Wednesday 29 May 2024 03:49 PM IST : By Sangeeta Mathur

लेडीज फर्स्ट

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नाश्ते की टेबल पर अपनी ही उम्र के एक अजनबी शख्स को देख मीता चौंक उठी। ‘‘यह सुहास है मेरा भतीजा। कल रात को ही आया है। कबसे कह रही थी इससे कि कभी बुआ को भी याद कर लिया कर... लो गरम परांठा,’’ आंटी ने मीता की प्लेट में परांठा रखते हुए अपनी बात जारी रखी। मीता नाश्ता समाप्त कर उठ खड़ी हुई, ‘‘अच्छा आंटी, मैं चलती हूं। देर हो रही है।’’

मीता चली गयी, तो आंटी अपने परांठे भी सेंक लायीं और सुहास के संग नाश्ता करने लगीं, ‘‘मेरी सहेली है रितु, उसी की बेटी है मीता। एनआईटी से इंजीनियरिंग की है और अब यहां एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी लगी है। कंपनी की ओर से कुछ समय में फ्लैट मिल जाएगा, तब तक ऊपर वाले कमरे में रह रही है। मेरा भी मन लगा रहता है...’’

मीता ऑफिस पहुंची, तो सहकर्मियों में किसी गंभीर विषय को ले कर बहस छिड़ी हुई थी। पता चला महिला आरक्षण का मुद्दा फिर से गरमा उठा था। लंच में नेहा ने मीता को पकड़ लिया, ‘‘क्या बात है, तू कुछ बोली नहीं। सब अपनी-अपनी बात रख रहे थे। पुरुष सहकर्मी भी हमारे पक्ष में बोल रहे थे।’’

‘‘ढोंग रचते हैं ये। ऊपर से प्रगतिशील होने का दावा करते हैं और अंदर से पूर्वाग्रहों से जकड़े रहते हैं। मुझे तो उनका ‘लेडीज फर्स्ट’ का जुमला भी उपहास उड़ाता प्रतीत होता है। हम क्यों उनकी दया या सहानुभूति के पात्र बनें। हम अपने बलबूते पर ही सब कुछ हासिल करने का माद्दा रखते हैं।’’

शाम को घर लाैटते वक्त मीता हमेशा की तरह ही काफी लेट हो गयी थी। उफ, फिर 7 बज गए। आंटी इंतजार कर रही होंगी। मेरे इतना कहने के बावजूद वे मेरे लिए खाना ले कर बैठी रहती हैं। अजीब सा लगता है। पर क्या करूं... अच्छा नहीं लगता, खैर थोड़े दिनों की बात है।

विचारों में उलझी मीता अपने कमरे तक पहुंच गयी थी। बैग रख कर वह बिस्तर पर पसर गयी। फ्रेश हो कर कपड़े बदलने का सोच रही थी कि उसे आंटी के भतीजे का ख्याल आ गया। तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया। सुहास को ढकी हुई थाली लिए देख वह अचकचा गयी।

‘‘आंटी को जरूरी काम से गांव जाना पड़ गया। दो-तीन दिनों में लौटेंगी। आप खाना खा लीजिए।’’

पहला कौर मुंह में डालते ही मीता को अहसास हो गया कि खाना आंटी नहीं बना कर गयी हैं, सब्जी का स्वाद हट कर था। पर मीता को यह स्वाद भी खूब भाया। पता नहीं कहां से लाया है खाना।

सवेरे वह रोज से कुछ जल्दी तैयार हो कर नीचे पहुंची। ‘‘आप आ गयीं। मैं आप ही का इंतजार कर रहा था। आप ऑमलेट लेती हैं?’’

