Monday 14 August 2023 12:23 PM IST : By Ruby Mohanty

सलाम करें, इन वीरांगनाओं को...

जरा याद करो कुर्बानी

3 नेहा त्रिपाठी, पत्नी, शहीद कमांडर प्रमोद कुमार (रांची)

मिलिए, रांची की नेहा त्रिपाठी से, जो फिलहाल गवर्नमेंट वुमन पॉलीटेक्नीक में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। उन्हें अपने पति स्वर्गीय कमांडर प्रमोद कुमार के साथ सिर्फ 8 साल रहने का मौका मिला। दोनों की लव मैरिज थी। उनका मानना है कि इन 8 सालों में वे प्रमोद के साथ कई जगह रहीं। कभी जम्मू, कभी त्रिपुरा, ताे कभी छत्तीसगढ़। नेहा से प्रमोद कहते थे कि उनकी ड्यूटी काफी कठिन है, और शायद इसीलिए उन्होंने नेहा को उच्च शिक्षा के लिए प्रोत्साहित किया। शादी के बाद नेहा ने एमटेक किया। जब 15 अगस्त 2016 को प्रमोद कुमार की आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में मृत्यु हुई, तो उसके बाद नेहा ने अकेले अपनी बच्ची के साथ जीवन का सफर तय किया। उनकी आगे की पढ़ाई काम आयी। वे कहती हैं, ‘‘आज भी मैं जब कभी बहुत डिस्टर्ब होती हूं, तो प्रमोद मेरे सपने में आ कर कहते हैं कि धीरज रखो, सब ठीक हो जाएगा। कई बार उनकी उपस्थिति महसूस करती हूं। उनकी पहनी हुई लास्ट यूनिफार्म मेरे पास है। मैं चाहती हूं कि किसी भी सैनिक की कुर्बानी को कोई भूले नहीं।’’ अब बच्चाें को पढ़ाना और उन्हें देश के काबिल बनाना ही नेहा का लक्ष्य है।

दूसरों की मदद में तलाशा उन्हें

4 शारदा सिंह, पत्नी, कारगिल शहीद दलार सिंह भाऊ (जम्मू-कश्मीर)

कारगिल में शहीद हुए सैनिक दलार सिंह भाऊ की पत्नी शारदा की कहानी अलग है। आजकल वे राजनीति में हैं। इन्होंने जम्मू के अखनूर डिस्ट्रिक्ट से चुनाव जीता। शारदा सिंह के मुताबिक, ‘‘कारगिल में फौजी पति के शहीद होने के बाद मैंने बहुत दुखों का सामना किया। सरकार ने मुझे घर बनाने में मदद की, जिससे मैं अपने तीन बच्चों की परवरिश कर पायी। मैं अपने बच्चों को इंडियन आर्मी में भेजना चाहती थी, पर भाग्य को यह मंजूर नहीं था। बड़े बेटे की 22 साल की उम्र में एक्सीडेंट की वजह से मृत्यु हो गयी। छोटा बेटा मेरे साथ है। जिंदगी जीने के लिए दूसरों का दुख देखना पड़ता है। दूसरों को देख कर अपना दुख कम दिखता है। मैंने धीरे-धीरे अपनी तरह की हर महिला की मदद करनी शुरू की। राजनीति में भी उतरी। डिस्ट्रिक्ट गवर्नमेंट काउंसिल के जब इलेक्शन हुए, तो बीजेपी ने इलेक्शन लड़ने के लिए मेरा नाम दिया। अपने काम की वजह से लोगों के बीच में प्रसिद्ध हुई और भारी वोटों से मेरी जीत हुई।’’ शारदा को बेस्ट वीर नारी का अवॉर्ड दिया गया। हर वीर नारी को वे संदेश देना चाहती हैं कि कि हम उन वीर जवानों की पत्नियां हैं, जिन्होंने देश सेवा के लिए अपनी प्राणों की आहूति दी। इसीलिए जरूरी है कि बहादुरी और धीरज के साथ आगे बढ़ें।

पहले गम, फिर मिली खुशी

1 सरस्वती राठौर, पत्नी स्व. मेजर श्याम सिंह राठौर (उत्तराखंड)

