

चौकीदार और नजदीक आया, ‘‘मुंह में जबान नहीं है? घर से भागी है क्या?’’

वह जाने कैसे चुपचाप सुनती रही और सिर झुका कर आगे बढ़ने लगी।

चौकीदार चिल्लाया, ‘‘घर जा सीधे... वरना पुलिस को फोन कर दूंगा...’’

उसने फिर गेट पर डंडा मारा और गेट बंद कर ताला मार कर उसके पीछे लपका, ‘‘ए लड़की... कोई मुसीबत है तो बता... घर कहां है तेरा... छोड़ दूंगा... वह कोने में खड़ी साइकिल ले आया, ‘‘चल बैठ...’’

‘‘नहीं... मेरे पति ने कहा था इंतजार करना... मैं आऊंगा। वे किसी काम से बाजार गए हैं, आने वाले होंगे,’’ उसने पीछा छुड़ाने की गरज से कह तो दिया पर अब कहां जाए...? आंखों के आगे तारे नाचने लगे। कहां जाए... कहां? बड़बड़ाते हुए वह घर की ओर जाती सड़क पर लड़खड़ाते कदमों से चलने लगी- बुआ के घर?

नहीं... बुआ तो उससे पहले ही नाराज थी कि उसने उसकी बेटी का घर भी बर्बाद करना चाहा, वह कई बार चिंकी की ससुराल जा चुकी थी।
अनायास उसके पांव उसी सड़क पर मुड़ने लगे, जहां से आयी थी। बारिश की बूंदें अब रिमझिम में तब्दील होने लगीं, तो लड़की को रोना आ गया- आज उसके साथ कुछ अनहोनी जरूर होगी। पर्स सिर पर रख कर वह तेज चलने लगी। हवा से उसका कुरती-पलाजो गुब्बारे सा फूल कर उड़ने को होने लगा। ठंडी हवा पलाजो के भीतर घुस कर टांगों में बर्फ जमा रही थी, वह जितनी तेजी से चलने की कोशिश करती, उतना ही पीछे सरकती। उसने मुड़ कर देखा, उसका दुपट्टा चुपचाप पैदल आते एक युवक के हाथ में है, उसने दुपट्टा खींचा और रोबदार आवाज में कहा, ‘‘ये क्या बदतमीजी है, कौन हो तुम..? पुलिस आती होगी... भागो यहां से...’’

तभी दो युवक और पीछे से मोटर साइकिल में आए, ‘‘अच्छा तो धमकी भी देती है !’’ उन दोनों ने उसका दुपट्टा हवा में उड़ाया। एक लड़के ने दौड़ कर दुपट्टा खींच लिया। दो लड़के उसे पकड़ने लगे। वह भागने लगी, पर उन्होंने हवा के मानिंद आगे से जा कर उसको कमर से पकड़ लिया। अंधेरी रात, वर्षा की झड़ी, तीन गुंडों के बीच फंसी लड़की अब अपने विनाश के लिए तैयार हो जैसे, ‘‘मुझे छोड़ दो, मैं वैसी लड़की नहीं हूं... वो बस गुस्से में घर छोड़ कर आ गयी थी,’’ वह हिम्मत जुटा कर इस तरह बोलने लगी जैसे ‘वैसी’ लड़की ना समझ कर ये तीनों उसे छोड़ देंगे। पर वे तीनों उसे नोचने लगे, ‘‘चुपचाप हमारे साथ चल, वरना यहीं पर...’’ एक ने उसकी छाती पर नोच लिया, लड़की का संतुलन गड़बड़ाने लगा, उसे लगा कि उसका बलात्कार करके, उसकी हत्या कर उसे सड़क पर फेंक दिया जाएगा, कल अखबार में उसकी कुचली देह की फोटो छपेगी। उसे अपनी करनी पर बेहद पश्चाताप होने लगा। वह कातर प्रार्थना करने लगी। लड़के उसे खींचते-नोचते ले जा रहे, वह छुड़ाने की कोशिश करती, वे और नोचते, थप्पड़ भी मारते। उसके कपड़े फटने लगे, एक ने स्वेटर खींच कर हवा में फेंक दिया। एक ने कुरती पकड़ी और चर्र फाड़ दी। वह चिल्लायी, तो एक ने उसका मुंह बंद कर दिया, वह होश खोने वाली थी कि दूर कोई रोशनी चमकी, पलक झपकते ही लड़के मोटर साइकिल में भाग गए। वह लड़खड़ा कर गिरने वाली थी कि किसी ने उसे थाम लिया।