‘‘अन्नु, कल अपने ऑफिस से छुट्टी ले लेना। हमें कल पूजा आंटी की बेटी की सगाई में शामिल होने जाना है,’’ रत्ना ने किचन में काम करते हुए अपनी बेटी से कहा।
‘‘मां, तुम्हें पता है ना आजकल मैं ऑफिस से छुट्टी नहीं ले सकती हूं। ऑफिस में कल बहुत जरूरी मीटिंग है, आप पापा या करण को अपने साथ ले जाओ।’’
‘‘नहीं, मुझे तुम्हारा कोई बहाना नहीं सुनना है। वहां पापा या करण का कोई काम नहीं है। पूजा आंटी ने अपनी एक फ्रेंड को भी बुलाया है। वे अपने बेटे के लिए लड़की देख रहे हैं। आंटी ने तुम्हारे बारे में उनसे जिक्र किया था, तो वे तुम्हें देखना चाहते हैं। इसलिए तुम्हारा चलना जरूरी है,’’ रत्ना ने अन्नु पर थोड़ा गुस्सा होते हुए कहा।
‘‘मां, तुम भी ना। यह नया तरीका निकाला है मुझे दिखाने का। वैसे भी मैं अभी शादी नहीं करना चाहती हूं,’’ उसने लगभग खीजते हुए कहा।
25 साल की अन्नु शुरू से ही खुले विचारों को मानने वाली थी, हालांकि एक कंजरवेटिव और मध्यमवर्गीय परिवार उसे विरासत में मिला था, पर जब भी उसे मौका मिलता था, वह जिंदगी को अपनी शर्तों पर जी लिया करती थी। उसके पिता चाहते थे कि अनु बस ग्रेजुएशन करे और उसके बाद उसका विवाह करके जिम्मेदारियों से मुक्त हुआ जाए, लेकिन अन्नु ने ग्रेजुएशन के बाद कंप्यूटर में डिप्लोमा किया और फिर पढ़ाई के बाद दिल्ली की एक कंपनी में नौकरी कर ली थी। लेकिन अब अचानक विवाह की बात सुन कर वह चौंक गयी थी।
‘‘हां, नया तरीका निकाला है। अब तुम शादी के लायक तो हो गयी हो। तुम्हारे साथ की लड़कियों की तो शादी भी हो चुकी है,’’ रत्ना ने कहा।
‘‘मां, तुम जानती हो मुझे यह सब बिलकुल पसंद नहीं है। मैं कोई सामान नहीं हूं, जो अपनी प्रदर्शनी करने जाऊं।’’
‘‘तो... ऐसे ही तो देखना-दिखाना होता है। ...तुम आजकल की लड़कियां जरा सा घर से बाहर क्या निकल जाती हो, सब कुछ अपने हिसाब से ही करने का सोचने लगती हो,’’ रत्ना ने किचन से ही अन्नु को डांटते हुए कहा।
लेकिन अन्नु नए खयालात की लड़की थी। उसे बदलाव का जीवन चाहिए था, ‘‘मां, तुम्हारे समय में जो होता था, जरूरी नहीं है अब भी हो। मेरा कल ऑफिस जाना जरूरी है। अगर इतना ही है, तो हम भी तो लड़केवालों के यहां जा कर देख सकते हैं।’’
रत्ना के हाथ से बरतन सिंक में जोर की आवाज से जा गिरा था। वह किचन से निकल कर सीधा कमरे की ओर चल पड़ी। उसके कमरे में पहुंचने से अन्नु समझ गयी थी कि मां को उसका इस प्रकार से कहना अच्छा नहीं लगा है। अन्नु को भी लगा कि उसे ऊंची आवाज में अपनी मां से बात नहीं करनी चाहिए थी। अन्नु इससे पहले बात संभालती, रत्ना गुस्से में अन्नु पर टूट पड़ी थी।
‘‘तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है। लड़के वाले ही लड़की को देखने आते हैं। यह रीतिरिवाज सदियों से चला आ रहा है। अब पूजा आंटी की बेटी की सगाई हो रही है, तो लड़केवालों को उन्होंने अपने घर बुलाया है, ना कि वे लड़केवालों के यहां गयी है... तुम आजकल के बच्चे जरा सा पढ़-लिख कर बाहर नौकरी क्या करने लग जाते हो, तुम्हें लगता है तुम समाज के सारे नियमों को बदल कर रख दोगे। देखो अन्नु, हमने अपनी हैसियत से बाहर जा कर तुम्हें पढ़ाया और नौकरी भी करने दी, इसका मतलब यह नहीं कि अब तुम अपनी जिंदगी के फैसले भी खुद ही करने लगोगी। कल तुम्हें मेरे साथ चलना है मतलब चलना है समझी,’’ रत्ना ने गुस्से में अन्नु को कह दिया।
अन्नु ने आगे कुछ ना कहना ही ठीक समझा, पर उसका मन किसी के सामने प्रदर्शनी का सामान बनने के लिए तैयार नहीं हो रहा था। आखिर ऐसा क्या हो जाएगा, अगर रिवाजों को बदल दिया जाएगा तो। उसे भी तो अधिकार है कि वह लड़के वालों को कहे कि वह लड़के को देखना चाहती है।
