सुबह घर को व्यवस्थित करते-करते मैंने अपने हैंडबैग से अपना मोबाइल फोन निकाला, जो कल रात से ही बैग में पड़ा था। कल रात से ही क्यों यों कहिए कल दोपहर से... जब मैं मॉल के लिए घर से निकली तब से। छोटे भाई का विवाह है, कुछ खास खरीदारी करनी थी, इसीलिए कल दिन का खाना खा कर मॉल के लिए रवाना हो गयी।
वहां सभी स्टोर्स में घूमते-घुमाते सांझ ढल गयी। मैं थक कर रात का खाना बाहर ही खा कर घर आ कर सो गयी। सुबह जब मोबाइल फोन देखा, उसमें मेरी सहेली के पति का मैसेज था- क्या आप मुझे एक लाख रुपए उधार दे सकती हैं। मेरी पत्नी अस्पताल में है और मुझे अस्पताल का बिल चुकाना है।
जैसे ही यह मैसेज मैंने देखा... मुझे मन में बड़ी आत्मग्लानि सी हुई... ओह मेरी सहेली को रुपयों की आवश्यकता है और मैं अब मैसेज देख रही हूं। मैंने झट से अपने पति को ऑफिस में फोन किया, ‘‘सुनो, मेरी सहेली को मदद चाहिए... उसके पति ने फोन में मैसेज किया है... क्या करूं?’’
‘‘कौन सहेली?’’ मेरे पति ने रूखे से स्वर में पूछा।
‘‘वही, जो अभी कुछ माह पहले हमारे नीचे के नवें फ्लोर में रहने आए हैं।’’
‘‘वो हमारे बेटे के दोस्त रोहन की मां?’’ पतिदेव ने पूछा।
‘‘हां वही, उसका नवां महीना चल रहा था ना...शायद अब अस्पताल में एडमिट है... अचानक से रुपयों की जरूरत आन पड़ी होगी... तभी उसके पति ने मैसेज किया।’’
‘‘उसके पति से तुम्हारी बातचीत होती है?’’ मेरे पति ने प्रश्नात्मक लहजे में पूछा।
‘‘नहीं, कभी नहीं हुई... शायद बहुत रिजर्व टाइप के हैं... मैं जब भी उनके घर में गयी दूसरे कमरे में ही बैठे रहते हैं... कभी आमना-सामना नहीं हुआ।’’
‘‘हम्म, पर ऐसी ही कोई मजबूरी होती, तो वह मुझसे बात करता... जैसे तुम उनकी पड़ोसिन हो... मैं भी तो उनका पड़ोसी हूं।’’
मुझे अपने पति नीलेश की रूखी बातें सुन कर उन पर बहुत गुस्सा आया।
‘‘कैसे हो तुम नीलेश... तुम शायद उनकी मदद करना ही नहीं चाहते,’’ कह कर मैंने फोन काट दिया।
मन आत्मग्लानि से भर गया था... सोच में पड़ गयी ऐसे समय में भी कोई मदद ना करे, तो कितना बुरा लगेगा मेरी सहेली इशा को... पर मैं मजबूर बेचारी कहां से एक लाख रुपए लाती। सो मन मसोस कर रह गयी।
4 दिन पिछले 9 माह को सोचते हुए काटे...