‘‘हं, हां... मैं बनाती हूं। आप हटिए।’’

अनाड़ी हाथों ने टोस्ट व ऑमलेट दोनों जला डाले थे। ‘‘कभी किचन में काम करने का मौका ही नहीं मिला,’’ मीता खिसियाने लगी।

‘‘कोई बात नहीं, आप दूध-कॉर्नफ्लेक्स लो। मैं तब तक दूसरा बना देता हूं,’’ सुहास ने फटाफट नाश्ता तैयार कर दिया। मीता वहीं खड़ी उसे देखती रही।

‘‘अब दूसरा मुझे सेंकने दीजिए।’’ इस बार सब कुछ अच्छे से हो गया। मीता एकदम खिल उठी।

‘‘आपको खाना बनाने का शौक कैसे लगा। यदि मेरा अनुमान सही है, तो रात को भी खाना आपने ही बनाया था।’’

‘‘जी बिलकुल। पसंद आया आपको?’’

‘‘बहुत। कुकिंग आपकी हॉबी है?’’

‘‘अं... मजबूरी में बनाना सीखा था। पर अब अच्छा लगता है। दरअसल मां काफी बीमार रहती हैं, तो मुझे उनकी मदद करनी ही पड़ती है।’’

नाश्ता करते वक्त मीता ने सुहास के बारे में जानकारी जुटायी। उसने बीकॉम, एमबीए किया था। चार-पांच प्रतियोगी परीक्षाएं दे चुका था। अभी तक कहीं सफलता नहीं मिलने से निराश था। आंटी बहुत दिनों से चेंज के लिए बुला रही थी। इसलिए उनसे मिलने आ गया था। कुकिंग में अपने तंग हाथ को ले कर अभी तक मीता को जो शर्मिंदगी महसूस हो रही थी, वह सुहास की शैक्षणिक योग्यता के बारे में जानने के बाद छूमंतर हो गयी। उसे स्वयं पर गर्व हो आया।
संक्षिप्त वार्तालाप के बाद मीता काम में ऐसी डूबी कि सुहास, आरक्षण सब दिमाग से गोल हो गए। देर शाम कमरे तक जाने के लिए जब सीढि़यों पर कदम रखा तभी उसे ख्याल आया कि आंटी नहीं हैं। उफ, फिर रसोई में हाथ बंटाना होगा। यह आंटी भी ना जाने कब लौटेंगी। मैं सुहास को बोल ही देती हूं कि मैं रात को खाना खा कर ही लौटूंगी। वह अपना मैनेज कर ले। लंच तो वैसे भी ऑफिस में हो ही जाता है। मीता यह सब सोच ही रही थी कि नीचे का दरवाजा खुला, ‘‘आप आ गयीं, फ्रेश हो लीजिए। सब्जी बन गयी है बस, गरम चपातियां सेंकनी हैं।’’

मीता समझ नहीं पायी कि वह इस बात का क्या अर्थ लगाए। वह उससे चपाती सेंकने की उम्मीद कर रहा है या उसे खाना गरम खिलाना चाहता है। पर अपने कमरे में जा कर वह देर तक बड़बड़ाती रही। यह अजीब मुसीबत हो गयी है। दिनभर ऑफिस में सिर खपाओ, फिर आ कर चूल्हे में सिर झोंको। इसे दो टूक जवाब देना ही होगा।

लेकिन सुहास का रवैया इतना विनम्रताभरा होता था कि वह कुछ भी उलटा-सीधा नहीं बोल पाती थी। रोटी सिंकवाते वक्त भी वह बराबर आग्रह करता रहा कि आप थकी हुई आयी हैं, आराम कीजिए। लेकिन उसका आग्रह और विनम्रता उलटा असर दिखाते थे। मीता पर मानो जुनून सवार हो जाता कि वह उसे दिखा दे कि वह ऑफिस-घर सब संभाल सकती है। इस जुनून का परिणाम यह निकला कि आड़ी-टेढ़ी नक्शों की आकृति में बनना आरंभ हुई रोटियां अंत तक आते-आते एकदम गोल हो गयीं। सुहास उसका बराबर उत्साहवर्धन करता रहा। मीता अपनी सारी थकान भूल गयी। लेकिन ऊपर कमरे में जाते ही ऑफिस की फाइल पर नजर पड़ते ही उसे बचा काम याद आ गया और इसके साथ ही उसे फिर थकान का सा अहसास होने लगा। पर यह काम तो उसे निबटाना ही था। आखिर प्रोजेक्ट रिपोर्ट की हिसाब फाइल में इतनी गड़बड़ कैसे आ रही थी। देर रात तक वह कैलकुलेटर पर जूझती रही। सवेरे बहुत देर से आंख खुली। उसने साेच लिया था कि तैयार हो कर सीधे निकल जाएगी और कैंटीन में ही कुछ खा-पी लेगी। लेकिन नीचे उतरी, तो सुहास परांठे की प्लेट लिए उसका इंतजार कर रहा था, ‘‘आप रात बहुत देर तक काम करती रहीं। मुझे लग रहा था सवेरे वक्त पर उठने में आपको परेशानी होगी...’’

