Thursday 24 August 2023 04:54 PM IST : By Indira Rathore

चंद्रयान-3 की सफलता की नींव हैं ये महिला वैज्ञानिक, यह भी जानें कि किसके नाम पर रखा गया लैंडर का नाम

chandrayaan

कुछ ही दिन पहले हमने स्वतंत्रता दिवस पर घर-घर तिरंगा का नारा बुलंद किया था और आज एक हफ्ते बाद ही तिरंगा चांद पर भी लहरा रहा है। चांद के इतने करीब से दीदार करने के बाद पूरा भारत गर्व से कह सकता है कि सबसे आगे होंगे हिंदुस्तानी... आज भारत वहां पहुंचा है-जहां तक अभी कोई नहीं पहुंचा। चंद्रमा के साउथ पोल पर इसरो के चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग के साथ भारत ने वाकई इतिहास रच दिया है। साथ ही अमेरिका, चीन और रूस के बाद अब भारत भी चांद की सतह पर उतरने वाला चौथा देश बन गया है। इस जबरदस्त-शानदार सफलता के बाद ना सिर्फ दुनिया भर में भारतीय वैज्ञानिकों और तकनीक की धूम मचेगी, बल्कि ब्रह्मांड के अबूझ रहस्य खुल सकेंगे, स्वदेशी उपकरणों के स्तर पर आत्मनिर्भरता बढ़ेगी और आर्थिक स्तर पर भी सकारात्मक बदलाव देखने को मिल सकते हैं।

आज से करीब 61 साल पहले महान वैज्ञानिक विक्रम साराभाई ने एक सपना देखा और उसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के रूप में साकार किया। चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर का नाम विक्रम साराभाई के नाम पर ही रखा गया है। इतने वर्षों में एक बड़ा सकारात्मक बदलाव यह भी हुआ है कि हर अंतरिक्ष मिशन में महिला वैज्ञानिकों, इंजीनियरों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है। इसरो में कई प्रमुख पदों पर आज महिलाएं कार्यरत हैं। चंद्रयान-3 की इस सफलता के पीछे भी 54 महिलाओं का योगदान छिपा है। मिलते हैं कुछ महिलाओं से-

ऋतु करिधाल

लखनऊ की ऋतु करिधाल ने ही लैंडिंग की पूरी जिम्मेदारी संभाली। लखनऊ विश्वविद्यालय से भौतिकी में एमएससी के बाद ऋतु इसरो में नियुक्त हुईं। इस मिशन से पहले मंगलयान मिशन में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। चंद्रयान-3 में वह मिशन डायरेक्टर थीं। एक बड़े मिशन को लीड करने वाली रॉकेट वुमन ऋतु करिधाल महिला सशक्तीकरण की बड़ी मिसाल हैं।

अनुराधा टी.के.

इन्होंने इसरो के परियोजना निदेशक के रूप में कार्य किया और संचार उपग्रहों में विशेषज्ञता हासिल की। चंद्रयान-3 में उन्होंने तकनीकी स्तर पर बड़ी मदद की। इससे पहले 2011 में वह जीएसएलवी-12 की निदेशक थीं। उन्हें स्पेस गोल्ड मेडल और सुमन शर्मा पुरस्कार मिल चुका है।

कल्पना के.

कल्पना चावला के बाद चंद्रयान -3 की सफल लैंडिंग के बाद एक और कल्पना का नाम सामने आ रहा है। ये हैं-कल्पना के. जो प्रोजेक्ट की डिप्टी डायरेक्टर थीं। चंद्रयान-2 और मंगलयान मिशन में भी उनकी बड़ी भूमिका रही। कल्पना वर्ष 2000 में इसरो से जुड़ी थीं। आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले की रहने वाली कल्पना को 2005 में सैटेलाइट सेंटर भेजा गया था। चंद्रयान-3 मिशन में कल्पना दूसरे नंबर पर थीं, जो प्रोजेक्ट की हर डिटेल पर ध्यान दे रही थीं।

पी. माधुरी 

हालांकि चंद्रयान मिशन पर अनगिनत महिलाओं ने काम किया लेकिन पी. माधुरी कैमरे के आगे दिखने वाली महिलाओं में शामिल रहीं। माधुरी श्रीहरिकोटा रॉकेट बंदरगाह पर अधिकारी हैं और रॉकेट लॉन्च के दौरान उनकी एंकरिंग के लिए उन्हें जाना जाता है। वैसे माधुरी अपनी खूबसूरत साड़ी कलेक्शन के लिए भी जानी जाती हैं। हैदराबाद में जन्मी पी. माधुरी ने प्रोडक्शन इंजीनियरिंग में बीटेक किया और फिर शोध वैज्ञानिक के तौर पर इसरो में शामिल हुईं। उन्होंने चंद्रयान-1 और चंद्रयान-2 सहित कई परियोजनाओं में काम किया। चंद्रयान-3 मिशन के विकास में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।

सुनीता खोखर

राजस्थान के डीडवाना की निवासी सुनीता भी चंद्रयान-3 का हिस्सा थीं। चंद्रयान-3 में उपयोग होने वाले सेंसर को बनाने में उनका योगदान रहा। सेंसर का काम मुख्य रूप से चंद्रयान की गति और ऊंचाई बताने का है। इसकी एक्टिविटी को लेकर प्रोग्राम बनते हैं, वे सेंसर के जरिये ही बनते हैं और उसी से सूचनाएं वैज्ञानिकों को मिल पाती हैं। सुनीता के माता-पिता खेती-किसानी करते हैं और उनकी प्रारंभिक शिक्षा सरकारी स्कूल में हुई है। गांव से निकल कर इंजीनियरिंग करने वाली और इसरो तक पहुंचने वाली वह पहली लड़की हैं।