बात पुरानी भले ही है, पर आंखों के सामने आज भी सब कुछ ताजा है। मानो अभी की बात है। स्वर्गीय मेजर श्याम सिंह राठौर की 82 वर्षीय पत्नी सरस्वती का अनुभव किसी चमत्कार से कम नहीं। वे कहती हैं, ‘‘उन्होंने (श्याम सिंह राठौर) सन 1962 में भारत-चीन और 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में भाग लिया। युद्ध में जाने से पहले वे छुट्टी पर घर गए थे। पर उन्हें तुरंत उधमपुर जाने का आदेश दिया गया। लेकिन वे खुद भी इस बात से अंजान थे कि उन्हें जम्मू-कश्मीर युद्ध के लिए रवाना होना है। उन दिनों टेलीग्राम, चिट्ठी-पत्री के माध्यम से संदेश आते-जाते थे। इसी बीच उन्हें उनकी मां के देहांत का टेलीग्राम भेजा गया। पर उन्हें 15 दिन बाद उसकी खबर मिली। उसके बाद हम दोनों के बीच कोई संपर्क नहीं हुआ, क्योंकि वे सेना की टुकड़ी को लीड कर रहे थे। युद्ध में सभी साथी एक-एक कर खत्म हो गए। सिर्फ वही बचे थे। युद्ध खत्म होने पर गांव में सैनिकाें के परिजनों के पास उनके लापता हाेने या मृत्यु की खबर आने लगी। उन्हें (श्याम सिंह राठौर) युद्ध में लापता जान कर सबने सोचा कि वे दुश्मनों के चंगुल में पड़ चुके हैं या वे भी दूसरे सैनिकों की तरह शहीद हाे चुके हैं। वे 5 महीने तक लापता रहे। उस समय मेरी 8 महीने की फुल प्रेगनेंसी थी। प्रेगनेंसी का लंबा समय रोने, बिलखने और हताशा में काटा। एक दिन मैं पूरी तरह से शोक में डूबी थी, तभी एक तार आया। लेकिन लिखावट किसी को भी समझ नहीं आयी। तय करना मुश्किल था कि खुश होएं या रोएं। थक-हार कर मैंने ईश्वर पर सब छोड़ दिया। एक सुबह मैं देखती हूं कि मेजर साहब चले आ रहे हैं, पहले तो आंखों को यकीन नहीं हुआ, मगर फिर मैंने ईश्वर का तहेदिल से शुक्रिया अदा किया।’’ सरस्वती की कुछ महीनों तक मांग सूनी रही। वे बहुत कटु अनुभवों से गुजरीं। उन्हें फिर से मेजर श्याम सिंह के साथ जिंदगी गुजारने का मौका मिला, पर किस्मत को यह मंजूर ना था। जिंदगी की डगर में उनका अकेले ही चलना तय था। कुछ सालों बाद सड़क दुर्घटना में पति की मृत्यु हुई। उसके बाद सरस्वती ने जीवन का रुख सिर्फ लोगों की मदद करने की ओर मोड़ दिया।

मैं भी बनूंगी फाइटर हीरो

2 राधा शर्मा, पत्नी, शहीद ले. कर्नल ऋषभ शर्मा (फरीदाबाद )

बैटल कैजुअल्टी क्या होती है, यह आप हममें से कम ही लोग जानते हैं। पहले आर्मी में एविएशन का बहुत छोटा सा रोल होता था, लेकिन अब आर्मी एविएशन में उतने ही हैप्टर्स हैं, जितने एअरफोर्स में होते हैं। कश्मीर की घाटियों और बॉर्डर में ऐसी जगहें हैं, जहां सैनिक सुरक्षा के लिए तैनात हैं। वहां जाने के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता। वहां एविएटर काम करते हैं। सिंगल फौजी 50 साल पुराने हेलीकॉप्टर को ले कर हाई रिस्क पर वहां जाता है। ले. ऋषभ शर्मा ऑपरेशनल कैजुअल्टी में शहीद हुए। वे आर्मी एविएशन में फाइटर पायलट थे। मिलिए उनकी 34 वर्षीय पत्नी राधा शर्मा से, जो अपना अनुभव शेअर करती हैं। वे कहती हैं, ‘‘सैनिकों के लिए सपोर्टिंग आर्म्स देने के लिए ऑपरेशनल कैजुअल्टी के समय, बॉर्डर में आतंकी हमले होने पर, सैनिकों को लाने और ले जाने की जिम्मेदारी, सैनिकों को खाना, दवाइयां कोई और जरूरत की चीज पहुंचाने का काम आर्मी एविएशन का है। ऋषभ पिछले दिनों अटैक हेलीकॉप्टर फ्लाई कर रहे थे। आर्म्स के साथ उनका हेलीकॉप्टर क्रैश कर गया। वे गीता काफी पढ़ते थे। कर्म पर विश्वास रखते थे। काफी हिम्मती थे। मैं उनकी तरह हिम्मती बनना चाहती हूं।’’ देखना है कि आर्मी राधा को कितना सपोर्ट करती है।

मदद के लिए बनायी संस्था

5 डॉ.संजू सिंह, पत्नी, स्व. डीआईजी, सी. आर.पी.एफ, शैलेंद्र विक्रम सिंह (दिल्ली)

बात बहुत पुरानी नहीं है। जब कश्मीर में धारा 370 हटी थी, सुरक्षा के लिए कमांडर शैलेंद्र विक्रम उन दिनाें अपनी ड्यूटी के लिए जम्मू से श्रीनगर जा रहे थे। जबर्दस्त लैंड स्लाइडिंग हो रही थी। शैलेंद्र की गाड़ी पर चट्टानें गिरने लगीं। उनकी और उनके ड्राइवर की ऑन द स्पॉट मृत्यु हो गयी। मिलिए उनकी पत्नी डॉ. संजू सिंह से, जो अपनी बातें शेअर कर रही हैं। कहती हैं, ‘‘शैलेंद्र की मृत्यु के बाद जब मेरे घर में भीड़ जमा होने लगी, तब भी मुझे समझ नहीं आया कि कब चट्टान गिरी और कब मृत्यु हुई? पिछली शाम ही तो उनसे बात हुई थी। मुझे आज तक उनकी मृत्यु रहस्यमयी ही लगती है। उनके जाने के बाद लाइफ बदल गयी। मेरे लिए वे आज भी जीवित हैं। दुनिया के लिए वे फौजी थे, लेकिन मेरे लिए ताे पूरी दुनिया थे। मेरी 2 बेटियां हैं। दोनों अभी पढ़ रही हैं। आज भी मैं पहले की तरह सजती-संवरती हूं।’’ शैलेंद्र सारथी फाउंडेशन के नाम से डॉ. संजू ने गैर सरकारी संस्था खोली है, जिसमें शहीदों की बीवियों की मदद की जाती है।