‘‘मम्मा, ये है मेरा दोस्त रोहन...’’ मेरे बेटे ने अपने दोस्त से परिचय करवाते हुए कहा था।
दोनों बच्चे एक ही स्कूल में पढ़ते थे और रोहन व उसका परिवार हमारे अपार्टमेंट में किराए पर रहने आए थे। रोहन की मां को कभी उसके साथ ना देखा, तो पूछ लिया, ‘‘तुम्हारी मां कभी तुम्हारे साथ क्यों नहीं आतीं।’’
‘‘आंटी, मेरी मां को डॉक्टर ने बेड रेस्ट दिया है.. इसलिए सारे दिन घर में सोयी रहती है, मेरे घर में छोटा भाई आने वाला है।’’
‘‘ओह ! मतलब तुम्हारी मां प्रेगनेंट हैं।’’
रोहन मेरी बात सुन सिर्फ मुस्करा दिया।
अब अकसर वह मेरे बेटे के साथ ही खेलता...वैसे भी पूरे अपार्टमेंट में ये दोनों ही इस स्कूल में पढ़ते थे, बाकी सब बच्चे दूसरे स्कूलों में थे।
वर्षा ऋतु अपने जोरों पर थी और मुंबई की बरसात... जब शुरू हो, तो थमने का नाम नहीं लेती। अब बच्चे खेलें, तो आखिर कहां। सो मैं रोहन को अपने घर में बुला लेती... दोनों बच्चे आपस में खेल कर बहुत खुश होते... अब ये दोस्त कम भाई ज्यादा लगने लगे थे।
कभीकभार मेरा बेटा भी रोहन के घर जाता...अकसर छुट्टी के दिन तो वह उसके ही घर होता। तभी रोहन का जन्मदिन आया... अपार्टमेंट के कुछ बच्चों को जन्मदिन की पार्टी में बुलाया गया... लेकिन रोहन की मां ने मेरे बेटे के साथ मुझे भी आने को जोर दिया।
मैंने भी सहर्ष निमंत्रण स्वीकार लिया और उसके जन्मदिन पर उपहार ले कर पहुंच गयी। सभी मेहमानों से मैं अनजान थी... अधिकतर लोग उनके रिश्तेदार व पुराने मित्र थे... अपार्टमेंट के लोगों में से सिर्फ मैं और रोहन के कुछ मित्र थे। तभी रोहन की मां बोली, ‘‘आओ, आपको मैं अपनी सास से मिलवाती हूं।’’
सास का नाम सुनते ही मेरी आंखों के सामने अधपके काले-सफेद बालों वाली वृद्धा की तसवीर उभर आयी। लेकिन जैसे ही उसकी सास दिखी, जैसे मेरी आंखें कुछ गलत देख रही हैं या कान गलत सुन रहे हो, ऐसा अहसास हुआ।
मैंने फिर से रोहन की मां से पूछा, ‘‘क्या परिचय करवाया तुमने इनका?’’
वह बोली, ‘‘मेरी सास हैं ये... रोहन की दादी।’’
‘‘क्या !’’ मेरे मुंह से निकला, तो वह खुद भी हंसने लगी।
खैर, उस समय तो मुझे अपने मन में आए सवालों को जबान पर लाना उचित ना लगा, किंतु अगले ही दिन जब मैं अपने बेटे को लेने उनके घर गयी, तो बात ही बात में मैंने जबान पर अटका सवाल आगे बढ़ा दिया।
‘‘तुम्हारी सास ऐसी मॉडर्न... सुंदर... वेस्टर्न कपड़े... ब्लोंड हेअर... हाई हील... और तुम ऐसी देसी... तुम्हारी सास ने तुम्हें पसंद कैसे किया !’’
वह जोर-जोर से हंसने लगी और बोली, ‘‘बेटा को पसंद आ गए हम।’’
‘‘ओह ! तो तुम्हारी लव मैरिज है?’’