अन्नु को इन रीतिरिवाजों से नफरत सी होने लगी थी। सच ही तो है, आजकल जहां लड़कियां लड़कों के साथ कदम से कदम मिला कर चल रही है, वहां केवल एक ही पक्ष को अधिकार है कि वह अपने जीवनसाथी को देखे और अपनी पसंद-नापसंद जाहिर करे। आज के समाज में नयी गूंज तो सुनायी दे रही है, लेकिन वह सौ प्रतिशत नहीं है। आज भी मध्यमवर्गीय परिवारों में पुराने रीतिरिवाज कायम हैं।
अन्नु अपनी वजह से अपने माता-पिता को कोई दुख देना नहीं चाहती थी। इसलिए उसने कुछ ना कहना ठीक समझा और वह अपने ऑफिस को मेल करके अपनी कल की छुट्टी की सूचना देने बैठ गयी।
अगले दिन सुबह से ही मां ने सगाई में जाने के लिए तैयारी शुरू कर दी थी। सगाई का मुहूर्त साढ़े 11 बजे का था। अन्नु के पहनने के लिए रत्ना ने एक बहुत ही सुंदर साड़ी निकाल दी थी। अन्नु चुपचाप मां की कही बातों पर अमल कर रही थी, पर उसके मन के भीतर अभी भी एक युद्ध चल रहा था। युद्ध अपने अधिकार और बराबरी का था।
अन्नू गुलाबी रंग की साड़ी में गुलाब का फूल लग रही थी। रत्ना ने बेटी को देखते ही बलैया ले लीं। अन्नु चुपचाप मां को देखती रही। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे और क्या नहीं। दोनों जाने के लिए घर से बाहर निकल आयीं। अन्नु के पिता ने हल्की सी मुस्कराहट के साथ गाड़ी का दरवाजा अन्नु के लिए खोल दिया। पिता की मुस्कराहट अन्नु को इस समय मात्र एक कमजोर सहारा लग रही थी। वह जानती थी कि उसके पिता मां और उसके बीच हुए कल के विवाद को ठंडा करना चाहते थे। रास्तेभर तीनों के बीच एक खामोशी सी पसरी रही। अन्नु के मन के भीतर ज्वारभाटा जैसी हलचल हो रही थी। पूजा आंटी का घर आ चुका था। अपने भीतर हलचल समेटे पर होंठों पर खामोशी लिए अन्नु गाड़ी से नीचे उतर गयी। अन्नु के पिता ने दोनों को पूजा आंटी के घर के सामने छोड़ कर अपने ऑफिस का रास्ता पकड़ लिया था। जहां रत्ना बहुत ज्यादा उत्साहित थी, वही अन्नु चुपचाप थी।
तभी रत्ना ने उसे देखते हुए कहा, ‘‘अन्नु बेटा, थोड़ा चेहरे पर मुस्कराहट तो ले कर आओ... सब लोग देखेंगे, तो क्या कहेंगे।’’
अन्नु का मन किया कि वह अपनी मां से कहे कि वह यहां कैसे खुश रह सकती है, जबकि वह जानती है कि वह यहां दिखाए जाने के उदेश्य से लायी गयी है और उसे यह अहसास हर समय होता रहेगा कि किसी की नजरें उसे घूर रही हैं। लेकिन अन्नु ने समय की नजाकत को समझ कर फीकी मुस्कराहट का चोला ओढ़ लिया।
दोनों घर के भीतर चली गयीं। सगाई वाला घर था। फूलों से सजा हुआ था। घर का कोई भी कोना ऐसा नहीं था कि जो अपनी सुंदरता से आकर्षित ना कर रहा हो। तभी पूजा आंटी सामने से आती हुई दिखायी दीं। उन्होंने बड़े ही प्यार से रत्ना को गले लगाया। फिर रत्ना के पीछे खड़ी अन्नु को लगभग उन्होंने चूम ही लिया था। अन्नु ने भी हंस कर पूजा आंटी को गले लगाते हुए बधाई दी। कुछ औपचारिक बातें होने के बाद पूजा रत्ना और अन्नु को घर के भीतर ले आयी। घर में मेहमानों का जमावड़ा लगा हुआ था। लेकिन अन्नु अपने आपको इस भीड़ में सहज महसूस नहीं कर पा रही थी। उसे हर पल लग रहा था जैसे कोई उसे घूर रहा है। कुछ देर बाद सगाई की रस्म हो चुकी थी। सभी खाने-पीने का आनंद ले लगे। रत्ना पूजा का हाथ बंटाने में व्यस्त हो गयी थी।
अन्नु अपने आपको इस माहौल में असहज महसूस करने लगी थी। उसने हाथ में शरबत का गिलास लिया और पूजा आंटी के घर की बालकनी में जा पहुंची। अपने आपको अकेला कर अन्नु को थोड़ी राहत महसूस हुई। आखिर उसका मन अभी भी बेचैन था। वह अपने आपको आने वाली मुलाकात के लिए तैयार करने लगी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि हमेशा ऐसा ही क्यों किया जाए। क्या इन रिवाजों को बदला नहीं जा सकता है?