‘‘क्या करूं? हिसाब की गड़बड़ पकड़ में ही नहीं आ रही थी। जब सारा सही हो गया, तभी चैन पड़ा और सो पायी... परांठे बनाए हैं, अच्छा लाओ फटाफट खा लेती हूं।’’ जल्दी से नाश्ता खत्म कर मीता ने ऑफिस की राह पकड़ी।

हमेशा की तरह चक्करघिन्नी की भांति ऑफिस का काम निबटाते वह देर रात तक ही घर लौट पायी। आज टेबल पर पूरा खाना बना हुआ रखा था। एक ओर उसके धुले कपड़े तहा कर रखे हुए थे। उन्हें देख मीता चौंक उठी। वह तो भूल ही गयी थी कि मशीन में उसके मैले कपड़े रखे हैं खाना खाते हुए वह बोल ही पड़ी, ‘‘आपने मेरे कपड़े क्यों धोए?’’

‘‘मैंने तो मशीन में जितने भी मैले कपड़े रखे थे, सारे धो डाले, ताकि आंटी पर आते ही काम का बोझ ना बढ़ जाए।’

‘‘हां, लेकिन मेरे... अच्छा आंटी कब आ रही हैं?’’

‘‘जमीन की रजिस्ट्री का काम था। कल तक हो जाने की उम्मीद है। तो शायद परसों तक लौट आएं।’’

इसके बाद दोनों में कोई बात नहीं हुई। खाना खत्म कर मीता ने अपने कपड़े उठाए, कुछ कहने के लिए मुंह खोलना चाहा, लेकिन फिर बिना कुछ बोले सीढि़यां चढ़ गयी। सुहास देर तक सोचता रहा कि मीता उससे क्या कहना चाहती थी। शायद धन्यवाद या कुछ और उसे इतना समझ आ गया था कि मीता को सुहास द्वारा उसके कपड़े धोना पसंद नहीं आया।

अगले दिन मीता ने जब सारा किस्सा नेहा को सुनाया, तो वह झूम उठी, ‘‘मुझे तो यह दिल का मामला लगता है। लड़का तुझ पर दिलोजान से फिदा हो गया है। वैसे सौदा बुरा नहीं है।’’

‘‘सौदा?’’ मीता बेतरह चौंक उठी, ‘‘‘क्या मतलब है नेहा तुम्हारा।’’

‘‘सीधी सी बात है। वह बेरोजगार है। यदि कमाऊ बीवी मिल जाए, तो घर का काम करने में भी क्या बुराई है। दिनभर ऑफिस में खट कर घर पहुंचो, तो गरम-गरम खाना और धुले हुए कपड़े मिल जाएं, ‘की और का’ की तरह तो फिर और क्या चाहिए। मीता, मैं तो कहती हूं हाथ बढ़ा और लपक ले मौका।’’

‘‘कैसी घटिया बातें कर रही है नेहा तू। मुझे तो पता ही नहीं है कि वह लड़का मेरे बारे में क्या सोचता है और तूने इतना कुछ सोच लिया।’’

‘‘मुझे तेरी बातों से जो नजर आया वो मैंने तुझे बता दिया। अक्ल की सीख भी दे दी। अब आगे तेरी मर्जी। वैसे मेरी जिंदगी में कोई ऐसा आया ना, तो मैं तो खुदा की नेमत समझ कर कबूल कर लूंगी,’’ नेहा ने अदा से आंख दबायी, तो मीता झुंझला उठी।