वह फिर जोर-जोर से हंसने लगी और ठहाका लगा कर बोली, ‘‘शादी के लिए हमारा देखना-दिखाना एक होटल में हुआ था... मेरी सास को देख कर मेरा भाई बोला कि दीदी चलो, किसी हाल में यह रिश्ता नहीं होगा... किंतु मेरे पति ने मुझे देख कर हामी भर दी... तो यह रिश्ता हो गया।’’
मैं भी मुस्करा कर उसकी पूरी बात सुन अपने बेटे को ले कर वहां से आ गयी।
एक दिन रोहन की मां का फोन आया, ‘‘क्या करूं, काम वाली पिछले 2 दिन से नहीं आ रही...अपार्टमेंट में और किसी को तो जानती नहीं सो सोचा आपसे बात करूं।’’
‘‘ओह, आपने फोन पर बात की उससे?’’ मैंने पूछा।
‘‘फोन तो उठा ही नहीं रही... ना कोई खबर ना ठिकाना, बेड रेस्ट है, तो कुछ कर भी नहीं सकती...पिछले 2 दिन के जूठे बरतन रखे हैं और घर भी खूब गंदा है।’’
‘‘अच्छा, तुम चिंता ना करो... मैं अपनी काम वाली को भेज देती हूं।’’
मैंने अपनी काम वाली से कहा कि तुम थोड़ा समय निकाल कर कुछ दिन रोहन के घर काम कर लो। उसने मेरी बात मान सहर्ष वहां काम किया।
पांच महीने बीत गए, अब रोहन की मां को छठा महीना लगा था... पेट का उभार भी अब कपड़ों से झलकने लगा था।
वैसे तो वर्षा ऋतु जोरों पर थी... किंतु पिछले 4 दिन से पानी नहीं बरसा था, सो मुझे लगा पास के पार्क में बहुत दिनों बाद मिट्टी सूखी है... क्यों ना अपने बेटे को वहां खेलने ले कर जाऊं।
फिर सोचा रोहन को भी साथ ले लूं... दोनों बच्चे अब कहां एक-दूसरे के बिना रहते हैं। सो रोहन की मां को फोन किया, ‘‘रोहन को ले जाऊं पार्क में...दोनों साथ खेलेंगे, तो उन्हें अच्छा लगेगा।’’
‘‘हां-हां क्यों नहीं...’’ वह बोली और मैं दोनों बच्चों को पार्क ले गयी। उस दिन उसने मुझे बहुत धन्यवाद किया।
‘‘इसमें कैसा धन्यवाद... आखिर इसमें मेरा भी फायदा है... दोनों बच्चे साथ में खेल लिए और मैंने शांति से अपनी सैर की।’’
एक दिन सुबह के समय मुझे बाहर कुछ काम था... दोनों बच्चों की छुट्टी थी... जैसे ही बाहर निकलने के लिए सोचा रिमझिम शुरू हो गयी। मैंने सोचा कहां पानी में बेटे को ले कर जाऊंगी, सो उसे रोहन के घर छोड़ते हुए मैं बाहर चली गयी।
कुछ ही देर में एक अनजान नंबर से फोन कॉल आयी। जैसे ही फोन उठाया मेरे बेटे की आवाज सुनायी दी। मैं घबराहट में बोली, ‘‘हां बोलो बेटा, क्या हुआ? तुम कहां पर हो? किसके फोन से कॉल किया?’’ एक ही साथ मैंने उससे ना जाने कितने सवाल कर डाले।
वह बोला, ‘‘मां, ये रोहन के पापा का फोन है...बारिश थम गयी है... क्या मैं अपार्टमेंट के लॉन में खेलने जाऊं। रोहन के पापा ने कहा पहले तुम अपनी मां से पूछो इसीलिए फोन किया।’’
कितने समझदार और जिम्मेदार लोग हैं... मैंने मन ही मन सोचा... और मुस्करा कर अपने बेटे को लॉन में खेलने के लिए हामी भर दी। थोड़ी ही देर में अपना बाहर का काम निपटा कर मैं अपने अपार्टमेंट में आयी... रोहन और मेरा बेटा लॉन में नहीं थे...और झमाझम शुरू हो चुकी थी।
मैं सीधे रोहन के घर गयी... मेरे बेटे ने रोहन की शर्ट पहनी हुई थी... रोहन की मां मुझे देखते ही बोली, ‘‘दोनों बारिश में भीग गए थे... तो मेरे पति ने आपके बेटे को रोहन के कपड़े पहनने को दे दिए... आप नहीं मानोगी, लेकिन मेरे पति आपके बेटे को उतना ही प्यार करते हैं जितना रोहन को...उन्होंने स्वयं तौलिया ले कर आपके बेटे के बाल व पूरा शरीर पोंछा।’’
मेरे चेहरे पर मुस्कान तैर गयी और मन में भरोसे के भाव उमड़ पड़े, ‘चलो इतने बड़े अपार्टमेंट में एक घर तो ऐसा है, जहां कभी मजबूरी में अपने बेटे को छोड़ सकती हूं,’ यही सोचते-सोचते मैं अपने बेटे को ले कर लिफ्ट में आ गयी।
धीरे-धीरे रोहन की मां के 9 माह बीत गए... इन 9 माह में मैं अकसर रोहन की मां से मिलने उसके घर जाया करती और हमारे मन की बातों का आदान-प्रदान हो जाता।
उसके पति अकसर घर पर होते, सो एक दिन मैंने पूछा, ‘‘तुम्हारे पति आज ऑफिस नहीं गए?’’