अभी वह अपने खयालों में खोयी हुई ही थी कि पीछे से किसी की आवाज उसके कानों में सुनायी दी, ‘‘हेलो, आप अन्नु जी हैं ना?’’ अन्नु ने ‘हां’ में सिर हिलाया और उस नौजवान को देखने लगी।
‘‘मैं अजय हूं... पूजा आंटी के बेटे का दोस्त...’’ अजय ने अपना परिचय शालीनता से दिया।
अन्नु ने मुस्कराहट के साथ धीरे से अजय का अभिवादन स्वीकार किया, लेकिन अन्नु को संशय हो रहा था कि अजय उसका नाम कैसे जानता है।
अन्नु के हावभाव को देखते ही अजय समझ गया और उसने कहा, ‘‘एक्चुअली... नीचे पूजा आंटी आपको ढूंढ़ रही थीं। वे चाहती थीं कि आप खाना खा लें। वे और मेहमानों को भी देख रही थीं, तो मैंने उन्हें कहा कि मैं आपको ढूंढ़ कर लाता हूं।’’
‘‘लेकिन आपने मुझे पहचाना कैसे,’’ अन्नु ने आश्चर्य से अजय से पूछा।
‘‘पूजा आंटी ने ही बताया कि आपने गुलाबी रंग की साड़ी पहनी हुई है,’’ अजय ने अपनी सफाई में मुस्कराते हुए कहा।
‘‘ओह ! तभी आपने मुझे तुरंत पहचान लिया,’’ अन्नु भी अजय की समझदारी देख कर मुस्कराए बिना ना रह सकी।
‘‘जी, वैसे अगर आपको अभी भूख ना लगी हो, तो क्या मैं आपके साथ थोड़ी देर बैठ सकता हूं। वो क्या है ना... मैं अकेला बोर हो रहा हूं... मेरा दोस्त तो बहन की सगाई का सारा काम देख रहा है। मेरे लिए उसने कोई काम ही नहीं छोड़ा है, इसलिए आपको एतराज ना हो, तो मैं...’’ अजय ने अन्नु के सामने अपना प्रस्ताव झिझकते हुए रखा। वह जानता था एक अजनबी लड़के के साथ शायद कोई भी लड़की इतनी जल्दी कंफर्टेबल नहीं होगी, इसलिए उसने अन्नु से परमिशन लेना जरूरी समझा था।
अन्नु को इसमें कोई बुराई नजर नहीं आयी। वैसे भी वह अपने मन में चल रहे द्वंद्व से थोड़ी देर के लिए निजात पाना चाहती थी। अजय का उससे बात करना उसे अच्छा लग रहा था। अन्नु ने अजय को अपने साथ बैठने की अनुमति दे दी। दोनों ने एक दूसरे से औपचारिक बातें ही की। अन्नु को अजय से बात करना अच्छा लग रहा था।
तभी अजय ने अन्नु से कहा, ‘‘अन्नु जी, अगर आपको बुरा ना लगे, तो मैं आपसे एक बात पूछना चाहता हूं।’’
‘‘जी, पूछिए,’’ सोफे पर बैठते हुए बोली।
‘‘आपका शादी के बारे में क्या खयाल है... मेरा मतलब है कि आप अपनी शादी को ले कर कुछ तो सपने देखती होंगी,’’ अजय ने थोड़ा सकुचाते हुए अन्नु से कहा था। आखिर अभी दोनों की मुलाकात हुए कितना ही समय हुआ था। इतने कम समय की मुलाकात में पर्सनल प्रश्न शायद अन्नू को नाराज भी कर सकता था।
अजय का प्रश्न सुन कर अन्नु ने अजय को आश्चर्य से देखा। उसको लगा कि आखिर अजय उससे शादी के बारे में क्यों पूछ रहा है। एक शंका सी उसके चेहरे पर छा गयी थी। अजय अन्नु के चेहरे को देख कर समझ गया कि शायद अन्नु को उसका यह प्रश्न पसंद नहीं आया है। उसने तुरंत कहा, ‘‘सॉरी, अगर आप नहीं बताना चाहती हैं, तो कोई बात नहीं है... मैंने तो बस ऐसे ही पूछ लिया था... शादी का माहौल है ना इसीलिए...’’