‘‘चल हट, तुझे तो हर वक्त मजाक सूझता है,’’ मीता ने नेहा को झिड़क तो दिया था, लेकिन उसकी बातें उसके दिमाग में घर कर गयी थीं।

‘‘क्या सुहास सचमुच उसके बारे में ऐसा सोचता है। वह खुद सुहास के बारे में क्या सोचती है। क्या उसे सुहास जैसा जीवनसाथी चाहिए। नहीं, कदापि नहीं, तो फिर वह उस भोले-भाले इंसान को किस मुगालते में रख रही है। आंटी के आने से पहले ही उसे उसकी गलतफहमी दूर कर देनी चाहिए। लेकिन कैसे? क्या कह कर? मीता जितना सोचती उतना, ही विचारों के मकड़जाल में उलझती चली जाती... एक उपाय हो सकता है। क्याें ना वही उसे डिनर पर ले जाए। खाना भी नहीं बनवाना पड़ेगा और रेस्टोरेंट में खाना खाते हुए वह बातों ही बातों में प्यार से उसे सब समझा देगी। इतना सब सोच लेने के बाद ही मीता काम में मन लगा पायी। शाम को जल्दी करते करते भी घर लौटने में 6 बज गए थे। मीता सोच रही थी वह महाशय रात का खाना बनाने रसोई में ना घुस जाएं। खैर, बना भी लिया होगा, तो भी वह उसे आज बाहर रेस्टोरेंट में ले जाएगी और शांति से सब समझा देगी। उसे उसी के घर में समझाना मीता को कुछ ठीक नहीं लग रहा था। आंटी के आने से पहले ही सब करना होगा।
मीता को देखते ही सुहास की बांछें खिल गयीं, ‘‘आप आ गयीं। मैं सोच ही रहा था कि काश आप जल्दी आ जाएं।’’ मीता का दिल धड़क उठा। कहीं नेहा का अनुमान सही तो नहीं था। सुहास ने आगे जो कुछ कहा, वह सुन कर तो मीता को यकीन हो गया कि नेहा जरा भी गलत नहीं थी।

‘‘मैं आपको बाहर खाना खिलाने ले जा रहा हूं। मुझे आपसे कुछ बात कहनी थी। सो मैं वहीं कहूंगा।’’

मीता को हैरानी से आंखें फाड़े देख वह आगे बोला, ‘‘आप ऐसे क्या देख रही हैं? क्या मैं आपको बाहर खाना खिलाने नहीं ले जा सकता?’’

‘‘नहीं... वो बात नहीं है। दरअसल मैं भी ऐसी ही कुछ प्लालिंग करके आयी थी... मुझे भी आपसे कुछ कहना था।’’

‘‘तो फिर चलते हैं। आप फ्रेश हो कर आ जाइए। मैं आपका इंतजार कर रहा हूं,’’ सुहास के होठों की मुस्कराहट को देख कर यह पता लगाना मुश्किल था कि उसके दिल के अंदर क्या चल रहा है। तैयार होते वक्त मीता को अब एक नयी ही चिंता खाए जा रही थी। उसके कुछ कहने-समझाने से पूर्व ही यदि सुहास ने प्रपोज कर दिया तो?

रेस्टोरेंट में दोनों ने ही एकांत कोने में बैठना पसंद किया। वेटर को ऑर्डर देने के बाद मीता सुहास की ओर मुखातिब हुई और गंभीर स्वर में बोली, ‘‘हां तो सुहास, आप क्या कहना चाह रहे थे।’’

मगर सुहास बहुत हल्के फुल्के मूड में था, ‘‘उहूं। पहले आप बताइए। आप क्या कहना चाह रही थीं। लेडीज फर्स्ट।’’

