Thursday 05 October 2023 12:51 PM IST : By Nishtha Gandhi

पूर्वजों का श्राद्ध मनाने के पीछे कोई अंधविश्वास नहीं, बल्कि वैज्ञानिक कारण है

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श्राद्ध या पितृ पक्ष अश्विन मास में मनाए जाते हैं। हिंदू मान्यताओं  के अनुसार यह समय अपने पितरों या पूर्वजों को याद करने व उनके प्रति सम्मान दिखाने का है। ज्योतिषाचार्य डॉ. पूनम वेदी का कहना है, ‘‘पितृपक्ष के समय सूर्य कन्या राशि में होता है, इसलिए इस समय को कनागत भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस समय पितृ भी धरती पर आ जाते हैं। शतपथ ब्राह्मण में कहा गया है कि चंद्रमा के दूसरे हिस्से में पितरों का निवास है। चंद्रमा का एक पक्ष हमारे सामने होता है, जिसे हम देख सकते हैं। दूसरा पक्ष दक्षिण दिशा में होता है, जिसे हम कभी नहीं देख सकते। इसी दिशा को यम का घर माना गया है। अश्विन मास में पितृपक्ष के 15 दिन चंद्रमा पृथ्वी के अत्यधिक करीब आ जाता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार इन दिनों हमारे पूर्वज भी धरती पर आते हैं, जिनकी आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध किया जाता है।’’

देखा जाए, तो श्राद्ध मनाने के पीछे धार्मिक आस्था के साथ वैज्ञानिक तर्क भी जुड़े हैं। चंद्रमा मन का कारक है और जब यह धरती के बहुत नजदीक हो जाता है, तो हमारे मन पर प्रभाव डालता है। इन दिनों पूजा पाठ या कर्मकांड हमारे मन की शांति में मदद करते हैं। पहले जमाने में चातुर्मास में ना तो लोग कृषि से जुड़ा कोई काम कर पाते थे और ना ही लंबे समय तक होने वाली भारी बारिश के कारण कोई आयोजन या कहीं आना जाना ही हो पाता था। इसका सीधा असर मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। श्राद्ध या पितृ पक्ष में भी कोई शुभ कार्य बेशक नहीं किया जाता हो, लेकिन इन दिनों पूजा-पाठ और तर्पण आदि करने से मन में सकारात्मकता बढ़ती है।

चातुर्मास में कोई शुभ कार्य ना हो पाने के कारण ब्राह्मणों को दान-दक्षिण नहीं मिल पाती थी। पहले जमाने में उनके जीविकोपार्जन का मुख्य साधन यही था, इसलिए भी पितृ पक्ष की व्यवस्था की गयी होगी। इनके अलावा तेज वर्षा व नदी नाले भर जाने के कारण बरसात के दिनों में पशु-पक्षियों को भी भोजन ठीक से नहीं मिल पाता था, इसीलिए गाय, कौवे, कुत्ते, भिखारी को भी दान व भोजन देने की परंपरा शुरू की गयी थी। देखा जाए, तो ना सिर्फ पितृ पक्ष बल्कि जितने भी त्योहार सभी धर्मों में मनाए जाते हैं, वे सामाजिक व्यवस्था व स्थितियों में संतुलन बनाए रखने की दृष्टि से बनाए गए हैं। पूजा-पाठ से ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा मिलती है, दान, भंडारे व प्रसाद वितरण से गरीबों का पेट भरता है और पेड़ पर जल चढ़ाने, गाय व पशु-पक्षियों को दाना व चारा डालने से सभी तरह के जीव-जंतुओं के भरण पोषण की व्यवस्था होती है।

श्राद्ध के दौरान जब आप अपने पूर्वजों को याद करते हैं, उनके नाम से तर्पण करते हैं, तो आने वाली पीढि़यां भी अपने पूर्वजाें व वंशावली से परिचित होती हैं और जड़ों से जुड़ी रहती हैं। पहले जमाने में जब ना तो जन्म व मृत्यु प्रमाण पत्र होते थे और ना ही कंप्यूटर में डाटा सुरक्षित रखने की प्रथा थी, तो ऐसे में अपने फैमिली ट्री की जानकारी रखने का इससे अच्छा जरिया और क्या हो सकता था भला। इतना ही नहीं, पितृ पक्ष के कर्मकांड हमारे मस्तिष्क को डिटॉक्स करते हैं, जो लोग अपने मृत परिजनों की याद में परेशान रहते हैं, वे जब उनके नाम से तर्पण व पूजा आदि करते हैं, तो मन में कहीं ना कहीं यह भाव जागता है कि अब हमें उन मृतात्माओं से खुद को विलग करके अपने जीवन में आगे बढ़ना चाहिए।

बात करें, पितृ पक्ष में बनने वाली चावल की खीर की, तो इसका संबंध भी चंद्रमा से है। चंद्रमा मन व सोम कारक है। धान सदा पानी में डूबा रहता है और सोम भी तरल होता है। इसलिए पितरों को चावल का पिंड अर्पित किया जाता है, जिसमें तिल, जौ, घी व शहद मिलाया जाता है। इस प्रक्रिया से सोम का प्रभाव बढ़ जाता है। इनके अलावा काले तिल, जौ, कुशा व चावल इन चारों चीजों को आयुर्वेद में मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा माना गया है।

भारतीय परंपराओं में जो व्रत, त्योहार व रीति-रिवाज बनाए गए हैं, वे सामाजिक, मानसिक व वैज्ञानिक तर्क की कसौटी पर पूरी तरह से खरे उतरते हैं। हालांकि सामाजिक व भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार इनमें थोड़े-बहुत बदलाव भी जरूरी हैं।

तर्पण व जल का महत्व

हिंदू पुराणों में मस्तिष्क को समुद्र, नदी या पानी से जोड़ा जाता है। इसीलिए किसी परिजन की मृत्यु के बाद किसी नदी या जल स्रोत के पास श्राद्ध किया जाता है, जिससे विचारों की शुद्धि होती है। श्राद्ध में तर्पण के दौरान मंत्रोच्चार के साथ जल तर्पण किया जाता है, जो इस बात का प्रतीक है कि पानी के तर्पण के साथ मस्तिष्क से सारे नकारात्मक विचार भी बह कर बाहर निकल रहे हैं। यह पूरी प्रक्रिया हमारे मन-मस्तिष्क को मृतात्माओं व नकारात्मकता से विलग करने के लिए की जाती है। चातुर्मास के दौरान सूर्य दक्षिणायन में प्रवेश करता है। यह समय नेगेटिव स्टेट ऑफ माइंड का परिचायक है। इसीलिए इस समय होने वाले पूजा-पाठ व त्योहार मन में उल्लास भरते हैंं।