अन्नु ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है... लेकिन मेरी राय शादी को ले कर अलग है। मुझे लगता है कि जब आप मेरी राय सुनेंगे, तो मुझे एक सिरफिरी लड़की समझेंगे।’’
‘‘तब तो मुझे आपकी राय जरूर सुननी चाहिए,’’ अजय ने हंसते हुए कहा।
अन्नु की नजरें कमरे के फर्श पर टिक गयी थीं। उसने एक लंबी सांस भरी, ‘‘एक्चुअली मैं चाहती हूं कि लड़की वाले लड़के वालों के यहां जाएं। आजकल जब हम लड़का-लड़की एक समान की बात कर रहे हैं, तो फिर इन रिवाजों में फर्क क्यों करें। अगर लड़की लड़के को देखने जाती भी है, तो इसमें क्या बुराई है। आप ही बताइए, क्या लड़के या उसके परिवार को ही अधिकार है कि वही सब देखे। लड़का ही तो शादी नहीं कर रहा है ना। लड़की भी तो अपने माता-पिता को छोड़ कर अपना सारा जीवन एक ऐसे घर में बिताने वाली होती है, जिसके बारे में वह जानती भी नहीं है।’’
अन्नु ने अपने अंदर भरे गुबार को अजय के सामने रख दिया था। वह नहीं जानती थी कि अजय उसके बारे में क्या सोचेगा, पर उसने अपनी बात कह कर हल्कापन महसूस किया था।
उसकी बात सुन कर अजय के चेहरे पर एक मुस्कराहट दौड़ पड़ी थी और उसने कहा, ‘‘अन्नु जी, आप बिलकुल ठीक कह रही हैं। जब हम समानता की बात कर रहे हैं, तो फिर इन रीतिरिवाजों में असमानता क्यों... आखिर हम नयी पीढ़ी के हैं और अगर नए रिवाज अच्छे हैं, तो उन्हें अपनाने में गुरेज क्यों।’’
अचानक अजय उठ कर खड़ा हो गया। उसने अन्नु की ओर देखते हुए कहा, ‘‘अन्नु जी, अगर आप कल शाम को फ्री हों, तो क्या आप कल अपने परिवार के साथ मेरे घर चाय पर आ सकती हैं।’’

अचानक से चाय का निमंत्रण मिलने से अन्नु ने आश्चर्य से अजय को देखा, क्योंकि उन दोनों की मुलाकात हुए कुछ ही समय बीता था। वह कुछ समझ पाती, तभी उसको रत्ना के साथ एक शालीन महिला आती हुई दिखायी दी। अन्नु रत्ना से कुछ पूछने के लिए आगे बढ़ी ही थी कि उस महिला ने कहा, ‘‘अन्नु, मैं अजय की मां हूं। हमने तुम दोनों की बात सुन ली है। मैंने अपने बेटे और बेटी को समान रूप से पाला है, इसलिए मैं चाहती थी कि मेरी आने वाली बहू को भी समानता का अधिकार मिले। हम लोग तुम्हें यहां देखने आए हैं और तुम इस देखने-दिखाने के रिवाज से खुश नहीं हो। यह बात तुम्हारी मां ने पूजा को बता दी थी और पूजा ने मुझसे इस बात का जिक्र कर दिया था। हम सभी का यह मानना था कि तुम बिलकुल ठीक कह रही हो। वैसे भी अजय शादी से पहले अपनी होने वाली पत्नी के विचारों को जानना चाहता था। वह नहीं चाहता था कि उसकी होने वाली पत्नी को कभी भी असमानता का अहसास हो।’’
अजय की मां ने रत्ना जी की ओर देखते हुए कहा, ‘‘बहन जी, इस रिश्ते के लिए अन्नु का राजी होना जरूरी है। नापसंद होने पर भी कोई बात नहीं, हम समझेंगे कि हमें नए दोस्त मिल गए हैं।’’
रत्ना के पास तो जैसे शब्द ही नहीं थे। उसकी आंखों से उसकी खुशी झलक रही थी।
अजय ने अपनी मां के गले में हाथ डाल कर कहा, ‘‘मां, नए रिवाज अच्छे हैं... तो क्या आप तैयार हैं अपने लड़के को दिखाने के लिए...’’
‘‘बिलकुल तैयार हैं,’’ अजय की मां ने हंसते हुए कहा।
वातावरण में सभी की खिलखिलाहट गूंज उठी थी। मुस्कराहट के साथ अन्नु की आंखों में आंसू झलक आए थे। उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि वह नए रिवाजों की नींव रखने जा रही है।