जिंदगी में पहली बार मीता को यह जुमला कानों में अमृत घोलता प्रतीत हुआ। इस जुमले ने उसे किसी भी अप्रिय स्थिति का सामना करने से बचा लिया था। अब वह पहले ही घुमा-फिरा कर सारी स्थिति स्पष्ट कर देगी। उसने राहत की सांस ले कर अपनी बात आरंभ की।

‘‘सुहास, मुझे कंपनी की ओर से फ्लैट मिल गया है और आंटी के आने के बाद मैं उसमें शिफ्ट हो जाऊंगी। ये कुछ दिन जो मैंने आपके साथ बिताए मुझे हमेशा याद रहेंगे। आपसे काफी कुकिंग सीख ली मैंने। सुहास, आप बहुत अच्छे इंसान है। बहुत नेकदिल साफ मनवाले, बेहद आत्मीय। मैं बहुत खुश हूं कि मुझे आप जैसा दोस्त मिला और एक दोस्त की हैसियत से मैं आपको एक सलाह भी देना चाह रही थी... बेशक आज भी लड़कियां जीवनसाथी के रूप में नेक लड़कों को पसंद करती है, पर...उनकी प्राथमिकता अपनी बराबरी वाला लड़का ढूंढ़ने की होती है। मसलन जो उनके बराबर...’’

‘‘कमाता हो, पढ़ा-लिखा हो... क्यों यही कहना चाह रही हैं ना आप। मैं आपका इशारा समझ रहा हूं। लेकिन मुझे घुमाफिरा कर बात करना नहीं आता। इसलिए मैं एकदम सपाट शब्दों में अपनी बात कह रहा हूं। मैं आपको यहां कोई प्रणय निवेदन करने नहीं लाया था। मां के बाद जिंदगी में यदि मैं किसी के जुझारूपन से प्रभावित हुआ हूं, तो वे आप हैं। मैंने आपमें सीखने, काम करने का जुनून देखा है। चाहे वह प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनाने का काम हो या रोटियां बेलने का, मैंने आपको हर जगह अपना शत-प्रतिशत देने का प्रयास करते देखा है। मेरी मां भी इतनी बीमार रहती हैं, लेकिन मैंने उन्हें कभी जिंदगी से हार मानते नहीं देखा। मुझे भी वे हमेशा ऐसा ही बनाने का प्रयास करती आयी हैं। लेकिन मैं हूं कि थोड़ी सी असफलता मिलते ही हताश हो जाता हूं। आपके काम करने के जुनून से मैं बहुत प्रभावित हुआ हूं। जब आप गोल रोटी बेलना सीखने के लिए अंतिम रोटी तक प्रयास कर सकती हैं, हिसाब की गड़बड़ पकड़ने के लिए रातभर जाग सकती हैं, तो मैं अपना कैरिअर बनाने के लिए और प्रयास क्यों नहीं कर सकता। क्यों हाथ पर हाथ धरे बैठा हूं। और जब तक मैं अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो जाता, घर बसाने की तो सोच भी नहीं सकता। मैंने लौट कर फिर से पढ़ाई में जुट जाने का फैसला कर लिया है। चूंकि आप मेरी प्रेरणा हैं। इसलिए मैं चाहता था जाने से पूर्व कम से कम आपको तो यह सब बता दूं कि जाने-अनजाने आप मेरी प्रेरक, मेरी गुरु बन चुकी हैं। मैं शायद अब आंटी के आने तक ना रुक पाऊं। कल सवेरे ही निकल जाना चाहता हूं। आप उन्हें समझा दीजिएगा।’’ आधा अधूरा खाना छोड़ दोनों घर लौट आए।

रातभर मीता सोच में डूबी रही। सवेरे उसके नीचे आने से पूर्व ही सुहास जा चुका था। मीता में शायद उससे नजरें मिलाने का साहस भी नहीं बचा था। लेकिन वह यह सोच कर खुश थी कि सुहास एक बार फिर से अपना कैरिअर बनाने की राह पर चल पड़ा था और इस बार उसके हौसले बुलंद थे। लेकिन लेडीज फर्स्ट जुमले से उसे फिर से नफरत हो गयी थी।