‘‘आजकल घर से ही काम करते हैं... मुझे बेड रेस्ट है ना इसलिए... वैसे भी हमारा फैमिली बिजनेस है, जो रोहन की दादी संभाल लेती हैं।’’
एक दिन रोहन हमारे घर आया... ना जाने क्यों बहुत दिनों से एक विचार मन में उछालें मार रहा था, सो ना चाहते हुए भी पूछ लिया, ‘‘रोहन, तुम्हारी दादी कहां रहती हैं?’’
‘‘आंटी, दादी होटल में रहती हैं संजय अंकल के साथ,’’ उसने खेलते हुए कहा।
‘‘संजय अंकल !’’ मैंने फिर पूछा, लेकिन दोनों बच्चे खेलने में व्यस्त थे, सो रोहन ने मेरी बात का जवाब नहीं दिया। मैं भी काम में व्यस्त हो गयी और वह बात भूल भी गयी।
बस इसी तरह मिलते-जुलते रोहन की मां के 9 माह पूरे होने जा रहे थे। एक दिन मेरा बेटा रोहन के घर से आया और बोला, ‘‘मां, शायद रोहन के घर में बेबी आने वाला है...’’
मैंने पूछा, ‘‘तुम्हें किसने कहा?’’
‘‘मां, उनके घर में एक किताब है, जिसमें एक औरत का बहुत बड़ा पेट दिखाया है और उसके अगले पृष्ठ पर एक बच्चा उस औरत के हाथ में दिखाया है... उसमें अंग्रेजी में यह भी लिखा है कि 9 महीने पूरे होने पर बच्चा मां के पेट से बाहर आ जाता है। रोहन की मां का पेट भी उतना ही बड़ा है... मतलब बेबी आएगा अब।’’
उसकी मासूम सूरत पर जानकारी व उत्सुकता के भाव देख कर मेरा मन आश्चर्य से खिल उठा, ‘‘अच्छा ठीक है, अब तुम हाथ-मुंह धो कर खाना खा लो। जब रोहन के घर बेबी आएगा हम उसे देखने जाएंगे।’’
और आज जब उसके पति का मैसेज देख कर अपने पति से जो बात हुई... उफ कैसे नजरें मिलाऊंगी मैं रोहन की मां से... उसके बच्चे के लिए मुंहदिखाई का कुछ उपहार तो ले कर जाना ही होगा... क्या सोचेगी वह मेरे बारे में... दोनों बच्चों को भाई कहने वाली मैं... बुरा वक्त पड़ा, तो चुप्पी लगा कर बैठ गयी।
खैर, 5 दिन बीते... हर फोन कॉल पर मेरी धड़कन बढ़ जाती... ऐसा लगता जैसे अस्पताल से छुट्टी के समय जब उन्हें रुपयों की आवश्यकता होगी, तो शायद सहेली का फोन जरूर आएगा।
लेकिन अगले ही दिन उसके बच्चे का इंटरकॉम आया और बोला, ‘‘आंटी, मेरे घर में भाई आया है छोटा सा...’’
मैंने उसे बधाई देते हुए कहा, ‘‘हां आती हूं मैं तुम्हारे दोस्त को तुम्हारे घर ले कर तुम्हारा भाई देखने।’’
शाम को मैं हिम्मत जुटा कर अपने बेटे को ले कर उनके घर गयी। उसके घर की घंटी बजाते हुए लगा कि यदि उसके पति ने दरवाजा खोला, तो कैसे उनका सामना करूंगी... क्या बहाना बनाऊंगी मदद ना करने का।
जैसा सोचा वैसा ही हुआ... उसके पति ने दरवाजा खोला, किंतु बिना कुछ कहे अंदर चले गए।
अब मैं अपनी सहेली के पलंग के पास रखे छोटे स्टूल पर बैठी थी... दोनों बच्चे दूसरे कमरे में खेलने लगे थे। बात ही बात में मैंने अस्पताल का नाम पूछा... नाम सुना तो पाया वह तो काफी महंगा अस्पताल था... करीब एक घंटा वहां बैठी... हर एक पल भारी लग रहा था... और जब मेरी सहेली कुछ बोलने को मुंह खोलती, लगता अब वह रुपयों के बारे में बात करेगी।
किंतु ऐसा कुछ ना हुआ... मैं एक घंटे बाद अपने घर आ गयी... करीब एक महीने तक यही विचार मन में आता रहा... कभी तो वह उन रुपयों का जिक्र करेगी या अपनी तरफ से कुछ बात बना कर कहेगी, किंतु ऐसा कुछ ना हुआ।
लेकिन हां, मेरे पति ने एक दिन अचानक से पूछा, ‘‘क्या हुआ तुम्हारी उस सहेली का?’’
‘‘बेटा हुआ,’’ मैंने तल्खी से जवाब दिया, ‘‘जब मदद ही नहीं करनी थी, तो फिर इतना मतलब भी क्यों रखना।’’
‘‘हम्म, मैडम जी आप बहुत भोली हैं... यदि उसके पति को रुपयों की जरूरत थी, तो उसने अपनी पत्नी से जिक्र तो किया होगा... और यदि जिक्र किया होता, तो वह तुमसे इस बारे में जरूर बात करती... एक महीने से ऊपर हुआ... और अब तक कोई जिक्र ही नहीं।
‘‘मुझे ये लोग ठीक नहीं लगते हैं... सोचो रोहन की दादी का संजय अंकल के साथ रहना... 50 वर्ष की महिला के रहनसहन और बेटे-बहू के रहनसहन का फर्क... तुम्हारी सहेली के पति का हर वक्त घर में रहना... जब तुम उनके घर जाओ, तो सहेली द्वारा अपने पति से परिचय ना करवाना और पति का भी तुमसे कोई बात ना करना... लेकिन जब रुपयों की जरुरत आन पड़ी, तो तुम्हें मैसेज करना... जबकि ऐसी जरूरत हो, तो फोन तुम्हारी सहेली का आना चाहिए था या उसके पति मुझसे बात करते... कैसे कोई पुरुष एक महिला से एक लाख रुपए मांग सकता है, जबकि उस महिला से उसकी कभी बात ही ना हुई हो।’’
मैं नीलेश की बातें सुन सकते में आ गयी थी।
अगले दिन मैं पार्क में अपने बेटे को ले कर गयी। वहां कुछ महिलाएं भी बैठी थीं, जिनके बच्चे वहीं खेल रहे थे। मैं भी आज उनके पास जा कर बैठ गयी और बातें करने लगी। मेरा मन बहुत भारी था। ना जाने कितने सवाल मन में ज्वारभाटा उठाए हुए थे। मुझसे रहा ना गया और मैंने अपने साथ हुआ वाकया उन्हें बताया। मेरा मुंह खोलना था कि एक महिला बोल पड़ी, ‘‘तुम्हें अब समझ आया... जब वे लोग वहां पर नए रहने आए थे, हमें तो तभी उन पर शक हो गया था।’’
‘‘कैसा शक?’’ मैंने पूछा।
‘‘नवें फ्लोर वाला बंदा अपने बच्चे को ले कर यहां पार्क में आया करता था। कुछ ही दिनों में बच्चों से हिलमिल गया। बच्चों को स्लाइड पर चढ़ाने में मदद करता। और एक दिन...’’
‘‘एक दिन क्या...’’ मैं आगे सुनने को बेताब हो उठी।
‘‘एक दिन वो... कसम खाओ किसी को कहोगी नहीं, वरना फालतू में मेरा नाम आ जाएगा।’’
‘‘तुम पहले बताओ तो सही... एक दिन क्या...’’ मैंने घबराते हुए पूछा।
‘‘पहले यहां एक लेडी थी ना, जिसका पति मर्चेंट नेवी में था। एक दिन वह अपने बेटे को पार्क में छोड़ कर पार्लर चली गयी। नवें फ्लोर वाला बंदा उस समय पार्क में था। उसने बच्चे को अपने मोबाइल में नया गेम दिखाया, तो बच्चा उससे दोस्ती कर बैठा। दो-तीन दिनों में उसने बच्चे से दोस्ती बढ़ा कर एक दिन मोबाइल में उसे पोर्न वीडियो दिखाया। उसका बच्चा उस समय तो कुछ समझ ना पाया, किंतु उसके बाद उसने अपनी मां को सब बताया। उसकी मां ने हम सबको बताया, इसीलिए हम अपने बच्चों को उसके बच्चे के साथ खेलने नहीं देते थे। जैसे ही वह यहां आता, हम एक-एक कर यहांं से खिसक लेते।’’
‘‘उफ !’’ मेरे मुंह से निकला, ‘‘तो क्या उसने मेरे बच्चे के कपड़े इसीलिए बदले थे,’’ मेरे अंदर बिजली सी कौंध गयी थी।
तभी दूसरी बोली, ‘‘उस बच्चे की दादी देखी है तुमने, कितनी मॉड है ! देखो कुछ गड़बड़ है उनके परिवार में।’’
मैं घर आयी और अपने पति को सब कुछ बताया। मेरे पति का तो जैसे खून ही खौल गया।
मैंने अपने बेटे को खूब खंगाल कर पूछा, ‘‘उस दिन अंकल ने तुम्हारे कपड़े बदले, कहीं तुम्हें इधर-उधर छुआ तो नहीं।’’
लेकिन बात पुरानी हो चुकी थी, बेटे ने उसे याद करने में कुछ इंटरेस्ट नहीं लिया।
मेरे पति से रहा ना गया, तो सोसाइटी के वेलफेअर ऑफिस में गए और पूरा वाकया बता कर नवें फ्लोर से उनका घर खाली करवाने की गुजारिश की।
ऑफिस वालों ने उसके मकान मालिक को फोन किया, जोकि सिंगापुर में रहता था। उसने उन्हें एक महीने में मकान खाली करने का नोटिस दिया।
लेकिन अगले ही हफ्ते अपार्टमेंट में पुलिस आयी। मैं उस समय बाहर से आयी थी और लिफ्ट के आने का इंतजार कर रही थी। पुलिस मेरे से पहले लिफ्ट में गयी और नवें फ्लोर पर जा कर रुकी... मेरी धड़कन बढ़ गयी थी और मन में उथलपुथल मच चुकी थी कि जरूर कुछ दाल में काला है। मैं घर आयी और वॉचमैन को इंटरकॉम कर पूछा, ‘‘यह पुलिस क्यों आयी है नवें फ्लोर पर?’’
‘‘मैडम, नवें फ्लोर पर साब हैं ना, उनकी मां के बारे में कुछ पूछताछ कर रही थी पुलिस, हमें तो कुछ खास पता नहीं फिर वे सोसाइटी ऑफिस भी गए।’’
मैंने इंटरकॉम रख दिया और अपनी सहेलियों को इस बारे में खबर की। सब महिलाएं अपार्टमेंट में नीचे जमा हो गयी थीं। थोड़ी ही देर में पुलिस रोहन की दादी को ले कर आयी और रोहन के पिता भी साथ में थे।
वे तो चले गए, पर अगले दिन खबर अखबारों में थी और मेरे पति ने चाय की चुस्कियां लेते हुए सारी खबर पढ़ कर सुनायी। मालूम हुआ रोहन की दादी सेक्स रैकेट चलाती थी और होटलों में संपर्क कर वहां लड़कियां भिजवाती थी, जिसमें रोहन के संजय अंकल भी शामिल थे। रोहन के पिता पहले भी दूसरे अपार्टमेंट में लोगों से रुपए उधार ले कर चंपत हो गए थे।
अब मुझे मेरे पति की बातों में काफी सचाई नजर आ रही थी... तभी मुझे अहसास हुआ मेरे बेटे का रोहन के पिता के फोन से कॉल आना... कहीं वह मेरा नंबर लेने की तरकीब तो नहीं थी। उफ कैसा फरेब !
मैं अपने पति की समझदारी पर नाज और अपने आपको बाल-बाल बचा महसूस कर रही थी।